रामधारी सिंह ‘दिनकर

रामधारी सिंह ‘दिनकर

                       रामधारी सिंह ‘दिनकर

बेगूसराय के सिमरिया में सन् 1908 ई. में जन्म लेनेवाले राष्ट्रकवि रामधारी
सिंह ‘दिनकर’ छायावादोत्तर हिन्दी कविता के उन कवियों में हैं जिन्होंने
छायावादी काव्यधारा से फैली धुंध को काटकर एक मुक्त काव्यालोक का
निर्माण किया। दिनकर के काव्य ने कविता को ठोस सामाजिक भावभूमि प्रदान
की। प्रारंभिक कविताओं में छायावादी सौन्दर्य-चेतना से प्रभावित उनकी कविता
उत्तरोत्तर सामयिक-सामाजिक प्रश्नों और चिन्ताओं से अनुप्राणित होने लगी ।
कवि-कर्म के प्रति उनकी सतत् सजगता ही उन्हें राष्ट्रकवि के गौरव तक ले
गई। उन्होंने अपने सम्बन्ध में लिखते हुए स्वयं कहा है—”पंत के सपने हमारे
हाथ में आकर उतने वायवीय नहीं रहे, जितने कि वे छायावाद काल में थे किन्तु
द्विवेदीयुगीन अभिव्यक्ति की शुभ्रता हमलोगों के पास आते-जाते कुछ रंगीन
अवश्य हो गयी। अभिव्यक्ति की स्वच्छन्दता की नयी विरासत हमें आप-से-आप
प्राप्त हो गयी ।”
 
दिनकर प्रबन्धकाव्यों के रचनाकार के रूप में विशेष रूप से याद किये जाते
हैं। विषमता की समाप्ति से ही युद्ध समाप्त हो सकता है-यही दृष्टि कुरुक्षेत्र
का आधार है। रश्मिरथी में युगीन संदर्भ में उपेक्षित पात्र कर्ण की कथा के
माध्यम से वचित-वग्र की व्यथा मूर्त्त हुई है। ‘उर्वशी’ दिनकर की महत्वाकांक्षी
कृति है, जिसमें उन्होंने नये दर्शन की कामाध्यात्म की व्याख्या की है ।
 
दिनकर के काव्य की शक्ति जीवन-मूल्यों को व्यंजित करनेवाली ऐसी
उक्तियों के काव्यात्मक सृजन में है जो मध्यकाल के कवियों की कविता के
समान ही लाखों पाठकों की वाणी में मुखर हो उठती है। किसी वक्तव्य को
कविता में रूपान्तरित करने की जैसी अद्भुत कला दिनकर को प्राप्त है, वह
दुर्लभ है। यही कारण है कि दिनकर हिन्दी के लोकप्रिय कवियों में परिगणित
होते रहे हैं । काव्य में कथा की दृष्टि से व्यापक सामाजिक सरोकार और उसी
के अनुरूप ओजपूर्ण काव्यभाषा के प्रयोक्ता दिनकरजी नये भाव-बोध और नये
काव्यान्दोलनों के प्रति एक सहज और स्वाभाविक लगाव अनुभव करते थे ।
भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति और भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार
जैसे उच्च पदों को गौरवान्ति करनेवाले इस कवि ने मिट्टी की ओर, काव्य
की भूमिका, शुद्ध कविता की खोज जैसे निबन्ध-संग्रहों और सर्वोपरि श्रेष्ठ
एवं पुरस्कृत ग्रंथ संस्कृति के चार अध्याय के द्वारा अपनी गद्य-कला का सुन्दर
प्रमाण प्रस्तुत किया है। उनकी मृत्यु 1974 में हुई ।
 
दिनकर की प्रमुख कृतियों में रेणुका, हुंकार, रसवन्ती, सामाजी,
कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी और उर्वशी के नाम विशेष रूप से स्मरणीय है ।
 
दिनकरजी ने हिमालय का संदेश शीर्षक कविता के माध्यम से एक राष्ट्र
के रूप में भारत की चेतना और संवेदना से युक्त व्यक्तित्व से हमारा साक्षात्कार
कराया है। भारत मात्र भौगोलिक सत्ता नहीं है, उसका वास्तविक स्वरूप प्रेम,
ऐक्य और त्याग की साधना में प्रकट होता है।

Amazon Today Best Offer… all product 25 % Discount…Click Now>>>>

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *