प्रतिभा पलायन

प्रतिभा पलायन

        प्रतिभा पलायन

                       प्रतिभा पलायन ‘ब्रेन ड्रेन’ का ही रूपान्तरण है. सही मायने में
‘प्रतिभा पलायन’ वह स्थिति है, जब शिक्षित प्रशिक्षित डॉक्टर, इंजीनियर या अन्य क्षेत्रों
के विद्वान् आकर्षक वेतन की तलाश में अन्य देशों में जाकर कार्य करने लगते हैं.
पुराने जमाने में भारत को सोने की चिडिया कहते थे. ये हम सब जानते हैं, अंग्रेज भी
जानते थे, पुर्तगाली भी जानते थे तभी वे इतनी दूर तक आ गए. समस्त विश्व में
भारतीयों ने अपने ज्ञान का डंका बजाया है। तभी तो हर जगह भारतीय लोग छा गए हैं.
अमरीका में तो राष्ट्रपति ओबामा के स्टाफ में अनेक भारतीय हैं, अपने ज्ञान के दम पर
भारतीय लोगों ने पूरे संसार में अपनी एक अलग पहचान बनाई है, लेकिन इसका एक
दूसरा पक्ष भी है, भारत ने इसकी कीमत भी चुकाई है प्रतिभा पलायन के रूप में.
      भारत प्रतिभाओं से सम्पन्न राष्ट्र है. विभिन्न देशों में विभिन्न क्षेत्रों में सारे विश्व
को इसने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है और विश्व का हर राष्ट्र इसकी इस
प्रतिभा को स्वीकार भी कर रहा है. आज कोई राष्ट्र अगर भारत के साथ अपने
सम्बन्ध को मधुर करना चाहता है, तो अन्य कारणों में से एक कारण भारत की अपनी
प्रतिमा क्षमता भी है. एक ओर भारतीय अपनी प्रतिभा का लोहा विश्व को मनवा रहे
है. अपनी काबिलियत का डंका विश्व में फैला रहे हैं, पर वहीं दूसरी ओर स्वयं
भारत की आंतरिक स्थिति ठीक नहीं है. अपने विकास के लिए दूसरे के सामने हाथ
फैला रहे हैं ऐसा क्यों ? कहाँ चली गई भारतीय प्रतिभा रूपी सम्पन्नता जिसकी
दुहाई देते हम सभी नहीं थकते, वो प्रतिभा है पर कुछ धन के लालच में एवं कुछ
सुविधाओं के लालच में दूसरे देश चली गई भारत की महत्वपूर्ण शैक्षणिक संस्थाओं
में शिक्षा प्राप्त की जैसे-आई आई एम..आई.आई.टी. आदि जब इनकी शिक्षा पूर्ण
हो गई, तो शायद इनको राष्ट्रीय सेवा से बढ़कर अपनी व्यक्तिगत भौतिक सुख-
सुविधा ही श्रेष्ठ लगी तभी तो अपना देश छोड़ चले गए.
         जिस वक्त पंडित जवाहरलाल नेहरू जी ने ऐसे सर्वश्रेष्ठ संस्थानों की आधारशिला
रखी थी तो उस वक्त उनका बस एक ही लक्ष्य था, एक ही उद्देश्य था कि किस
प्रकार से अपनी प्रतिभा को विकसित कर भारत को आत्मनिर्भर एवं सम्पन्न राष्ट्र
बनाया जाए पर आज हमारे प्रतिभावान शिक्षार्थी इन बातों को नहीं समझ पा रहे,
शायद इनके जहन में राष्ट्र की प्रगति के प्रति कोई दिलचस्पी नहीं है. इसके लिए
केवल वे ही दोषी नहीं हैं इसके लिए कुछ हद तक हमारी सरकारी नीति भी जिम्मेदार
मानी जाएगी. आखिर कहीं न कहीं हमारी सरकार भी ऐसे छात्रों को उनकी शैक्षणिक
योग्यता के अनुकूल उचित संसाधन मुहैया नहीं करा पाई जिसका परिणाम प्रतिभा का
पलायन है. कहा जाता है कि कोई भी राष्ट्र तभी सुपर पॉवर बन सकता है जब उसके
पास अपनी वैज्ञानिक क्षमता हो. आप उधार लेकर, खरीद कर सुपर पॉवर तो एक समय
के लिए बन सकते हैं पर ज्यादा दिनों तक टिके नहीं रह सकते. हम वैज्ञानिक उत्पाद से
लेकर अस्त्र-शस्त्र तक लाखों डॉलर खर्च करते हैं. आज देश की प्रतिभा देश में नहीं,
बल्कि विदेश में अपना भविष्य देखती है.
          देश अपने संसाधन लगाकर एक प्रतिभा को तैयार करता है और वह अपना
ज्ञान देती है विदेशों को उसके ज्ञान और अनुभव से देश वंचित हो जाता है. आखिर
क्यूँ होता है. जवाब ज्यादा जटिल नहीं है इसका कारण है हमारी व्यवस्था……
लाल फीताशाही यहाँ से अच्छा माहौल और पैसा उन्हें विदेशों में आकर्षित करता
है. हमारी सरकार प्रतिभा पलायन को रोकने के लिए कोई पहल नहीं करती….!अगर
ये प्रतिभाएं देश को अपना ज्ञान देतीं, तो आज हम हर मामले में विकासशील देशों से
आगे खड़े होते.
       प्रतिभा पलायन देश का दुर्भाग्य― प्रतिभा देश की शान के साथ जान भी होते
हैं उनका पलायन देश का नुकसान तो है ही साथ में जनता में गलत संदेश भी जाता है,
गाँव राज्य देश का विकास प्रतिभाओं के योजना का समुचित उपयोग कर किया जा
सकता है. आज भी विदेश में भारत के कई इंजीनियर डॉक्टर अपनी योग्यता का परचम
लहरा रहे हैं. अमरीका जैसे देश को अपने देश के युवाओं को अगाह करना पड़ा कि
समय रहते सावधान हो जाओ वरना भारतीय प्रतिभाएं सारे जॉब ले जाएंगे. अब
प्रतिभा पलायन क्यों …..?
● योग्य व्यक्तियों में से कुछ लोगों को अपने ही देश में कोई सन्तोषजनक काम नहीं
मिल पाता या किसी न किसी कारण से वे अपने वातावरण से तालमेल नहीं बिठा
पाते. ऐसी परिस्थितियों में ये लोग बेहतर काम की खोज के लिए अथवा अधिक
भौतिक सुविधाओं के लिए दूसरे देशों में चले जाते हैं.
 
