सुधार का भी सही तरीका अपनाना बेहद जरूरी है.

सुधार का भी सही तरीका अपनाना बेहद जरूरी है.

                       सुधार का भी सही तरीका अपनाना बेहद जरूरी है.

हम सुधरेंगे तो जग सुधरेगा.
 
                              ‘सुधार’  की महत्ता व आवश्यकता जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सदा
रहती ही है, चाहे वह अपने भीतर भावात्मक व मानसिक स्तर पर हो अथवा बाहरी परिवेश
से सम्बन्धित विषय क्षेत्र हो जिस तरह हम जिस मकान या वास्तु में निवास करते हैं
उसकी साफ-सफाई प्रतिदिन करना जरूरी समझते हैं, ठीक इसी तरह हमें अपने
प्रत्येक कार्यक्षेत्र में भी सफाई स्वच्छता व सुधार की प्रक्रिया को अपनाना जरूरी है.
         अक्सर हम लोग अन्य लोगों से सुधार की अपेक्षा रखते हैं अभिभावक अपने बच्चों
में सुधार करना चाहते हैं. मालिक कर्मचारीगण में व कर्मचारीगण कार्यक्षेत्र में सरकार
प्रजा के जीवन स्तर में सुधार चाहती है तो प्रजा सरकारी तन्त्र में उसकी नीतियों में व
उसकी कार्यप्रणाली में सुधार चाहती है. हम समस्त लोग परस्पर एक-दूसरे में तो सुधार
चाहते हैं किन्तु स्वयं में सुधार चाहने वाले लोग प्रायः कम मिलते हैं तो यहाँ एक बात
जानना व स्वीकारना जरूरी है कि जब तक हम स्वयं में ही सुधार नहीं ला पाते तब तक
अन्यों से उम्मीद रखना भी नादानी ही होगी क्योंकि हमारा सबसे ज्यादा अधिकार क्षेत्र
हमारे स्वयं पर है फिर किसी अन्य पर. 
       सुधार की स्वस्थ प्रक्रिया के कुछ महत्वपूर्ण कदम –
1. डाँट-फटकार की नहीं सकारात्मक प्रेरणा की उपयोगिता समझें–
         अक्सर हम अपनी संतान या अधीनस्थ कार्यकर्ताओं में सुधार लाने के लिए उन्हें
डाँटते हैं, फटकारते हैं. उनकी कमियाँ व कमजोरियाँ हाईलाईट करते हैं और परिणाम-
स्वरूप वे हमसे मन ही मन दूरी बनाने लगते हैं. हमें देखते ही कन्नी काटने लगते
हैं. हमारे समक्ष कुछ अलग रुख अपनाते हैं और हमारी गैर हाजिरी में अलग. इस प्रकार
उन्हें झूठा, औपचारिक व कामचोर बनाने में कहीं न कहीं हमारा रवैया भी जिम्मेदार
होता है. अतः यदि आप उन्हें ऐसा नहीं बनाना चाहते हो तो उनको डाँटो-फटकारो
नहीं उन्हें अपमानित न करो न ही स्वयं को दीन-हीन मानो अथवा मैं तो कमजोर ही
हूँ, मेरी कोई सुनता नहीं हैं, मेरा कोई महत्व नहीं है ऐसी ही कहो. सतत् आत्म
प्रेरित बनो और अन्यों के लिए भी प्रेरणास्पद. उन्हें जीवन के सुन्दर पहलुओं को देखने व
उन्हें सृजित करने के लिए उत्साहित करो. उनके भीतर छुपे अच्छाई व सच्चाई के प्रति
प्रेम को जगाओ. उन्हें हर एक विषय की महत्ता बताते हुए उनकी अपनी महत्वपूर्ण
भूमिका की बार-बार स्मृति दिलाओ.
]
        जरूरत लगने पर आदर्श कहानियाँ भी सुनाओ. सफल लोगों के दृष्टान्तों को इतने
अच्छे तरीके से प्रस्तुत करो कि वे भी सफल होने के लिए अपनी सोच व प्रणाली
में सुधार लाने के लिए स्वयं तैयार हो सकें.
2. रूढ़िवादी बातें न करके व्यावहारिक मुद्दों पर ध्यान दें
      प्रायः सुधारवादी लोग पुरानी रूढ़ि को बरकरार रखने के लिए नई पीढ़ी को प्रेरित
करते रहते हैं. हर पुरानी बात में कोई न कोई अच्छाई जरूर होगी, इसकी हम मनाही
नहीं करते हैं किन्तु आज किसी को पुराने दिनों के अनुसार बनने की प्रेरणा देना
व्यावहारिक नहीं हो सकता है. आज के संदर्भ में सर्वोत्तम बुना जाना शक्य है, किन्तु
पुराने पैमानों से तुलना किया जाना इंसानों को बेहतर बनाने का नाकामयाब तरीका ही
सिद्ध होगा.
