युवाओं में घटती याददाश्त शक्ति

युवाओं में घटती याददाश्त शक्ति

                         युवाओं में घटती याददाश्त शक्ति

उम्र के साथ मानव मस्तिष्क में होने वाली रासायनिक प्रक्रिया व विद्युत् तरंगों के
प्रभाव में कमी के कारण मस्तिष्क की कार्य प्रणाली में परिवर्तन आता है. इसका सबसे
पहला असर इंसान की याददाश्त पर देखने को मिलता है. यह उम्र के साथ होने वाला
स्वाभाविक परिवर्तन है, लेकिन आजकल युवावस्था में याददाश्त की कमी होना एक
सोचनीय विषय है. इन दिनों देखा जा रहा है कि युवाओं में कम होती याददाश्त के
मामले बढ़ रहे हैं.
             याददाश्त क्या है ? दिनचर्या के साथ होने वाली घटनाओं को संचित करना व
जरूरत पड़ने पर वापस उनको याद करके उपर्युक्त घटनाओं का वर्णन करना और
अपने अनुभव को भी संजोकर रखना याददाश्त कहलाता है मस्तिष्क में स्थित
लिम्बिक सिस्टम लाईम्बिक शिस्टम का काम है. याददाश्त को संचित रखना.
याददाश्त की पहली प्रक्रिया है, ‘रजिस्ट्रेशन’, जो मस्तिष्क में स्थित मैमीलियरी बॉडी
नामक जगह पर होता है. दूसरी प्रक्रिया उसको संग्रह करना और जरूरत पड़ने पर वापस 
याद करना. इस पूरी प्रक्रिया को याददाश्त या मेमोरी कहते हैं. उम्र के साथ यह प्रक्रिया लगातार
घटती रहती है, जिसको सामान्य रूप से रोकना असंभव है, लेकिन युवावस्था में
याददाश्त की कमी के कारणों पर विश्लेषण करें, तो बहुत सारे कारण सामने आते हैं.
उनमें से मुख्य कारण निम्न हैं-
      1. पढ़ाई का बढ़ता बोझ आज के विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा ग्रहण करने के
लिए प्रतियोगी परीक्षा देना अनिवार्य है. इसके कारण छात्रों में प्रारंभिक अवस्था में
तो उत्साह नजर आता है, लेकिन धीरे-धीरे इस बढ़ते बोझ के कारण मस्तिष्क की
कार्य प्रणाली में परिवर्तन शुरू हो जाता है. सेरोटिनिन नामक न्यूरोट्रांसमीटर का साव
ज्यादा होने लगता है जिसके कारण न्यूरोन्स में नुकसान पहुँचना शुरू हो जाता
है. इस प्रतिस्पर्द्धित शिक्षा में विफलता के कारण और मस्तिष्क की बढ़ती निष्क्रियता
के कारण युवाओं में याददाश्त की कमी के साथ-साथ अवसाद भी घर कर लेता है.
        2. एकाकी परिवार आज का युवा संयुक्त परिवार के बजाय एकल परिवार में
रहनी पसंद करता है. इससे उस पर व्यावसायिक और सामाजिक बोझ बढ़ता
है. इससे उनके मस्तिष्क में हॉर्मोन न्यूरोट्रांसमीटर व विद्युत् तरंगों की जो
नियंत्रित कार्यप्रणाली है वह अव्यवस्थित हो जाती है. मस्तिष्क में होने वाले ओपिएड्स
नामक न्यूरोट्रांसमीटर का अभाव होने से ल्यूकोट्रिन नामक न्यूरोट्रांसमीटर का साव
बढ़ना शुरू हो जाता है, जो दिमाग के तन्तुओं पर बुरा असर डालता है. अंततः
इससे अवसाद याददाश्त में कमी और व्यवहार में चिड़चिड़ापन शुरू हो जाता है.
        3. मोबाइल का प्रयोग आज के युवाओं की जीवन शैली में मोबाइल फोन और
कम्प्यूटर का काफी दखल है. इससे उनके सामाजिक जीवन व आपसी मेलजोल में भी
कमी नजर आती है. मोबाइल फोन से निकलने वाली तरंगों का मस्तिष्क की विद्युत्
तरंगों से सामंजस्य नहीं होने से मस्तिष्क की कार्य प्रणाली गड़बड़ा जाती है. इससे
मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को संचालित करने वाले न्यूरोट्रांसमीटर और उत्पन्न विद्युत्
तरंगों की कमी का प्रभाव कम याददाश्त के रूप में नजर आने लगता है और मेलोट्रीन
न्यूरोट्रांसमीटर की मात्रा ज्यादा होने से युवा अनिद्रा के शिकार हो जाते हैं.
        4. खानपान व जीवनशैली में बदलाव-आधुनिक युवा वर्ग फास्ट फूड व अधिक
