विवेकी व्यक्ति वर्तमान में जीता है

विवेकी व्यक्ति वर्तमान में जीता है

                                विवेकी व्यक्ति वर्तमान में जीता है

यदि आप प्रसन्न रहना चाहते हैं, तो विगत के बारे में न सोचें, भविष्य के बारे
में चिंतित न हों, पूरी तरह से वर्तमान में जीने पर केन्द्रित हों.”
        जीवन जीने के तरीके में ही सब कुछ समाया है. अगर आप विवेकी हैं अर्थात्
अच्छे और बुरे के बीच अन्तर कर सकने की सामर्थ्य रखते हैं, तो निश्चित है कि
आप वर्तमान को जियेंगे, किन्तु यदि आप अविवेकी हैं, नासमझ हैं तो सदा भूत और
भविष्य को सोचते हुए वर्तमान समय को बर्बाद करते रहेंगे.
        ‘समय’ क्षण भर है, वर्तमान ही है, भूत व भविष्य हमारी मन की संकल्पना
मात्र है, जिसे हम भोग चुके हैं, वह भूत है. भूत वह है, जो जाना जा चुका है. भोगा जा
चुका है, जिसे दुबारा भोगना अशक्य है, उसे मात्र यादों में ही मिला जा सकता है.
इसी प्रकार भविष्य क्या है ? वह भी भोगे जा चुके क्षण में उभरे चित्ती प्रभाव हैं, जिन्हें
हमारे मन ने संजो कर रख लिया. मन में मौजूद हर राग-द्वेषमय विचार भविष्य को
निर्मित करते चले जाते हैं. जितना जितना हमारा मन विकार युक्त रहता है, अशांत व
बेचैन रहता है, उतना उतना भविष्य का निर्माण भी करता रहता है. बिखरा बिखरा
चित्त यानि भूत व भावी की यात्रा एवं शांत चित्त यानि वर्तमान का जीवन शांत चित्त ही
वर्तमान को जी सकता है, अशांत कदापि नहीं. इस प्रकार हमं कह सकते हैं कि-
विवेकी वह जो शांत व समझदार हैं और वर्तमान में जीता है तथा अविवेकी वह,
जो अशांत, बेचैन, नादान व बिखरे चित्त वाला है.
       आप और हम, जीवन के चाहे किसी भी क्षेत्र से क्यों न जुड़े हों, अपनी प्राइवेट
लाइफ, प्रोफेशनल लाइफ व पब्लिक लाइफ तीनों में संतुलन बनाकर जीना चाहते हैं,
तीनों में समृद्धि व शांति चाहते हैं तो क्यों न हम वर्तमान समय को ही प्रधानता दें,
देवें और भूत-भावी का गैर जरूरी चिंतन छोड़ देवें. इसके लिए संभव है हमें
कुछ अभ्यास करना पड़े जैसे कि मन को फेरना.
             जब कोई व्यक्ति अतीत की स्मृतियों-अच्छी या बुरी पर आत्मकेन्द्रित होकर जीता
है तो वह अपने वर्तमान में प्रयुक्त किए जा सकने वाले समय और ऊर्जा को ही बर्बाद
करता है. साधारण शैक्षणिक उपलब्धियों वाला युवा पूर्व की परीक्षाओं में आए कम
अंकों या रैंक पर ही विचार करके अपने वर्तमान की सम्भाव्य उपलब्धियों की उपेक्षा
करके अवसरों को खोता चला जाता है.
      1. मन को फेरना-मन जब-
   जब पुरानी बातों को याद कर-करके उदास होने लगे, दुःखी व गम्भीर होने लगे तब-तब
खुद को कहना कि हे मेरे प्यारे जीवन साथी ! मेरे प्यारे मन ! क्या तुम उदास जीना पसंद
करोगे ? क्या जो बीत चुका है, उसे भुलाना बेहतर नहीं होगा ? अतीत को क्षमा कर दो ना.
गलती चाहे मुझसे ही क्यों न हुई हो, मैं अब उस अतीत को नहीं दोहराऊँगा. अपने मन को
अतीत की यादों से मुक्त करता हूँ. खुद का पवित्र साथी मन सदा प्रफुल्लित रहे. इस बात का
ध्यान रखता हूँ इस प्रकार अपने मन को Past से फिरा दो. गाड़ी के गियर चेंज करने की तरह
मन के भी गियर चेंज करने की कला सीखनी जरूरी है.
          मन को फिराने के लिए मित्र की भांति मन को समझाओ, वह सुनेगा भी और
समझेगा भी किन्तु अगर आप मन के प्रति शिकायतें पाल कर बैठ गए हैं कि क्या करे
यह मन कभी सुनता ही नहीं, बदलता ही नहीं, मन के कारण परेशान हो रहा हूँ, इस
