महत्वाकांक्षा और व्यक्तित्व विकास

महत्वाकांक्षा और व्यक्तित्व विकास

                      महत्वाकांक्षा और व्यक्तित्व विकास

मानव मात्र में ही नहीं वरन् जीवन की प्रत्येक इकाई में विकास की सम्भावनाओं
को उजागर करने के लिए महत्वाकांक्षा एक अनिवार्य तत्व है. महत्वाकांक्षा ही वह प्रेरणा
स्रोत रही है जिसने मानव को आज वह जिस स्तर पर है, उस स्तर तक पहुँचाया
है. आत्मज्ञानी विराट गुरुजी का कथन है। कि जब जीव एकल इन्द्रिय (मात्र त्वचा का
शरीर धारी ही था) वाला था, अर्थात् उसकी अन्य इन्द्रियाँ विकसित नहीं हुई थी, तब
उसमें महत्वाकांक्षा जागी कि मैं हर काम एक स्पर्शन इन्द्रिय में ही करता हूँ, मुझे स्वाद का
कोई भान नहीं होता, क्यों न इन कीटों व जीवाणुओं की तरह मेरे पास भी दो इन्द्रियाँ
हों,  उस  जीव  के  भाव  मन  से  प्रसारित  इस  अध्यवसाय  ने  उसे  एकल
इन्द्रिय धारक से द्वि-इन्द्रिय धारक बना दिया. अब जीव दो इन्द्रियों अर्थात् स्पर्शन
व रसना (जीभ) से जीवन की संवेदनाओं को ग्रहण करने लगा. वह न केवल छूकर
दुनिया को महसूस करता, बल्कि चख कर भी, स्वाद लेकर भी पदार्थों में रहे रस को
ग्रहण कर पाता वह आनंदित हुआ. किन्तु ज्यों ही उसने अपने से अधिक त्रि- इन्द्रिय
जीवों को देखा जिनके पास घ्राण शक्ति भी थी, वह रोमान्चित हुआ, आन्दोलित व
प्रभावित भी हुआ, उनसे अधिक भयभीत भी हुआ अपनी आत्मरक्षा व महत्वाकांक्षा की
मानक के तहत् फिर से उसने कल्प किया, परिणामस्वरूप द्वि-इन्द्रिय जीव, त्रि-इन्द्रिय
बना यह सिलसिला चलता ही रहा व तेइन्द्रिय जीव क्रमश:-चतुरिन्द्रिय (आँख
वाला) व पंचेन्द्रिय (कान क्षमता सहित) जीव बन गया. जिस जीव में महात्वाकांक्षा जितनी
अधिक होती है. वह उतना ही श्रेष्ठ बनने की इच्छा रखता है. वह अपने आसपास के
वातावरण से दबकर जीना नहीं चाहता, बल्कि स्वयं प्रभावशाली बनना चाहता है.
                              “मंजिल उन्हीं को मिलती है,
                               जिनके सपनों में जान होती है।
                               परों से कुछ नहीं होता,
                               हौंसलों से बाजी जीती जाती है।”
बाल्यकाल से ही अभिभावक व अध्यापकगण अपने बालकों में महत्वाकांक्षा
का संचार करते हैं. वे उसे महान् बनने के सपने दिखाते हैं. बेहतर सम्पादन करने के
लिए प्रेरित भी करते हैं व पुरस्कृत भी जो बालक जितना महत्वाकांक्षी 
बन पाता है, वह अपने लिए ज्यादा श्रम करता है वह अपने लिए ऊँचा लक्ष्य
निर्धारित करता है और फिर उसे पाने के लिए स्वयं को एकस्तरीय सोच से भावित
करता है.
        जिस बालक में यह महत्वाकांक्षा नहीं होती अथवा कम होती है, अक्सर दूसरों में
प्राप्त प्रेरणाओं को वह ग्रहण नहीं कर पाता. उसकी मानसिकता बेहतर अभिव्यक्ति की
नहीं बन पाती वह यही सोचता है कि क्या फर्क पड़ता है परीक्षा में 60% से उत्तीर्ण हो
या 90% से, दोनों के परिणामस्वरूप जाना तो अगली कक्षा में ही है ना. जो 90%-
96% व 99% अंक ला रहा है उसे भी अगली कक्षा में ही जाना है व मुझे भी उसे
भी दाल-भात-चावल ही खाना है व मुझे भी. फिर में क्यों कठोर मेहनत करूँ अपनी
आत्मय व उदास सोच से वह अपने समय व श्रम के महत्व से कभी परिचित नहीं हो
पाता.
