Ancient History Notes in Hindi

Ancient History Notes in Hindi

                       Ancient History Notes in Hindi

                        उत्तरवैदिक कालीन धार्मिक जीवन

* उत्तरवैदिक काल में धर्म तथा दर्शन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ.

* उत्तरवैदिक काल में ऋग्वेदिक देवताओं का महत्व घट गया.

* प्रजापति उत्तरवैदिक काल के महत्वपूर्ण देवता हो गए.

* उत्तरवैदिक काल में प्रजापति ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव प्रमुख देवता रहे.

* उत्तर वैदिक काल में धर्म का स्वरूप जटिल हो गया.

* उत्तरवैदिक काल में यज्ञ का महत्व बढ़ गया, यज्ञ काफी खर्चीली एवं कई कई दिनों तक चलता था.

* यज्ञो के महत्व के कारण ब्राह्मणों की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई.

* उत्तरवैदिक काल के अंतिम चरणों में यज्ञ एवं कर्मकांडो के विरुद्ध उपनिषदों में उल्लेख मिलने लगे.

* उत्तरवैदिक काल में तीन प्रमुख यज्ञों का उल्लेख मिलता है.

* पहला राजसूय यज्ञ- यह एक राजा के राज्याभिषेक के समय होता था.

* दूसरा अश्वमेध यज्ञ- यह एक राजा की राजनीतिक शक्ति के विस्तार के लिए होता था.

* वाजपेई यज्ञ- इसमें राजा द्वारा अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया जाता था एवं प्रजा का मनोरंजन किया जाता था.

                      उत्तरवैदिक कालीन धार्मिक संस्कार

* धार्मिक संस्कारों की स्थापना वैदिक काल में ही प्रारंभ हुई थी.

* धार्मिक संस्कार स्मृति काल तक ही व्यवस्थित हो गए.

* स्मृति ग्रंथो के अनुसार मान्य संस्कारों की संख्या 16 है, इन संस्कारों को षोडश संस्कार कहा जाता है.

* गर्भधारण से मृत्यु तक सोलह(16) संस्कार इस प्रकार हैं-

* पहला गर्भाधान संस्कार- जन्म से पहले

* दूसरा पुसवन संस्कार- 3 महीना बाद एक पूजा

* तीसरा शिमांतो नयन संस्कार- नौवां महीना में बच्चे के गर्भधान करने के बाद

* चौथा छठी जात कर्म

* पांचवा नामकरण संस्कार

* छठा निष्क्रमण- 21 दिन तक बाहर नहीं निकालना

* 7वां अन्नप्राशन संस्कार- 6 महीने के बाद

* 8वाँ चूड़ाकरण संस्कार- बाल मुंडन

* 9वाँ कर्णवेध संस्कार- कान छेद

* 10वां विद्यारंभ संस्कार

* 11वां उपनयन संस्कार

* 12वां विद्यारंभ संस्कार

* 13वां  केसांत संस्कार-बाल कटवाना 

* 14वां समावर्तन संस्कार- बाल काटने के बाद स्नान कराते थे स्नान शब्द से स्नातक बना.

* 15वां विवाह संस्कार

* 16वां अंत्येष्टि संस्कार

 प्राचीन भारत में आठ प्रकार के विवाह थे-

* पहला ब्रह्म विवाह- यह सर्वोत्तम विवाह प्रकार है इसमें लड़की का पिता योग्य वर चुनकर वस्त्र आभूषणों के साथ अपनी पुत्री का विवाह करता है, कन्यादान कहलाता है.

* दूसरा विवाह- इस विवाह में कन्या का पिता यज्ञ के पुरोहितों से कन्या की शादी करवा देता था.

* तीसरा आर्श विवाह- इसमें कन्या का पिता अपनी कन्या देने के बदले 1 जोड़ी बैल और गाय प्राप्त करता था.

* चौथा प्रजापत विवाह- इसमें कन्या का पिता वर को कन्या सौंपकर बोलता था, जाओ साथ-साथ सामाजिक और धार्मिक कर्तव्य को पूरा करना,यह ब्राह्मण विवाह के अंतर्गत आता है.

* पांचवा आशूर विवाह- इस विवाह में लड़की के पिता के लड़के से धन लेकर, वेट वेचवा विवाह कहलाता है.

* छठा गंधर्व विवाह- माता पिता के आज्ञा के बिना एक दूसरे से विवाह करना गंधर्व विवाह कहलाता है.

* सातवा राक्षस विवाह- इसमें कन्या का बलपूर्वक अपहरण कर उससे शादी किया जाता था, यह राजपूतों में प्रचलित था.

* पैसाच विवाह- इसमें छल द्वारा सोती हुई कन्या या मदमत कन्या या विश्वासघात द्वारा विवाह करना पैसाच विवाह कहलाता है.

* इन 8 विवाह प्रकारों में सामाजिक रूप से ऊपर के चार विवाह प्रकार मान्य थे तथा चार अमान्य थे.

* स्वयंबर भी गंधर्व विवाह के अंतर्गत ही आता है.

* भारतीय दर्शन- भारतीय दर्शन की स्थापना भी उत्तर वैदिक काल में अंतिम चरणों में परी.

* षड्दर्शन एवं उनके संस्थापकों का विवरण इस प्रकार है-

* पहला संख्या दर्शन की स्थापना- कपिल मुनि द्वारा हुआ था.

* दूसरा योग दर्शन की स्थापना- पतंजलि (योग सूत्र) से हुआ था.

* तीसरा न्याय दर्शन की स्थापना- गौतम ऋषि ने किया था.

* चौथा पूर्व मीमांसा की स्थापना- जैमिनी (जगत हमेशा सत्य है इनका मानना था)

* पांचवा उत्तर मीमांसा (वेदांत दर्शन) की स्थापना- बद्रायण (शंकराचार्य)

* वैशेषिक दर्शन की स्थापना-कणाद मुनि(उलूक) ने करवाया था.

* चार्वाक ने चार्वाक दर्शन का प्रतिपादन किया, यह दर्शन पूरी तरह से भौतिकवादी दर्शन है.

Amazon Today Best Offer… all product 25 % Discount…Click Now>>>>

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *