शिक्षा एवं व्यक्ति पूजा

शिक्षा एवं व्यक्ति पूजा

                     शिक्षा एवं व्यक्ति पूजा

एक सामाजिक प्राणी के रूप में विख्यात बुद्धिधारी, विवेकशील व प्रगति पथगामी ‘मानव’ निरन्तर बौद्धिक एवं क्रमिक विकास के परिणामस्वरूप नई-नई विशेषताओं से अलंकृत होता गया. उक्त क्रमिक विकास ने मानव व समाज को नई दिशा व आधार प्रदान किया और मानव ने हजारों वर्षों का ज्ञान एकत्र कर एक श्रेष्ठ जीवन निर्मित करने हेतु आगे बढ़ने का मार्ग निर्मित किया, जो विश्व परिदृश्य में ‘शिक्षा’ के रूप में विख्यात हुआ, परन्तु उक्त तरक्की व विभिन्न कालों की विषम परिस्थितियों ने अनेक कुप्रथाओं का निर्माण किया, जिनमें बाल विवाह, दहेज प्रथा, सती प्रथा आदि सम्मिलित है. समाज में प्रचलित उक्त बुराइयों में व्यक्ति पूजा प्रमुख है, जिसके भयावह परिणामों ने भूत व वर्तमान पर नाना प्रश्न खड़े कर भविष्य तक को विचारने पर विवश कर दिया है.
 
व्यक्ति पूजा से अभिप्राय
              किसी व्यक्ति के गुण-दोष, चरित्र आदि नैतिक पहलुओं पर बिना विचार किए, उसे ईश्वरतुल्य व महान् मानकर पूजा करने योग्य बनाकर निजी आसक्ति प्रकट करना ही व्यक्ति पूजा है.
            व्यक्ति पूजा प्रमुख सामाजिक बुराइयों में उल्लेखनीय है. उक्त बुराई का प्रचलन प्रमुखतः अविवेकी, अज्ञानी, अन्धभक्ति में जीवन-यापन करने वाले लोगों में पाया जाता है. व्यक्ति पूजा वास्तव में एक व्यक्ति विशेष की पूजा होती है, जो कि पूजनीय व्यक्ति में
शनैः-शनैः अहंभाव का संचार कर समाज में उक्त बुराई के प्रसार का अनुचित कार्य करती है.
 
शिक्षा और व्यक्ति पूजा
              पूर्वजों द्वारा निर्मित तथा परखा हजारों वर्षों का वह ज्ञान जो व्यक्ति को उचित- अनुचित, करणीय-अकरणीय प्रगतिपथ-अवनतिपथ आदि में अन्तर दर्शाकर नैतिकता, संयम, चरित्र तथा विद्वतापूर्ण जीवनयापन करने की राह दर्शाता है, शिक्षा के नाम से जाना जाता है.
            शिक्षा और व्यक्ति पूजा दो परस्पर विरोधी विचारधाराएं हैं, जिनमें प्रथम ‘शिक्षा’ तो एक कर्मठ, विवेकी, दूरदृष्टि से परिपूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण करती है, परन्तु द्वितीय  ‘व्यक्ति पूजा’ किसी व्यक्ति के अविवेकी तथा धार्मिक आडम्बरों में जकड़े होने को दर्शाती है.
           वर्तमान विश्व परिदृश्य व्यक्ति पूजा के नाना भयावह उदाहरणों से परिपूर्ण है, न जिनमें महान् सन्त के रूप में विख्यात आशाराम बापू का उदाहरण प्रज्वलन्त है. आशाराम की काली करतूतों ने जहाँ भक्ति, मानवता को शर्मशार किया, वहीं सोचने पर विवश भी किया कि क्या व्यक्ति पूजा प्रासंगिक है ?
        व्यक्ति पूजा मानवता, सामाजिकता, राष्ट्रीयता, एकता व वैज्ञानिक विचारधाराओं से पृथक् एक विनाशकारी व पतनकारी विचारधाराओं में शामिल है, परन्तु शिक्षा वह दीप है, जो मनुष्य के अन्तर्मन को प्रकाशित कर व्यक्ति पूजा के खोखलेपन एवं उसकी निस्सारता को स्पष्टतः देखने की सामर्थ्य प्रदान करती है. इसे कतिपय बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्टतः समझा जा सकता है―
 