● अपने कुशल और प्रतिभा सम्पन्न व्यक्तियों की हानि से विकासशील देश सबसे
अधिक प्रभावित हुए हैं. इसका मुख्य कारण यह है कि विकासशील देशों में वेतन और
अन्य सुविधाओं के रूप में प्राप्त होने वाले लाभ कम हैं.
 
● वैज्ञानिक या चिकित्सा अथवा ज्ञान के किसी अन्य क्षेत्र का विशेषज्ञ कम वेतन
और अन्य कठिनाइयों को भी सह सकता है, यदि उसकी योग्यता को अच्छी मान्यता
मिले, उसके काम का ठीक मूल्यांकन हो तथा विशेषतः उसकी विशेषता वाले क्षेत्र में
अनुसंधान और सुधार के अच्छे अवसर प्राप्त हो. इस प्रकार अच्छी प्रकार से साधन
सम्पन्न प्रयोगशाला अथवा पुस्तकालय राष्ट्रीय प्रतिभाओं में से अधिकांश को
अपनी मातृभूमि छोड़ने से रोक देंगे चाहे विदेशों में कितना अधिक वेतन क्यों न मिले.
 
● एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति अधिक धन कमाने के लिए विदेश में चला जाता है, क्योंकि
उसका अपना देश उसके मन की इच्छाओं की पूर्ति के मार्ग में बहुत से कानूनी तथा
अवसरों के अभाव ने विकासशील देशों के योग्य व्यक्तियों को इस बात के लिए
राजनैतिक प्रतिबन्ध लगाता है, साधनों और उत्प्रेरित किया है कि वे बेहतर अवसरों 
की खोज में संयुक्त राज्य अमरीका तथा जापान, हांगकांग और सिंगापुर के उन्मुक्त
राजनैतिक वातावरण में चले जाएं.
 
