प्रतियोगिता में सफल होने के लिए आवश्यक है स्व-आकलन और वीर भाव
प्रतियोगिता में सफल होने के लिए आवश्यक है स्व-आकलन और वीर भाव
प्रतियोगिता में सफल होने के लिए आवश्यक है स्व-आकलन और वीर भाव
वर्तमान युग प्रतियोगिता का युग है. जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हमारे सामने अनेक
प्रतियोगी उपस्थित रहते हैं. सफल होने के लिए हमें अपना कार्य केवल भली प्रकार ही
नहीं करना पड़ता है, बल्कि इस प्रकार करना होता है कि हम अन्य प्रतियोगियों की
अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ कार्य करें यानी अन्य प्रतियोगियों को पीछे छोड़ दें. यह बात दूसरी
है कि इस प्रक्रिया में कुछ लोग अनैतिक साधन या माध्यम भी अपनाते हैं और वे
अन्य प्रतियोगियों के सिर पर पाँव रखकर आगे बढ़ने का प्रयत्न करते हैं, यानी गला-
काट ढंग अपनाते हुए भी संकोच नहीं करते हैं. अस्तु.
नौकरी का क्षेत्र भी इस पद्धति का अपवाद नहीं है, इस क्षेत्र में भी प्रत्येक
विभाग में हमें प्रतियोगिता का सामना करना होता है, छोटी-से-छोटी और बड़ी से बड़ी
सब प्रकार की सेवाओं में स्थान प्राप्त करने के लिए हमें पर्याप्त परिश्रम एवं संघर्ष के
दौर से गुजरना पड़ता है. याद रखिए कि प्रतियोगिता में सफलता प्राप्त करने के लिए
उत्तीर्ण होने योग्य न्यूनतम अंक प्राप्त करना पर्याप्त नहीं होता है, अपितु इतने अंक प्राप्त
करने होते हैं कि हमें श्रेष्ठतम पंक्ति में स्थान प्राप्त हो सके. इसके लिए दो बातें
परमावश्यक हैं. हम अपनी रुचि एवं अपनी सक्षमता को जान लें और फिर योजनाबद्ध
रूप में काफी समय तक तैयारी करें.
कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो किसी सेवा में चयनित होने पर भी असन्तुष्ट बने
रहते हैं-बराबर भुनभुनाते रहते हैं-“अच्छा होता यदि मैं कुछ और होता. यह कार्य
मेरी रुचि के अनुकूल नहीं है, यहाँ मेरा दम घुटता रहता है आदि.” आपकी
कुशलता, योग्यता, शिक्षा एवं कार्य-शैली आपको सफलता के शिखर पर पहुँचाने में
सक्षम हैं, परन्तु फिर भी आप असन्तुष्ट हैं, आपका कार्य आपकी रुचि अथवा आपके
व्यक्तित्व के साथ मेल नहीं खाता है. प्रश्न है कि आप ऐसी स्थिति में क्योंकर पड़ गए
हैं. सीधा-सा उत्तर है, जो भी काम मिल जाए, वह कर लेना चाहिए बाद में देखा
जाएगा आदि सामान्यतः यह सोच कार्य करती है और आपके साथ भी ऐसा ही हुआ
है, इस प्रकार प्रस्तुत कार्य आपके पाँव की बेड़ियाँ बन गया है, क्योंकि जीवन-व्यवहार
अथवा पारिवारिक उत्तरदायित्व के दबाव में आप अपनी रुचि का कार्य खोज ही नहीं
सके थे. अब आप न तो अपने काम को छोड़ सकते हैं और न उसमें आगे ही बढ़
पाते हैं. यथास्थितवादी यह विवशता कितनी कष्टदायी हो जाती है ?
इस प्रकार की विषम स्थिति से बचने के दो ही उपाय हैं या तो आप अपना
कार्यक्षेत्र बदल दें अथवा किसी क्षेत्र का चयन करने से पहले अपनी रुचि, सम्भावना
आदि को लेकर खूब सोच लें. पहले विकल्प से सम्बन्धित अनेक उदाहरण देखने को
मिल जाते हैं- आजकल अनेक इंजीनियर व डॉक्टर प्रशासनिक सेवाओं में जाते हुए
देखे जा सकते हैं, तथापि अधिक अच्छा यही है कि कैरियर का चयन खूब सोच-
समझकर अपने बारे में प्रत्येक दृष्टिकोण से विचार करने के उपरान्त ही किया जाना
चाहिए. कैरियर के चुनाव के लिए वेब (इन्टरनेट ऑन लाइन) से सहायता लेनी
चाहिए. उसमें अनेक टेस्ट निःशुल्क उपलब्ध हैं. इसके द्वारा कैरियर के चुनाव के लिए
आपको नई अन्तर्दृष्टि प्राप्त हो सकेगी. यद्यपि कोई भी टेस्ट शतप्रतिशत सही नहीं
होता है, तथापि वह आपके कैरियर के चयन में सहायक तो होगा ही. कैरियर
लीडर, डायरेक्टेड टेस्ट आदि ऐसे अनेक टेस्ट उपलब्ध हैं, जो आपकी सफलताओं
एवं आपके प्रभावों की तस्वीर आपके सामने प्रस्तुत कर देंगे, कैरियर सम्बन्धी अनेक
पुस्तकें भी उपलब्ध हैं. आप इन पुस्तकों से भी सहायता ले सकते हैं.