      (a) विवेकशीलता―शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् मानव उचित-अनुचित का ज्ञान धारण कर विवेकी बन जाता है तथा विवेक की विद्यमानता में मानव व्यक्ति पूजा जैसे आडम्बर से स्वयं को परे पाता है. वह व्यक्ति की पूजा के स्थान पर उसके उचित गुणों को पूजनीय व ग्राहीय मानने की अवधारणा को अपनाता है. भारत में महात्मा गांधी, रवीन्द्रनाथ टैगोर, जवाहरलाल नेहरू आदि अपनी विवेकशीलता जैसे-गुणों के कारण प्रसिद्ध हुए. अतः शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् ‘व्यक्ति पूजा’ का मानव जीवन में लेशमात्र भी स्थान नहीं रहता.
 
     (b) विश्लेषण क्षमता-‘शिक्षा’ मानव जीवन को प्रगति, सोच व निर्णय लेने की क्षमता आदि के माध्यमों से विकास मार्ग की ओर प्रेरित करती है तथा ‘व्यक्ति पूजा’ की वास्तविकता को प्रस्तुत करने का महान् कार्य करती है, परस्पर विरोधी उक्त अवधारणाओं में व्यक्ति की विश्लेषण शक्ति के कारण वह क्या व्यक्ति पूजा उचित है ? यह कितनी हितकर अथवा पतनकारी है ? आदि प्रश्नों पर विचार करने में सक्षम हो जाता है तथा अपने प्रत्यक्ष, प्रभावी व प्रभावमयी निर्णय से व्यक्ति पूजा को उखाड़ फेंकता है.
 
      (c) जागृति-व्यक्ति पूजा’ में संलिप्त व्यक्ति कभी-भी जाग्रत, विवेकी व स्वतन्त्र निर्णयधारी न होकर सोया तथा अल्पज्ञानी होता है, परन्तु शिक्षा का कार्य समाज में जागृति का प्रसार करना है. विश्व परिदृश्य में बढ़ती शिक्षा, पाश्चात्य व वैज्ञानिक ज्ञान ने ‘व्यक्ति पूजा’ को बहुत सीमित कर दिया है तथा शिक्षा द्वारा विभिन्न संन्यासियों, जैसे बाबा रामरहीम, निर्मल बाबा, आशाराम बापू. नारायण साई आदि के अनुचित कार्यों के प्रति समाज में जो जागृति फैलाई गई है, वह द्योतक है कि शिक्षा और व्यक्ति पूजा’ सहयोगी, सहचर तथा समानार्थी न होकर परस्पर विरोधी हैं.
 
    (d) रूढ़िमुक्तता-‘शिक्षा’ की प्राप्ति एक ऐसा अद्भुत, उन्नतिदायक व अनन्त सुखदायी मार्ग है, जो लाभार्थी व्यक्ति को समाज में प्रचलित समस्त रूढ़ियों (व्यक्ति पूजा, बाल विवाह, दहेज प्रथा आदि) से परे रख रूढ़िमुक्तता का वातावरण उपलब्ध कराता है. फलतः शिक्षित व्यक्ति न तो कभी व्यक्ति पूजा को करने में रत रहेगा और न ही इसका प्रचार-प्रसार करेगा. अतः नदी के दो किनारों के समान ‘शिक्षा और व्यक्ति पूजा’ कभी-भी न तो एक-दूसरे का पर्याय थी और न ही भविष्य में होगी.
 
     (e) दूरदर्शिता ‘शिक्षा’ प्राप्ति के प्रमुख लाभों में दूरदर्शिता एक उल्लेखनीय लाभ है. शिक्षा व्यक्ति के कल्पना दायरे को विस्तृत कर दूरदर्शिता की बूटी को मानव मस्तिष्क में सींचने का पुनीत कार्य करती है, दूरदर्शी व्यक्ति, व्यक्ति पूजा के विषय में गहन विचार करता है व भूत तथा वर्तमान में घटित घटनाओं से भविष्य का निर्णयन कर लेता है. अतः शिक्षा का प्रमुख आयाम ‘दूरदर्शिता’ ही व्यक्ति पूजा के विरोधी हैं, तो शिक्षा का विरोधी होना तो स्वाभाविक है.
 
