बिखरे मत निखरे

बिखरे मत निखरे

                 बिखरे मत निखरे

जैसे कोई पक्षी को चुग्गा डालता है तो जगह-जगह दाने बिखेरता जाता है. कहीं
आप भी अपने मन को चुग्गा डालने के लिए उसे जगह-जगह बिखेर तो नहीं रहे ?
जब जिससे मिलते हो, जिस भी विषयवस्तु से आकर्षित होते हो, जिस किसी व्यक्ति से
प्रभावित होते हों, उस पर अपना मन लुटा बैठते हो. मन दे कर यानि कुछ चित्ति कणों
को नहीं छोड़कर आप आगे बढ़ जाते हो. आपकी देह तो आगे चली जाती है, किन्तु
ये बिखरे चित्ति कण आपकी आज्ञावश उन स्थानों पर अटके रहते हैं और फिर वे
छिपकली की कटी पूँछ की तरह तड़पते हैं और पुनः मूल मन में समाहित होने तक मन
को भी बेचैन करते रहते हैं. आपकी बेचैनी का राज यही है कि आप बिखरे बिखरे हो.
आत्मज्ञानी श्री विराट गुरुजी रचित गीतिका के आरम्भिक दो पद देखें-
                             टुकड़ा टुकड़ा सोच हमारा,
                             बिखरा-बिखरा ज्ञान रे।
                             सत्गुरुवर की किरपा उतरे,
                             तो होवे निज भान रे॥
      हमारी सोच भी टूटी-फूटी और जानकारियाँ भी आधी-अधूरी इस तरह
हमारी मानसिक शक्तियाँ कमजोर हो चुकी हैं. हम किसी एक विषयवस्तु पर समग्र रूप
से ध्यान लगा ही नहीं पाते हैं और यह समग्रता का अभाव हमारी असफलता का
कारण बन जाता है. क्या हम अपने चित्तों को बिखरने से बचा सकते हैं ? उत्तर होगा
हाँ! अवश्य बचा सकते हैं, किन्तु इसके लिए हमें अपने मन को अनुशासित करना
सीखना होगा. मनोनुशासन की प्रक्रिया में उतरने के लिए कुछ बातों का अभ्यास
जरूरी है, जैसे-(A) जो अच्छा लगे उसे अपना बनाने की, हस्तगत करने की
कोशिश मत करो. मात्र उसके गुणों को सराहें और आगे बढ़ जाएं.
          अगर आप गुणदर्शी हो, गुणों के प्रशंसक हो और उन्हें अपने अधिकार में
रखने की कामना से मुक्त हो, तो वे गुण स्वतः आपमें निखरेंगे और आपको उन गुणों
के लिए बिखरने की जरूरत नहीं पड़ेगी. जैसे किसी का गाना पसंद आया, मन को
रुचिकर लगा तो आप उसकी तारीफ भले करो, किन्तु अपने मन में उस गाने की
कला के प्रति दीवानगी पैदा करके अथवा गाने वाले के प्रति दीवानापन लाकर, उसको
अपना बनाने की चेष्टा या फिदा हो जाने वाली सोच मत लाओ.
            निकम्मे बनकर परेशान होना मंजूर न हो तो स्वयं को बिखरने मत दो अपना
चित्त वहीं छोड़कर मत जाओ. मात्र दृष्टि में प्रेम भरकर गुणों का कला का आनंद लो
और उसके गुणों की तारीफ करके उसकी हृदय से कृतज्ञता ज्ञापित करके आगे बढ़
जाओ, आप निखरते जाओगे.
        अक्सर लोग अपने मन की दीवानगी की आदत के कारण कभी भी एकाग्रचित्त
हो नहीं हो पाते, किसी भी काम को उसकी पूर्णता तक पहुँचा नहीं पाते, बीच-बीच में ही
नए-नए विषयों में भटकते रहते हैं, जैसे बंदर एक शाखा से दूसरी शाखा में
उछलता रहता है. आप उछलने व भटकने की आदत को छोड़ने के लिए तैयार बनो
और इस सत्य तथ्य को जानो कि जो अपने ही मार्ग पर आगे बढ़ते हैं, अपने ही
लक्ष्य पर दृष्टि गढ़ाए रखते हैं, हर मार्ग में मिलने वाले हर राहगीर से प्रेमभरी दृष्टि से
मिलते हैं, कुशलक्षेम की दुआ करते हैं और अपनी राह पर आगे बढ़ जाते हैं, वे शनैः
शनैः निखरते जाते हैं. उनके बहुत प्रशंसक और अनुयायी बन जाते हैं, किन्तु तब भी वे
अपना ध्यान अपने ही लक्ष्य पर रखते हैं तो सफलता उनको बाहें फैलाए मिलती है.
        (B) कदाचित् आपका मन इसलिए बिखर गया है, क्योंकि इसको किसी ने
आहत किया है, अपना बनकर दिल में बस कर दिल को तोड़ डाला है, विश्वासघात
