प्रेमचंद

प्रेमचंद

                          प्रेमचंद

मुक्ति संघर्ष के महान् योद्धा कथाकार प्रेमचन्द का जन जुलाई 1880
को वाराणसी से छः मील दूर लमही ग्राम में हुआ था और मृत्यु 1936 में
वाराणसी में हुई । उन्होंने निम्नमध्यवर्गीय जीवन के अभावों, संकटों और
परेशानियों से निरन्तर जूझते हुए अपने मानवीय एवं सृजनात्मक व्यक्तित्व का
निर्माण किया और अपने देश और दुनिया के मनुष्यों की मुक्ति के लिए अपना
तन-मन-धन सबकुछ होमं कर दिया। अपने जीवन-मूल्यों की रक्षा के लिए
जीवरभर संघर्ष करनेवाले इस सर्वकालिक अमर रचनाकार ने अपने उपन्यासों
और कहानियों के जरिये एक सुखी-समृद्ध मानवीय विश्व-समाज के सपनों को
साकार करने के उद्देश्य से ही अपने जीवन और साहित्य दोनों में अनवरत् एक
योद्धा की भूमिका का निर्वाह किया, जिसकी उपलब्धि के रूप में निर्मला, सेवा
सदन, गबन, रंगभूमि, कर्मभूमि और गोदान तथा मंगलसूत्र जैसे श्रेष्ठ
उपन्यास हैं ।
 
प्रेमचंद ने एक कहानीकार के रूप में लगभग 300 कहानियाँ लिखीं, जिनमें
जीवन के हर क्षेत्र, हर वर्ग के पात्रों की जीवन-स्थितियों का अत्यन्त मार्मिक
चित्रण है। कहानी का विषय तात्कालिक यथार्थ हो अथवा ऐतिहासिक विषय,
उनकी चिन्ता के केन्द्र में सदैव शोषित पीड़ित-प्रताड़ित-उपेक्षित मनुष्य की
मुक्ति रही है। उनकी कहानियाँ जाति-सम्प्रदाय और धार्मिक पाखण्ड से लेकर
पूँजीवादी-सामंती समाज की हृदयहीनता के विरुद्ध विद्रोह का शंखनाद हैं। 
 
पंच परमेश्वर प्रेमचंद की प्रारंभिक कहानी है, जिसमें इस जीवन-सत्य का
मार्मिक स्तर पर उद्घाटन हुआ है कि पंच के पद पर प्रतिष्ठित व्यक्ति जाति,
धर्म और सम्बन्धों से सर्वथा मुक्त न्याय के प्रति ही उत्तरदायी होता है ।

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