सफल होने के लिए अनिवार्य है लक्ष्य के प्रति हमारी प्रतिबद्धता

सफल होने के लिए अनिवार्य है लक्ष्य के प्रति हमारी प्रतिबद्धता

                   सफल होने के लिए अनिवार्य है लक्ष्य के प्रति हमारी प्रतिबद्धता

ऐसे देखा जाए तो हर कोई अपने जीवन में सफल होना चाहता है, परन्तु
सबको अपेक्षित सफलता मिलती है क्या ? इसके एकाधिक कारण हो सकते हैं, किन्तु
एक महत्वपूर्ण कारण स्पष्ट लक्ष्य न तय कर पाना होता है. सोचिए जरा अगर
फुटबाल के मैदान में कोई गोल पोस्ट ही न हो या क्रिकेट के खेल में विकेट न हो, तो
क्या होगा ? तभी तो ए.एच. ग्लासगो कहते हैं. “फुटबाल की तरह जिन्दगी में भी आप
तब तक आगे नहीं बढ़ सकते, जब तक आपको अपने लक्ष्य का पता हो.”
        अभी हाल ही में प्रदर्शित केतन मेहता निर्देशित फिल्म ‘मांझी-दि माउण्टेन मैन’
की खूब चर्चा हुई. यह अकारण नहीं है. इस फिल्म में बिहार के गरीब-शोषित समाज के
एक ऐसे इंसान के वास्तविक जीवन को फिल्माने का प्रयास किया गया है, जिसने
गरीबी और सामाजिक विरोध के बावजूद सिर्फ अपने दम पर एक विशाल पहाड़ को
चीरकर सड़क बनाने का लक्ष्य अपने सामने रखा. दशरथ मांझी ने इसके निमित्त अनर्थक
परिश्रम किया और रास्ते में आने वाले तमाम अवरोधों को चीरते हुए सफलता हासिल
की. बीते दिनों मीडिया में इस बात की भी खूब चर्चा हुई कि प्रख्यात क्रिकेटर महेन्द्र सिंह
धोनी ने आगरा में पैरा जम्पिंग के चुनौतीपूर्ण लक्ष्य को किस तरह हासिल किया. सभी
जानते हैं कि महाभारत में लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्धता के मिसाल के तौर पर पाण्डव
पुत्र अर्जुन का नाम उभर कर आता है. ऐसा इसलिए कि अर्जुन ने एकाग्र होकर केवल
अपने लक्ष्य पर फोकस किया था और परिणामस्वरूप चिड़िया की आँख पर तीर से
निशाना साधने में वही सफल रहे थे.
           तभी तो स्वामी विवेकानन्द कहते हैं, “लक्ष्य को ही अपना जीवन कार्य समझो.
हर समय उसका चिन्तन करो, उसी का स्वप्न देखो और उसी के सहारे जीवित रहो.”
खुद स्वामीजी का जीवन इसका ज्वलन्त उदाहरण है.
          कुछ और प्रसिद्ध लोगों का उदाहरण लेते हैं, जिन्होंने लक्ष्य के प्रति अपने समर्पण
के बलबूते पर अपने-अपने क्षेत्र में अविश्वसनीय सफलता हासिल की और नए कीर्तिमान
स्थापित किए.
             खेलकूद की दुनिया में हमारे देश के अनेक खिलाड़ियों ने सैकड़ों नए मानदण्ड
बनाए, लेकिन आज यहाँ हम फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह की चर्चा करेंगे. ‘भाग मिल्खा
भाग’ नाम से चर्चित फिल्म आपने भी देखी होगी, जिसमें अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित
मिल्खा सिंह के जोश, जुनून और मेहनत को बखूबी दर्शाया गया है. तमाम अवरोधों
एवं परेशानियों के बावजूद मिल्खा सिंह कैसे एक के बाद एक रिकॉर्ड तोड़ते गए. तभी
तो वे आज भी देश-विदेश के लाखों-करोड़ों युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं.
          भारतीय आईटी उद्योग के एक बड़े नामचीन व्यक्ति के रूप में हम सब नारायण
मूर्ति का नाम लेते हैं. दरअसल इस मुकाम तक पहुँचने के लिए उन्होंने किन-किन पड़ावों
से होकर अपनी यात्रा जारी रखी, उसे जानना- समझना जरूरी भी है और प्रेरणादायक भी
मध्यम वर्ग परिवार के युवा नारायण मूर्ति को 1981 में इन्फोसिस की शुरूआत से
पहले साइबेरिया बुल्गारिया की रेल यात्रा के दौरान किसी भ्रमवश गिरफ्तार कर जेल में
डाल दिया गया, जहाँ उन्हें करीब तीन दिन तक भूखा रहना पड़ा और यातनाएं भी
झेलनी पड़ीं. उस समय उन्हें एक बार ऐसा भी लगा कि शायद वे अब वहाँ से निकल
भी न पाएं, लेकिन उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी और सच्चाई का दामन थामे रखा.
सौभाग्य से उन्हें चौथे दिन जेल से रिहा कर इस्ताम्बुल की ट्रेन में बिठा कर मुक्ति
दी गई. वह उनकी जिन्दगी का कठिनतम दौर था. कहते हैं न कि हर सफल व्यक्ति
अपने जीवन के उतार-चढ़ाव से बहुत कुछ सीखता रहता है और अपने लक्ष्य की ओर
अग्रसर होता रहता है. अपने लक्ष्य के प्रति पूर्णतः प्रतिबद्ध नारायण मूर्ति के साथ भी
ऐसा ही हुआ और आज देश-विदेश के करोड़ों लोग उनके प्रशंसक हैं.
            रेडियम जैसी महत्वपूर्ण धातु का आविष्कार करने वाली मैडम क्यूरी जिन्हें दो
बार नोबेल पुरस्कार विजेता होने की असाधारण ख्याति मिली, उनकी जिन्दगी तो संघर्षों से
निरन्तर लड़ते हुए अपने लक्ष्य तक पहुँचने की गौरव गाथा है. दरअसल, मैडम क्यूरी
के नाम से प्रसिद्ध होने से पहले उन्हें लोग मार्जो स्क्लोदोव्स्का के नाम से जानते थे,
जो पोलैण्ड की राजधानी वारसा की रहने वाली थी. उनके पिता विज्ञान के शिक्षक थे.
घर की कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण युवा मार्जा को भी एक बच्ची को उसके घर
जा कर पढ़ाना पड़ता था. बावजूद इसके परिस्थिति कुछ यूँ बिगड़ी कि उसे मजबूरन
वारसा से पेरिस आना पड़ा, जिससे वह अपनी विज्ञान की पढ़ाई जारी रख सके,
लेकिन यहाँ भी उनकी आर्थिक हालत कुछ ऐसी रही कि कमरे का किराया चुकाने के
बाद उन्हें खाने-पहनने तक की बड़ी परेशानी से रोज रूबरू होना पड़ता, पेरिस की कड़ाके
की सर्दी को झेलने के लिए उनके पास न तो पर्याप्त गर्म कपड़े थे और न ही घर को
गर्म रखने के लिए लकड़ी-कोयला आदि खरीदने के लिए पैसे लिहाजा वह पढ़ते व
सोते हुए सर्दी से ठिठुरती रहती खाने के मामले में भी बहुत बुरा हाल था. हफ्ते-दर-
हफ्ते वह डबलरोटी व चाय पर गुजारा करती नतीजतन, वह इतनी कमजोर हो
गई कि एक बार तो अपने क्लास में ही बेहोश हो गई. तथापि पढ़ाई के प्रति उनकी
लगन कम नहीं हुई और आगे तो उन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में कमाल के काम किए और
भौतिकशास्त्र एवं रसायनशास्त्र दोनों में नोबेल पुरस्कार जीता.
            क्या लक्ष्य निर्धारित करने मात्र से लक्ष्य हासिल करना सम्भव हो सकता है ?
बिलकुल नहीं, क्योंकि हमें एक सार्थक या यूँ कहें एक स्मार्ट लक्ष्य के साथ-साथ सही
व समयबद्ध कार्ययोजना की आवश्यकता होती है, जिसे हम दिलोजान से हासिल
करना चाहते हैं. उस निर्धारित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए पूरे लगन से काम में जुटे
रहना भी अनिवार्य है.
            इसीलिए मिसाइल मैन व जनता के राष्ट्रपति के नाम से विख्यात पूर्व राष्ट्रपति
– ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का कहना है, “अपने मिशन में कामयाब होने के लिए, आपको
अपने लक्ष्य के प्रति पूर्णतः निष्ठावान होना पड़ेगा.” वाकई इस सिद्धान्त पर चलते रहने
पर पारिवारिक जीवन हो या नौकरी या व्यवसाय या कोई अन्य क्षेत्र हो. हमारे
सफल होने की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है, साथ ही आगे और बड़े लक्ष्य को प्राप्त
करने के प्रति हमारा आत्मविश्वास भी. गुणीजनों का भी स्पष्ट मत है कि जीवन में
एक बड़े उद्देश्य को लेकर शिद्दत से आगे बढ़ना सफलता का सोपान बनता है.
          “सैकड़ों वर्षों के शोध से यह स्थापित हो चुका है कि अपने जीवन में सर्वाधिक
सफल व्यक्ति अपने लक्ष्यों तक इसलिए नहीं पहुँचे, कि वे ऐसा कर सकते थे,
बल्कि इसलिए कि उन्होंने क्या किया.”

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