वर्तमान, अतीत और भविष्य से कहीं अधिक बेहतर

वर्तमान, अतीत और भविष्य से कहीं अधिक बेहतर

                     वर्तमान, अतीत और भविष्य से कहीं अधिक बेहतर

यदि आप अवसाद में हैं
तो आप अतीत में जी रहे हैं।
                          यदि आप उद्विग्न हैं
तो आप भविष्य में जी रहे हैं।
                          यदि आप शान्ति में हैं
तो आप वर्तमान में जी रहे हैं।
      वर्तमान को अंग्रेजी में प्रजेन्ट कहते हैं, क्योंकि ये वाकई में ‘प्रजेन्ट’ है, एक
उपहार है, जो सदा अमूल्य है व बिना मूल्य के हर क्षण सबको प्राप्त है, जो इसे जी
लेता है, वह जीवन जीना जानता है, जो इसे खो देता है, वह जीवन के अनुभव से
वंचित रह जाता है.
             ‘समय’ टाईम फेस को उसके वास्तविक स्वरूप में समझें, तो वह केवल
‘वर्तमान’ है, प्रत्येक पल में है, क्षण रूप है, किन्तु अगर मन के प्लेटफार्म पर इसे समझें,
तो यह तीन भेदों वाला है-एक अतीत दूसरा वर्तमान व तीसरा भविष्य अतीत, जो जा
चुका, भविष्य जो आया नहीं व वर्तमान जो न कहीं आता है, न कहीं जाता है, जो मात्र
‘है’ बस वरत रहा है, इस क्षण में है.
          भूत-भविष्य का होना वास्तविक नहीं है, वह मात्र हमारी मन की यादों व कल्पनाओं
में है. हम सबके मन को भूत-भविष्य में रहने की ही आदत है, यही कारण कि
मन सदा बेचैन बना रहता है. मन का सुख-चैन पूर्णतया कभी भी सम्पादित हो ही नहीं
पाता है, वह तो अमन होने पर ही सम्भव है. अमन में ही शान्ति है. इस अ-मन
अवस्था को अपने भीतर प्रकट करने के लिए वर्तमान में जीना आना चाहिए. वर्तमान
में जीना ही जीने की कला है. आओ, हम आज सीखें वर्तमान में जीने की कला के कुछ 
गुर, कुछ सूत्र, जो हमें बेहतर जीने में मदद करेंगे-
              वर्तमान के महत्व को जानें
वर्तमान अतीत और भविष्य से कहीं अधिक बेहतर है. अतीत चाहे कितना भी
सुनहरा क्यों न रहा हो, किन्तु जीना आज में ही सम्भव है. अतीत तो भूत है, उसमें
प्राण कहाँ ? प्राण सदा वर्तमान में ही होते हैं. भविष्य की सत्ता तो है, किन्तु उसमें भी
प्राण नहीं हैं. ‘प्राण’ मात्र और मात्र वर्तमान में ही होते हैं. इसीलिए वर्तमान सर्वश्रेष्ठ है,
सर्वोपरि है, वही भूत का हिस्सा होता है, वही भविष्य की रचना करता है. अगर
वर्तमान को सुधार लिया, तो भूत भी बदला व भविष्य भी सुधरा वर्तमान का पल एक
अदृश्यमान अन्तहीन श्रृंखला की एक छोटी-सी कड़ी है, जिसके हाथ से टूटने पर,
छूटने पर सम्पूर्ण शृंखला खो जाएगी. परिवर्तन की समस्त सम्भावनाओं का आधार
एकमात्र वर्तमान पल है, इसे जीने के तरीके बदल लें, तो हर तरह के मूल बनावट को
बदल पाना सम्भव होगा. अगर आपको जीवन के किसी भी विषम क्षेत्र में सफलता
के शिखर पर पहुँचना है, तो इस वर्तमान पल को अपने लक्ष्य से पूरा भर दो, हर
वर्तमान क्षण में अपने लक्ष्य को जीने लगो, अगर डॉक्टर बनना है, तो डॉक्टर की तरह
इस पल को जीओ, हर पल जीओ-आप स्वयं को जिन भावों से वर्तित करोगे, वही
आपका भविष्य होगा.
              वर्तमान पल ही अनन्त शक्ति क्षमता व ऊर्जा का पिण्ड है. जिस तरह भौतिक पदार्थों
में मौजूद अनन्त ऊर्जा एक परमाणु मात्र के विस्फोट से प्रकट हो सकती है. उसी तरह
हम सबके भीतर मौजूद अनन्त क्षमता एक समय मात्र को पूर्णतः जीने व जानने से
