हिन्दी का विकास एवं इसका वैश्वीकरण

हिन्दी का विकास एवं इसका वैश्वीकरण

                          हिन्दी का विकास एवं इसका वैश्वीकरण

वैश्वीकरण, भूमण्डलीकरण एवं उदारीकरण के दौर में भाषा का महत्व ज्यादा बढ़
गया है. हर देश अपनी अर्थव्यवस्था में विदेशी सहभागिता ज्यादा चाहता है, क्योंकि
वह जानता है कि अगर उसे अपना बाजार विस्तृत करना है और उत्पाद को अन्य देशों
तक पहुँचाना है, तभी अपनी अर्थव्यवस्था का चहुँमुखी विकास कर पाएगा. इसी अवधारणा
के चलते विश्व आज सिमटता जा रहा है और भाषा का महत्व बढ़ता जा रहा है.
भारत विकासशील देश है और यहाँ व्यापार-व्यवसाय के लिए क्षेत्र विस्तृत है. इसलिए
वैश्विक स्तर पर हिन्दी की महत्ता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. हम वैश्वीकरण के आभारी
हैं कि उसने भाषाओं को फलने-फूलने के इतने मौके दिए हैं. इसी परिप्रेक्ष्य में हिन्दी ने
भी वैश्विक स्तर पर अपना विकास किया है और अपनी पहचान बनाई है.
 
भाषा का महत्व
         भाषा जीवन की अनुलिपि है. वह लिखित या मौखिक रूप में सामाजिक अस्तित्व के
लिए अनिवार्य होती है. इसीलिए भाषा का इतिहास उस भाषा को व्यवहार में लाने
वाली जाति का इतिहास होता है. अभी तक कोई भी ऐसा समाज देखने में नहीं आया
है, जिसके विकास में भाषा का हाथ न हो. मनुष्य ही नहीं प्राणी जगत् में हर प्राणी की
अपनी भाषा है. वास्तविकता यह है कि यदि भाषा रूपी अभिव्यक्ति की सुविधा मनुष्य
को नहीं मिली होती, तो न तो मनुष्य की विकास यात्रा आगे बढ़ी होती, न समाज का
गठन हुआ होता और न ही मनुष्य के ज्ञान का प्रसारण एवं भण्डारण हुआ होता. भाषा
के बिना मनुष्य, मूक प्राणी के समान है. ईश्वर ने मनुष्य को भाषा का अमूल्य उपहार
दिया है, जिसे संजोकर रखना, उसका सम्मान करना एवं इसका विकास करना
मनुष्य की पहली जिम्मेदारी है.
 