          आज का परिवेश पूर्णतः बदल चुका है. शिक्षा, संस्कार, राजनीति, धर्म-दर्शन सब
पर मीडिया का बहुत व्यापक प्रभाव है. इसके सादृश्य ही वर्तमान पीढ़ी में त्याग,
परोपकार, दयाभाव पारस्परिक सहायता द्वारा आत्म-सहायता का भाव विकसित किए
जाने का प्रयास ही श्रेयस्कर होगा.
        आज की समस्याओं के संदर्भों को समझकर उसी के अनुरूप सुधार के उपाय
अपनाया जाना बेहद जरूरी है जिसको जो सुधारात्मक निर्देश देने हैं,डाईरेक्ट उसी को
कहना ज्यादा उपयुक्त रहेगा ताकि वे आप पर भरोसा कर सकें व आपके हितचिंतन
को समझकर स्वीकार कर सकें.
3. सुधार के लिए न गर्मजोशी दिखाओ, न ही उतावले बनो
     एक दृष्टान्त से हम इस बात को जानेंगे एक बार एक धनी व्यापारी ने अपने
घर के साथ एक सुन्दर बाग लगवाया. बगीचा बहुत सुन्दर व विविध वृक्षों से शोभित
था. माली बेहद प्यार से उसकी देखभाल किया करता था. उस धनी व्यापारी का युवा
बेटा जब कई सालों तक विदेश में अध्ययन कर अपने घर लौटा तो वह उस बगीचे को
देखकर बहुत हर्षित हुआ. वह बगीचे में टहल रहा था कि संयोगवश बबूल का काँटा
उसके पैर में बहुत तेजी से चुभ गया. काँटा लगते ही क्रोध से आविष्ट वह तरुण जोर
से चिल्लाते हुए माली को डाँटने लगा और कहने लगा कि ऐसा निकम्मा बाग मुझे नहीं
चाहिए जिसमें ऐसे-ऐसे तीखे व नुकीले काँटे हैं. जल्दी से जल्दी इन वृक्षों को उखाड़
कर फेंक दो.
             यों आज्ञा देकर पैर के दर्द से रोता-चीखता वह अपने घर के भीतर चला गया.
जब अपने लड़के की इस हरकत का पता उस धनी व्यापारी को लगा तो वह माली को
बुलाकर कहने लगा कि खबरदार जो इस बाग को उजाड़ा तो इस पर मेरा बहुत धन
खर्च हो चुका है. अगर बाग में काँटे हैं तो चलने वाला देखकर क्यों नहीं चलता है ?
भला यह कहाँ का न्याय है कि गलती अपनी दोष बगीचे पर.
         अब वह माली असमंजस में था. पिता की माने या पुत्र की उसने अपनी समझ से
काम लिया. कुछ को काटा और कुछ को छांटा काँटेदार वृक्षों की जगह अन्य फूलों
व फलों से भरपूर वृक्षों का रोपण हुआ.
        कुछ समय बाद जब पिता व पुत्र दोनों बाग देखने आए तो जहाँ एक के दिमाग में
जवानी का जोश या, गर्म खून था, उतावलापन था वहीं दूसरे के दिमाग में वस्तु के विनाश
पर आक्रोश था किन्तु जब दोनों ने बाग में प्रवेश करने पर यह पाया कि काँटों वाले
वृक्ष अब वहाँ नहीं हैं, उनके स्थान पर अन्य रसीले फलों वाले वृक्ष शोभित हो रहे हैं.
बाग की शोभा अत्यंत मनोहर है तो पिता और पुत्र दोनों का ही दिल बाग-बाग हो
गया. दोनों ही माली की बुद्धि को सराह रहे थे क्योंकि वह न तो पिता की तरह रूढ़िवादी
था न ही पुत्र की तरह क्रान्तिवादी वरन् वह एक सुधारवादी नज़रिए का धनी था.
        उसकी सही अप्रोच ने सुन्दर सृजन किया जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कुछ काट-
छाँट की जरूरत लगे तो यह दृष्टांत हमें सही मार्ग दर्शन करेगा.
          सुधार की सकारात्मक विवेक सम्मत प्रक्रिया अपना कर हम सभी अपने भीतर-
बाहर को सुन्दर आकार दे सकते हैं.
         सुधार और सुधारवादी का व्यवहार दोनों ही अनुकरणीय होने चाहिए ताकि लोग
उन्हें अपनाने के लिए सहर्ष तैयार हो जाएं. साम-दाम-दण्ड-भेद की नीति अपनाकर न
तो व्यक्ति को सुधारा जा सकता है और न समाज को सुधार की प्रक्रिया बहुआयामी
है, जिसके प्रत्येक फलक को उज्ज्वलमय बनाना होता है.

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