वसायुक्त भोजन ज्यादा पसंद करता है. इसमें कार्बोहाइड्रेट व प्रोटीन की कमी पाई
जाती है. न्यूरोन्स की होने वाली क्षति को ठीक करने के लिए प्रोटीन अत्यंत आवश्यक
है और उत्पन्न होने वाली विद्युत् तरंगों को संचालित रखने के लिए ग्लूकोज की
आवश्यकता होती है, जंक फूड में इन चीजों के अभाव से शरीर में मोटापा बढ़ता
है और मस्तिष्क का सफेद हिस्सा (ह्वाइट मेटर) जो मस्तिष्क में संचार व्यवस्था का
कार्य करता है, उस पर होने वाले दुष्प्रभाव के कारण मस्तिष्क की संचार व्यवस्था
कमजोर होने लगती है. इससे मस्तिष्क सेलों में होने वाले डेमेज के कारण
याददाश्त व सोचने की शक्ति नष्ट हो जाती है. युवाओं की इस बिगड़ी गलत
जीवन शैली से उन्हें न केवल याददाश्त की कमी बल्कि बढ़ता मोटापा घटती प्रजनन
क्षमता व डायबिटीज, ब्लड प्रेशर जैसी गम्भीर बीमारियाँ भी हो रही हैं.
         5. नशे की प्रवृत्ति आज का युवा नशे की प्रवृत्ति अपनाकर समाज में इसे एक
स्टेटस सिंबल मानकर इसका आदी होता जा रहा है. प्रारम्भिक अवस्था में नशा आनंद
देने वाला साबित होता है, लेकिन धीरे-धीरे मस्तिष्क में डोपामिन नामक न्यूरोट्रांसमीटर
का स्राव कम होता जाता है. डोपामिन का मुख्य कार्य शरीर की कार्यप्रणाली को
सुनिश्चित रूप से चलाते रहना है. इसकी कमी से याददाश्त में कमी हो जाती है.
लगातार एल्कोहल के सेवन से लिवर पर भी विपरीत असर पड़ता है जिससे बनने
वाली अमोनिया व यूरिया गैस का विसर्जन ना होकर रक्त में इनकी मात्रा बहुत बढ़
जाती है. इस कारण मस्तिष्क की कार्यप्रणाली पूर्णतया विक्षिप्त हो जाती है
और व्यक्ति अपनी याददाश्त को पूर्णतया खो बैठता है
                युवा वर्ग ड्रग्स व अफीम का सेवन भी कर रहा है. यह नशा मस्तिष्क में ऐपिनोफ्रिन
व नोरऐपिनेफ्रिन नामक न्यूरोट्रांसमीटर के साव को रोक देता है. इस वजह से आगे
चलकर याददाश्त पूरी तरह जाती रहती है.
        उपर्युक्त कारणों के अतिरिक्त भी अनेक कारणों का सम्मिलन प्रभाव याददाश्त
को यानि स्मरण शक्ति को प्रभावित कर रहा है, जैसे बढ़ती स्वच्छंदताएं कम होता
जाना अनुशासन व संयम आदि.
         अगर हमें देश का भविष्य उज्ज्वल व सुन्दर देखना है, तो उसके कर्णधार युवा
शक्ति को सुन्दर तरीके से नियोजित करना बेहद जरूरी है. हमारे युवाओं में स्मरण
शक्ति बढ़े, उनके मनोमस्तिष्क का संतुलित विकास हो, इस हेतु प्रार्थना, प्राणायाम व
ध्यान को अपनाना ही होगा इनका कोई विकल्प नहीं है.
          प्रातःकालीन प्रार्थना स्मरण शक्ति को बढ़ाने में सहायक है-प्रार्थना या भगवुद्
स्तुति हमारे चिंतन को अहंता से दूर करती है, सीमित सोच से हट कर हम विराट को
जीने लगते हैं और इससे मस्तिष्कीय क्षमताएं अनंत के साथ कुछ देर के सम्पर्क से ही
कई गुणा बढ़ जाती है. शुभ भावनाओं का संचार हमारे दिलों-दिमाग के सारे भयों व
तनावों को दूर कर देता है और उससे पूरे शरीर के हॉर्मोन्स बदल जाते हैं. हमारी
ज्ञान क्षमता विकसित होती जाती है. प्राणायाम व ध्यान द्वारा हम शारीरिक तनावों
से मुक्ति के साथ-साथ मस्तिष्क में शुद्ध ऑक्सीजन की मात्रा में वृद्धि पाते हैं, जो
हमारे ज्ञान तंतुओं को, न्यूरोन्स को तुरन्त प्रभावित करती है. धारणा ध्यान चित्त को
निर्मल बनाते हैं जिनसे अनावश्यक सोच पर नियंत्रण आता है और दिल दिमाग का
बोझां उतर जाता है. इससे याददाश्त की ‘कभी भी दूर होती है और व्यर्थ की यादों से
छुटकारा भी मिलता जाता है.

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