बचकर चलना जरूरी

बचकर चलना जरूरी

                   बचकर चलना जरूरी

“चाहे वे कितने ही प्रतिभाशाली क्यों न हों, स्वयं को प्रेरित करने में असमर्थ लोगों को
औसत परिणामों से ही सन्तुष्ट होना पड़ता है.
        यह जीवन एक प्लेटफॉर्म या चौराहे की भाँति है. यहाँ से बहुत प्रकार की धाराएं
निकलती हैं. हम में से हरएक को अपने लिए मार्ग चुनना है. हमारी दिशा का
निर्धारण कोई अन्य नहीं करेगा और न ही हमारी दशा का यहाँ हरएक व्यक्ति अपनी
आन्तरिक प्रेरणाओं से ही दिशा निर्धारित करता है एवं भीतरी अवस्थाओं व समझ के
स्तर के अनुरूप ही दशा को प्राप्त होता है. हमारा वह चुनाव जो हमें अधिकाधिक
उच्च स्तर का सुख, वैभव व शांति प्रदान करे, हमारे अन्तःकरण को प्रफुल्लित व
सक्षम बनाए. ‘योग्य चुनाव कहलाता है, किन्तु जिसके परिणाम में दुःख, दरिद्रता,
अशांति, उदासी, पीड़ा आते हैं. वह ‘अयोग्य चुनाव’ है. चूँकि हमें अपने हर चुनाव का
परिणाम भोगना ही पड़ता है, इसीलिए हमें चुनाव प्रक्रिया को जानना भी जरूरी है.
समझना आवश्यक है.
             हम जिसको सुनना, देखना, सूँघना, चखना व छूना पसंद करते हैं, उसको ही
तलाशते हैं. प्रायः हमारी पसंद हमारे चुनाव का मापदण्ड बनती है. हमारी पसंद का
परिवर्तन हमारी अपेक्षाओं व समझदारी में निहित है. जब हमारी अपेक्षाएं बदल जाती
हैं, पसंद भी बदल जाती हैं. जैसे जिन गायों से दूध मिलना बंद हो जाता है, गा भुय का
मालिक उन्हें पसंद करना, प्यार करना छोड़ देता है. वह कई बार तो उन्हें बेच भी
डालता है. जिन खिलौनों से भर जाता है, बच्चा उन्हें छोड़ या तोड़ देता है.
अपेक्षाएं बदल गईं तो लोग मित्र, सम्बन्धी व परिवारजनों को भी छोड़ देते हैं. यद्यपि यह
उदाहरण नकारात्मक दिए गए हैं, परन्तु ऐसे कई सकारात्मक मुद्दे भी होते हैं जहाँ
इंसान अपनी पसंद को बदल लेता है, परन्तु उसे फिर समझदारी के कारण हुआ बदलाव
कहते हैं, जैसे जिस विषय के चुनाव से ज्यादा लाभ व कम मेहनत पड़े अधिक
उपयोग व कम प्रदूषण हो, उसे चुनना.
           एक सरल, सुखद एवं निष्कंटक जीवन जीने के लिए यह आवश्यक है कि ऐसी
रीतियों, क्रियाओं, कार्यों से यथासम्भव बचा जाए जो जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव
डालती है.
       अध्यात्म ज्ञान के ज्योतिपुंज श्री विराट गुरुजी ने किसी समय कहा था कि मनुष्य
को चार स्थानों से बचकर चलना चाहिए-
1. नकारात्मक व दुःखद विचार
        ऐसे विचार जो हमारी आन्तरिक शांति व समृद्धि में बाधा डालते हैं वे ‘नकारात्मक
विचार’ कहलाते हैं नकारात्मक विचारों में अविश्वास, डर, शंका, चिंता, बेचैनी, उदासी,
तड़प व स्वार्थवश पैदा हुई हिंसक भावनाएं सम्मिलित रहती हैं जिन लोगों के पास
जिंदगी के प्रति नकारात्मक निराशाजनक रवैया होता है, वे बहुत दुःख उठाते हैं. वे
हर किसी घटना से दुःख ही ग्रहण करते हैं. ऐसे लोगों के संग बने रहने से अन्य लोग
भी उन दुःखपूर्ण कल्पनाओं के आदी बन जाते हैं. उनकी सोच व रवैया भी स्वयं को व
अन्य को कष्ट देने वाला बन जाता है. इस जीवन में हरएक वस्तु का यथायोग्य महत्व
व उपयोग है, किन्तु नकारात्मक नजरिए वाला व्यक्ति उनको ग्रहण नहीं कर पाता.
 
2. अनैतिक व बदनाम मित्र सम्बन्धी
           ‘बचकर चलो’ की प्रेरणा देते हुए श्री विराट गुरुजी इस बात पर अत्यधिक प्रकाश
डालते थे कि “आपके मित्र कैसे हैं ? यदि आपके मित्र अनैतिक धन्धों में लिप्त हैं,
शराबी, आवारा व फिसड्डी-मूर्ख हैं, तो आप भी उसी तरंगनिधि के सदस्य बन
जाओगे”. यह दुनिया प्रभावों की दुनिया है. यहाँ हरेक के भाव संगी-साथियों के भावों से
प्रभावित होते ही हैं. यदि आपके दोस्त व परिजन समझदार, सुलझी मानसिकता वाले,
उदार, प्रेमी व दयालु हैं, तो आप में ये गुण प्रकट होते जाएंगे. इसके विपरीत यदि आप
निम्नस्तरीय सोच रखने वाले लोगों के साथ रहना पसंद करते हो तो आपका भविष्य भी
वैसा ही चिह्नित होता जाएगा. मन को पानी की उपमा दी जाती रही है.
                               हर बुराई से बच के रहें हम
                               जितनी भी दे भली जिंदगी रे
                               वैर हो न किसी का किसी से
                               भावना मन में बदले की हो ना
                               हम चलें नेक रास्ते पे हमसे
                               भूल कर भी कोई भूल हो ना
                               इतनी शक्ति हमें देना दाता !
                               मन का विश्वास कमजोर हो ना।।
 
3. अनावश्यक व स्वास्थ्यपीड़क भोजन व वस्तु उपभोग
        अस्वास्थ्यकर व अनावश्यक भोजन वस्तु का उपभोग स्वाद की व सुविधा की
लालसावश ही किया जाता है. लालच बुरी बला है. ये हमें आंतरिक शक्तियों से दुर्बल
करती जाएंगी जीवन को स्वास्थ्यपूर्ण व आत्मा का सबल बनाना हम सबकी स्वयं के
प्रति जिम्मेदारी है जिस प्रकार कोई किसान अपने खेतों में विष का सींचन नहीं करता,
अपनी जमीन को बंजर नहीं बनाता, ठीक इसी तरह हमें भी अपने शरीर रूपी खेत
(क्षेत्र) में विषैले रसायनों को भोजन के रूप में कभी भी ग्रहण नहीं करना चाहिए. शराब,
माँस, अफीम, कोकीन, भाँग, चरस, सिगरेट, तम्बाकू, नशीले पदार्थ या उत्तेजक पदार्थ
लेकर अपने शरीर को नष्ट करने से बचना जरूरी ही है,
 
4. अत्यधिक व अपराधप्रेरक धनवैभव संग्रह
          बचकर चलने के लिए हिदायत देते हुए श्री विराट गुरुजी हमें चौथा सूत्र देते हैं
कि उस धन-वैभव का संग्रह, मोह न करो जो नैतिकता को ताक में रखकर मिलता है.
जैसे आगजनी, रिश्वत, भ्रष्टाचार, काला-बाजारी, ठगाई व धरोहर हड़पने से प्राप्त
धन. जो धन अपराध करके अर्जित किया जाता है वह पुनः अपराध करने की ही बुद्धि
व प्रेरणा देता है. यदि घर में पैसा आने के साथ ही कलह-क्लेश, शराब, जुआं आदि
दुष्प्रभाव पैदा हो रहे हैं, तो तुरंत घेतो! धन आवक के नैतिक उपायों को ही अपनाओ
अन्यथा याद रहे कि “पापी को धन परलै जाय ” अर्थात् पाप से इकट्ठा धन समूल
नष्ट होगा व उस इंसान को भी प्रतित करता रहेगा.
           धन-वैभव के आने के साथ घर में सुख-शांति बढ़े, पूजा-भक्ति बढ़े, सेवा व
मन की भावना बढ़े तब तो ठीक है, अन्यथा बचकर रहना, क्योंकि नीतिकारों का कथन
है कि ‘अन्याय से उपार्जित धन समूल विनाश करेगा घर में बीमारियाँ, कोर्ट केस,
चिंता, अवसाद, विकलांगता एवं बदनामी का शिकार बना डालेगा “
         अतः लालसा को लगाम लगाओ एवं अपराध से बचकर चलो अपराधियों के
जगत में एक बार घुस गए, तो कभी निकल नहीं पाओगे. यह एक ऐसा दलदल है, जहाँ
जितना निकलने की कोशिश करोगे, उतने ही धँसते चले जाओगे. प्रारम्भ से ही बच कर
चलो. रातों-रात करोड़पति बनने के झाँसों से सावधान रहो. हर काम को नियमानुसार
ही होने दो जीवन को जीने की शैली का सम्यक् चुनाव ही आपको सफलता व सिद्धि
देगा.

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