कैरियर चयन करने के उपरान्त आपको कैरियर परामर्शदाता से सहायता अवश्य
लेनी चाहिए, कैरियर परामर्शदाता के सम्पर्क में आने के उपरान्त इस बात की सम्भावना
बहुत कम रह जाती है कि कोई युवक-युवती गलत कैरियर का चयन कर ले.
कैरियर परामर्शदाता आपके लिखने की क्षमता को विकसित करने के साथ
साक्षात्कार कला में भी निपुण कर देगा. कैरियर चयन में वेबटेस्ट एवं पुस्तकों की
अपेक्षा परामर्शदाता की सहायता अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकती है. यह पद्धति
उनको भी उपयोगी हो सकती है, जो अपना कैरियर बदलना चाहते हैं. बस, यहाँ से
योजनाबद्ध तरीके से काम करने का क्रम शुरू हो जाता है, जो सफलता प्राप्ति के
लिए परमावश्यक है.
हम स्वयं देखते हैं कि जितने भी महान् कार्य हुए हैं अथवा किए जाते हैं,
उनके पीछे कर्ता का अदम्य उत्साह होता है उत्साह वीर भाव का स्थायी भाव है.
उत्साह के अभाव में वीरतापूर्ण कार्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. सागर
पर सेतु बन्धन के मूल में सीता की मुक्ति हेतु श्रीराम का उत्साह ही तो था ! ब्रिटिश
शासन से भारत को मुक्त कराने की प्रेरक शक्ति उत्साहयुक्त ही तो थी. तिरुवल्लवर
का यह कथन सर्वथा सटीक है-“उत्साह मनुष्य की भाग्यशीलता का मापदण्ड है.”
राणा प्रताप, शिवाजी सुभाष, भगतसिंह आदि को मातृभूमि के कष्ट निवारण हेतु
उत्साह ने ही बड़भागी बनाया था. सही बात यह है कि “बिन उत्साह के कभी किसी
उच्च लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती है.” ( इमर्सन)
वाल्मीकि रामायण में तो यहाँ तक कहा. गया है कि उत्साह से बढ़कर कोई बल नहीं
है. उत्साही पुरुष के लिए जगत् में कोई वस्तु दुर्लभ नहीं होती है.
अगला सोपान है-योजनाबद्ध तरीके से नियमित अध्ययन करना योजना दोनों स्तरों
पर बनाई जानी चाहिए-दीर्घकालीन और अल्पकालीन अथवा तात्कालिक जो ऐसा
नहीं करते हैं उनके सामने केवल एक ही सूत्र रह जाता है जिसके बीच में रात,
उसकी क्या बात ?’ यानी वे लोग हर काम को टालते रहते हैं और अन्तिम क्षण के
लिए छोड़ देते हैं. समय पर ऐसे व्यक्तियों के हाथ-पैर फूल जाते हैं अथवा वे अनुचित
साधनों की शरण में जाने का प्रयास करते हैं और अपना कैरियर चौपट कर बैठते हैं.
चीन के विचारक कन्फ्यूशियस ने एक स्थान पर लिखा है कि “जो लोग योजनाबद्ध
तरीके से काम नहीं करते हैं, वे अपने को मुसीबत में डाल देते हैं, योजनाबद्ध रूप में
कार्य करने से कार्य भी सम्पन्न होता रहता है और कर्ता के आत्मविश्वास में वृद्धि भी
होती रहती है. योजनाबद्ध तरीके से कार्य करने पर परिस्थितियाँ भी अनुकूल बनती
जाती है.” विक्टर ह्यूगो का कथन है कि “दिन में सम्पन्न किए जाने वाले कार्यों
के सन्दर्भ में जो व्यक्ति योजना बना लेता है, उसके हाथ एक ऐसा सूत्र लग जाता है,
जो सर्वाधिक व्यस्त जीवन की भूल-भुलैयों में उसका मार्गदर्शन करते हुए उसको पार
ले जाता है.”
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