मातृभाषा: संस्कृति और संस्कारों की संवाहिका

मातृभाषा: संस्कृति और संस्कारों की संवाहिका

              मातृभाषा: संस्कृति और संस्कारों की संवाहिका

मातृभाषा मात्र संवाद ही नहीं, अपितु संस्कृति और संस्कारों की सवाहिका है.
भाषा और संस्कृति केवल भावनात्मक विषय नहीं, बल्कि देश की शिक्षा, ज्ञान विज्ञान
और तकनीकी विकास से जुड़ी है. किसी भी राष्ट्र की पहचान उसकी भाषा और
उसकी संस्कृति से होती है. विचारों एवं भावनाओं की अभिव्यक्ति तो मूलतः
मातृभाषा में ही होती है. मातृभाषा सुसम्बद्ध और सुव्यवस्थित योजना की पूर्ति का
महत्वपूर्ण घटक है.
         ‘पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम ने स्वयं के अपने अनुभवों के आधार पर एक
बार कहा था कि “मैं अच्छा वैज्ञानिक इसलिए बना, क्योंकि मैंने गणित और
विज्ञान की शिक्षा मातृभाषा में प्राप्त की थी.” गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर कहते थे
कि यदि विज्ञान को जन-सुलभ बनाना है, तो मातृभाषा के माध्यम से विज्ञान की शिक्षा
दी जानी चाहिए.
                महामना मदनमोहन मालवीय, महात्मा गांधी, रबीन्द्रनाथ ठाकुर, श्री मा. डॉ.
भीमराव अम्बेडकर, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे मूर्धन्य चिंतकों से लेकर
चन्द्रशेखर वेंकट रमन, प्रफुल्लचन्द्र राय, जगदीशचन्द्र बसु जैसे वैज्ञानिकों, कई
प्रमुख शिक्षाविदों तथा मनौवैज्ञानिकों ने मातृभाषा में शिक्षण को ही नैसर्गिक एवं
वैज्ञानिक बताया है. समय-समय पर गठित शिक्षा आयोगों यथा राधाकृष्णन आयोग,
कोठारी आयोग आदि ने भी मातृभाषा में ही शिक्षा देने की अनुशंसा की है.
               राष्ट्र की क्षमता और राष्ट्र के वैभव के निर्माण में मातृभाषा का महत्वपूर्ण योगदान
है. आयातित भाषाएं न तो राष्ट्र के वैभव की समृद्धि करती हैं और न ही राष्ट्रत्व-भाव
को जागृत करती हैं. आज विश्व के अधिकांश देशों का इतिहास और प्रमाण यह
दर्शाता है कि ये देश अलग-अलग काल-खण्डों में औपनिवेशिक शक्तियों के गुलाम
रहे हैं, परन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उन्होंने अपनी-अपनी मातृभाषाओं को स्थापित किया.
श्रीलंका, ब्राजील, मेक्सिको, चिली, कोलम्बिया, क्यूबा, जापान, चीन,
इण्डोनेशिया, म्यांमार, मलेशिया आदि ने मातृभाषा अपनाकर ही विकास के मार्ग
प्रशस्त किए हैं. सामाजिक, आर्थिक, तकनीकी, वैज्ञानिक एवं अन्य समसामयिक
ज्ञान का विस्तार मातृभाषा में ही किया, चीन और जापान तो ऐसे अनुकरणीय उदाहरण
हैं, जिन्हेंने मातृभाषा के माध्यम से विकास कर वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित
हुए हैं.
        आज भारत में मातृभाषा की उपेक्षा कर शिक्षा के माध्यम से उसे पृथक् रखकर
जिस प्रकार के भाषा संस्कार डाले जा रहे हैं, वे घातक हैं. इस कारण शिक्षार्थी न तो
अंग्रेजी भाषा जान पा रहा है और न ही मातृभाषा. मातृभाषा और लोक भाषाओं के
समृद्ध भण्डार सूखते जा रहे हैं. हम भाषा संस्कार से न सिर्फ विमुख हैं, अपितु उसे
भ्रष्ट भी कर रहे हैं.
 
              भारत में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली मातृभाषा
 
◆ भारत में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में हिन्दी पहले नम्बर पर
है. 2011 की जनगणना के आधार पर भारतीय भाषाओं के आंकड़ों के
अनुसार हिन्दी को मातृभाषा के रूप में बताने वाले लोगों की संख्या में 2001
की जनगणना के मुकाबले में 2011 में बढ़ोत्तरी हुई है. 2001 में 41.03%
लोगों ने हिन्दी को मातृभाषा बताया था, जबकि 2011 में इसकी संख्या
बढ़कर 43.63% हो गई है
 
◆ बंग्ला भाषा दूसरे नम्बर पर बरकरार है, वहीं मराठी ने तेलुगू को तीसरे
स्थान से अपदस्थ कर दिया है.
 
◆ 22 सूचीबद्ध भाषाओं में संस्कृत सबसे कम बोली जाने वाली भाषा है. केवल
24.821 लोगों ने संस्कृत को अपनी मातृभाषा बताया है.
 
◆ बोलने वालों की संख्या के लिहाज से संस्कृत बोडो, मणिपुरी, कोंकणी और
डोगरी भाषाओं से भी नीचे है.
 
◆ 2011 की जनगणना के आँकडों के अनुसार गैर-सूचीबद्ध भाषाओं में
अग्रेजी को करीब 2.6 लाख लोगों ने मातृभाषा बताया.
 
◆ अग्रेजी को पहली भाषा बताने वाले लोगों में सबसे ज्यादा 1.06 लाख लोग
महाराष्ट्र से हैं.
 
