विश्व मंच पर हिन्दी

विश्व मंच पर हिन्दी

                  विश्व मंच पर हिन्दी

वर्तमान में विश्व के लगभग तिरानवे देशों में हिन्दी का या तो जीवन के विविध
क्षेत्रों में प्रयोग होता है अथवा उन देशों में हिन्दी के अध्ययन-अध्यापन की सम्यक्
व्यवस्था है. उल्लेखनीय है कि चीनी भाषा के बोलने वालों की संख्या जहाँ हिन्दी भाषा
से अधिक है, परन्तु चीनी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा सीमित है, वहीं अंग्रेजी
भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा अधिक है, किन्तु हिन्दी बोलने वालों की संख्या अंग्रेजी
भाषियों से अधिक है.
          विश्व के देशों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है―
1. इस वर्ग के देशों में भारतीय मूल के अप्रवासी नागरिकों की आबादी देश की
जनसंख्या के लगभग 40 प्रतिशत या उससे अधिक है. इन देशों के अधिकांश भारतीय
मूल के अप्रवासी जीवन के विविध क्षेत्रों में हिन्दी का प्रयोग करते हैं. इन देशों में
मॉरिशस, सूरीनाम, फिजी, गुयाना, त्रिनिदाद एवं टोबेगो के नाम उल्लेखनीय हैं.
 
2. इस वर्ग के देशों में ऐसे निवासी रहते हैं, जो हिन्दी को विश्व की एक भाषा
के रूप में सीखते हैं एवं पढ़ते हैं तथा हिन्दी में लिखते हैं. इन देशों की विभिन्न शिक्षण
संस्थाओं में स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर पर हिन्दी की शिक्षा का प्रबन्ध है. इन देशों
में संयुक्त राज्य अमरीका, कनाडा, मैक्सिको, क्यूबा, रूस, विटेन, जर्मनी एवं दक्षिण अफ्रीका
के नाम उल्लेखनीय हैं.
 
3. भारत एवं पाकिस्तान के अतिरिक्त हिन्दी एवं उर्दू मातृभाषियों की बहुत बड़ी
संख्या विश्व के लगभग साठ देशों में निवास करती है. इन देशों की यह आबादी सम्पर्क
भाषा के रूप में हिन्दी-उर्दू’ का प्रयोग करती है, हिन्दी की फिल्में देखती है तथा हिन्दी में
गाने सुनती है. इन देशों में संयुक्त राज्य अमरीका, कनाडा, मैक्सिको, ब्रिटेन, जर्मनी,
फ्रांस, हॉलैण्ड (नीदरलैण्ड), दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, थाइलैण्ड, ताजकिस्तान,
उज्वेकिस्तान एवं आस्ट्रेलिया आदि देशों के नाम उल्लेखनीय हैं.
 
विश्व में हिन्दी की पढ़ाई
        वर्तमान में चालीस से अधिक देशों के विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जा रही है.
इन विश्वविद्यालयों में हिन्दी के पाठ्यक्रम के तहत् भाषा के अलावा भारतीय संस्कृति,
इतिहास, समाज आदि के बारे में भी पढ़ाया जाता है. इटली, फ्रांस, स्वीडन, नॉर्वे, डेनमार्क,
स्विट्जरलैण्ड, जर्मनी, हगरी एवं आस्ट्रिया के विश्वविद्यालयों में हिन्दी के पठन-पाठन
की व्यवस्था है. यूनाइटेड किंगडम में लंदन, कैम्ब्रिज तथा यार्क विश्वविद्यालयों में
हिन्दी पठन-पाठन की व्यवस्था है, अमरीका के येन विश्वविद्यालय में तो सन्
1815 से ही हिन्दी की व्यवस्था है. त्रिनिदाद एवं टोबेगो में यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टइण्डीज
में हिन्दी पीठ स्थापित की गई है, फिजी में शिक्षा विभाग द्वारा संचालित सभी बाह्य
परीक्षाओं में हिन्दी एक विषय के रूप में पढ़ाई जाती है.
          हिन्दी के बढ़ते प्रसार को देखते हुए विश्व के कई विश्वविद्यालय हिन्दी पढ़ा रहे
हैं. इनमें से कुछ महत्वपूर्ण विश्वविद्यालय इस प्रकार हैं―
● यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनोय, अमरीका
● यूनिवर्सिटी ऑफ आयोवा, अमरीका
● नॉर्थ कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी, अमरीका
● ड्यूक यूनिवर्सिटी, अमरीका
● द यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग, स्कॉटलैण्ड
● ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, इंगलैण्ड
● टोक्यो यूनिवर्सिटी, जापान
● शंघाई इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी, चीन
● हैंकुक यूनिवर्सिटी, कोरिया
● यूनिवर्सिटी ऑफ ऑकलैण्ड, न्यूजीलैण्ड
● एलए ट्रोबे मेलबर्न यूनिवर्सिटी, आस्ट्रेलिया
 
