भारत में स्त्रियों की दशा एवं उसमें सुधार

भारत में स्त्रियों की दशा एवं उसमें सुधार

                     भारत में स्त्रियों की दशा एवं उसमें सुधार

मनुस्मृति के अनुसार भारतीय समाज में यह मान्यता रही है कि “जहाँ नारी को पूज्य माना जाता है, वहाँ देवताओं का निवास होता है और जहाँ उसे पूज्य नहीं माना जाता, वहाँ सब कार्य निष्फल होते हैं” परन्तु इसके होते हुए भी भारत में नारी की स्थिति वैसी नहीं है, जैसी होनी चाहिए भारतीय समाज में नारी की स्थिति की विवेचना इन शीर्षकों में किया जा सकता है.
 
(1) पुरुष की अपेक्षा परिवार में स्त्री को कम महत्व―भारत में परिवार का रूप पितृ सत्तात्मक है. जिसमें परिवार में पुरुष (पिता) की चलती है तथा स्त्री (माता) को हर बात के लिए उसके अधीन रहना पड़ता है
 
(2) सामाजिक दृष्टि से स्त्री पर पुरुष का संरक्षण―भारतीय समाज में स्त्री जाति को सदा पुरुष के सरक्षण में ही रहना पड़ता है. यह कहा जाता है कि विवाह से पूर्व उसे अपने पिता के संरक्षण में, विवाह के बाद उसे अपने पति के सरक्षण में तथा वृद्धावस्था में उसे अपने पुत्र के संरक्षण में रहना पडता है इससे उसमें स्वावलम्बन व आत्मसम्मान की भावना कभी भी उत्पन्न नहीं हो पाती.
 
(3) आर्थिक दृष्टि से पुरुष पर स्त्री की निर्भरता―भारत का सामाजिक ढाचा कुछ ऐसा है कि अधिकाश पत्नियाँ अपनी आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अपने पति पर ही निर्भर रहती है प्राय पति कमाते हैं और पलियाँ उनकी कमाई से
अपने सहित पूरे घर का खर्च चलाती हैं. स्वतंत्रता के बाद से स्थिति में कुछ अन्तर
आया है. अनेक क्षेत्रों में स्त्रियाँ भी कमाने लगी है पर कमाने वाली स्त्रियों का प्रतिशत स्त्रियों की पूरी जनसंख्या पर नगण्य है इस प्रकार के उदाहरण कम हैं, जिनमें पत्नी कमाती हो और पति जीवनयापन हेतु पत्नी पर निर्भर हो प्राय स्त्रिया ही आर्थिक दृष्टि से पुरुषों पर निर्भर होती हैं.
 
(4) घर की चारदीवारी में रहने के में कारण दृष्टिकोण का संकुचन―भारतीय समाज की यह मान्यता है कि स्त्रियों का उचित स्थान पर है और उसका मुख्य कर्त्तव्य गृहिणी धर्म का पालन है इस मान्यता का परिणाम यह हुआ कि स्त्रियाँ है
स्वयं भी घर की चारदीवारी से बाहर नहीं निकलना चाहती इससे उनका दृष्टिकोण  संकुचित हो जाता है.
 
(5) घर से बाहर कार्यरत् स्त्रियों के प्रति समाज का आक्रामक रुख―जो स्त्रियाँ परिस्थितिवश अथवा स्वेच्छा से साहस करके घर की चार-दीवारी से बाहर निकलकर कुछ करना चाहती हैं, उन्हें लोग सम्मान की दृष्टि से नहीं देखते और उनके
चरित्र पर अनावश्यक रूप से शका तक करते हैं खेतों, खलिहानों, कारखानों आदि में काम करने वाली स्त्रियों को तो लोग हेय दृष्टि से देखते हैं तथा उनके प्रति समाज का रुख भी आक्रामक होता है.
 
(6) शिक्षा के क्षेत्र में स्त्रियों की उपेक्षा―भारतीय समाज में शिक्षा के क्षेत्र में भी स्त्रियों की उपेक्षा सदा से होती आई है बहुत समय तक यह बात मानी जाती रही है कि स्त्री घर की दासी होती है, उसे शिक्षा प्राप्ति का अधिकार नहीं है आधुनिक भारत में शिक्षा के सम्बन्ध में ऐसी मान्यताओं में फर्क आया है, स्त्रियाँ भी शिक्षित होने लगी हैं. तथापि अब भी अधिकाश स्त्रियाँ अशिक्षित ही नहीं, निरक्षर तक हैं.
 
(7) पर्दा प्रथा-स्त्रियों की कूप मण्डूक प्रवृत्ति―भारतीय समाज में पर्दा प्रथा का प्रचलन पूर्व काल से ही बना हुआ है वर्तमान समय में अन्तर अवश्य आया है, पर यह अन्तर कुछ क्षेत्रों तथा कुछ स्त्रियों तक ही सीमित है बहुत समय तक पर्दा-प्रथा का रूप भारतीय समाज में इतना कठोर रहा है कि एक समय विवाह के बाद महिला के घर में आने के बाद वह अर्थी के रूप में ही घर से बाहर निकलती थी मुस्लिम समाज में तो पर्दा हेतु बुरके का प्रयोग किया जाता रहा है इसका अनिवार्य परिणाम यह रहा कि महिलाएँ रूढियो, परम्पराओं व सकीर्णताओं की जजीरों से बंधकर कूप मण्डूकता की शिकार होती रही है.
 
(8) बाल-विवाह, बहु-विवाह तथा तलाक-प्रथा―भारतीय समाज के अनेक वर्गों में बाल-विवाह प्रचलित रहा है इसका कुप्रभाव स्त्रियों के स्वास्थ्य पर पड़ता है, क्योंकि छोटी उम्र में ही वे माँ बन जाती है और उसे उनका स्वास्थ्य सहन नहीं कर पाता अनेक वर्षों में बहु-विवाह भी प्रचलित है मुसलमानों में तो पुरुष द्वारा चार विवाह सक करना उनके धर्म (शरियत) के अनुकूल माना जाता है इस प्रथा के कारण समाज में स्त्री की स्थिति दासियों जैसी हो जाती है पुरुष मनमानी सखा खियों से विवाह कर उन्हें अपनी दासी के रूप में रख सकता है तथा पुरुष पर स्त्रियों की आर्थिक निर्भरता पुरुषों के लिए ऐसा करना बड़ा सरल बना देती है कुछ जातियों में खियो को आसानी से अथवा अकारण गेड देने की प्रथा प्रचलित है मुसलमानों में तो पुरुष द्वारा केवल तीन बार तलाक तलाक ‘तलाक’ कहने भर से सी का तलाक हो जाता था अब सर्वोच्च न्यायालय ने तीन तलाक को अवैध घोषित कर दिया अब विधि के अनुसार तीन तलाक अपराध है और इसके लिए 3 वर्ष की सजा होगी.
 
(9) वेश्यावृति व स्त्री, जय विक्रय की प्रथा के कारण नारकीय जीवन―भारतीय समाज में स्तियों की खरीद व उनकी विक्रय प्रथा प्राचीन समय से आज तक चलती रही है इसके कारण स्त्रियों को उसी प्रकार खरीदाब बेचा जाता रहा है, जिस पकार लोग अपनी अन्य सम्पति को खरीदते व देचते है स्वतत्रता के बाद किए गए प्रयलों के बावजूद भी देश के अनेक भागों में स्त्रियों का अनैतिक व्यापार अब भी बड़े पैमाने पर चलता है तथा बिकी हुई स्त्रियों से चकलाघरों में वेश्यावृत्ति कराई जाती है और इस कारण उन्हें नारकीय जीवन बिताना पड़ता है.
 
(10) दहेज प्रथा व स्त्रियों के जीवन पर उनका कुप्रभाव―दहेज प्रथा भारतीय समाज में स्त्रियों के लिए एक अभिशाप के रूप में रही है विवाह के समय कन्या के अभिभावक उपहार स्वरूप कुछ धन वस्तु आदि वर पक्ष को देते हैं पहले ऐसा कन्या पक्ष खुशी से स्वेच्छावश करता था पर अब दहेज दहेज न रहकर वर मूल्य हो गया है और अब वास्तव में दूल्हा बिकता है और जो लडकी वाला वर पक्ष की इच्छा के अनुसार दहेज नहीं दे पाता, उसकी लडकी के लिए अच्छा वर नहीं मिला पाता दहेज प्रथा के कठोर प्रचलन के निम्नाकित दुष्परिणाम सामने आते हैं―
 
(i) जिन लड़कियों के विवाह वांछित से कम दहेज के साथ कर दिए जाते हैं, उन्हें ससुराल में अनेक यातनाएँ भुगतनी पड़ती है. वे विवश होकर कभी-कभी आत्महत्या कर लेती हैं और अनेक बार ससुराल वाले उनकी हत्या तक कर देते हैं.
 
(ii) दहेज का विवाद कभी कभी विवाह के अवसर पर भी उठाया जाता है. बारातें बिना विवाह के लौट जाती हैं, फल स्वरूप लड़कियाँ अपमानित होकर आत्महत्या तक कर सेती है.
 
(iii) पूरा दहेज न लाने के कारण लडकियों को ससुराल में अपमानित जीवन व्यतीत करना पड़ता है और इससे पति-पली के बीच तनाव रहता है.
 
(iv) जो लड़की वाले आवश्यक दहेज का प्रबन्ध नहीं कर पाते, उनकी लड़कियों या तो अयोग्य दर पाती हैं या कभी-कभी कुंवारी ही रह जाती है.
 
(v) दहेज प्रथा की इस स्थिति के कारण लड़की का जन्म समाज में बुरा माना जाता है अत लड़की के जन्म से ही माता-पिता चिन्तित होने लगते है और समझदार होने पर लड़कियाँ स्वय भी हीन-भावना का शिकार होने लगती है.
 
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए किए गए प्रयत्न
 
(1) स्त्री पुरुष की समानता को प्रोत्साहन―स्त्री पुरुष से किसी भी प्रकार हीन नहीं है. इस भावना को प्रोत्साहन के लिए लिंग के आधार पर किसी भी प्रकार का भेद-भाव सविधान द्वारा अमान्य कर दिया गया है अब स्त्रियाँ भी सभी क्षेत्रों में
पुरुषों को साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चल सकती है परिवार में उन्हें पति के समान स्थिति प्रदान करने के लिए हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 द्वारा पति के समान ही तलाक लेने का अधिकार प्राप्त है समाज में स्त्री को पुरुष के समान बनाने के लिए उसे कानून का सरक्षण पुरुषों की ही तरह समान रूप से प्राप्त है समान मजदूरी अधिनियम 1976 के अनुसार स्त्रियों को पुरुषों के समान ही मजदूरी पाने का हक दिया गया है.
 
(2) आर्थिक दृष्टि से स्त्री की आत्म-निर्भरता को प्रोत्साहन―आर्थिक दृष्टि से स्त्रियाँ पुरुषों पर निर्भर न रहे. इसके लिए स्त्रियों के लिए अनेक संक्षिप्त शिक्षा पाठ्य- क्रम तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए गए हैं, जिनके अन्तर्गत स्त्रियों को प्राथमिक स्कूल. अध्यापिकाओं, बाल-सेविकाओं, परिचारिकाओं, स्वास्थ्य निरीक्षकों, दाइयों, परिवार नियोजन कार्यकर्ताओं रूप में कार्य करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है जरूरतमद स्त्रियों को काम मिल सके, इसके लिए केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड सन् 1958 से ही एक सामाजिक आर्थिक कार्यक्रम चला रहा है उसी की ओर से महिला मण्डलों व्यावसायिक प्रशिक्षण तथा पुनर्वास केन्द्रों को सहायता दी जाती है कुछ राज्यों में नारी विकास निगम है, जो महिलाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं महिलाओं के लिए दस्तकारी प्रशिक्षण केन्द्र व महिला कर्मचारियों के लिए
होस्टल आदि भी उनमें आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए ही चलाए जा रहे हैं.
 