   (f) उचित अनुकरण-प्रगतिपथ प्रदर्शिनी ‘शिक्षा’ मानव मन में नवोदित विचारों की अजीब-सी क्रान्ति उत्पन्न कर देती है, ऐसा व्यक्ति प्रचलित सामाजिक प्रथाओं के मानव हितैषी, कल्याणकारी व सहयोगात्मक रवैये के परिचायक अंश को जीवन में धारण कर लेता है तथा पतनकारी प्रथाओं को समूल उखाड़ फेंकता है.
           व्यक्ति पूजा के सन्दर्भ में शिक्षित व्यक्ति वास्तव में व्यक्ति की पूजा न कर उसके महान्, ग्राहीय व अतुलनीय गुणों की पूजा करता है, विशिष्ट गुणधारी उक्त महान व्यक्ति सराहना के योग्य होता है. अतः शिक्षित व्यक्ति उसका उचित अनुकरण कर उसका सम्मान करते हैं.
 
        (g) वैज्ञानिक सोच-वर्तमान विज्ञानवादी, तकनीकि व भौतिकवादी युग में निरन्तर मानव जीवन पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण छा रहा है. आडम्बरों, कुप्रथाओं से परे कार्यकारण नियम पर आधारित विज्ञान एक प्रभावी, पृथक व कुप्रथामुक्त समाज के निर्माण कार्य लगा हुआ है. वर्तमान प्रचलित शिक्षा विज्ञान का अमूलचूल योगदान है, जो व्यक्ति को तथ्याधारित वास्तविक ज्ञान कराता है. फलतः व्यक्ति, व्यक्ति पूजा से पृथक गुण पूजा, बुद्धि पूजा की ओर प्रेरित होता है, स्वतन्त्रोपरान्त से वर्तमान तक भारत में अनेक साधुओं की गिरफ्तारी, उन पर मुकदमे, उनकी जेल यात्राएं आदि इस तथ्य
ही परिचायक हैं कि साधुओं की अन्धभक्ति में कमी आई है, जो मुख्यतः नवीन विज्ञान- बादी शिक्षा का ही परिणाम है।
 
        (h) गुण पूजा-‘शिक्षा’ मनुष्य में वास्तविक चेतना का प्रसार कर उसे गुण पारखी बना देती है. शिक्षित व्यक्ति, व्यक्ति पूजा के स्थान पर गुणों की पूजा करता है तथा विश्व व भारतीय परिदृश्य में उभरी हजारों महान् प्रतिभाएं यह दर्शाती हैं कि उनका तत्कालीन, वर्तमान व भावी महत्व उन्हें ईश्वर प्रदत्त अमूल्य गुणों के कारण प्राप्त हुआ. हॉब्स, लॉक, रूसो, अरस्तू, मार्टिन लूथर, कालविन, अब्राहम लिंकन, झाँसी की रानी तात्या टोपे, महात्मा गांधी, नेहरूजी आदि अपने गुणों के कारण अद्भुत प्रतिभा के रूप में विश्व मानचित्र पर उभरे, व्यक्ति पूजा का उक्त पुनीत कार्य में कोई योगदान नहीं था.
 
     (i) व्यापक दृष्टिकोण ‘व्यक्ति पूजा’ प्रमुखतः व्यक्ति के दृष्टिकोण को संकुचित कर निज विचारों से मानव मस्तिष्क पर अपनी प्रगाढ़ पकड़ बना लेती है, परन्तु ‘शिक्षा’ मानव मस्तिष्क के समस्त अवरोधित व ज्ञानाभाव में जकड़े मार्गों को खोल देती है. ‘शिक्षा’ व्यक्ति के दृष्टिकोण को पूर्णतः बदलकर उसे जीवन, जीवन की वास्तविक राह, समाज, सामाजिक कुरीतियों, सामाजिक ग्राहीय व त्याज्य अवधारणाओं आदि के विषय में समझ पैदा करती है.
        व्यापक दृष्टिकोणधारी व्यक्ति एकपक्षीय न होकर विविधपक्षीय बन जाता है तथा वह ‘व्यक्ति पूजा’ के विषय में विविधपक्षीय सोच से उचित सार पर पहुँच जाता है.
 
       (j) भ्रम निवारण-मानव एक सामाजिक प्राणी है तथा विभिन्न मानसिक स्तरधारी व्यक्ति समाज के अभिन्न स्तर हैं. ऐसी स्थिति में मानसिक स्तर की भिन्नता, नवाचार व वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रभाव में कमी, पूर्वाग्रह व पुरातनपन्थी विचारधाराओं की जकड़न आदि ने समाज को विभिन्न प्रान्तियों में डाल दिया है।
              शिक्षा उक्त भ्रान्तियों व इनके उल्लेखनीय पोषक तत्वों का समूल नाश करने का कार्य कर रही है. फलत: ‘व्यक्ति पूजा’ के सन्दर्भ में प्रचलित विभिन्न भ्रान्तियों का निवारण प्रकाश में आया है तथा उक्त पूजा से परे रहने वाले लोगों को आर्थिक, सामाजिक, शारीरिक, बौद्धिक ईश्वरीय हानि भोग में मिलने की मनगढन्त धारणाएं निराधार व निस्सार सिद्ध हुई हैं.
 
      (k) अन्धभक्ति से मुक्ति-व्यक्ति पूजा’ का वास्तविक अर्थ ही किसी व्यक्ति के गुण-दोष परखे बिना उसे ईश्वरतुल्य व पूज्यनीय मानकर निज आस्था प्रकट करना है, परन्तु शिक्षा उक्त कार्य पर अंकुश लगाकर मानव मन की गहराई में गमन करती है तथा नाना प्रश्न, जैसे क्या व्यक्ति पूजा वास्तव में लाभदायक है ?. क्या यह शिक्षितों द्वारा करणीय कार्य है ? क्या वर्तमान परिदृश्य में यह अभिशाप बनकर उभर रही है? खड़े कर मानव जीवन को अन्धभक्ति से मुक्ति प्रदान करती है.
          ‘व्यक्ति पूजा’ अन्धभक्ति की पोषक है, तो ‘शिक्षा’ अन्धभक्ति जैसी अमानवीय प्रथा की पुरजोर विरोधी है. अतः ‘शिक्षा और व्यक्ति पूजा’ दो विरोधी अवधारणाएं हैं.
 
          (l) धर्ममूल की समझ-‘शिक्षा’ का वास्तविक उद्देश्य यह प्रसारित करना है कि संसार की रचयिता ईश्वर एक है, हम सब उसकी सन्तानें हैं. इनसान ने ही जन्म के पश्चात् विद्यमान भौगोलिक व सामाजिक परिस्थितियों से मजहब को जन्म दिया है वास्तव में किसी का कोई धर्म नहीं है और मानवता से पुनीत कोई करणीय कार्य नहीं है.
       उक्त जीवन सत्य की प्रसारक शिक्षा, व्यक्ति पूजा जैसे कार्य में मानव की विद्यमानता तक को उचित नहीं मानती. अतः धर्ममूल की समझ व्यक्ति में ज्ञान का प्रसार कर उसे ‘व्यक्ति पूजा’ से परे रखने में अमूलचूल योगदान देती है.
          (m) प्रपंचों की समझ-‘व्यक्ति पूजा’ प्रमुखतः प्रपंचों पर आधारित एक मकड़ जाल है, जिसमें व्यक्ति धीरे-धीरे जकड़ता जाता है तथा दीर्घकाल में जकड़े ऐसे व्यक्ति उक्त बुराई से बचने का कोई मार्ग देखते, परन्तु ‘शिक्षा’ व्यक्ति को प्रपंचों की खोखली तस्वीरें दिखाकर समझ का बीज बो देती हैं. उक्त बीज के अंकुरित होने पर भूत व वर्तमान में घटित प्रपंचों के तरीकों, दुष्परिणामों से व्यक्ति सजग हो जाता है तथा निजी भविष्य की रूपरेखा तैयार कर लेता है.
            प्रपंचों की समझदारी ऐसा व्यक्ति, व्यक्ति पूजा के माध्यम से सम्पन्न होने वाले प्रपंचों को भली-भाँति जान लेता है तथा स्वयं व समाज के एक विशाल भाग को शिकार होने से बचाता है. अतः ‘शिक्षा और व्यक्ति पूजा’ परस्पर विरोधी विचारधाराएं हैं.
 
          (n) चिन्तनशीलता–चिन्तन शब्द का तात्पर्य ‘अन्तर्मन से किसी मद में सोचकर सही निर्णय लेना है, जोकि एक शिक्षित व्यक्ति का ही आभूषण हो सकता है, न कि व्यक्ति पूजा में जीवनयापन करने वाले का. 
            चिन्तनशील व्यक्ति ‘व्यक्ति पूजा’ के विषय में सामान्य जन की राय से पृथक्, प्रभावी राय रखता है, जो उक्त बुराई के खिलाफ वैचारिक क्रान्ति से आरम्भ होकर इसके समूल नाश पर समाप्त होती है. चिन्तन शब्द चेतना से सम्बन्धित है और ‘व्यक्ति पूजा’ पूर्वाग्रह व पुरातनपंथी अव- धारणाओं से. अतः ‘शिक्षा और व्यक्ति पूजा’ रेल की उन दो पटरियों के समान है, जो चलती तो साथ ही हैं, परन्तु मिलती कभी-भी नहीं.
          (o) आडम्बरमुक्तता-‘व्यक्ति पूजा’ के दुष्प्रभाव, पण्डितों, मौलवियों आदि की आर्थिक, सामाजिक व विविध क्षेत्रों में बढ़ती दखल. शुद्ध तथा स्वच्छ कपड़े, तिलक-छापे तथा धार्मिक वेशभूषा धारण कर ईश्वर के दूत बनने के रूप में प्रकट हो रहे हैं, जो आसाराम, नारायण साई जैसे तुच्छ व्यक्तियों को भी सिर पर बिठाकर ईश्वरतुल्य मानने की समर्थक है.
      परन्तु शिक्षा का प्रसार उक्त बुराइयों से पृथक् एक आडम्बरमुक्त व्यक्ति का निर्माण करती है. ऐसा व्यक्ति समाज में जागरूकता का प्रसार कर प्रचलित आडम्बरों को दूर करने का प्रयास करता है तथा ‘व्यक्ति पूजा’ जैसे अकरणीय कार्य के प्रति जन-जन में समझ विकसित करता है.
 
निष्कर्ष
        उपर्युक्त सम्पूर्ण विवेचन से स्पष्ट है कि ‘व्यक्ति पूजा अविवेकी, सोए तथा अज्ञानी लोगों का कार्य है तथा ‘शिक्षा’ के प्रसार से निर्मित विवेकी व्यक्ति ‘व्यक्ति पूजा’ के स्थान पर ‘गुण पूजा’ को महत्व देता है.
            वर्तमान परिदृश्य व भूत में बाबा राम-रहीम, निर्मल बाबा, आशाराम बापू, नारायण साई आदि व्यक्ति पूजा के उदाहरण हैं, जिन्होंने केवल मानवता को शर्मसार करने का ही कार्य किया है. इसके विपरीत प्राचीन राजा-महाराजा, स्वतन्त्रता सेनानियों, देश-भक्तों, विद्वानों, समाज सुधारकों व गांधी परिवार की पूजा उनके देश पर मर-मिटने
के गुण के कारण हो रही है, जो गुण पूजा को दर्शाती है
           अतः हमें व्यक्ति पूजा का पुरजोर विरोधी होकर नित नई शिक्षा ग्रहण करने, शिक्षा का प्रसार करने व गुण पूजा को वृहद्रस्तरीय बनाने का प्रयास करना चाहिए.

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