मत भूलें कि जीवन अद्भुत अनुभव है…

मत भूलें कि जीवन अद्भुत अनुभव है…

                           मत भूलें कि जीवन अद्भुत अनुभव है…

जीवन कोई समस्या नहीं है जिसका समाधान खोजा जाए, जीवन तो एक
वास्तविकता है जो अनुभव की जानी चाहिए.
        यह जीवन सर्वोपरि है जीवन से श्रेष्ठ कुछ भी नहीं है, अगर हमारा जीवन है, तो
शेष सारे साधन हैं, जीवन ही नहीं तो इन वस्तुओं का क्या मूल्य ? जीवन अपने आप
में अद्भुत है. अद्भुत इसलिए कि वह हमारी सोच के दायरों में समा सकें, ऐसा
कभी भी नहीं है. इसकी गति स्वतः चालित है. जैसे- श्वासों का चलना, धड़कन की
गूँज, रक्त प्रवाह, भूख-प्यास, नींद-जागरण, आहार निहार ये सब ऐसे प्राकृत क्रम हैं,
जिन्हें इंसान द्वारा न तो कभी बाँधा जा सकता है, न ही चालू किया जा सकता है.
जीवन का देह में प्रवाहित होना ही अपने आप में अद्भुत है. इस जीवन धारा के
संगीत को इसकी लयबद्धता को अगर हम महसूस कर सकें, तो वाकई हम सभी को
हैरानी होगी और हम सभी यही कह उठेंगे कि ‘जीवन अद्भुत अनुभव है
       समण भगवान महावीर की वाणी का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण, सरल किन्तु गहन अर्थों
को समेटे हुए एक संक्षिप्त सूत्र यही है कि-
                            ‘अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह ।’
अर्थात् हे देवानुप्रिय ! अद्भुत है सुख (अहा सुहं) ! बस प्रतिबन्ध मत करना.
        वे कहते हैं कि हमारा सम्पूर्ण जीवन अद्भुत अहसासों से भरा है, हर पल
सुखपूर्ण है, बस हम प्रतिबन्ध न करे. कहीं कोई जुड़ाव, बंधन न बाँधे जीवन सरिता
को मन की इच्छाओं के अनुरूप बाँधने की चेष्टा ही जीवन को दुःखमय बना देती है,
जब एक विद्यार्थी सोचता है कि इस वर्ष तो 99% अंकों को पाकर ही रहूँगा, चाहे इसके
लिए मुझे कुछ भी करना पड़े, जब एक व्यापारी सोच बना लेता है कि इस वर्ष 25
करोड़ कमाने ही कमाने है, चाहे कुछ भी हो जाए, इस प्रकार जब कोई इंसान अपनी
इच्छाओं के अनुरूप जीवन के विविध दृश्यों को बाँधने की चेष्टा करता है, तब वह प्रतिबन्ध
कर रहा होता है और यही प्रतिबन्ध उसके जीवन को दुःखमय प्रतीत कराने लग जाता
है. यहाँ ‘प्रतिबन्ध’ का अर्थ हुआ अपनी शर्तों के अनुरूप जीवन को चाहना.
          जो लोग जीवन को अपनी शर्तों में जीना पसन्द करते हैं, देखिएगा…बस वे
लोग ही परेशान नजर आएंगे अन्यथा जीवन का होना ही इतना अद्भुत है कि इसके
मूल्य पर कोई और शर्त आकांक्षा अथवा इच्छा रखी ही नहीं जा सकती है. यह है तो
सब कुछ है. अगर किसी विद्यार्थी की चाहत के अनुरूप उसके प्राप्तांक  नहीं
रहे, तब भी उसे नाराज, कुपित नहीं होना है, बल्कि यही सोचना कि मैं अपना 100%
प्रयास देता हूँ. शेष जीवन को जो मजूर है, वह हो…… ऐसा सोचने मात्र से वह
विधेयात्मक हो जाएगा और उसका विधेयात्मक होना ही जीवन प्रवाह के
साथ लयबद्ध होना है और तब उसकी लयबद्धता उसे उन शिखरों तक स्वयमेव ले
जाएगी, जहाँ जाना उसके लिए स्वाभाविक ही था. स्वाभाविक ही था का अर्थ है कि
जैसे नदी का सागर में मिलना स्वाभाविक है, फूलों का खिलना, फलों का पकना, मेघों
का बरसना यह सब कुछ स्वाभाविक है. ठीक इसी तरह हम जो होने को हैं, वो
स्वतः होंगे ही, बस हम अपनी शर्तों व परतों को बीच में न लाएं जीवन जो दे, उसको
यथावत् स्वीकार करते हुए आगे बढ़ते जाएं. ‘आगे बढ़ते जाना’ महत्त्वपूर्ण है.
जीवन के अद्भुत होने का अहसास बस, उसी को हो सकता है, जो पुरानी बातों, यादों
व अनुभवों की पकड़ बनाए नहीं बैठा है.
                       ‘क्यों भूत-भविष की सोच करें ?