(3) स्त्रियों की शिक्षा की उचित व्यवस्था―स्त्रियों की शिक्षा की उचित  व्यवस्था, स्त्रियों के सब प्रकार के कल्याण में सहायक होती है. यह मानते हुए हमारे  देश में लड़कियों के लिए अब उच्च स्तर तक निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था है. भारत  के सभी राज्यों में लड़कियों को उच्च शिक्षा दिए जाने की व्यवस्था है. सामान्य शिक्षा के  अतिरिक्त स्त्रियों के लिए रोजगारपरक शिक्षा की भी अनेक योजनाएं सरकार द्वारा  चलाई जा रही हैं. उच्च स्तर स्त्रियों के लिए शिक्षा के सभी क्षेत्रों में पुरुषों के  समान ही उचित अवसर उपलब्ध हैं. होम साइंस व मेडिकल साइंस जैसे क्षेत्र उनके  लिए विशेष रूप से उपयुक्त समझे जाने वाले शिक्षा क्षेत्रों में उनके लिए विशेष  सुविधाएँ उपलब्ध हैं. प्रौढ़ महिलाओं के लिए कार्यात्मक शिक्षा (साक्षरता) का कार्यक्रम  1975-76 से ही चलाया जा रहा है, जिसके अन्तर्गत स्वास्थ्य, स्वच्छता, खाद्य तथा पोषाहार, गृह-प्रबन्ध तथा बच्चों के पालन- पोषण की अनौपचिारक शिक्षा प्रदान की जाती है.
 
(4) सामाजिक जागृति द्वारा सामाजिक कुप्रथाओं का उद्धार―पर्दा-प्रथा, बाल- विवाह, बहु-विवाह तथा तलाक-प्रथा, वेश्या-वृत्ति व स्त्री क्रय-विक्रय प्रथा तथा दहेज- प्रथा आदि वे प्रथाएँ हैं, जिनसे स्त्री समाज लगातार पीड़ित रहा है. इन प्रथाओं के प्रचलन को निरुत्साहित करने के लिए समाज में जागृति लाए जाने के अनेक प्रयत्न लिए जा रहे हैं, जिनमें सबसे प्रमुख स्त्रियों को शिक्षित करना है, जिससे वे इन रूढ़ियों की वास्तविकता व अवांछनीयता को समझ सकें और स्वयं अपने को उनसे मुक्त कर सकें. इसके अतिरिक्त अनेक स्वयं सेवी संगठन इन प्रथाओं के प्रचलन के विरुद्ध  सामाजिक जागृति उत्पन्न करने में कार्यरत हैं, जिसका परिणाम भी दिखाई दे रहा है.
 
(5) सरकारी प्रयास द्वारा कुप्रथाओं का निवारण―कुप्रथाओं के प्रचलन को निरुत्साहित किए जाने के लिए सरकारी स्तर पर भी अनेक प्रयत्न किए जा रहे हैं. बाल- विवाह को निरुत्साहित करने के लिए विवाह विधि (संशोधन) अधिनियम 1976 द्वारा स्त्री को यह अधिकार दिया गया है नाबालिगी में की गई अपनी शादी को बालिग होने पर वह रद्द करा सकती है. बाल-विवाह (संशोधन) अधिनियम 1978 द्वारा विवाह हेतु लड़की/ लड़के की आयु क्रमश: 18-21 वर्ष कर दी गई है, इसके विरुद्ध विवाह अमान्य व दण्डनीय हैं. बहु-विवाह को भी हिन्दू-विवाह अधिनियम द्वारा निषिद्ध कर दिया गया
है. तलाक पर भी लोक सभा द्वारा विधेयक पारित किया जा चुका है वेश्यावृत्ति व स्त्री क्रय-विक्रय पर रोक लगाए जाने के लिए अनैतिक स्त्री व्यापार अधिनियम लागू किया गया है. दहेज प्रथा के विरुद्ध भी अनेक उपाय किए गए हैं देश के अनेक राज्यों में इसके विरुद्ध कानून लागू किए गए हैं तथा दहेज लेने-देने को दण्डनीय अपराध घोषित कर दिया गया है. विधवा जीवन की कठिनाइयों से स्त्रियों के उद्धार के लिए पुनर्विवाहित स्त्री को भी पत्नी के रूप में पूरा कानूनी संरक्षण प्रदान किया गया है जो विधवा पुनर्विवाह नहीं कर पाती, उन्हें भी सरकार की ओर से पारिवारिक पेंशन, वृद्धावस्था पेंशन, आवास-सुविधा आदि प्रदान की गई है. स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकारों ने समय-समय पर महिलाओं के समग्र विकास. कल्याण, शिक्षा एवं सुरक्षा के लिए अनेक योजनाओं का संचालन किया है और वर्तमान में किया जा रहा है जिससे महिलाओं की स्थिति में सकारात्मक परिवर्तन हुआ है.

Amazon Today Best Offer… all product 25 % Discount…Click Now>>>>

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *