सूचना प्रौद्योगिकी के युग में संयुक्त परिवार

सूचना प्रौद्योगिकी के युग में संयुक्त परिवार

                         सूचना प्रौद्योगिकी के युग में संयुक्त परिवार

“एक संयुक्त परिवार ऐसे व्यक्तियों का समूह है जो सामान्यतः एक ही घर में रहते हैं, जो एक ही रसोई में बना भोजन करते हैं, जो सम्पत्ति के सम्मिलित स्वामी होते हैं तथा जो सामान्य पूजा में भाग लेते हैं और जो किसी-न-किसी प्रकार से एक- दूसरे के रक्त सम्बन्धी हों.’
                         
     समाज का आधार ‘परिवार’ है और परिवार सभी समाजों में व्याप्त है. सैद्धान्तिक परिप्रेक्ष्य में ‘विवाह’ नामक संस्था के द्वारा परिवार का निर्माण होता है, जिसका प्रमुख कार्य यौन इच्छाओं की सन्तुष्टि, बच्चों को जन्म देना व लालन-पालन करना, आर्थिक उद्यम करना तथा सदस्यों के मध्य भावनात्मक सम्बन्ध बनाए रखना, समाजशास्त्रीय विवेचनाओं के विश्लेषण में यह माना गया है कि शांतिपूर्ण सामंजस्य के लिए परिवार का होना आवश्यक है अन्यथा यौन साम्यवाद स्थापित होने का खतरा है. वैदिक साहित्य तथा ऐतिहासिक कालक्रम में कृषि के विकास के साथ परिवार का संयुक्त स्वरूप विकसित हुआ कालान्तर में सूचना प्रौद्योगिकी और औद्योगिक क्रान्ति तथा इनसे उपजे सामाजिक परिणामों ने संयुक्त परिवारों को विखण्डित कर एकाकी परिवार में बदल दिया. इन सबके बावजूद भी यह निर्विवाद सत्य है कि प्रत्येक समाज में चाहे वह सभ्य हो अथवा असभ्य, आदिम हो अथवा आधुनिक, ग्रामीण हो या नगरीय,
परिवार को अस्तित्व सदैव रहा है. परिवार को मुख्य रूप से दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-एकल परिवार और संयुक्त परिवार एकल परिवार, परिवार का वह छोटा रूप है जिसमें पति-पत्नी के साथ अविवाहित बच्चे पाए जाते हैं. संयुक्त परिवार ऐसे परिवार हैं जिसमें दो या अधिक पीढ़ी के सदस्य एक साथ रहते हैं. यह सच है कि सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में संयुक्त परिवार की अपेक्षा एकल परिवारों का प्रचलन अधिक बढ़ा है. जहाँ एक ओर सूचना प्रौद्योगिकी ने परिवार को जोड़े रखने का काम किया है वहीं दूसरी ओर प्रेम, श्रद्धा और आदर जैसे भावनात्मक आधारों ने परिवार को मजबूती प्रदान की है.
          प्राचीनकाल में तो स्थिति यह थी कि भारतीय परिवार का पर्याय संयुक्त परिवार को ही समझा जाता था. धर्म ग्रंथों में उल्लेखित समस्त संस्कारों जैसे विवाह, मुण्डन, उपनयन इत्यादि में संयुक्त परिवार के मूल्यों का पोषण स्पष्ट नजर आता है. पूर्व में संयुक्त परिवार काफी विस्तृत हुआ करता था, परन्तु सूचना प्रौद्योगिकी का युग आते-आते संयुक्त परिवार के स्वरूप में भी काफी परिवर्तन हुआ है. अब संयुक्त परिवार का स्वरूप सिमटकर रह गया है. वर्तमान दौर में आधुनिकता और सूचना प्रौद्योगिकी के साथ संयुक्त परिवार में संरचनात्मक आधार पर परिवर्तन आए हैं, परन्तु इस बात को भी नहीं झुठलाया जा सकता कि प्रकार्यात्मक आधार पर अभी भी परिवार में संयुक्तता बनी हुई है.
            सूचना प्रौद्योगिकी के चमत्कारों ने तो संयुक्त परिवार का दायरा इतना बढ़ा दिया है कि अब समाज में इसके माध्यम से कई लोग एक दूसरे से जुड़े हुए हैं.  भूमंडलीकरण के इस दौर में जो एक क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ, उसे सूचना प्रौद्योगिकी कहा जाता है. सूचना प्रौद्योगिकी ने केवल भारत ही नहीं, बल्कि उन तमाम विकासशील देशों की सरकार व जनता के प्रति नजरिए में बड़े स्तर पर बदलाव किया है. सूचना प्रौद्योगिकी के फलस्वरूप सभी लोकतांत्रिक देशों में केवल प्रशासन के स्तर पर ही व्यापक बदलाव नहीं हुआ, बल्कि सामाजिक स्तर में आमूल-चूल परिवर्तन
हुआ है. अब इस आधुनिक दौर में संयुक्त परिवारों की संख्या में भारी कमी तो हुई है, परन्तु सूचना प्रौद्योगिकी के कारण अभी भी समाज के लोग एक दूसरे से संयुक्त परिवार की तरह ही जुड़े हुए हैं. सूचना प्रौद्योगिकी के कारण ही इक्कीसवीं शताब्दी में सुशासन की अवधारणा का बहुत विस्तार हुआ है. भारत जैसे देशों में सूचना के अधिकार के कारण शासन व्यवस्था में बड़े पैमाने पर परिवर्तन देखने को मिल रहा है. एक तरफ प्रशासन जहाँ संचार क्रांति के कारण लोगों की समस्याओं को तेजी से निपटाने का प्रयास कर रहा है, वहीं जनता भी अपनी समस्याओं को लेकर जागरूक हुई है. इसी वजह से कई नई प्रकार की प्रशासनिक अवधारणाओं का सृजन हुआ है. जैसे ग्रामीण समस्याओं को सुलझाने के लिए ई-चौपाल, ई-प्रशासन, मेगा अदालतें आदि प्रशासन के इस निरन्तर बदलते स्वरूप ने कई क्षेत्रों में अत्यन्त प्रभावशाली
भूमिका का निर्वहन किया है.
          सूचना प्रौद्योगिकी के चलते ही ‘डिजिटल भारत’ जैसी परिकल्पना का सूत्रपात हुआ है. वास्तव में यह एक सकारात्मक पहल है. देश को डिजिटल रूप से सशक्त बनाने के लिए ‘डिजिटल भारत’ नाम से अभियान चलाया जा रहा है. इस अभियान का प्रमुख लक्ष्य कागजी कार्यवाही को कम कर भारतीय नागरिकों को इलेक्ट्रॉनिक सरकारी सेवाएं उपलब्ध करवाना है. यह योजना अत्यंत प्रभावशाली एवं कार्यकुशल है, जिससे बड़े स्तर पर समय तथा मानव श्रम की बचत होना तय है. इस योजना को मूर्त रूप देने के लिए इंटरनेट व्यवस्था का महत्वपूर्ण योगदान है. वर्तमान दौर में सम्पूर्ण जगत में ‘इंटरनेट’ एक सुपरिचित व्यवस्था है. यह व्यवस्था हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुकी है. इंटरनेट को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि राऊटर और सर्वर के माध्यम से दुनिया में कहीं भी किसी भी कम्प्यूटर के
लिए अन्य कम्प्यूटर को जोड़ने का एक साधन है. इंटरनेट के माध्यम से एक कम्प्यूटर से अन्य कम्प्यूटर में सन्देश, ग्राफिक्स, आवाज, वीडियो, कम्प्यूटर प्रोग्राम, ई-मेल व अन्य जानकारी भेजी व प्राप्त की जा सकती हैं. सूचना प्रौद्योगिकी की ये व्यवस्थाएं डिजिटल भारत के लिए अत्यंत लाभकारी हैं.
           सूचना प्रौद्योगिकी मानव जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक ही नहीं, अपितु अपरिहार्य है. प्राचीन समय में मानव अपनी भावभंगिमाओं, व्यवहारजन्य संकेतों और प्रतीक चिह्नों के माध्यम से संचार करता था, परन्तु आधुनिक युग में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में क्रान्तिकारी उन्नति के कारण मानव बुलन्दी पर पहुँच गया है. वर्तमान दौर में भले ही संयुक्त परिवारों का विघटन हुआ हो, परन्तु सूचना प्रौद्योगिकी ने बिखरे हुए परिवारों को एक साथ जोड़कर रखा हुआ है. इस अत्याधुनिक युग में रेडियो, टेलीविजन, टेलीफोन, मोबाईल, सिनेमा, फैक्स, इंटरनेट, ई-मेल, वाट्स एप, फेसबुक, ट्विटर, टेलीकॉन्फ्रेंसिंग, वीडियो कान्फ्रेंसिंग, केबल, सोशल नेटवर्किंग साइट्स, समाचार पत्र पत्रिका इत्यादि ने मानव जीवन की नजदीकियों को बनाए रखने एवं संचार माध्यम को सुलभ बनाने के साथ-साथ लोगों को एक-दूसरे से जोड़े रखने का काम किया है.
           यह सर्वमान्य सत्य है कि हम सब किसी-न-किसी परिवार के सदस्य होते हैं. परिवार में माता-पिता, भाई-बहन, चाचा-चाची, बुआ-फूफा, मौसी-मौसा, दादा-दादी, नाना-नानी, पति-पत्नी आदि हो सकते हैं. इनमें से कुछ सम्बन्ध रक्त बधन से बँधे होते हैं, जबकि कुछ वैवाहिक सम्बन्धों के आधार पर एक साथ निवास करते हैं. वर्तमान दौर में यह माना जाता है कि यदि किसी परिवार के चार सदस्यों से अधिक सदस्य एक साथ निवास करते हैं, तो इनको संयुक्त परिवार की संज्ञा दी जाती है, इससे कोई   संदेह   नहीं   कि  उपयोगितावाद, व्यक्तिवाद, रोमान्स, यौन स्वतन्त्रता, विवाह, सम्पत्ति, सामाजिक सुरक्षा अन्तर्जातीय विवाह, उदारवाद इत्यादि प्रक्रियाओं के कारण हमारे देश में संयुक्त परिवारों का विघटन तेजी से हुआ है आज सूचना प्रौद्योगिकी का ही कमाल है कि भारत में आधुनिकता के साथ संयुक्त परिवार में संरचनात्मक आधार पर परिवर्तन तो आया है, परन्तु प्रकार्यात्मक आधार पर अभी भी परिवार में संयुक्तता बनी हुई है. संयुक्त परिवार के भविष्य में समाप्त होने की भारत में कोई आशंका नहीं है. सूचना प्रौद्योगिकी के कारण परिवारों के बीच प्रकार्यात्मक एकता बढ़ी हुई है. विवाह, त्यौहार,   संस्कार।  आदि   संयुक्त  परिवार  सक्रिय   हो   जाता  है  और  रोजमर्रा  की जिन्दगी में फिर से एकांकी बन जाता है. नगरों में बसने वाले एकाकी परिवारों के मध्य परिवारिक धारावाहिकों की धूम मची हुई है. एक तरफ व्यावसायिक गतिशीलता के कारण परिवार अलग हुए हैं, परन्तु सूचना प्रौद्योगिकी के कारण एक बन्धन से जुड़े हुए हैं. इस सम्बन्ध में श्यामाचरण दुबे जी का कथन है कि परिवार के प्रकार तथा
संरचना से निरन्तर परिवर्तन होते रहते हैं. एकाकी परिवार, संयुक्त परिवार में विकसित हो जाता है और फिर सरल परिवारों में टूट जाता है, वृद्ध माता-पिता अपने किसी पुत्र के साथ रहने लग जाते हैं और यह क्रम चलता रहता है. पूर्ण रूप से संयुक्त तथा पूर्ण रूप से एकाकी तकनीकी रूप से कम पाए जाते हैं.
          मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और वह सदैव एक दूसरे से जुड़ा रहना चाहता है, चाहे वह संयुक्त परिवार में रहे या फिर एकाकी परिवार में वास्तव में सूचना प्रौद्योगिकी ने यह कार्य सहजता से सम्पन्न किया है. सूचना प्रौद्योगिकी द्वारा प्रदत्त “सोशल मीडिया’ मनुष्य के जीवन का अटूट अंग बन चुका है, सोशल मीडिया’ जैसे ट्विटर, फेसबुक, वाट्सएप इत्यादि के माध्यम से केवल परिवार के ही लोग नहीं, बल्कि भारी संख्या में एक दूसरे से जुड़े रहते हैं, सूचना प्रौद्योगिकी मनुष्य के लिए सूचना प्राप्ति का सबसे उपयुक्त साधन पृथ्वी पर मानव एक ऐसा प्राणी है, जिसे अपने जीवन में उन्नति करने व समाज को आगे बढ़ाने के लिए हर समय सूचना की आवश्यकता पड़ती है. इन सूचनाओं के माध्यम से मनुष्य चाहे वह संयुक्त परिवार में निवास करता हो अथवा एकाकी परिवार में सभी एक दूसरे से जुड़े रहते हैं.
            विद्वानों का मानना है कि संयुक्त परिवार में भी कुछ दोष होते हैं जैसे- अकर्मण्य व्यक्तियों की वृद्धि, व्यक्तित्व के विकास में बाधक, स्त्रियों की निम्न स्थिति, अधिक संतानोत्पत्ति, कुशलता में बाधक सामाजिक समस्याएं इत्यादि यही वजह है कि अब धीरे-धीरे परिवार का आकार घटता जा रहा है. अब तो संयुक्त परिवार के स्वरूप में बहुत अधिक परिवर्तन हो चुका है. फिर भी सूचना प्रौद्योगिकी के कारण परिवार की बिखरी हुई छोटी-छोटी इकाई दूर-दूर होते हुए भी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से संयुक्त परिवार की भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं. सूचना प्रौद्योगिकी के आधुनिकतम स्रोत इंटरनेट, फेसबुक, ट्विटर, वाट्सएप तथा मोबाइल इत्यादि ने तो मानव जीवन को बदलकर ही रख दिया है, जितने समय में मनुष्य का मस्तिष्क विचार करता है, उससे भी कम समय में वह जानकारी किसी दूसरे
व्यक्ति को भेजा जा सकता है. मोबाइल व इंटरनेट की सहायता से मनुष्य सात समंदर पार बैठे व्यक्ति से भी वार्तालाप कर सकता है, अब तो वीडियो कॉलिंग व्यवस्था का भी जन्म हो चुका है, जिसमें आपस में बात करने वाले व्यक्ति एक-दूसरे का चेहरा भी देख सकते हैं, अर्थात् परिवार के सदस्य एक-दूसरे से दूर होते हुए भी एक-दूसरे के करीब हैं. सूचना प्रौद्योगिकी के प्रयोग ने तो शिक्षा को भी सरल प्रभावी एवं विकसित बना दिया है. इन्टरनेट के माध्यम से विद्यार्थियों के लिए ई-ज्ञान कोश, ई-लाइब्रेरी, विकीपीडिया इत्यादि रूपी नवीन ज्ञान प्राप्त होता है.
              परिवार की सबसे महत्वपूर्ण इकाई विवाह है. सूचना प्रौद्योगिकी के समकालीन समाज में जो परम्परागत समाज से व्यवसाय तथा गतिशीलता के आधार पर काफी भिन्न है, विवाह एवं परिवार के मूल स्वरूप में बदलाव इसका साक्षी है. औद्योगीकरण, नगरीकरण, आधुनिक शिक्षा सामाजिक विधान इत्यादि कारकों ने परिवार की संरचना तथा प्रकार्य में परिवर्तन किया है. यौन सम्बन्धों की दहलीज परिवार को लाँघ गई है. तलाक के कारण परिवार का स्थायी स्वरूप नष्ट हो गया है. आवास की समस्या तथा व्यवसायिक गतिशीलता व भिन्नता ने संयुक्त परिवार को एकाकी परिवार में बदल दिया है. अब परिवार, सामाजिक नियंत्रण की महत्वपूर्ण इकाई नहीं रह गया है. विवाह एक संस्कार अर्थात् परिवार की स्थापना कर सामाजिक जिम्मेवारी निर्वाह का माध्यम न रहकर मात्र यौन सम्बन्धों की व्यवस्था मात्र है. विश्व में तेजी से बदलते सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीति परिदृश्य ने विवाह एवं परिवार के परम्परागत स्वरूप विवाह, यौन
सम्बन्धों का नियमन तथा परिवार, बच्चों के प्रजनन एवं सामाजीकरण की अवधारणा को बदल दिया है. परिवार के प्रकार्य तेजी से घटते जा रहे हैं. बच्चे मात्र जन्म परिवार में लेते हैं. क्रेच, नर्सरी, प्राइमरी सेकण्डरी आदि संस्थानों ने परिवार की महत्ता में कमी की है. औद्योगीकरण ने भौगोलिक तथा सामाजिक गतिशीलता के आधार पर एकाकी परिवार को सशक्त बनाया है. आधुनिक शिक्षा तथा गतिशीलता ने नारी को घर से निकलकर कार्य-स्थलों तक पहुँचाया है तथा सामाजिक विधानों ने पहली बार नारी को अपने जनतान्त्रिक अधिकारों के प्रति जागरूक बनाया है. ऐसे में विवाह तथा परिवार नाम संस्थाओं में परिवर्तन होना स्वाभाविक है.
         निष्कर्षतः सूचना प्रौद्योगिकी के इस आधुनिकतम युग में परिवार के आकार तथा प्रवृत्तियों में लगातार परिवर्तन हो रहे हैं. संयुक्त या विस्तृत परिवार एकाकी परिवार के रूप में विकसित हो रहे हैं. यह देखते हुए ऐसा प्रतीत हो रहा है कि परिवार की नई परिभाषा तथा प्रकार विकसित करने की आवश्यकता है. यह भी अटल सत्य है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी बदल चुकी हों, फिर भी समाज का अस्तित्व बनाए रखने के लिए परिवार एक आवश्यक संस्था है. परिवार के सुचारू संचालन के लिए प्रजनन, भरण- पोषण, सामाजिक संरक्षण तथा सामाजीकरण इत्यादि अत्यंत आवश्यक है. साथ ही सूचना प्रौद्योगिकी का उसके सूत्रपात के साथ ही विकास का जो सिलसिला चल रहा है वह भविष्य में भी चलता रहेगा और इसकी संभावनाएं अनंत हैं.

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