हिन्दी का विकास
          हिन्दी के विकास पर जब निगाह डालते हैं, तब पाते हैं कि “पहले दिल्ली और आगरे
की आम बाजारों और गलियों में अफगान या मुगल अरबी, फारसी शब्दों के साथ
भारतीय भाषा की मिलावट के साथ उसे बोलते थे. इसी तरह लश्करी भाषा से खड़ी
बोली बनी और अरबी लिपि में लिखी जाने वाली उर्दू से देवनागरी में लिखे जाने वाली हिन्दी 
बनी लिखित हिन्दी के प्रारम्भिक स्वरूप का विकास उत्तर अपभ्रंशकालीन युग से 11वीं सदी 
के मध्य हुआ. अलाउद्दीन और मुहम्मद तुगलक के कारण उत्तर भारत के लोग बड़ी संख्या में 
दक्षिण गए तथा अकबर ने जब मालवा बरार, खानदेश और गुजरात को मिलाकर दक्खिन प्रदेश बनाया, उस समय कुछ गिने-चुने मुस्लिम परिवारों को छोड़कर शेष सभी लोग खड़ी बोली का
प्रयोग करने लगे. इस तरह जिस खड़ी बोली में हरियाणा मेवात, शेखावत तथा ब्रज से
सम्बन्धित बोलियों का प्रभाव था. दक्षिण में जाकर उसका एक और रूप सामने आया,
जिसकी वजह से दक्खिनी हिन्दी का जन्म हुआ शेरशाह सूरी के युग में सिक्कों में
नागरी और फारसी दोनों लिपियों का प्रयोग किया गया. मुगलों की राजकाज की भाषा
यद्यपि फारसी थी परन्तु बोलचाल की भाषा कश्मीर, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य
प्रदेश आदि में हिन्दी ही थी.
          17वीं शताब्दी तक हिन्दी गद्य में भरपूर अभिव्यक्ति की शक्ति आ गई थी एवं 18वीं
सदी तक मराठा प्रशासन में हिन्दी का प्रयोग व्यापक रूप से होने लगा था तथा इस दौरान
पत्र व्यवहार, निर्देश, समझौते, राजकीय कार्य आदि अनिवार्य रूप से हिन्दी में किए जाते थे.
डॉ. केलकर ने पुणे तथा बीकानेर के अभिलेखों में सुरक्षित सैकड़ों पत्रों के आधार पर 18वीं
शताब्दी में हिन्दी पत्र” नामक एक शोध प्रबन्ध प्रस्तुत किया है, जिसके अनुसार तात्कालीन
शासन काल में राजभाषा के रूप में हिन्दी/हिन्दुस्तानी के प्रयोग के स्वरूप को दर्शाने
के लिए दान-पत्रों, बहियों आदि का उदाहरण प्रस्तुत किया है.
          यूरोपीय कम्पनियों ने भारत में आपसी विचार-विमर्श के लिए हिन्दी को उपयुक्त
समझा. इसीलिए सन् 1782 में बंगाल सर्विस में नियुक्त हेनरी टामस कालबुक ने कहा था
कि “जिस भाषा का उपयोग भारत के प्रत्येक प्रान्त के लोग करते हैं तथा जो पढ़े-लिखे
तथा अनपढ़ों सभी की भाषा है, वह यथार्थ में हिन्दी ही है.”
            विलियम वर्डवर्थ वेली सिविल सर्विस के बड़े योग्य अधिकारी थे तथा वह सन्
1799 में सेवा में आए थे. उन्होंने हिन्दुस्तानी की परीक्षा में द्वितीय स्थान प्राप्त किया था
तथा 1802 में आयोजित प्रथम वाद-विवाद प्रतियोगिता में हिन्दी में विचार व्यक्त करने
के लिए उन्हें प्रथम स्थान मिला था, तब सिविल सर्विस के अधिकारियों में हिन्दी/
हिन्दुस्तानी के प्रति गहरी रूचि जागी थी और हिन्दी का परचम चारों तरफ लहरा रहा था.
        सन् 1800 में मसर्किय बेलेजली द्वारा स्थापित फोर्ट विलियम कॉलेज, कलकत्ता ने
हिन्दी के विकास में अहं भूमिका निभाई है. उस समय कॉलेज में पदस्थ श्री लल्लू लाल
जी एवं सदल मिश्र ने खड़ी बोली में हिन्दी की पुस्तकें तैयार करवाई थीं बीकानेर के
महाराजा ने सन् 1872 में सर टॉमस जार्ज बेरन नार्थबुक को हिन्दी में पत्र प्रेषित किया
था. सन् 1843 में अपनी थामसन रिपोर्ट ने कम्पनी सरकार एवं ब्रिटिश सरकार को यह
स्पष्ट निर्देश दिए थे कि जिला स्तर पर भोजपुरी, अवधी ब्रज, बुन्देलखण्डी, मैथिली,
राजस्थानी आदि भाषा में सरकारी काम किया जाए. अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में विशेषतः नेपाल के
साथ पूरा पत्र व्यवहार हिन्दी में ही होता था. ब्रिटिश सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद
सन् 1951 में भारत में अंग्रेजी जानने वाले लोगों का प्रतिशत मात्र एक था.
      सर्वप्रथम विद्यासागर एवं केशच चन्द्र सेन ने 1857 में अपने समाचार पत्र में लिखा
था कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा बनने के योग्य है तथा 1882 में राजनारायण बोस
और 1886 में भूदेव मुखर्जी ने भारत को एक सूत्र में बाँधने के लिए हिन्दी की वकालत
की थी. 1905 में अरविन्द घोष ने हिन्दी को सर्वमान्य भाषा बनाने योग्य बताया था.
         1917 में महात्मा गांधी ने द्वितीय गुजरात शिक्षा सम्मेलन के अध्यक्ष पद से भाषण
करते हुए हिन्दी को राजभाषा के रूप में प्रतिपादित करने हेतु अपने विचार रखे थे.
1918 में चेन्नई में “दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा” की स्थापना की गई थी.
         स्वतन्त्र भारत का संविधान बनाने के लिए सभी दलों (हिन्दू महासभा, मुस्लिम, सिख,
लिबरल, लेबर) की 1928 में पण्डित मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में नेहरू रिपोर्ट प्रस्तुत की
गई, जिसमें हिन्दुस्तानी को सर्वमान्य भाषा घोषित किया गया. 1937 में पण्डित जवाहर
लाल नेहरू ने अखिल भारतीय भाषा के रूप में हिन्दी को सरकारी एवं व्यवहारिक भाषा
के रूप में स्वीकारने की तरफदारी की थी. चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने तमिल भाषियों से
हिन्दी पढ़ने की अपील करते हुए कहा था “उत्तर और केन्द्रीय भारत की मुख्य भाषाओं
में एक ऐसा सामान्य सत्व है, कि इन भाषाओं के बोलने वालों को बिना उनकी अपनी भाषाओं
में विशेष परिवर्तन के ही एक-दूसरे को समझ सकने में सहायता प्रदान करता है तथा भारत
सरकार से व्यवहार की भाषा हिन्दी ही होनी अनिवार्य होगी, यदि वृहद भारत में प्रतिदिन
का सम्पर्क नहीं बनाए रखा गया, तो दक्षिण प्रदेश उस सांस्कृतिक वृक्ष की निर्जीव शाखा 
मात्र रह जाएगा.”
         सूफी-सन्तों, फकीरों, भक्तों और आजादी के मतवालों ने पूरे देश को एकता के सूत्र
में बाँधने के लिए हिन्दी को ही प्रोत्साहित किया. महादेवी वर्मा की हाट-बाजार की भाषा 
आज भी अपना महत्व रखती है. “सर फरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है” और “मेरा
रंग दे बसन्ती चोला” की थाप पर युवकों की टोलियाँ सड़कों पर निकल पड़ती थीं.
             स्वतन्त्र भारत की कल्पना करने वाले मनीषियों के दिमाग में यह बात थी कि “देश
की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं औद्योगिक स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए
जनसम्पर्क की भाषा हिन्दी ही हो सकती है तथा यही राजभाषा के प्रतिष्ठित सिंहासन पर
आसीन होने के योग्य है” यही अवधारणा आगे बढ़ी और यह महसूस किया गया कि
“यदि हम हिन्दी को आगे बढ़ाने में दृढ़प्रतिज्ञ नहीं हुए, तो एक दिन हिन्दी हिब्रू, लैटिन
की तरह इतिहास की याद रह जाएगी.”
         इमर्सन ने भी कहा है कि “भाषा वह नगर है, जिसे खड़ा करने में हर आदमी ने
कोई-न-कोई पत्थर जरूर लगाया है.” यानि कि भाषा एक सामूहिक धरोहर है और इसे
स्थायित्व प्रदान करने में हर एक व्यक्ति का योगदान महत्वपूर्ण है.
             15 अगस्त 1947 को आजादी के बाद महात्मा गांधी, रवीन्द्रनाथ टैगोर,
राजगोपालाचारी जैसे प्रबुद्धजनों के प्रयासों से 14 सितम्बर, 1949 को संविधान सभा
ने देवनागरी लिपि में लिखित हिन्दी को संघ सरकार की राजभाषा के रूप में स्वीकार
कर लिया. 26 जनवरी 1950 को देश में संविधान लागू हुआ तथा संघ सरकार द्वारा
राजभाषा हिन्दी के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए नीति-निर्धारण करते हुए दिशा-निर्देश
जारी किए गए.
 
          हिन्दी का संवैधानिक स्वरूप एवं प्रावधान
भारत की आजादी के बाद सन् 1963 में राजभाषा अधिनियम पारित किया गया
तथा इसमें सन् 1976 में संशोधन किए गए. दिसम्बर 1967 को लोक सभा तथा
राज्य सभा में एक राजभाषा संकल्प सर्वसम्मति से पारित किया गया था, जिसे
‘राजभाषा संकल्प 1968’ कहा गया. इसमें उल्लेख है कि “संविधान के अनुच्छेद 343 [1]
के अनुसार संघ की राजभाषा हिन्दी रहेगी और उसके अनुच्छेद 351 के अनुसार केन्द्र
का दायित्व होगा हिन्दी भाषा का प्रसार, वृद्धि और विकास करना, ताकि वह भारत
की सामाजिक संस्कृति के सब तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम हो सके.”
आज समस्त सरकारी एवं वित्तीय कार्यालय / संस्थान जैसे-बैंक, बीमा, आकाश-
वाणी, रेलवे आदि राजभाषा नीति की परिधि में आ गए हैं. भारत सरकार के गृह मंत्रालय”
के राजभाषा विभाग द्वारा निर्धारित राजभाषा नीति को इन पर लागू किया गया है. इनके
निर्देशन में राजभाषा कार्यान्वयन में उल्लेखनीय प्रगति हुई है.
        वार्षिक कार्यान्वयन कार्यक्रम के अनुसार कार्य योजना बनाना
    संसद द्वारा पारित राजभाषा संकल्प, 1967 में किए गए प्रावधानों के अनुसार भारत
सरकार के राजभाषा विभाग द्वारा प्रतिवर्ष राजभाषा कार्यान्वयन कार्यक्रम तैयार कर
जारी किया जाता है, जिसे भारत सरकार के अधीनस्थ समस्त कार्यालय/विभाग प्रमुखों को
प्रेषित किया जाता है.
        भारत सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देश एवं वार्षिक कार्यक्रम के प्रावधानों के अन्तर्गत
यह व्यवस्था की गई है कि प्रत्येक कार्यालय/विभाग प्रशासनिक कार्यालयों में कार्य में
सहयोग करने के लिए टंकण मशीने/कम्प्यूटर/डाटा प्रोसेसिंग मशीन आदि खरीदें. यहाँ यह
सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि यह यान्त्रिक उपकरण द्विभाषिक हों अथवा उनमें हिन्दी के
सॉफ्टवेयर/एपीएस/मैजिक स्क्रिप्ट डलवाए जाएं विज्ञापन हिन्दी में अथवा द्विभाषी हों.
 
                      वैश्विक स्तर पर हिन्दी की वर्तमान स्थिति
 
● विश्व में हिन्दी जानने वाले सबसे अधिक लोग हैं.
 
● भारत की उप-बोलियों, अन्य भाषाओं के स्थान पर नई पीढ़ी हिन्दी को पारिवारिक
व सामाजिक व्यवहार की भाषा के रूप में स्वीकार कर चुकी है.
 
● संयुक्त राष्ट्र संघ एवं विदेशों में हमारे राजनेताओं द्वारा हिन्दी का उपयोग करने
से हिन्दी के विकास में उत्साहजनक स्थिति बनी है एवं नई पीढ़ी हिन्दी अपना
रही है.
 
● आज इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की लोकप्रिय भाषा हिन्दी हो गई है, इसमें टैग लाइन’
हिन्दी में दी जाती हैं.
 
● अटल बिहारी वाजपेयी एवं नरेन्द्र मोदी जैसे नेता भारत में ही नहीं अपितु
विदेशी मंचों पर हिन्दी का प्रयोग करके इसे वैश्विक स्तर पर स्थापित करने में
मददगार साबित हुए हैं.
 
● भारत को एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में देखा जा रहा है, भारत से व्यापार
के इच्छुक एवं कारपोरेट जगत् में अपनी पेठ जमाने के लिए हिन्दी को विश्व में
बहुत बड़े पैमाने पर अपनाया जा रहा है.
 
● भारत सरकार द्वारा हिन्दी के प्रचार के लिए किए जा रहे प्रयासों से तथा अनेक
गैर-सरकारी हिन्दी सेवी संगठनों के प्रयासों से भी हिन्दी को फलने-फूलने के
मौके मिल रहे हैं. खासतौर से दक्षिण में हिन्दी की स्वीकार्यता बढ़ी है.
 
● आजादी के पूर्व अंग्रेजों ने फूट डालो नीति के तहत् हिन्दी और उर्दू को
अलग-अलग भाषा बताने की कोशिश की थी, परन्तु आज यह प्रमाणित हो
चुका है कि भाषा विज्ञान की दृष्टि से हिन्दी और उर्दू एक ही भाषा की दो
शैलियाँ हैं. इसका व्याकरण लगभग एक ही है. इस अवधारणा के बाद सरकारी
कार्यालयों एवं आपसी विवाद में हिन्दी की स्थिति बेहतर हुई है.
 
● सामान्य बोलचाल की हिन्दुस्तानी भाषा हिन्दी ही है, सिर्फ लिपि अलग-अलग
लिखने से भाषा का स्वरूप नहीं बदलता है. देवनागरी लिपि में 8 से अधिक
भाषाएँ लिखी जाती हैं, यहाँ तक की उत्तर भारत में कहीं-कहीं उर्दू भी
देवनागरी लिपि में ही लिखी जाती है. इन समृद्ध विचारों से हिन्दी की स्थिति
और मजबूत हुई है.
 
● यह सुखद तथ्य है कि विश्व में हर छठवाँ व्यक्ति हिन्दी जानता, बोलता
और समझता है.
 
● हिन्दी के व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस’ एवं 14
जनवरी को प्रतिवर्ष विश्व हिन्दी दिवस’ मनाया जाता है.
 
● हिन्दी की विकास यात्रा पर निगाह डालने पर हम पाते हैं कि विश्व में हिन्दी को
बोलने, समझने एवं पढ़ने वाले लोगों की संख्या निरन्तर बढ़ रही है, जो निम्न-
लिखित तालिका में झलकी है―
                          (आँकड़े मिलियन में)
क्र.             वर्ष               संख्या
1              1997            800
2              2005          1022
3              2007          1023
4              2009          1100
5              2012          1200
6              2015          1350
इस तरह से हम पाते हैं कि जैसे-जैसे वैश्वीकरण का समय आता गया, हिन्दी का
विकास तेज होता गया, जो सुखद स्थिति है.
         विश्व के अन्य देश चीन, जापान, अमरीका, रूस आदि देशों में हिन्दी के
अध्ययन पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है.
          यद्यपि वैश्विक स्तर पर हिन्दी की स्थिति अच्छी है, परन्तु इसके विकास एवं प्रचार-प्रसार की 
जरूरत है. वर्तमान समय में वित्त, ज्ञान-विज्ञान, चिकित्सा आदि क्षेत्र में हिन्दी की
पुस्तकें आने, इंटरनेट पर पर्याप्त जानकारी मिलने से हिन्दी के विकास की स्थिति अच्छी
होती जा रही है.
           स्मार्टफोन पर हिन्दी आसानी से लिखी एवं समझी जा रही है, जिसका लाभ ई-बैंकिंग,
मोबाइल बैंकिंग में मिल रहा है. बोलने वाले एटीएम एवं पासबुक प्रिन्टर में हिन्दी भाषा
के विकल्प सराहनीय हैं. इन सब बातों का असर वैश्विक स्तर पर अच्छा पड़ेगा एवं
अच्छा संदेश विश्व में जा रहा है.
 
और अन्त में……..
     यह एक सुखद पहलू है कि वर्तमान समय में राजभाषा कार्यान्वयन में भारत सरकार
एवं भारत का हर नागरिक अपने दायित्व एवं भूमिका के प्रति गम्भीर है. यही कारण है कि
‘राजभाषा हिन्दी’ अपने प्रतिष्ठापूर्ण स्थान पर आसीन हो रही है एवं विश्व स्तर पर भी
लोकप्रिय हो रही है.
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