लगभग 120 शब्दों में निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
लगभग 120 शब्दों में निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
(i) भारत में भूमि उपयोंग प्रारूप का वर्णन करें। वर्ष 1960 – 61 से वन के अन्तर्गत क्षेत्र में महत्वपूर्ण वृद्धि नहीं हुई, इसका क्या कारण है?
उत्तर:
भारत में भूमि उपयोग प्रारूप: भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग किलोमीटर है लेकिन वर्तमान में इसके 93 प्रतिशत भूभाग के ही भूमि उपयोग आँकड़े उपलब्ध हैं। असम को छोड़कर बाकी पूर्वोत्तर राज्यों के भूमि उपयोग के बारे में जानकारी प्राप्त नहीं है।
जम्मू और कश्मीर में पाकिस्तान व चीन अधिकृत क्षेत्रों के भूमि उपयोग का सर्वेक्षण न होने के कारण इनके भी आँकड़ें प्राप्त नहीं हैं। उपलब्ध आँकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि भारत में भूमि उपयोग सन्तुलित नहीं है।
वर्ष 2014 – 15 के आँकड़ों से स्पष्ट है कि भूमि का सर्वाधिक 45.5 प्रतिशत उपयोग शुद्ध बोए गए क्षेत्र के अन्तर्गत एवं सबसे कम उपयोग 1.0 प्रतिशत विविध वृक्षों, वृक्ष, फैसलों एवं उपवनों के अन्तर्गत है। इसके अतिरिक्त वनों के अन्तर्गत 23.3 प्रतिशत क्षेत्र है। स्थायी चारागाहों के अन्तर्गत भी भूमि कम (3.3 प्रतिशत) है।
हमारे देश में भूमि उपयोग का यह प्रारूप राष्ट्रीय, राज्य एवं स्थानीय स्तर पर भी सन्तुलित रूप में नहीं है। अतः भारत जैसे अधिक जनसंख्या एवं सीमित भू-संसाधन वाले देश में नियोजित व सन्तुलित भूमि उपयोग प्रारूप स्थापित करने की अति आवश्यकता है।
वर्ष 1960 – 61 से वन के अन्तर्गत क्षेत्र में महत्वपूर्ण वृद्धि नहीं होने के कारण: भारत में वन क्षेत्र पर्याप्त एवं संतुलित नहीं है। यद्यपि वर्ष 1960-61 की तुलना में वर्ष 2014-15 के वन क्षेत्र में 5.19 प्रतिशत की वृद्धि हुई है परन्तु इस वृद्धि को सन्तोषजनक नहीं कहा जा सकता। इस लम्बी अवधि में वनों के अन्तर्गत क्षेत्र में महत्वपूर्ण वृद्धि न होने का मुख्य कारण वनों की आर्थिक लाभ के लिए कटाई करना है।
विभिन्न उद्योगों के विकास, कृषि कार्य एवं आवास के लिए भूमि निर्माण के उद्देश्य से ऐसा किया गया। इससे कई तरह की समस्याएँ उत्पन्न हुईं। फलस्वरूप सरकार द्वारा वनों की सुरक्षा व संरक्षण सम्बन्धी अनेक नीतियाँ बनाई गईं। इससे वनों का घटता हुआ ग्राफ थम गया। वहीं दूसरी तरफ स्थानीय स्तर पर वनों की कटाई होती रही है। यही कारण है कि वर्ष 1960-61 से वन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण वृद्धि नहीं हुई।
(ii) प्रौद्योगिक और आर्थिक विकास के कारण संसाधनों का अधिक उपभोग कैसे हुआ है?
उत्तर: किसी भी देश की प्रगति के लिए प्रौद्योगिकी एवं अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में विकास अति आवश्यक है। प्रौद्योगिकी के विकास के कारण ही हम अपनी प्राकृतिक सम्पदा से उपयोगी वस्तुओं का निर्माण कर न केवल अपनी आर्थिक व्यवस्था में सुधार कर सकते हैं, वरन् देश की बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्वि भी कर सकते हैं। प्रौद्योगिकी विकास हमें आधुनिक औजार एवं मशीनें प्रदान करता है जिससे हमारे उत्पादन में वृद्धि होती है, फलस्वरूप संसाधनों का अधिक उपभोग होता है।
प्रौद्योगिकी विकास में आर्थिक विकास भी होता है, जब किसी देश की आर्थिक स्थिति में सुधार आता है तो लोगों की आवश्यकतायें भी बढ़ती हैं जिसके फलस्वरूप संसाधनों का अधिकाधिक उपयोग होता है। वहीं आर्थिक विकास आधुनिकतम प्रौद्योगिकी के विकास हेतु अनुकूल वातावरण प्रदान करता है।
यह हमारे आसपास की विभिन्न वस्तुओं को संसाधन में परिवर्तित करने में मदद करता है। अतः नये संसाधनों का दोहन प्रारम्भ हो जाता है। आज प्रौद्योगिक एवं आर्थिक विकास के कारण ही संसाधनों का अधिक उपभोग हुआ है।
उदाहरण के लिए; राजस्थान खनिज एवं शक्ति संसाधनों की दृष्टि से एक सम्पन्न राज्य है परन्तु पहले उचित प्रौद्योगिकी के विकास के अभाव में इन संसाधनों का पर्याप्त उपयोग नहीं हो पाया था। आज उचित प्रौद्योगिकी के विकास से विभिन्न खनिज व शक्ति संसाधनों का पर्याप्त दोहन किया जा रहा है, जिससे विकास तीव्र गति से हो रहा है।
अतः यह कहना उचित है कि प्रौद्योगिकी आर्थिक विकास को गति प्रदान करती है तथा इन दोनों द्वारा संसाधनों का अधिक मात्रा में उपयोग होने लगता है।
- Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Facebook पर फॉलो करे – Click Here
- Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here