महादेवी वर्मा

महादेवी वर्मा

                              महादेवी वर्मा

उत्तरप्रदेश के फर्रुखाबाद में सन् 1907 में जन्मीं महादेवी वर्मा प्रयाग
विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए. करने के पश्चात् प्रयाग महिला विद्यापीठ में
प्रधानाचार्य हो गई । छायावादी कवियों में महादेवी वर्मा की सर्वथा पृथक् और
विशिष्ट पहचान हैं पारिवारिक परिस्थिति, नारी होने और बुद्ध के दु:खवाद से
प्रभावित होने के कारण उनके काव्य का प्रधान स्वर वेदना है। उन्होंने अपनी
दुःखानुभूति के संबंध में स्वयं स्वीकार किया है-“मुझे दुःख के दोनों ही रूप
प्रिय हैं । एक वह है जो मनुष्य के संवेदनशील हृदय को सारे संसार से एक
अविच्छिन्न बंधनों में बाँध देता है और दूसरा वह, जो काल और सीमा के बंधन
में पड़े हुए असीम चेतना का क्रन्दन है।” बँगला और हिन्दी की रोमांटिक और
रहस्यवादी काव्यान्दोलनों से प्रभावित होने के कारण उन्होंने अपने आध्यात्मिक
प्रियतम को पुरुष के रूप में स्वीकार करते हुए अपनी स्त्रियोचित भावनाओं को
व्यंजित किया है तो भारतीय परम्परा और संत काव्य की रहस्य भावना के
अनुसार अपनी रहस्यानुभूतियों को कलात्मक अभिव्यक्ति भी प्रदान की है ।
विरहभावना की प्रधानता के कारण महादेवी को आधुनिक मीरा के रूप में
सम्बोधित किया जाता है। गीत-कला की दृष्टि से उनके गीत हिन्दी गीतिकाव्य
की महत्वपूर्ण उपलब्धि हैं। लाक्षणिकता, प्रतीकात्मकता, ध्वन्यात्मकता और
चित्रभाषा-कौशल के कारण उनके गीत सहज ही चिरस्मरणीय हैं। महादेवी ने
अपने अप्रतिम रेखाचित्रों के माध्यम से स्त्री और उपेक्षित वंचित वर्ग की
वेदना को ऐसी मार्मिक अभिव्यक्ति प्रदान की है कि उनकी गणना विश्व के
महानु लेखकों में होती हैं उनका गद्य ‘कवियों की कसौटी गद्य होती है’ की
उक्ति को चरितार्थ करता है। उनके प्रमुख काव्य-संग्रहों में नीहार (1930).
रश्मि (1932), नीरजा (1935), सांध्यगीत (1936) और दीपशिखा (1942)
के अलावा प्रथम चार संग्रहों के संकलन से बना यामा काव्य संग्रह भी है ।
आधुनिक कविता महादेवी उनके सम्पूर्ण काव्य-साहित्य से चुनी गईं कविताओं
का महत्वपूर्ण संग्रह हैं गद्यकार के रूप में भी महादेवी की महत्ता निर्विवाद है।
स्मृति की रेखाएँ, अतीत के चलचित्र और श्रृंखला की कड़ियाँ रेखाचित्र और
संस्मरण के क्षेत्र में उनकी महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं।
 
गौरा महादेवी वर्मा का मार्मिक रेखाचित्र है। इसमें लेखिका ने अपनी छोटी
बहन से प्राप्त गाय (गौरंगिनी या गौरा) के सौन्दर्य और गुण वैशिष्ट्य का सूक्ष्म
एवं सजीव वर्णन किया है लेखिका की दृष्टि में यह एक विलक्षण प्राणी है ।
अपने सुडौल सुन्दर शरीर, आकर्षक चाल और साहचर्यजनित लगाव को प्रकट
करने की चेष्टा तथा दुग्ध-आपूर्ति जैसी उपयोगिता के कारण वह प्रेम और
मानवीय स्नेह पाने की हकदार थी। लेखिका ने ‘गौरा’ की निर्मम मृत्यु के पीछे
मनुष्य की अंध स्वार्थलिप्सा को उजागर किया है। व्यक्ति स्वार्थ में इतना अंधा
हो गया है कि दूध देनेवाला निश्छल और प्रेम करने योग्य प्राणी (गौरा) को सूई
खिला देता है ताकि वह मर जाये, जिससे लेखिका पुन उससे दूध लेने लगे ।
गौरा की यातनापूर्ण मृत्यु जैसे मानवीय संवेदनशीलता की ही मृत्यु है । महादेवी
के रेखाचित्र कम से कम शब्दों में कलात्मक ढंग से किसी वस्तु, “व्यक्ति अथवा
प्राणी के सजीव एवं मार्मिक चित्र प्रस्तुत करने की दृष्टि से अद्वितीय है । गौरा
इसका सुन्दर प्रमाण है।

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