हिंदी में पारिभाषिक शब्द-रचना और कोश

हिंदी में पारिभाषिक शब्द-रचना और कोश

                      हिंदी में पारिभाषिक शब्द-रचना और कोश

प्रत्येक समृद्ध भाषा में कुछ तो सामान्य शब्द होते हैं और कुछ पारिभाषिक शब्द । पारिभाषिक शब्द उन्हें कहते हैं जो विशिष्ट विज्ञान या शास्त्र आदि में प्रयुक्त होते हैं तथा जिनकी इस विज्ञान या शास्त्र के संबंध में मुनिश्चित परिभाषा दी जा सकती है। यों कुछ शब्द ऐसे भी होते हैं जो कभी तो सामान्य रूप से प्रयुक्त होते हैं और कभी पारिभाषिक रूप में। उदाहरण के लिये बिस्तर खाना, मकान सामान्य शब्द हैं तो अध्यादेश (प्रशासन), स्वनिम ( भाषा विज्ञान), ‘अभ्यतिपायता’ (सांख्यिकी) आदि पारिभाषिक शब्द हैं। भाषा शब्द’ (उनकी भाषा तो मेरी समझ में नहीं आती) में सामान्य शब्द है तो भाषा विज्ञान में भाषा एक पारिभाषिक शब्द है।
        प्रत्येक समाज प्रारंभ में केवल सामान्य शब्दों का प्रयोग करता है किंतु जैसे-जैसे समाज में विभिन्न विज्ञानों, शास्त्रों, और शिल्पों का विकास होता है, उसकी भाषा में पारिभाषिक शब्दों का भी विकास होता चलता है, क्योंकि बिना उनके उन विशिष्ट विषयों से संबंद्ध अभिव्यक्ति संभव नहीं होती । शब्द जब पारिभाषिक बन जाता है, तब उसकी महत्ता और बड़ जाती है। 
  इस प्रकार महत्ता को ही ध्यान में रखकर पारिभाषिक शब्द की परिभाषा दी गई―”पारिभाषिक शब्द वह शब्द है जो किसी विशेष ज्ञान के क्षेत्र में एक निश्चित अर्थ में प्रयुक्त होता है तथा जिसका अर्थ एक परिभाषा द्वारा स्थिर किया गया हो।
        प्रकार : सामान्य रूप से पारिभाषिक शब्दावली में तीन प्रकार के शब्द मिलते हैं―(1) पूर्ण पारिभाषिक (2)
मध्यस्थ पारिभाषिक और (3) सामान्य पारिभाषिक, मोटे तौर पर पूर्ण पारिभाषिक शब्द प्रायः विशेष होते हैं, जैसे प्रकरी, प्रव्रज्या, बीजगणित, त्रिज्या आदि । सामान्य प्रयोग इनके नहीं होते। दर्शन और सामाजिक विज्ञान के शब्द― मोक्ष, संन्यास, पूँजीवाद या अहिंसा जैसे शब्द पारिभाषिक हैं फिर भी इनका पारिभाषिक और सामान्य दोनों लोग कुछ हद तक समझ लेते हैं।
              पारिभाषिक और सामान्य― दोनों अर्थों में प्रयुक्त होने वाले शब्द ‘मध्यस्थ’ कहलाते हैं यथा-दावा, अटैचमेंट, अनुमोदन, आपत्ति आदि । यह शब्द-समूह भाषा के स्वरूप के अभिन्न अंग होते हैं। वृद्धि, गुण, उत्सर्ग और अपवाद जैसे शब्द के मूल अर्थ भिन्न होते हुए भी पाणिनि ने व्याकरण में इनका विशेष अर्थों में प्रयोग किया है। इसलिये कहा जाता है-“आचार्यात् संज्ञा सिद्धः” आचार्य ने अमुक अर्थ में, अमुक प्रकरण में इसका प्रयोग किया है, अतएव इसका वही अर्थ है।
           वास्तव में पारिभाषिक शब्द भी अन्य शब्दों की तरह प्रवृत्ति चतुष्टयी वाला जाति, गुण, आख्यात और यदृच्छा-शब्द होता है।

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