स्वावलम्बी बनना

स्वावलम्बी बनना

              स्वावलम्बी बनना

खुदी को कर बुलन्द इतना कि
                        हर तकदीर से पहले
खुदा बंदे से ये पूछे
                       बता तेरी रजा क्या है.
 
एक राजा के यहाँ उसका बचपन का मित्र मिलने आया. देर रात तक वे गपशप
कर रहे थे कि मित्र की नजर जलते दीपक पर गई, जो अब बुझने को था, उसका तेल
चुक रहा था. यह दृश्य देख वह बोला मैं जरा इस दीप में तेल डाल आऊँ राजा
बोला- आज तुम मेरे अतिथि हो तुम काम न करो मैं द्वारपाल को आदेश देता हूँ.
राजा ने द्वारपाल को आवाज लगाई किन्तु कोई प्रत्युत्तर नहीं आया. राजा समझ गया
कि द्वारपाल को नींद लग गई है. वह स्वयं गद्दी से उठा और तेल डालने पहुँचा तो मित्र
बोला- अरे ! आप तो राजा हैं ये काम आपको शोभा नहीं देता, तभी राजा बोला-
अपना काम करने से मैं तो जो हूँ वही रहूँगा. कुछ और थोड़े ही हो जाऊँगा. ये
बात सुनकर मित्र को अहसास हुआ कि हम स्वयं को श्रेष्ठ, बड़ा, धनी मानकर परावलम्बी
बनते चले जाते हैं, स्वावलम्बन से ही जीना श्रेष्ठ है. स्वावलम्बी कभी छोटा नहीं होता व
परावलम्बी कभी बड़ा. आज हम अपनी जिंदगी में झांकें तो समझ आएगा कि हम
कितने अधिक पराधीन होते जा रहे हैं. अक्सर युवा वर्ग अपनी पढ़ाई
को इतना बोझ समझ कर करता है कि घरवालों को यह महसूस कराता रहता है।
कि मैं एक बहुत बड़ा काम कर रहा हूँ इसलिए मेरे लिए आप मेरा हर कार्य करके
दें. मेरे लिए खाना पकाने से लेकर जूते साफ करना हो या मेरे कपड़े व्यवस्थित
करके रखना हो या बिखरी पुस्तकों को व्यवस्थित करना हो, मैं स्वयं यह कार्य नहीं
कर पाऊँगा क्योंकि मैं बहुत व्यस्त हूँ. मैं बहुत भारी काम कर रहा हूँ वो है पढ़ने का.
पढ़ाई क्या हुई मानो युद्ध में चढ़ाई हो रही हो, हम सबको कहीं न कहीं खुद को बहुत
व्यस्त बताने की आदत पड़ गई है, हम सभी अपने कामों की बहुत वजनदार मानते
हैं, भारी, कठिन, जटिल व संघर्ष रूप मानते हैं तथा दूसरों के कार्यों को अपने से
सदा कम आंकते हैं. फिर दूसरों से सेवा लेना अपना अधिकार मानते हैं. कभी-कभार
उनकी सेवाओं के लिए धन्यवाद कह भी देते होंगे, किन्तु अपनी नजरों में अपने द्वारा
किए जा रहे कामों को अधिक महत्व देते हैं और दूसरों के कार्यों को कमतर आँकते हैं.
तब हमें लगता है कि हम जो कर रहे हैं वह बहुत महान काम है. इसलिए ये लोग
मेरा ख्याल रखें, मेरे छोटे-मोटे कार्यों को निपटा दे रहे हैं तो क्या बड़ा काम कर रहे
हैं. बड़ा काम तो मैं कर रहा हूँ इस प्रकार घमण्ड में भरकर दूसरों पर निर्भर रहना
अधिकांश युवाओं की जीवन शैली बनती जा रही है. जिसके विविध दुष्परिणाम यदा-कदा
प्रकट होते ही रहते हैं जैसे कि-
◆ शरीर का वजन बढ़ता जाना,
◆ उचित व्यायाम व श्रम के अभाव में शरीर बेडौल हो जाना.
◆ काम नहीं करने के कारण काम करना आता नहीं,
◆ किसी दिन मजबूरी में खुद के जरूरी काम भी करना पड़ जाए तो झल्लाहट
होती है, गुस्सा आता है, अधीरता के कारण काम व सामान बिगड़ भी जाते हैं.
◆ दूसरों पर निर्भरता के कारण कई नई जानकारियों व तकनीकी कुशलता से
वंचित रह जाना.
◆ सुविधा के अभाव में अथवा अभाव की कल्पना मात्र से बीमार पड़ जाना,
मानसिक रूप से विचलित हो जाना.
◆ अत्यधिक खर्चे पाल लेना कमाई कम व्यय ज्यादा.
◆ मानसिक परिश्रम ज्यादा व शारीरिक न्यूनतम हो तो आंतरिक स्वास्थ्य
बिगड़ता जाता है.
◆ नई-नई रचनात्मक योग्यताओं से वंचित रह जाना और अनेकायामी व्यक्तित्व
का विकास न हो पाना.
◆ सुविधा प्राप्ति के लिए मारामारी व कलह क्लेश बढ़ जाना.
◆ परावलम्बन के कारण संवेदनशीलता घटती जाना.
◆ पारदर्शिता का अभाव रहना.
◆ दूरदर्शिता का जागरण न हो पाना आदि.
स्वालम्बन के कारण एक इंसान गहरा ज्ञान प्राप्त कर पाता है. स्वाभिमान को सुरक्षित
रख पाता है और उत्तम स्वास्थ्य का वरदान भी पाता है हम पर निर्भर रह कर पाएंगे
थोड़ा गवाएंगे ज्यादां, फिर क्यों न चेते.
        बहुत से ऐसे छोटे-मोटे काम हैं, जिन्हें हम स्वयं संजीदगी से करना सीख जाएं तो
हम अपना जीवन अधिक सुखी व उपयोगी बना सकते हैं जैसे नहाते ही बाथरूम स्वयं
साफ कर देना अपने जूठे बर्तन खुद धोकर रखना अपने कपड़े समेट कर व्यवस्थित
रखना अपने शरीर के रख-रखाव के साथ-साथ मानसिक विचारों को भी सुंदरता से
व्यवस्थित करना अपने घर के प्रत्येक सदस्य के सहयोग को सराहना इत्यादि.
     स्वावलम्बी न छला जाता है, न अकस्मात् आघात पाता है जबकि परावलम्बी
को आसानी से कोई भी धोखा दे सकता है. उसकी कमजोरियों का फायदा उठा कर
अपना हित साध सकता है. यदि आप इन दुष्परिणामों से बचना चाहते हो तो खुद के
नित्यक्रम को आज से ही व्यवस्थित कर दीजिए अपने छोटे-मोटे कार्यों के लिए किसी
पर निर्भर मत रहिए सफलता की इस महत्वपूर्ण कुंजी को अपनाइए और अपने
भाग्य के सितारे को प्रबल बनाइए.
          स्वावलम्बन का भाव बच्चों के चलना सीखने से समझा जा सकता है. शोधों से
यह प्रमाणित हो चुका है कि जिन बच्चों को आधुनिक बेबी वाकर में बैठा कर चलना
सिखाया जाता है, वे देर में चलना सीख पाते हैं. गाँव देहात में चारपाई की पाटी
पकड़कर चलने वाले बच्चे शीघ्रता से चलना सीखते हैं. यही तथ्य कॅरियर बनाने की ओर
अग्रसर युवाओं पर लागू होता है. ‘कैप्सूल’ रूप में पाठ्य सामग्री का अध्ययन करने
वालों की सफलता संदिग्ध है. सघन अध्ययन करने वाले कठिन से कठिन प्रश्न आसानी
से हल कर लेते हैं स्वावलम्बन व्यक्ति को अपने पैरों पर खड़े होने, दौड़ने, छलांग
लगाने, मंजिल तक पहुँचने की शक्ति प्रदान करता है. जिस प्रकार व्यक्ति भीतर
उसका ज्ञान और कौशल दिखाई नहीं देता, लेकिन होता है ठीक उसी प्रकार व्यक्ति में
स्वावलम्बन की भावना दिखाई नहीं देती, लेकिन होती है, व्यक्ति के भीतर मौजूद
स्वावलम्बन की शक्ति यह तय करती है कि लक्ष्य तक किस प्रकार और कितने समय में
पहुँचा जा सकता है. स्वावलम्बन व्यक्ति को पराधीन नहीं बनने देता, आत्मा से कमजोर
नहीं होने देता, असफल होने पर भी निराश नहीं होने देता, अंधकार में भी राह से
भटकने नहीं देता, जो लोग दूसरों पर निर्भर रहते हैं वे कभी भी उच्च स्तरीय उपलब्धियाँ
हासिल नहीं कर पाते. सत्तर वर्ष से अधिक समय तक लौह आवरण में रहे चीन का
उदाहरण सारे विश्व में चमत्कारिक है, चीन ने लगभग सभी क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता प्राप्त
करके आर्थिक और सामाजिक विकास के उच्च कीर्तिमान स्थापित किए हैं. छोटे से देश
इजरायल ने स्वावलम्बी बन कर सारे विश्व में एक विशिष्ट पहचान बनायी है. स्वावलम्बी
बन कर प्रत्येक युवा में सर्वोच्च शिखर पर पहुँचने की सम्भाव्यता है.

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