किया है, आपको लज्जित या अपमानित किया है, तब भी आप बिखरो मत. स्वयं
को बिखरने से रोको. आपका विश्वास जिस किसी ने आहत किया है उसे व उसकी
मजबूरियों को समझने का प्रयास करो. उसके इरादे अगर गलत थे, तब भी आप
उसको माफ कर दो और ऐसा सोचो कि-
                                   जाने दो सब कुछ अच्छा होने वाला है।
                                   झूठा झगड़ा जग का देखा भाला है।
                                   कोई ऐसा भी व्यवहारे अंतिम मेरी भलाई हो।
                                   भला करे सृष्टि सबका ही तन मन को सुखदायी हो।।
                                   जो भी हम पीवें वो अमृत प्याला है।
                                   जाने दो सब कुछ अच्छा होने वाला है।
        पूज्यश्री विराट गुरुजी द्वारा रचित ये गीतिका हमें हर प्रतिकूलता के क्षणों में
बिखरने से बचाएगी. इसे बार-बार गुनगुनाओ और हृदयपूर्वक गाओ. आप खुद
को व सम्बन्धित अन्यों को यदि माफ करते जाओगे, तो सतत् बिखरने से बचते जाओगे
व निखरते जाओगे.
             श्री विराट गुरुजी कहा करते कि “किसी भी क्षण में किसी के भी प्रति
बददुआ प्रसारित मत करो.” ऐसा मत कहो कि तूने मेरे साथ ऐसा-ऐसा किया है, तो जा
तेरे साथ भी ऐसा ही हो या तेरा मुँह काला हो, तुझमें कीड़े पड़ें इत्यादि इत्यादि कई
लोग सीधी गाली तो नहीं देते, किन्तु ऐसा कहते फिरते हैं कि “भगवान तुझे दण्ड
देवें.” वो तो सब कुछ देख ही रहा है, एक दिन तो उसके कर्मों की सजा उसे अवश्य
मिले. मैं चाहे न दूँ कोई अन्य देवें. इस तरह की गाली-गलौच भी मन के भीतर
पनपने ही मत दो बस उस दुश्मन को भी सद्बुद्धि मिले, ऐसी ही प्रार्थना करो, उसको
सद्बुद्धि मिले, ताकि उसका भी भला हो और मुझे सहने की शक्ति मिले, ताकि मेरे
भी अशुभ कर्म कट जाएं प्रार्थना गुनगुनाओ कि-
                                      जिह्वा पर हो नाम तुम्हारा,
                                      प्रभुवर ऐसी भक्ति दो।
                                      समभावों से कष्ट सहूँ सब,
                                      मुझको ऐसी शक्ति दो।
      आपकी प्रार्थना आपको निखारेगी, जबकि बददुआ यानि बुरी भावना आपको
बिखेर देगी. बददुआ एक ऐसी रजिस्टर्ड डाक है, जो सामने वाला स्वीकार न करे
तो लौट कर आपको ही मिलती है और अगर सामने वाला स्वीकार कर ले यानि
आपकी बददुआ से प्रभावित होकर प्रतिशोध लेने की ठान ले, तब भी वह पुनः बददुआ
ही प्रसारित करेगा, जो आपको जलाएगी. आपकी सुख-शांति के महल को ढहा देगी.
आपको सुख-चैन से सोने नहीं देगी. इसीलिए सदा खुद को सँभालो. बिखरने से बचा लो
         अगर हर विपरीत हालात में आत्मविश्वास को सँभालना व एकजुट बनाना आ
गया, तो विपत्तियाँ भी सम्पत्तियों का द्वार बन जाएंगी. आप बिखरोगे नहीं निखरोगे,
        इन दो अभ्यासों को पूरे मनोयोग से साधो तो सही देखो आपके दिनमान बदल
जाएंगे, वैसे भी गुरु की दृष्टि जहाँ पड़ती है, वहाँ अमृत ही बरसता है.
                                   अमिया बरसे जीवन सरसे
                                   ऐसा गुरु का ज्ञान रे।
                                   जो हिरदे में धारण करे
                                   वो उतरे भवजल पार रे।
                                   बिखरो मत, निखरो रे मनवा
      आपका मन दुर्भावों में व दीवानेपन में बिखरने से बच गया और लक्ष्य पर समग्र
रूप से समर्पित हो गया, तो आपकी सफलता सुनिश्चित होगी.

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