प्रकट हो सकती है. भगवान महावीर ने तो आत्मा को भी ‘समय’ शब्द से सम्बोधित
किया है. उनका कहना है कि समय में यानि वर्तमान में जीना ही वस्तुतः आत्मज्ञान है,
आत्मजागृति है. जिन क्षणों को हमने अजागृति से जीया वे सभी क्षण आत्म-
अज्ञान में बीते इसीलिए उनका एक महत्वपूर्ण उद्घोष रहा कि-
                             ‘समयं गोयम ! मा पमाइए ।’ 
अर्थात् हे गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर इसे बोधिपूर्वक जी. संबुद्ध
व्यक्ति की परिभाषा करते हुए उन्होंने कहा कि-
                        ‘खणं जाणाहि पंडिए।’
अर्थात् जो क्षण को जानता है, वर्तमान प्रत्येक पल को जानते हुए जीता है वह
पण्डित है, जो बहुत सारे शास्त्रों को पढ़ा हुआ या रटा हुआ है उसको पण्डित नहीं
कहा है, बल्कि जो प्रतिपल संबुद्ध होकर जीता है वह पण्डित है. यदि हम वर्तमान
की महत्ता को अपने जेहन में अच्छी तरह से समझ लें, तो हम कभी भी भूत-भविष्य
के भ्रामक चक्रव्यूह में उलझे हुए नहीं रहेंगे, आत्मज्ञानी श्री विराट गुरूजी वर्तमान को ही
‘सच्चा’ कहते हैं, उनकी कविता है कि-
               जीत हमारी है यही पल,
ये ही पल जीवन का सार।
                रे भविजन, मस्त हो तू
साँच यही पल रे।
                माल इसी पल में
कल की कलन सब फालतू रे,
                 कल की कल भटकाव
रे भविजन, चेत जा रे……
                  साँच यही पल रे माल इसी पल में।
आया नहीं वो कल्पना रे,
                   बीत गया इतिहास
रे भविजन, भूल जा रे
                   साँच यही पल रे माल इसी पल में।
शाश्वत है प्रत्यक्ष पल ये
                   रूबरू सत्य विराट
रे भविजन, जान जा रे
                   साँच यही पल रे माल इसी पल में।
इस पल में अमृत लबालब,
                   जो जागे वो पाय
रे भविजन चाख ले रे
                   साँच यही पल रे माल इसी पल में..!!
        सार्थक जीओ, निरर्थक तजो
वर्तमान में जीने के लिए यह जरूरी है। कि हम सार्थक व निरर्थक के बीच अन्तर कर
पाएं, जो आपकी योग्यताओं को जगाता है, बढ़ाता है वह सार्थक है जैसे हर बोली जाने
वाली बात अगर हमारे भावों को स्पष्टता से व्यक्त करती है, तो वह सार्थक है, किन्तु
आप कहना क्या चाह रहे हो ? वह आपके बोलने से स्पष्ट नहीं हो पा रहा है, तो वह
बात व्यर्थ ही हुई सार्थक जीना सार्थक बोलना, सार्थक सोचना बिना विवेक ज्ञान के
सम्भव ही नहीं है और विवेक ज्ञान को उपलब्ध होना, तब ही सम्भव है जब हम
भूत की गलतियों से सीख लें, उन्हें पुनः न दोहराएं. भूत का अनुभव लो, किन्तु उससे
चिपके हुए न रहो. भूत का न मोह रहे, न शोक रहे. बस जो ज़रूरी है वह उसमें से लो
शेष को भूला दो. जो पाया जा चुका खाया जा चुका, भोगा जा चुका यह चाहे कितना
भी महत्वपूर्ण क्यों न रहा हो ? आज की भूख तो आज के भोजन से शान्त होने वाली
है, इसीलिए समझो कि वर्तमान भूत-भविष्य से कहीं अधिक बेहतर है. अतीत चाहे कितना
भी स्वर्णिम रहा हो, भविष्य चाहे कितना ही सुनहरा क्यों न होने वाला हो, जीवन का
वास्तविक सुख सन्तोष व आनन्द तो प्राप्त पल को जीने में ही है. वही सार्थक है.
       अतीत एक अनुभव, वर्तमान एक प्रयोग और भविष्य एक अपेक्षा अपेक्षाओं
को पूरा करने के लिए अतीत के अनुभवों से वर्तमान को सँवारिए.

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