      आज के दिन तक जितना भी वैज्ञानिक तकनीकी व औद्योगिक विकास हुआ है वह
महत्वाकांक्षी लोगों के प्रयासों का ही फल है, जो जमाने से आगे चलने की सोचते हैं, वे
ही नया कुछ कर दिखाने का साहस रखते हैं, ऐसे प्रेरणापुंज लोगों का ही जमाना
अनुकरण करता है.
             महत्वाकांक्षा स्वस्थ होने पर इन्सान स्वयं को बेहतर बनाने की दिशा में जुटेगा
किन्तु अस्वस्थ महत्वाकांक्षा से ग्रसित चित्त दुनिया को अपने साथियों को नीचा दिखाने
की ओर अग्रसर होगा. उसकी सोच औरों को हीन साबित करने की होगी. वह बात-
बात में अपनी यशोगान गाएगा व दूसरों की आलोचनाएं करेगा. दंभभरी बातें करने वाला
व्यक्ति महत्वाकांक्षी तो है, किन्तु अपने व्यक्तित्व के गुणों का दुरुपयोग करने वाला
है. अन्यथा स्वस्थ महत्वाकांक्षा व्यक्ति को उद्यमरत उदार, दूरदर्शी व रचनात्मक
बनाती है सृजनात्मक प्रतिभा की नूतन प्रस्तुतियाँ प्रायः महत्वाकांक्षा की ही उपज
होती है. टाटा, बिड़ला हो चाहे, बिग बी अमिताभ बच्चन हो, रिलायंस के संस्थापक
धीरू भाई अंबानी हो अथवा नरेन्द्र मोदी-जितने भी प्रभावशाली व्यक्तित्व हम देखते
हैं, इन सबके भीतर एक स्वस्थ उच्चस्तरीय महत्वाकांक्षा काम कर रही है. इनके व्यक्तित्व
की रूपरेखा तय करने में स्वयं को महत्वपूर्ण बनाए रखने की सोच अन्तर्निहित है ही.
ऐसी महत्वाकांक्षा जिसके विकास के तहत् अनेक का भला होता हो, वह स्वस्थ है
अन्यथा रुग्ण महत्वाकांक्षा वाला व्यक्ति गुण्डा, आतंकी, आक्रामक व लड़ाकू बनता
है.
    एक नायक और एक खलनायक दोनों में ही महत्वाकांक्षा का तत्व समान रूप से
सक्रिय रहता है, किन्तु वह नायक है जो अपनी विशिष्टता पाने के लिए सद्गुणों को
विकसित करता है तथा वह खलनायक है जो दुर्गुणों के सहारे प्रभावी व्यक्तित्व वाला
होना चाहता है. पर यह निश्चित है कि किसी भी उच्च पद तक जाने के लिए
महत्वाकांक्षा जरूर हो. इसके बिना जीवन ऊर्जा को सक्रिय बढ़ावा नहीं मिल सकता
है. आओ, हम अपनी महत्वाकांक्षा को अपने स्व-निर्माण समाजोत्थान एवं राष्ट्रनिर्माण में
लगाएं.
     महत्वाकांक्षाहीन व्यक्ति ऐसे व्यक्ति के समान है जो उड़ना तो चाहता है, लेकिन
उसके पंख ही नहीं है, जिनके पंख हैं वे उड़ तो सकते हैं, लेकिन महत्वाकांक्षा के बिना
सही दिशा और वांछित लक्ष्य नहीं खोज सकते. नेपोलियन बोनापार्ट का मानना था
कि “महान् महत्वाकांक्षा महान चरित्रों की एक अभिलाषा है, जो इससे सम्पन्न हैं वे
जीवन में बहुत अच्छा और बहुत बुरा में से कुछ भी कर सकते हैं. यह उन सिद्धान्तों
पर निर्भर करता है जो उन्हें निर्देशित करते हैं.” व्यक्तित्व विकास की प्रक्रिया में ऊँची
महत्वाकांक्षा, ऊँचा लक्ष्य, ऊँची छलांग ही महत्वपूर्ण है. इनमें से यदि एक भी कड़ी
टूटी तो व्यक्ति अपेक्षाओं के अनुरूप प्रभावशाली नहीं होगा.
            आसमान को छूने के लिए महत्वाकांक्षा रूपी सीढ़ी आवश्यक है. सुदचित व्यक्तित्व
इस सीढ़ी को लगाने का कौशल प्रदान करता है, काम, क्रोध, मद, मोह और लोभ
व्यक्तित्व को जहाँ कमजोर बनाते हैं, वहीं ज्ञान, सत्य, न्याय, धैर्य, साहस विनम्रता
और दया व्यक्तित्व को बहुआयामी बनाकर व्यक्ति को महानता की ओर ले जाते है.

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