मन के ही कारण सदा अशांत रहता हूँ तो निश्चय मानिए कि वह और अधिक जिद्दी
होता जाएगा और बिगड़ता चला जाएगा. मन को दुःख का सबब मत मानो उसे
ड्राइव करने की कला को जाने और उसका सही उपयोग करना सीखो.
          मन जब तक शिकायतों से भरा है, वर्तमान को जी न सकेगा. वह सदा भूत को
जीता रहेगा. मन जब तक इच्छाओं से भरा है, कल्पनाओं की कारा में घूमता रहेगा,
भविष्य को सपनाता रहेगा, वर्तमान से चूकता रहेगा.
         मन की आशाएँ बेलगाम हो, उसे भविष्य में भटकाती रहती हैं. इसे लगाम
देना भी जरूरी है. आओ जानें कैसे आशाओं की दौड़ को थामना सीखें
        2. जहाँ आशा तहाँ नहीं वासा-
यह सूत्र स्मृति में रखने योग्य है कि जहाँ आशा है, कल्पना है, आकांक्षा है वहाँ हमारा निवास
नहीं है. हम मात्र वर्तमान को ही जी सकते हैं, आशा सदा भविष्य की कल्पना है, जोकि अयथार्थ
है. जब-जब आशा इच्छाकामना मन को घेरने लगे तब-तब स्वयं से कहो कि ‘मैं आज को पूरी
जागृति से जी रहा हूँ. मैं आज को जीता हूँ, खुद से संतुष्ट हूँ, प्राप्त वातावरण का आभारी
हूँ स्वयं की क्षमताओं पर भरोसेमंद हूँ इस तरह मन को आशाओं की कल्पित दुनिया
में भटकने से बचाओ.
          जॉब, करियर हो या बिजनेस स्टडी फील्ड हो या अन्य कोई हर जगह पर हम
ऊँचे-ऊँचे ख्वाब देखने में मशगूल रहते हैं, ये ख्वाब मन में गुदगुदी पैदा करते हैं,
ख्वाबों में खोए खोए हम अनेक पल गुजार लेते हैं, परन्तु हम ऐसे क्षणों में यह भान
भूल जाते हैं कि ख्वाब-ख्वाब ही है, हकीकत नहीं. ख्वाब जैसे हम देखते हैं,
वैसी ही कभी पूरे नहीं होते, वे नए अंदाज में घटित होते हैं, बजाय ख्वाब देखने के
क्यों न हम ख्वाबों से जो अच्छी महसूसी मिलती है, उस अच्छी महसूसी को ही जिएं,
बिना ख्वाबों में खोए सतत् अच्छी महसूसी को जीते रहें, और स्वयं को प्रफुल्लित
बनाए रखें तो जिन्दगी एक बेहतर आकार लेती रहेगी
        3. आत्मविश्लेषण से विवेक जगाएं-
विवेक जगाने के लिए आत्मविश्लेषण सर्वाधिक सहयोगी साधना है. हर दिन कम
से कम 15-20 मिनट हमें अपनी दिनचर्या का विश्लेषण करना चाहिए और सावधानी-
पूर्वक जीने का संकल्प करना चाहिए. अपनी भूलों को पहचान कर उन्हें करते
रहना चाहिए. कई बार हम अपनी भूलों, कमजोरियों व आदतों को पहचान तो जाते
हैं किन्तु उन्हें दूर नहीं कर पाते हैं, ऐसे में अनुभवी जनों से राय लेना भी अत्यन्त
उपयोगी होता है. अनुभवी सलाहकार से मशविरा कर अपने लिए मार्ग प्राप्त करो
और हर 15 दिन बाद खुद की खोज में एक नया कदम बढ़ाओ, खुद में एक नया
रूपान्तरण लाओ. गौतमबुद्ध ने हर 15 दिन बाद अपने भिक्षुओं को आत्मविश्लेषण कर
अपने दोषों को सुधारने के लिए ‘उपस्थ’ करने का विधान दिया था. ऐसा ही समर्ण
महावीर ने भी पौषध का विज्ञान दिया और लोगों को निज विवेक जागरण का अभ्यास
कराया, जिसके तहत् हर पूर्णिमा और अमावस्या को व्यक्ति अपना आत्म निरीक्षण
करके अपने दोषों को स्वीकार करता है और उसे दुबारा न करने का संकल्प करता
है, इस प्रकार चित्त की शुद्धि करता हुआ निज विवेक के प्रकाश में जीने लगता है.
विवेकी वर्तमान में जीता है. आप और हम आज से ही वर्तमान में जीना शुरू कर
दें तो सफलता ही सफलता है.
                                            जय हो।
                             सबका कल्याण हो।

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