● विकसित देशों के रहन-सहन के ऊँचे स्तर की चमक-दमक ने विकासशील क्षेत्रों के
लोगों को सदा ही अत्यधिक आकृष्ट किया है और प्रतिभाशाली लोग और विशेषज्ञ भी
इस मोह-जाल से अपने आप को नहीं बचा पाए. इसका परिणाम यह हुआ कि
विकासशील देशों के अधिकांश प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति रहन-सहन के इस स्तर को
प्राप्त करने तथा कारों, रेफ्रिजरेटरों, दूरदर्शन आदि जैसी उपभोक्ता वस्तुओं को
प्राप्त करने में प्रसन्नता का अनुभव करने लगे, जोकि विकसित देशों के एक साधारण
नागरिक को भी उपलब्ध होती है.
         यहाँ प्रश्न उठता है कि ये प्रतिभाएं विदेश का रुख क्यों कर रहे हैं? क्या हमारे देश
में उनको देने लायक वेतन नहीं या हमारे देश में उनके प्रतिभा के उपयोग के लिए
विकल्प नहीं? या हम देश का विकास नहीं चाहते? अन्तिम कहावत सही लगती है. देश
में आज धन की कमी नहीं वरन् उसकी अधिकता से उसका दुरुपयोग हो रहा.
वास्तव में हमारी सोच नकारात्मक है उन पर विश्वास करके अपने आपको बौना बना
लेने की सोच हममें घर कर गई है. विकास के लिए धन से अधिक विचार पुष्टता की
आवश्यकता है, सकारात्मक सोच की आवश्यकता है जो हमारे देश के राजनेताओं
में इसकी कमी स्पष्ट झलकती है इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हमारे ही देश में फलते
फूलते निजी चिकित्सा एवं आई टी संस्थान हैं. देश के भीतर ही प्रतिभा शासकीय
अस्पताल व इंजीनियरिंग संस्थानों में अच्छे वेतन एवं सेवा में गारंटी नहीं होने से सेवा
देने से कतराते हैं इसे हम क्या कहें. आज भी हमारे देश के प्रतिभा शासकीय प्रतिष्ठानों
में जॉब में शामिल तो हो जाते हैं, परन्तु कुछ ही महीनों के बाद उनका भ्रम टूट
जाता है और जॉब छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं. आज भी हमारे राजनीतिज्ञ देश की
जरूरत के बारे में नहीं सोचते उनकी सोच अपनी कुर्सी बचाने की होती है. दोबारा
सत्ता में आने की होती हैं अपने अहंकार की संतुष्टि की होती है, क्योंकि हम सब भी
किसी न किसी मामले में स्वार्थी हैं और उनकी सोच को मजबूती प्रदान करने का
काम करते हैं. देश में प्रतिभाशाली लोगों के पलायन प्रतिभा पलायन’ को कैसे रोका
जाए? साथ ही जो लोग भारत छोड़कर चले गए थे उन्हें किस प्रकार वापस लाया जाए
जिससे उनके गौरव के साथ-साथ देश का गौरव भी बढ़ सके.
      आज जरूरत है इस देश को वैज्ञानिक सोच को विकसित करने की एक सर्वे के
मुताबिक वर्तमान में भारत के जितने भी इंजीनियर हैं, गुणवत्ता के लिहाज से 25
प्रतिशत ही उन्हें सही माना जाता है. ऐसा क्यों? कहीं न कहीं तो खामियाँ हैं. चाहे
इंजीनियर हो या डॉक्टर, जो हैं भी उन्हें ना तो उचित तनख्वाह मिलती है और ना ही
आगे बढ़ने के लिए और शोध करने के उचित अवसर मिलते हैं. अतः जो भी हो
हमारे प्रतिभा सम्पन्न लोग अपनी राष्ट्रीयता, अपनी देश सेवा का मान रखें, अगर हमें
सुविधाएं कम भी मिलें, तो कम-से-कम देश की प्रगति, देश के स्वावलम्बन की खातिर
कुछ तो त्याग करे. कहा भी गया है कि शिक्षा की सार्थकता तभी मानी जाएगी जब
वह अपने हित के साथ-साथ सामूहिक हित की भी बात करें. वहीं दूसरी ओर हमारी
सरकार इस बात का प्रयास अवश्य करे कि ऐसे शैक्षणिक प्रतिभावान लोगों को हर
सम्भव सहायता मुहैया कराया जा सके तथा देश को विकास की राह में अग्रणिय बनाया
जा सके. जहाँ हर राष्ट्र अपनी भाषा, संस्कृति और शिक्षा का संरक्षण करता है
वहीं हम इनका त्याग कर रहे हैं. ऐसे में देश का क्या होगा ! हमारे यहाँ योग्यता
से ज्यादा महत्व व्यक्ति को दिया जाता है, जो गलत है. आज विदेश में रखे काले धन
पर सब की नज़र है पर विदेशों में बसे प्रतिभाशाली लोगों को कोई पैकेज देकर
वापस नहीं लाया जा सकता? क्यूँ सभी पार्टियाँ खामोश हैं? क्या देश का उन पर
अब कोई हक नहीं रहा या आज उनकी यहाँ कोई जरूरत नहीं है? सच तो ये है कि
सब वापस आना चाहते हैं, लेकिन कोई शुरूआत करे, तो सही ! एक अच्छी
और दिल से की गई शुरूआत देश का भविष्य बदल सकती है. विदेशों में बसे
भारतीय पेशेवर वहाँ की सुख सुविधाओं से प्रभावित होने के बाद भारत चाह कर भी
नहीं आ पाते. उनको यहाँ बुलाने के लिए जल्द-से-जल्द हमें विश्व स्तरीय स्मार्ट
सिटिस बनाने होंगे और वहाँ विश्व स्तरीय शोध संस्थान खोलने होंगे जहाँ वह अपनी
बौद्धिक क्षमता का सही इस्तेमाल कर सकें. साथ में उनको पैकेज भी अच्छा मिले और
जो भी वह आविष्कार करें उसकी ज्यादा- से ज्यादा रॉयल्टी भी उनको मिले, तो खुद
ही ये लोग भारत आने लगेंगे.
● वैसे तो हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था को चाहे वो स्कूली शिक्षा हो या आईटी से सम्बन्धित
शिक्षा, अव्वल दर्जे की मानी जाती है पर वास्तव में क्या इससे देश को कुछ लाभ हो रहा है?
ये यक्ष प्रश्न अनुत्तरित है. अधिकांश उच्च शिक्षित बच्चे कैम्पस सलेक्शन के माध्यम से विदेश
की ओर रुख कर लेते हैं, जो रह जाते हैं वो विदेशी कम्पनियों में नौकरी करना अपना
सौभाग्य समझते हैं. क्या हमारी शिक्षा प्रणाली या सर्विस प्रणाली में बड़े सुधार की आवश्यकता
है? ये अत्यन्त विचारणीय विषय है.
 
