शिक्षण के सिद्धांत

शिक्षण के सिद्धांत

                   शिक्षण के सिद्धांत

किसी सिद्धान्त से अभिप्राय अन्त:- सम्बन्धित सम्प्रत्ययों, परिभाषाओं तथा
मान्यताओं के ऐसे संगठन या संरचना से है, जो किसी प्रक्रिया विशेष को स्पष्ट करने
और उसके बारे में पूर्वानुमान लगाने के सन्दर्भ में उसमें विद्यमान चरों के बीच
निहित सम्बन्धों को प्रकाश में लाकर उस प्रक्रिया को सुव्यवस्थित रूप से जानने और
समझने में हमारी सहायता करता है.
           शिक्षण सामाजिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में घटने वाली एक बहुत ही जटिल
सामाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक प्रक्रिया है, जिसका स्वरूप और संगठन समाज के
सामाजिक और सांस्कृतिक रूप के अनुसार बदलता रहता है. शिक्षण क्रियाओं की वह
प्रणाली है, जिसमें किसी एजेन्ट, निर्दिष्ट लक्ष्य और एक ऐसी परिस्थिति का समावेश
होता है, जिसके कुछ घटकों (जैसे कक्षा में विद्यार्थियों की संख्या, कक्षा-कक्ष का आकार,
विद्यार्थियों का स्वभाव एवं विशेषताएँ आदि) पर एजेन्ट का कोई नियन्त्रण नहीं होता,
परन्तु वह उनमें अपेक्षित परिवर्तन या सुधार ला सकता है.
       एक शिक्षक के शिक्षण में बहुत सारे कार्यों, कारकों तथा तत्वों का समावेश होता
है, जैसे शिक्षण कार्य, शिक्षक व्यवहार तथा शिक्षण प्रक्रिया में सहायक विभिन्न आश्रित
स्वतन्त्र तथा मध्यस्थ चर आदि. एक शिक्षण सिद्धान्त से यह अपेक्षा की जाती है कि
उसके द्वारा एक ऐसा सैद्धान्तिक ढाँचा या प्रारूप प्रस्तुत किया जाए, जिसके माध्यम से
निर्धारित शैक्षिक और अनुदेशनात्मक उद्देश्यों की प्रभावपूर्ण उपलब्धि हेतु शिक्षण कार्यों,
शिक्षक व्यवहार तथा शिक्षण प्रक्रिया में सहायक विभिन्न प्रकार के चरों के नियोजन,
संगठन तथा नियन्त्रण का कार्य भली-भाँति सम्पन्न किया जा सके. इसके द्वारा अध्यापकों
की इस प्रकार पूरी-पूरी सहायता की जानी चाहिए कि वे अपने विद्यार्थियों को वांछित
अधिगम अनुभव प्रदान कर उनके व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाने और उनकी
योग्यताओं और शक्तियों का अधिकतम विकास करने में यथेष्ट रूप से सफलता
अर्जित कर सकें.
          शिक्षण सिद्धान्त की प्रकृति एवं विशेषताएँ का उल्लेख इस प्रकार किया जा सकता हैं―
1. शिक्षण के सिद्धान्तों का सीधा सम्बन्ध अनुदेशन के मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त से
है. इस कार्य हेतु वे अधिगम, अभिप्रेरणा तथा व्यक्तिगत भेद नामक अन्य
मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों से भी आवश्यक अधिगम सामग्री तथा प्रेरणा ग्रहण करने
हेतु स्वतन्त्र हैं.
 
2. शिक्षण सिद्धान्त कक्षा विशेष में विद्यार्थियों के बेहतर अधिगम में सहायता
प्रदान करने हेतु अपनाए जाने वाले शिक्षक व्यवहार को प्रकाश में लाने का
कार्य करते हैं.
 
3. अधिगम सिद्धान्तों की तुलना में, जो स्वाभाविक रूप से मनोवैज्ञानिक प्रकृति
के होते हैं, शिक्षण सिद्धान्तों की प्रकृति मुख्य रूप से सामाजिक ही मानी जाती है.
 
4. शिक्षण के सिद्धान्त, अधिगम के सिद्धान्तों से बहुत कुछ आगे और
अधिक होते हैं. एक अधिगम सिद्धान्त जहाँ अपने आपको अधिगम की प्रकृति
के स्पष्टीकरण और वर्णन करने तक ही सीमित रखता है, वहीं एक शिक्षण
सिद्धान्त आगे बढ़कर किसी अधिगम का प्रभावपूर्ण होना सुनिश्चित करने हेतु
उचित कारकों, परिस्थितियों, विधियों तथा तकनीकों की व्यवस्था सुझाने में
हमारी मदद करता है.
 
5. शिक्षण प्रक्रिया में निहित चरों के बीच अन्तःसम्बन्धों की व्याख्या कर एक
शिक्षण सिद्धान्त शिक्षण के सुव्यवस्थित स्वरूप को हमारे सामने लाने में
उपयोगी सिद्ध होता है.
 
6. एक शिक्षण सिद्धान्त किसी शिक्षक विशेष को उसके शिक्षण कार्यों को
भली-भाँति सम्पादित करने हेतु आवश्यक सैद्धान्तिक आधार तथा पृष्ठभूमि प्रदान
करने का कार्य करता है.
 
7. विद्यार्थी विशेष को उचित ज्ञान कौशल और अभिवृत्तियों का अर्जन करने हेतु
सहायता प्रदान करने के सन्दर्भ में ऐसे शिक्षण सिद्धान्त शिक्षक विशेष की यथेष्ट
सहायता कर सकते हैं.
 
8. कोई भी शिक्षण सिद्धान्त जिन तीन मूलभूत प्रश्नों के उत्तर देने में पर्याप्त
रूप से सक्षम सिद्ध हो सकता है, वे हैं परिस्थिति विशेष में शिक्षकों का व्यवहार
कैसा होता है, वे उस तरह से व्यवहार क्यों करते हैं तथा उनके इस व्यवहार
के क्या परिणाम निकलते हैं ?
 
9. कोई भी शिक्षण सिद्धान्त एक शिक्षक को अपने विद्यार्थियों के प्रति निभाए
जाने वाले शिक्षण उत्तरदायित्वों तथा प्रतिबद्धता को पूरा करने में मदद
करता है.
 
10. शिक्षण के सिद्धान्तों का उपयोग शिक्षण के प्रबन्धन के सन्दर्भ में उचित नियोजन,
क्रियान्वयन, नियन्त्रण तथा उसके आधार पर परिणामों की भविष्यवाणी
करने हेतु अच्छी तरह किया जा सकता है.
 
11. एक शिक्षण सिद्धान्त किसी भी शिक्षण प्रक्रिया में निहित तत्वों तथा चरों को
उपयुक्त रूप से काम में लाने हेतु विधियों एवं तरीकों का वर्णन, व्याख्या,
स्पष्टीकरण एवं औचित्यीकरण स्थापित करने का प्रयत्न करता है.
 
12. एक शिक्षण सिद्धान्त जहाँ एक शिक्षण-अधिगम परिस्थिति विशेष में प्रभावकारी
सिद्ध हो सकता है, वहीं किन्हीं और परिस्थितियों में इसके प्रयोग में कठिनाई
आ सकती है अथवा उसके सन्तोषजनक परिणामों की प्राप्ति नहीं हो पाती. दूसरे
शिक्षण को सभी प्रकार से एक ऐसी जटिल प्रक्रिया माना जाता है, जिसमें
विविध प्रकार की शिक्षण गतिविधियाँ, कार्यों तथा बहुआयामी शिक्षक व्यवहार
का समावेश पाया जाता है. फलस्वरूप सभी शिक्षण अधिगम परिस्थितियों में
सभी शिक्षकों के लिए कोई एक शिक्षण सिद्धान्त कारगर सिद्ध नहीं हो सकता.
 
