राजनीतिक दलों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं ?

राजनीतिक दलों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं ?

अथवा
लोकतांत्रिक भारत में राजनैतिक दलों के समक्ष कौन-कौन-सी चुनौतियाँ हैं?
अथवा
भारत में राजनीतिक दलों के समक्ष आने वाली किन्हीं चार चुनौतियों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
लोकतन्त्र में राजनीतिक दलों को किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर: आधुनिक युग में राजनीतिक दलों के सामने निम्नलिखित चुनौतियाँ हैं-
1. आंतरिक लोकतंत्र का अभाव होना: अधिकांश राजनीतिक दलों, के समक्ष आन्तरिक लोकतंत्र की कमी एक प्रमुख चुनौती है। समस्त विश्व में यह प्रवृत्ति बन गयी है कि समस्त शक्ति एक या कुछेक नेताओं के हाथ में सिमट जाती है। दलों के पास न तो सदस्यों की खुली सूची होती है, न ही नियमित रूप से संगठनात्मक बैठकें होती हैं, इसके अतिरिक्त आन्तरिक चुनाव भी नहीं होते हैं। कार्यकर्ताओं से वे सूचनाओं का साझा भी नहीं करते। सामान्य कार्यकर्ता दल में चल रही हलचलों से अनजान बना रहता है।

2. वंशवाद की प्रवृत्ति: भारत के अधिकांश राजनीतिक दलों के समक्ष यह एक प्रमुख चुनौती है। जो लोग बड़े नेता होते हैं, वे अनुचित लाभ लेते हुए अपने नजदीकी लोगों विशेषकर अपने परिवार के लोगों को आगे बढ़ाते हैं। अनेक दलों में उच्च पदों पर हमेशा एक ही परिवार के लोग आते हैं।

3. धन एवं अपराधी तत्वों की बढ़ती घुसपैठ: चूँकि समस्त राजनीतिक दलों की चिन्ता चुनाव जीतने की होती है अतः इसके लिए वे कोई भी जायज-नाजायज तरीका अपनाने से भी परहेज नहीं करते हैं। वे ऐसे ही लोगों को चुनाव में उतारते हैं जिनके पास अधिक पैसा है या अधिक पैसा जुटा सकते हैं। कई बार राजनीतिक दल चुनाव जीत सकने वाले अपराधियों का भी समर्थन करते हैं तथा उनकी मदद लेते हैं।

4. राजनैतिक दलों के मध्य विकल्पहीनता की स्थिति: आधुनिक

युग में राजनीतिक दलों के पास मतदाताओं को देने के लिए सार्थकः विकल्प की कमी है। सार्थक विकल्प देने के लिए विभिन्न दलों की नीतियों में अन्तर होना चाहिए। पिछले कुछ वर्षों से विभिन्न देशों में दलों के बीच वैचारिक अन्तर कम होता जा रहा है।

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