◆ तमिलनाडु इस मामले में दूसरे स्थान पर और कर्नाटक तीसरे स्थान पर है.
 
◆ गैर सूचीबद्ध भाषाओं में राजस्थान में बोली जाने वाली भिली/भिलौडी भाषा
1-04 करोड़ की संख्या के साथ पहले नम्बर पर है.
 
◆ इसके बाद गोंडी दूसरे नम्बर पर है. इसे बोलने वालों की संख्या 29 लाख है
 
◆ भारत में बंग्ला को मातृभाषा बताने वाले लोगों का प्रतिशत बढ़कर 8.3%
हो गया है.
 
◆ मराठी बोलने वालों की संख्या 2001 की तुलना में 6.99% से बढ़कर 2011
में 7.09% हो गया है.
 
◆ 2001 में तेलुगू भाषा बोलने वालों की संख्या 7.19% से घटकर 2011 में
6.93% पर पहुँच गई है.
 
◆ उर्दू 2001 में छठे स्थान पर थी, लेकिन 2011 के आँकड़े के अनुसार
वह खिससकर सातवें स्थान पर पहुँच गई है.
 
◆ गुजराती ने 4-74% बोलने वालों की संख्या के साथ छठे स्थान पर कब्जा
कर लिया है
 
38 बोलियों के जुड़े प्रस्ताव गृह मंत्रालय के समक्ष लम्बित
     आठवीं अनुसूची में शामिल करने की माँग के सम्बन्ध में 38 बोलियों के जुड़े
प्रस्ताव गृह मंत्रालय के समक्ष लम्बित हैं. इनमें अंगिका, बंजारा, बज्जिका, भोजपुरी,
भोटी, भोटिया, बुंदेलखडी, गढ़वाली, गोंडी, गुज्जर, खासी, कुमाऊँनी, लेप्चा, मिजो,
मगही, नागपुरी, पाली, राजस्थानी आदि शामिल हैं. इनमें से भोजपुरी को मॉरिशस
में, राजस्थानी को नेपाल में और भोटी को भूटान में मान्यता मिली हुई है. ऐसे में इन
तीन भाषाओं को तत्काल मान्यता दी जा सकती है.
 
भूमण्डलीकरण का असर, सिमट रहा है मातृ भाषाओं का दायरा
 
       दुनियाभर में संरक्षण के अभाव में सैकड़ों भाषाएं समाप्ति के कगार पर हैं और
ऐसे देशों की सूची में भारत में रियल सर्वाधिक चिंताजनक है जहाँ 196 भाष
लुप्त होने को है संयुक्त राष्ट्र के ऑकी के अनुसार भारत के बाद दूसरे नम्बर पर
अमरीका में स्थिति काफी चिंताजनक जहाँ ऐसी 192 भाषाए दम तोड़ती नजर आ
रही हैं विश्व इकाई द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, आधुनिकीकरण के दौर
में भाषाए प्रजातियों की तरह विलुप्त होत जा रही हैं. एक अनुमान के अनुसार,
दुनियाभर में 6900 भाषाए बोली जाती है लेकिन इनमें से 2500 भाषाओं को
चिंताजनक स्थिति वाली भाषाओं की सूची में रखा गया है, रिपोर्ट कहती है कि
2500 भाषाए ऐसी हैं जो पूरी तरह समाप्त हो जाएगी अगर संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष
2001 में किए गए अध्ययन से इसकी तुलना की जाए, तो पिछले एक दशक में
काफी तेजी से बदलाव हुआ है.
        उस समय विलुप्तप्राय भाषाओं की संख्या मात्र 900 थी. लेकिन यह गम्भीर चिंता
का विषय है कि तमाम देशों में इस ओर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया जा रहा है भारत,
अमरीका के बाद इस सूची में इण्डोनेशिया का नाम आता है जहाँ 147 भाषाओं का
आने वाले दिनों में कोई नाम लेवा नहीं रहेगा भारत ही नहीं विश्व में अग्रेजी और
कुछ भाषाओं के बढ़ते वर्चस्व के कारण मातृ भाषाओं का दायरा सिमटता जा रहा
है ऐसी स्थिति तब है जब भाषा विज्ञानी और शिक्षाविद् यह भी साबित कर चुके है
कि मातृभाषा में शिक्षा दिए जाने और मातृभाषा में विदेशी या अन्य भाषा पढाए
जाने से बच्चा उसे तेजी से सीखता है भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में मातृ
भाषाए मृत हो गई है या मृतप्राय हो गई है यूनेस्को द्वारा बनाए गए इंटरेक्टिव
एटलस में दुनिया की लगभग छह हजार भाषाओं में से 2471 खतरे में हैं इस
मानचित्रावली के अनुसार भारत की कुल 197 भाषा व बोलियों खतरे में है इनमें से
8 लुप्त होने के कगार पर है,63 पर लुप्त होने का गम्भीर खतरा है, छह बहुत गम्भीर
खतरे में हैं.42 लुप्तप्राय हैं और पाँच भाषाए हाल ही में तुप्त हो चुकी हैं
        अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के माध्यम से यूनेस्को ने विश्व की समस्त मातृभाषाओं
को प्राथमिक शिक्षा, बहुभाषी शिक्षा, समावेशी शिक्षा इबर स्पेस. देल तथा अन्य
लिपियों में विकास, मैत्री संस्कृति, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी, वैश्विक नागरिकता
के लिए स्थानीय भाषाओं तथा विज्ञान पर बल जैसे विषयों पर महत्वपूर्ण कार्य की
पहल की है

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