विदेशी मूल के हिन्दी सेवी
        1.डॉ.जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन (1851-1941, आयरलैण्ड)-7 जनवरी, 1851 को
डबलिन में जन्मे ग्रियर्सन का बचपन से ही भाषाओं के प्रति लगाव था. वह सन् 1873
में इण्डियन सिविल सर्विस के अफसर के तौर पर भारत आए. वह उन कम गोरे
अफसरों में से थे, जिन्होंने अंग्रेजों के शासन-काल में राज करने से ज्यादा अपनी प्रजा
के हित में मेहनत और निष्ठा से काम करने पर जोर दिया. उन्हें इस बात का श्रेय है कि
उन्होंने कई भाषाओं वाले इस मुल्क (भारत) में भाषाओं का एक परिवार लिंग्विस्टिक
सर्वे ऑफ इण्डिया’ की रचना की. यह ग्रन्थ कुल 21 जिल्दों में छपा, जो आज भी
स्थायी महत्व का है. भारत सरकार ने उनकी सेवाओं की याद में ‘डॉ. जॉर्ज ग्रियर्सन
पुरस्कार’ की स्थापना की है, जो केन्द्रीय हिन्दी संस्थान द्वारा किसी गैर भारतीय)
विदेशी हिन्दी विद्वानों को विदेशों में हिन्दी के प्रचार-प्रसार में उल्लेखनीय कार्य हेतु
दिया जाता है.
 
          2. फादर कामिल वुल्के (1909-82, वेल्जियम)-फादर कामिल बुल्के हिन्दी के
एक ऐसे समर्पित सेवक रहे, जिनकी मिसाल दी जाती है फादर बुल्के का जन्म वेल्जियम
में सन् 1909 में हुआ था. अपने युवा दिनों में ही वह भारत आकर बस गए. यहाँ वह
झारखण्ड में आकर एक स्कूल में पढ़ने लगे. इंजीनियरिंग के स्टूडेंट रहे कामिल बुल्के
भारत की बोली में ऐसे रमे कि न केवल हिन्दी, बल्कि बज, अवधी और संस्कृत भी
सीखी. बाद में वह सेंट जेवियर कॉलेज, राँची में हिन्दी और संस्कृत के विभागाध्यक्ष
भी रहे. इन्होंने एक 40 हजार से अधिक शब्दों का ‘हिन्दी-अंग्रेजी शब्दकोश’ भी तैयार
किया. बाद के दिनों में वह चर्च के पुजारी बने और उनके नाम के आगे फादर लगा.
उन्होंने ‘बाइबिल का हिन्दी अनुवाद भी पेश किया. वर्ष 1982 में फादर बुल्के का निधन
हुआ. हिन्दी सेवा के लिए उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक ‘पद्म
भूषण’ से सम्मानित किया गया.
 
          3. रोनाल्ड स्टुअर्ट मेक ग्रेगॉर, (न्यूजीलैण्ड)-रोनाल्ड स्टुअर्ट मेक ग्रेगॉर
एक सच्चे हिन्दीप्रेमी थे. मेक ग्रेगॉर ने हिन्दी की शिक्षा सन् 1959-60 में इलाहाबाद विश्व-
विद्यालय से ली. उन्होंने सन् 1972 में हिन्दी व्याकरण पर ‘एन आउटलाइन ऑफ हिन्दी
ग्रामर’ नाम की एक किताब लिखी. वह सन् 1964 से लेकर सन् 1997 तक कैम्ब्रिज
यूनिवर्सिटी में हिन्दी पढ़ाते रहे. वह उच्च चोटी के भाषा विज्ञानी. व्याकरण के विद्वान्,
अनुवादक एवं हिन्दी साहित्य के इतिहासकार थे.
 
          4. पीटर वरन्निकोव (रूस)― पीटर वरन्निकोव के बारे में कहा जाता है कि वह
भले ही रूसी हों, पर कभी किसी जन्म में जरूर हिन्दुस्तानी रहे होंगे. भारत उनके
दिल में बसता है. उन्हें तुलसीदास की अमर रचना ‘रामचरितमानस’ ने इतना प्रभावित
किया कि उन्होंने इसका रूसी में अनुवाद किया. सोवियत संघ के विघटन तक वह भारत में रहे.
रूस लौटने के बाद उन्होंने वहाँ हिन्दी सिनेमा पर केन्द्रित एक पत्रिका भी निकाली.
 
         5. प्रो. च्यांग चिंगरुवेइ (चीन)― प्रो च्यांग ने चीन में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के
लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है. वह वर्तमान में पेइचिंग यूनिवर्सिटी के ‘सेन्टर
ऑफ इण्डियन स्टडीज के अध्यक्ष हैं. वह लगभग पच्चीस से अधिक वर्षों से पेइचिंग
यूनिवर्सिटी के हिन्दी विभाग से जुड़े हैं. हिन्दी के महाकवि जयशंकर प्रसाद की
कविता ‘आँसू के मर्मज्ञ’ प्रो च्यांग हिन्दी में कहानियाँ भी लिखते हैं. प्रो च्यांग को वर्ष
2007 में न्यूयॉर्क (अमरीका) में आयोजित आठवें विश्व हिन्दी सम्मेलन में हिन्दी सेवा
के लिए सम्मानित किया गया.
 
       6. अकियो हागा (जापान) अकियो हागा जापानी और हिन्दी भाषा के विद्वान हैं.
वह जापान में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए काम करते हैं. उन्होंने टोक्यो यूनिवर्सिटी
ऑफ फॉरेन स्टडीज से हिन्दी में एम ए. करने के बाद वहीं हिन्दी पढ़ाना शुरू किया.
अकियो हागा ने 9वीं सदी में लिखी गई जापानी कहानी ताकेतारी मोनोगाताटी (बाँस
काटने वाले की कहानी) का हिन्दी में अनुवाद किया. अकियो, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय
हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में काम कर रहे हैं.
 
विश्व हिन्दी सचिवालय 
      विश्व हिन्दी सचिवालय को कार्यरूप देने हेतु मॉरिशस और भारत की सरकारों
के बीच 20 अगस्त, 1999 को एक ‘मैमोरेंडम ऑफ अण्डरस्टैंडिंग पर मॉरिशस
के तत्कालीन शिक्षा मंत्री और वहाँ नियुक्त भारतीय उच्चायुक्त के बीच हस्ताक्षर हुए.
12 नवम्बर, 2002 को मॉरिशस की संसद में एक अधिनियम के अन्तर्गत ‘विश्व हिन्दी
सचिवालय की स्थापना की गई. इस अधिनियम को कार्यरूप देने हेतु मॉरिशस
और भारत सरकार के बीच एक समझौते पर 21 नवम्बर, 2003 को हस्ताक्षर हुए.
 
विश्व हिन्दी सचिवालय के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार है―
● हिन्दी को यूएनओ की अधिकृत भाषा बनाने हेतु प्रयत्न करना.
 
● हिन्दी को विश्व भाषा के रूप में प्रोन्नत करना.
 
● विश्वविद्यालयों में हिन्दी पीठों की स्थापना करना.
 
● अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पुस्तक मेलों का आयोजन करना.
 
● अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पुस्तकालय की स्थापना करना.
 
● हिन्दी विद्वानों के योगदान को मान्यता प्रदान करने हेतु उन्हें सम्मानित करना.
 
● हिन्दी में शोध कार्य के लिए ‘दस्तावेज केन्द्र’ स्थापित करना, जिसमें हिन्दी से
सम्बद्ध आँकड़े उपलब्ध हों.
 
● हिन्दी में अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन, संगोष्ठी तथा समूह विचार-विमर्श एवं चर्चा का
आयोजन करना.
 
संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषाएं एवं हिन्दी
       वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र संघ  की छह आधिकारिक भाषाएं हैं-अंग्रेजी, रूसी, चीनी (मदारिन), फ्रेंच, स्पेनिश एवं अरबी इन भाषाओं में केवल अरबी को छोड़कर बाकी सभी भाषाए संयुक्त राष्ट्र की स्थापना से ही इसकी भाषाए हैं. अरबी को यूएन की ऑफिशियल लैंग्वेज का दर्जा वर्ष 1973 में (महासभा द्वारा) मिला था.
           हिन्दी को यूएनओ  की सातवीं आधिकारिक भाषा बनाने का आह्वान कई
विश्व हिन्दी सम्मेलनों  में किया जाता रहा है. हाल ही में भोपाल में आयोजित दसवें विश्व हिन्दी
सम्मेलन में भी हिन्दी को यूएन की आधिकारिक भाषा बनाने पर विशेष जोर दिया गया. गृहमत्री राजनाथ सिंह ने भी सम्मेलन में अपने समापन भाषण में कहा, संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी भी आधिकारिक भाषा होनी चाहिए. इसके लिए ज्यादा-से-ज्यादा देशों से समर्थन हासिल करना होगा, जब
‘अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के लिए (यू एन.के) 177 देशों का समर्थन मिल सकता है,
तो हिन्दी के लिए 129 देशों का समर्थन (यूएन के कुल सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत)
हासिल क्यों नहीं हो सकता.
        उल्लेखनीय है कि हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र (UNO) में स्थापित करने के रास्ते में
कई रोड़े हैं, जिनमें पहली रुकावट है किसी नई भाषा को यूएन की आधिकारिक भाषा
के रूप में मान्यता दिए जाने के बाद होने वाला खर्च और दूसरी रुकावट है कि ऐसे
किसी प्रस्ताव की मंजूरी के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रक्रिया नियम 51 में संशोधन के
लिए सदस्य देशों के बहुमत का समर्थन.

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