शिक्षण के सिद्धान्तों की आवश्यकता एवं महत्व
      शिक्षण प्रक्रिया के सन्दर्भ में शिक्षक का प्रयोजन काफी कुछ स्पष्ट रहता है,
शिक्षक अपने विद्यार्थियों को उनके विकास तथा अधिगम कार्यों में समुचित सहायता
करना चाहते हैं. इस कार्य हेतु उन्हें अपने आपको पूरी तरह तैयार करने की जरूरत
है. शिक्षण कार्यों के रूप में शिक्षक जिन उत्तरदायित्वों को अपने विद्यार्थियों के प्रति
निभाते हैं, उनकी प्रकृति पूरी तरह प्रयोगात्मक एवं व्यावहारात्मक ही होती है. इनकी
सफलता अब इस बात में निहित रहती है कि इनके उचित नियोजन क्रियान्वयन तथा
नियन्त्रण हेतु किस प्रकार का सैद्धान्तिक आधार मौजूद है. शिक्षण सिद्धान्त की आव-
श्यकता और महत्व का संक्षेप में निम्न बिन्दुओं के तहत् उल्लेख किया जा सकता है―
1. शिक्षण सिद्धान्त- की सबसे महत्वपूर्ण उपयोगिता उसके इस गुण में निहित हैं कि
उसके माध्यम से शिक्षण की प्रकृति और प्रक्रिया को विभिन्न रूपों एवं ढंगों से समझने में
पूरी मदद मिलती है, जैसे- 
(i) शिक्षण क्या है, (ii) शिक्षण का विश्लेषण, (iii) शिक्षण और अधिगम में सम्बन्ध और 
(iv) शिक्षण तथा अधिगम को प्रभावित करने वाले तत्व या परिस्थितियाँ आदि.
 
2. शिक्षण उद्देश्यों के निर्माण, इन उद्देश्यों को व्यवहारजन्य शब्दावली में व्यक्त
करना तथा फिर इन उद्देश्यों की उचित प्रकार से प्राप्ति हेतु विभिन्न तरीके
तथा व्यूह रचनाएँ सुझाना-ऐसे सभी कार्यों में शिक्षण सिद्धान्तों का ज्ञान
भली-भाँति मदद करता है.
 
3. एक शिक्षण सिद्धान्त, शिक्षण प्रक्रिया में निहित विभिन्न चरों की भूमिका को
अच्छी तरह समझने तथा सर्वोत्तम प्रभावपूर्ण अधिगम हेतु इन चरों को
अन्तःक्रिया को ठीक प्रकार से सम्पादित कराने में पूरी-पूरी मदद करता है.
 
4. शिक्षण सिद्धान्त किसी एक विशेष शिक्षण-अधिगम परिस्थिति के सन्दर्भ
में उचित शिक्षण प्रतिमानों, शिक्षण और अनुदेशनात्मक प्रारूपों, तथा शिक्षण
प्रणाली को विकसित करने हेतु अपनी सेवाएं प्रदान करता है.
 
5. यह शिक्षक के व्यवहार की बारीकियों को भली-भाँति जानने और समझने में
हमारी मदद करता है. अध्यापकों में वांछित शिक्षक तथा शिक्षण प्रभावशीलता
के विकास हेतु इसी की सहायता से शिक्षक व्यवहार के यथेष्ट परिमार्जन
और उन्नयन सम्बन्धी कार्य किए जा सकते हैं.
 
6. यह शिक्षण के उचित नियोजन, संगठन तथा नियन्त्रण पक्ष पर पूरा ध्यान देते
हुए प्रभावपूर्ण शिक्षण प्रबन्धन में भली-भाँति सहायता कर सकता है.
 
7. इसकी उपयोगिता बहुत कुछ इसका पूर्वानुमान लगाने या भविष्यवाणी करने
की क्षमता में निहित है. एक शिक्षण सिद्धान्त द्वारा संरचित शिक्षण अधिगम
प्रक्रिया के क्या परिणाम हो सकते हैं. इसका उस सिद्धान्त की प्रकृति, विशेषता
और कार्य व्यापार के माध्यम से भली-भाँति अनुमान लगाया जा सकता है.
 
8. पूर्व सेवा तथा सेवाकालीन अध्यापक प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों तथा गतिविधियों
के संचालन हेतु आवश्यक रूपरेखा तैयार करने तथा इनके लिए आवश्यक
अधिगम तथा प्रशिक्षण सामग्री प्रस्तुत करने हेतु भी इनका भली-भाँति उपयोग
किया जा सकता है.
 
9. शिक्षकों को उनके दिन प्रतिदिन की शिक्षण गतिविधियों के संचालन में आ
रही विविध समस्याओं के समाधान तथा शिक्षण और अनुदेशनात्मक तकनीकी
के उचित विकास में भी शिक्षण सिद्धान्तों से विशेष सहायता मिलती है.

Amazon Today Best Offer… all product 25 % Discount…Click Now>>>>

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *