120 शब्द में निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

120 शब्द में निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

(i) कृषि उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा किए गए उपाय सुझाइए।
                                                               अथवा
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत सरकार के प्रयत्नों द्वारा भारतीय कृषि में लाए गए किन्हीं चार सुधारों को विस्तार से बताइए।
                                                                अथवा
“1980 व 1990 के दशक में भारत सरकार ने कृषि सुधार के लिए अनेक संस्थागत तथा प्रौद्योगिकीय सुधारों की शुरुआत की।” इस कथन की उदाहरणों सहित पुष्टि कीजिए।
                                                               अथवा
सरकार द्वारा किसानों के हित में किए गए किन्हीं पाँच संस्थागत सुधार कार्यक्रमों की सूची बनाइए।
उत्तर: कृषि उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा किये गए उपाय/सुधार निम्नलिखित हैं:-

1. संस्थागत सुधार: स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत सरकार द्वारा कृषि में उत्पादन वृद्धि के लिए कुछ संस्थागत सुधार किये गये हैं जिनमें जोतों की चकबन्दी व सहकारिता का विकास करना तथा जमींदारी प्रथा की समाप्ति करना आदि प्रमुख हैं। जमींदारी प्रथा की समाप्ति से खेती करने वाले किसानों को जमीन का मालिकाना अधिकार मिल गया जिससे उत्पादन में वृद्धि हुई। .

2. व्यापक भूमि सुधार कार्यक्रम: भारत सरकार द्वारा सन् 1980 तथा 1990 के दशकों में व्यापक भूमि सुधार कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया जो संस्थागत एवं तकनीकी सुधारों पर आधारित था। इस दिशा में उठाये गये महत्वपूर्ण कदमों में बाढ़, सूखा, चक्रवात, आग एवं बीमारी के लिए फसल बीमा का प्रावधान तथा किसान को बहुत कम दर पर ऋण सुविधाएँ प्रदान करने के लिए ग्रामीण बैंकों, सहकारी समितियों एवं सहकारी बैंकों की स्थापना आदि सम्मिलित हैं।

3. कृषि शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार: सरकार द्वारा विद्यालय, महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय स्तर पर कृषि सम्बन्धी शिक्षा का देश के विभिन्न भागों में विस्तार किया गया। आकाशवाणी व दूरदर्शन पर किसानों के लिए मौसम की जानकारी सम्बन्धी बुलेटिन एवं कृषि कार्यक्रम प्रसारित किये जाते हैं जिनमें उन्नत बीजों, कीटनाशक दवाओं, नवीन कृषि यंत्रों एवं मृदा आदि की जानकारी दी जाती है।

4. न्यूनतम समर्थन मूल्यों की घोषणा: किसानों को बिचौलियों और दलालों के शोषण से बचाने के लिए तथा किसानों को अपनी कृषि उपजों का उचित मूल्य सीधे व समय पर मिले, इसके लिए कृषि उपजों की खरीद का दायित्व सरकार ने ले लिया है। सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य एवं कुछ महत्वपूर्ण फसलों के लाभदायक खरीद मूल्यों की घोषणा भी करती है।

5. भारतीय खाद्य निगम की स्थापना: खाद्यान्नों की अधिक प्राप्ति एवं भण्डारण की व्यवस्था हेतु भारतीय खाद्य निगम की स्थापना की गयी है। भारतीय खाद्य निगम सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों से खाद्यान्न खरीदता है।

6. कृषि हेतु सब्सिडी उपलब्ध कराना: सरकार कृषि को बढ़ावा देने हेतु किसानों के लिए उर्वरक, ऊर्जा एवं जल जैसे कृषि निवेशों पर सहायिकी (सब्सिडी) उपलब्ध कराती है।

(ii) भारतीय कृषि पर वैश्वीकरण के प्रभाव पर टिप्पणी लिखें।
                              अथवा
वैश्वीकरण का कृषि पर प्रभाव लिखिए।
उत्तर: भारत एक कृषि प्रधान देश है। इसकी अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है। देश की एवं विश्व की अर्थव्यवस्था को जोड़ने की दिशा में किया गया प्रयास वैश्वीकरण कहलाता है। इसे भूमण्डलीकरण अथवा विश्वव्यापीकरण के नाम से भी जाना जाता है। वैश्वीकरण द्विपक्षीय अथवा बहुपक्षीय व्यापार एवं वित्तीय समझौते से भिन्न वह प्रक्रिया है जिसमें देश की अर्थव्यवस्था द्वारा विश्व स्तर पर उपलब्ध आर्थिक अवसरों से लाभान्वित होने का विचार अन्तर्निहित होता है।

भारतीय कृषि पर वैश्वीकरण का प्रभाव-भारत में वैश्वीकरण कोई नवीन घटना नहीं है। यह उपनिवेश काल में भी मौजूद थी। सन् 1990 के पश्चात् वैश्वीकरण के इस दौर में भारतीय किसानों को कई नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। भारत चावल, कपास, चाय, कॉफी, रबड़, जूट एवं मसालों का मुख्य उत्पादक देश होने के बावजूद विकसित देशों से प्रतिस्पर्धा में पिछड़ रहा है, क्योंकि विकसित देश कृषि को अधिकाधिक सहायता एवं अनुदान प्रदान कर रहे हैं।

इस बदलते हुए परिवेश में भारतीय कृषि दोराहे पर खड़ी हुई है। यदि कृषि व किसानों की हालत में सुधार करना है तो हमें अपनी प्राकृतिक क्षमता के साथ-साथ मानवीय श्रम की कार्यकुशलता में वृद्धि करने का प्रयास करना चाहिए। भारतीय कृषि को जबतक नवीन औजारों, उपकरणों, मशीनों एवं तकनीक से सुसज्जित नहीं किया जायेगा तब तक हमें वैश्वीकरण का लाभ प्राप्त होना कठिन है।

अतः हमें विश्वस्तरीय प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए अपनी विशाल क्षमता का सही योजनाबद्ध तरीकों से उपयोग करना होगा। सीमान्त व छोटे किसानों की स्थिति सुधारने पर भी जोर देना होगा, संस्थागत सुधार करने होंगे, कृषि-पद्धति में भी सुधार करना होगा तभी भारतीय कृषि वैश्वीकरण का लाभ उठा पायेगी।

(iii) चावल की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन करें।
                                               अथवा
चावल उत्पादन के लिए तापमान एवं वर्षा सम्बन्धी आवश्यक दशाएँ लिखिए।
                                                अथवा
भारत में चावल की कृषि के लिए भौगोलिक दशाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: भारत में चावल की कृषि अति प्राचीनकाल से हो रही है। भारत के अधिकांश लोगों का मुख्य खाद्यान्न चावल है। चीन के पश्चात् भारत चावल का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। यह एक खरीफ की फसल है। चावल की खेती के लिए आवश्यक भौगोलिक परिस्थितियाँ/दशाएँ निम्नलिखित हैं-

1. तापमान: चावल की खेती के लिए बोने से लेकर काटने तक की अवधि में तापमान 25° सेल्सियस से ऊपर होना चाहिए।

2. वर्षा: चावल की कृषि के लिए 100 सेमी. से अधिक वर्षा उपयुक्त रहती है। अतः इसके लिए पर्याप्त जल की आवश्यकता होती है।

3. मिट्टियाँ: इसकी कृषि के लिए चिकनी व दोमट मिट्टियाँ अधिक अनुकूल रहती हैं क्योंकि इन मिट्टियों में जलधारण करने की क्षमता अधिक होती है। चावल भूमि की उर्वरा शक्ति नष्ट करता है। अतः इसकी फसल के लिए खाद दिया जाना आवश्यक हो जाता है।

4. धरातल: चावल की फंसल के लिए धीमी ढाल वाली समतल भूमि अत्यन्त उपयोगी रहती है। कई क्षेत्रों में चावल पर्वतीय भागों में भी उगाया जाता है।

5. सस्ता मानवीय श्रम: चावल की कृषि में बोने, निराने, सिंचाई करने, काटने, ओसने व कूटने आदि के लिए अधिक श्रमिकों की आवश्यकता होती है। अतः चावल अधिकतर उन घने बसे क्षेत्रों में अधिक पैदा किया जाता है, जहाँ सस्ते श्रमिकों की उपलब्धता होती है।

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