                        इस पल में भरा पूरा चेतन ॥’
      पुराने की पकड़ प्रतिबंध’ है, जो जीवन को दुःखों से भर देती है. इसीलिए
समझदारी इसी में है कि इस पल को पूर्णता से जिया जाए. इस पल का आनन्द उठाया जाए
इस पल बलशाली क्या और होना क्या ?
            जो वर्तमान में पूर्णता से जीता है, वह फिर न तो हीन होता है, न ही बलशाली,
वह मध्य को जीता है, वह ताओ को जीता. है. बलशाली होना या हीन होना, धनिक
होना या निर्धन होना ये सब सापेक्षताएँ हैं. हम सभी क्षुद्र प्राणियों की अपेक्षा बलशाली
है, किन्तु अपने से अधिक मजबूत लोगों के सामने निर्बल है. हम सभी कम आय वाले
लोगों के सामने अमीर हैं, किन्तु अधिक आय वालों की तुलना में गरीब भी हैं,
हकीकत में ये सारी सापेक्षताएं जिन्दगी भर हमारे दिल-दिमाग में घर बनाए रहती है
और इसी कारण हम सब उलझे रहते हैं. ‘उलझना’ हर किसी की फितरत बन गया
है, किन्तु सही जीवन हर हाल में सुलझा हुआ रहता है. वह स्वयं में अलमस्त रहता
है वह जानता है कि जो जीवन है वह मेरे भावों का चैतन्य प्रवाह है, इसे मैं अपने
भावों के अनुरूप ही जोड़ता, तोड़ता या मोड़ता हूँ. मैं चाहूँ तो जीवन विरोधी सोच
रखें और सदा ही खुद को किस्मत को या अन्य हालातों को कोसता रहूँ, किन्तु अगर
मैं ऐसा करता हूँ, तो अनमोल जीवन के अद्भुत अहसासों से सदा वंचित रहूँगा.
जीवन किसी को ऐश्वर्य से वंचित नहीं करता है. ध्यान दीजिएगा, यहाँ हम सभी के
पास समान रूप से चौबीस घण्टे हैं, बस इन्हीं घण्टों व घड़ियों में कुछ लोग जीवन
के गहरे रहस्यों को अनुभव कर लेते हैं, आत्मा के आनन्द को जीते हैं, तो अधिकांश
लोग इन सारे ही घण्टों में योजनाएं बनते रह जाते हैं, बात बेबात लड़ते-भिड़ते रहते
हैं, स्वयं को औरों की निगाहों में श्रेष्ठ साबित करने के चक्कर में उल्टे-सीधे प्रयास
करते रहते हैं. षड्यन्त्र रचना करते जाते हैं और सदा खेदखिन्न तनाव में ही बने रहते
हैं. जीवन के अद्भुत अनुभवों को महसूस करने के लिए प्रेम भरा दिल हो, कृतज्ञतापूर्ण
नजरिया हो, चित्त में समर्पण की धारा हो, यह जरूरी है, अन्यथा हम सदा ही शिकायतें
करते चले जाएंगे और जीवन के अद्भुत उपकारों से ही रह जाएंगे.
            बाहरी प्रतिकूलताओं से घबराकर अनेक लोग इस जीवन को नष्ट करने का सोच व
कल्प भी कर लिया करते हैं. उनको भी हमारा यही कहना है कि मत भूलो कि,
जीवन अद्भुत अनुभव है. जो प्रतिकूलताएं आज गहरे काले बादलों की तरह जीवन
पटल पर छायी हुई है, विश्वास करो कि वे बादल स्वयंमेव बिखरेंगे ही, लोटेंगे ही और
जाते-जाते नए अनुभवों की बारिश भी करते जाएंगे. इस जीवन में कुछ भी ऐसा नहीं है,
जो सदा रहने वाला है. यहाँ सभी का आना-जाना चालू है, चाहे वह सुख दुःख हो
या मिलन-वियोग, इसलिए व्यापारिक तेजी- मंदी से भी घबराने की कोई जरूरत नहीं
है. बस, स्वयं की शैली व सोच को पल-पल जागरूक बनाए रखने की जरूरत है, जो
आज शिखर पर है, वे कल घाटियों से ही गुजरकर ऊपर पहुँचे हैं और जो आज
घाटियों में हैं, वे ही कल शिखर पर दिखलाई पड़ेंगे, इसीलिए यहाँ तुलनाएं छोड़कर बेहतरीन
अहसासों से भर कर जीवन जिया जाए. जीवन अनमोल है, इसे जीने के लिए प्राप्त
सर्वाधिक सहयोग भी अमूल्य है, जैसे सूर्य का आतप, धरती का बिछौना, पानी व हवाओं
का मिलना, जिनके लिए मूल्य चुकाने हैं वे बहुत कम मूल्यवान हैं, जो वाकई मूल्यवान 
हैं, वे सदा अमूल्य हैं, इसीलिए अनमोल को मोलभाव की सोच से नष्ट न होने देना. बस,
इस पल का पूरा आनन्द लेना मत भूलना कि जीवन अदभुत है ॥ जय हो ॥ सबका
कल्याण हो ||

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