हमारे शब्द हमारा भविष्य
हमारे शब्द हमारा भविष्य
हमारे शब्द हमारा भविष्य
कितना अच्छा होता यदि बचपन से ही हमें यह सिखा दिया जाता कि हमें
कैसे बोलना है ? बोलते समय किस प्रकार के शब्दों का चयन करना है ?
हमारे द्वारा बोले जा रहे शब्दों का हमारी जिन्दगी में कितना और कैसा प्रभाव
होता है ? हम जो भी बोलते हैं चाहे मन-ही-मन अपने आपसे अथवा किसी
अन्य से हमारी शब्दावली व उसमें निहित हमारे इरादे ही हमारे भविष्य को
निर्मित करते हैं. हर शब्द हमारी मानसिक संरचना को प्रभावित करता है.
यदि कोई व्यक्ति बात-बात में बार-बार चाहिए शब्द का प्रयोग करता है, तो
इसका मतलब यह है कि उसकी मानसिकता कमजोर है, आग्रही है, वह
नैतिक रूप से दूसरों को निजी धारणा-परक रूप से रखना चाहता है, किन्तु
खुद उसके विपरीत है. हमें ऐसा करना चाहिए. ऐसा नहीं करना चाहिए …….
इस तरह की वाणी पलायनवृत्ति का भी संकेत देती है. हमें ‘चाहिए’ के स्थान
पर ‘सकना’ शब्द का प्रयोग करना होता है.
इसी तरह अक्सर लोग बात-बात में लेकिन बोलते हैं. मैं ऐसा करना चाहती
थी, किन्तु …… ये किन्तु, परन्तु शब्द व्यक्ति में परदोषान्वेषी वृत्ति को इंगित
करते हैं. बात-बात में ‘किन्तु’ कहने वाला अपने हृदय को टटोले तो उसे
पता चलेगा कि उसमें शंका बहुत है. परिणामतः उसका हर कार्य बाधित होगा.
वो जैसा चाहेगा, परिणाम उसके विपरीत ही मिलेगा.
इसी तरह अक्सर लोग बोला करते हैं कि ‘काश’ ……….. ‘काश ऐसा
होता’, ‘काश मेरे पंख होते’. ‘काश मैं ये कर सकती’. यह ‘काश’ शब्द व्यक्ति में
शिकायत, हीनभावना व कमजोरी का संकेत है. हमें ‘काश’ शब्द के स्थान पर
बोलना होता है- ऐसा हो ! आमीन! तथास्तु.
अक्सर लोग स्वयं से कहते रहते हैं कि ‘मुझे यह नहीं भूलना है’, ‘मैं कहीं
इसे भूल न जाऊँ’ और फिर ऐसा ही होता है. वे भूल जाते हैं.
सकारात्मक वाक्य रचना व्यक्तित्व को सकारात्मक ऊर्जा तथा अच्छा व सुखद
भविष्य देती है. वहीं नकारात्मक वाक्य रचना भीतर में संदेह व अविश्वास एवं
भविष्य को अस्थिरता देती है.
इसी तरह से अक्सर लोग कहा करते हैं कि ‘मुझे यह कार्य करना
पड़ेगा’, यह ‘पड़ेगा’ शब्द मजबूरी का संकेत है जबकि इस दुनिया में मजबूरी
जैसा कुछ भी नहीं है. हमारे सामने आई हर परिस्थिति हमारा अपना चुनाव है.
‘पड़ेगा’ के स्थान पर हमें बोलना है कि ‘मैं यह चुनता हूँ’. ‘मैं अपने काम पर
जाता हूँ, क्योंकि मैं अपने काम से प्यार करता हूँ’. ‘मेरे काम से ही मेरी योग्यताएं
प्रकट होती हैं. मैं कमाने का साधन प्राप्त करता हूँ.’ विद्यार्थी ऐसा बोले कि तो
‘हम अपनी पढ़ाई से प्यार करते हैं.’ बजाय इसके कि ‘हमें पढ़ना पड़ेगा.’
जब हम बेहतरीन ढंग से शब्दों का प्रयोग करना शुरू कर देते हैं, तो हमारी
जिन्दगी भी बेहतरीन बन जाती है.
यही महावीर भगवान का कर्म सिद्धान्त है कि हम जैसा सोचते व
बोलते हैं वैसा ही हमारा कर्मबंध (भविष्य निर्माण) होता है. हमारा मानसिक कल्प
ही हमारा भविष्य है, कर्म बंधन है, चूँकि हम सब अपने जीवन को सुखद, स्वस्थ,
सुंदर व समृद्धिपूर्ण देखना चाहते हैं, अतः हम सभी अपने द्वारा बोले जा रहे
व सोचे जा रहे शब्दों के प्रति सजग होंगे ध्यान देने योग्य विधा यह है कि
जो शब्द हमसे बार-बार उच्चरित होंगे, वे हमारी सोच, शैली, संस्कार व चेतना
में संज्ञानभूत होते जाएंगे. उन शब्दों में निहित भाव हमारे जीवन को अभिमंत्रित
करते रहेंगे. अतः सजगता की इस प्रक्रिया में हमें निम्न शब्दों को अपनी
भोकेव्लरी से अलग करना होगा-
1. चाहिए-
2. करना पड़ेगा-
3. कोशिश करूँगा-
4. भूलना मत
5. काश……
6. बेचारा
7. यह गलत है-
8. मैं नहीं मानता
9. यह उसका दोष है, उसकी गलती है.
इन वाक्यों के स्थान पर कहें कि ऐसी उसकी शैली है. इस दुनिया में किसी को गलत मत
कहो, न ही किसी को गलत ठहराने की कोशिश करो यदि हमें किसी की बात अच्छी न
लगे तो मात्र हमें इतना ही कहना है कि ऐसा उसका विचार है, स्वभाव है, ऐसी
उसकी शैली है. जरूरी नहीं कि आप उससे सम्बन्ध बनाओ, किन्तु आप उसे
गलत न कहो.
इस प्रकार अनेक वक्तव्य हैं, जो हमारी जिन्दगी से हमें दूर करते हैं. जैसे
कि गुस्से में अपने ही बच्चों के लिए कहा गया वाक्य कि ‘तू मर जा ……………;
अच्छा होता तू पैदा ही न होता……….. क्यों खून चूस रहा है.’ ‘दूर पड़ो’, ‘जरा
मलाई मार के दो’, ‘उल्लू का पट्ठा’ ‘डेमफूल दुकान बंद करो’, ‘हाय मैं मर
गई’, ‘कुछ भी ठीक नहीं है’, ‘जमाना खराब है’, ‘ये नीच लोग हैं, भगवान बुरा
करे’………… इत्यादि. चाहे ये वाक्य गुस्से में अथवा मजाक में ही क्यों न
कहे जा रहे हों. हमें ऐसे शब्दों का प्रयोग करना ही नहीं है, जो हमारे
भविष्य को इसी तरह की घटनाओं से भर दें. हमारे द्वारा बोला जा रहा हर
शब्द, प्रकृति में मौजूद उस तरह की घटनाओं से हमारा सम्बन्ध जोड़ रहा है.
अतः हम चेतें. अपनी भाषा व वाक्य रचना सुधारें अपने जीवन में खुशनुमा
माहौल का निर्माण करें. अच्छा बोलें व अच्छे भविष्य की नींव रखें.
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