● प्रतिभा पलायन देश को कितना नुकसान पहुँचा रहा है ये तो सरकार को देखना है पर इससे
कितने परिवार टूट रहे हैं और इससे लोग किस कदर परेशान है? ये व्यथा तो केवल वो बूढ़े
माँ-बाप ही बता सकते हैं जो जीवन के उत्तरार्ध में भी जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. माना
कि हर व्यक्ति पैसा कमाना चाहता है पर ये अंधी-दौड़ परिवारों को किस कदर प्रभावित कर
रही है ये तो सबको धीरे-धीरे पता चल ही रहा है. संयुक्त परिवार तो बहुत पहले ही इसका
शिकार हो चुका है पर अब तो एकल परिवार भी विच्छेदन की प्रक्रिया से बुरी तरह प्रभावित
हो रहा है.
 
● क्या हमारे देश में नौकरी की कमी या नीतियों में? क्या यहाँ किसी की योग्यता का उचित
आकलन नहीं हो पाता? सरकार से गुज़ारिश है इस समस्या पर ध्यान दे. प्रतिभा को बाहर ना
जाने दे यहाँ पर ही उचित मूल्यांकन के द्वारा प्रतिभा को पुरस्कृत करें अथवा भयंकर
दुष्परिणाम भोगने के लिए तैयार हो जाएं.
 
● विकासशील देशों के लिए यह भी मुश्किल है कि वे अलग-अलग इकाइयों के लिए उचित
राशियों की व्यवस्था करें चाहे वे व्यक्ति हो या सामग्री जब उत्पादन अधिक होने लगेगा तभी
माँगकर्ताओं को अधिक माँग करनी चाहिए, परन्तु उस स्थिति के आने से पहले देश के हर
व्यक्ति का यह कर्त्तव्य हो जाता है कि वे इसकी उन्नति के लिए कार्य करें.
 
● यदि वह अधिक कुछ नहीं कर सकता तो कम-से-कम नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के
लिए कार्य करे जिन्हें प्राप्त करना उनके देश के नागरिक का अधिकार है. देशभक्ति एक
स्वाभाविक मनोभाव है जिसे बाहर से नहीं लादा जा सकता. यदि देश को छोड़कर जाने वाले
प्रतिभाशाली व्यक्तियों को अपने देश से तनिक भी प्यार है, तो उन्हें दूसरे देशों में विदेशी के
रूप में रहने के लिए और अपने देश और अधिकार को नहीं छोड़ना चाहिए.
 
● यदि वे ऐसा नहीं करते तो उनकी मातृभूमि का कुछ नहीं बिगड़ेगा, क्योंकि यदि किसी
विकासशील देश के ऐसे प्रतिभाशाली लोग चले जाते हैं, जिनका वह देश कोई भी उपयोग नहीं
कर सकता, तो उनके जाने से उस देश को किसी प्रकार की भौतिक हानि नहीं होती.
 
● जब देश आर्थिक तथा औद्योगिक दृष्टि से आगे बढ़ता है, तो नई प्रतिभाएं अंकुरित हो जाएंगी
और वे अपने देश को नहीं छोड़ना चाहेंगी, क्योंकि उस समय उनका देश स्वयं भी विशेष
प्रतिभा वाले लोगों को बेहतर सुविधाएं देने की स्थिति में हो जाएगा. इस प्रकार यद्यपि बाहर
जाने वाले प्रतिभाशाली व्यक्तियों के दृष्टिकोण में कुछ वजन है और फिर भी उनकी यह
कार्यवाही युक्ति संगत दिखाई नहीं देती.

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