Medieval History Notes in Hindi

Medieval History Notes in Hindi

                          Medieval History Notes in Hindi

                       सुल्तान इल्तुतमिश (1211 से1236 ई. तक)

* समसुद्दीन इल्तुतमिश का वंश इल्बरी तुर्क था, उसका पिता इलाम खाँ अपने कबिले का प्रधान था.
* उसके भाईयो ने ईर्ष्याबस उसे मेले मे ले जा कर व्यापारीयो के हाथ बेच दिए.
* अंततः उसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने उसे खरिदा तथा अपना दास (गुलाम) बना लिया.
* इल्तुतमिश ग्वालीयर विजय के समय मुहम्मद गोरी एवं ऐबक के साथ था.

* इस अभियान के दौरान इल्तुतमिश की वीरता एवं साहस से मुहम्मद गोरी इतना प्रभावित हुआ कि उसने ऐबक से इल्तुतमिश को दास्ता से मुक्त करने या आदेश देने को कहा.

कार्य:- इल्तुतमिश ने कुतबी  एवं मूइज्जी सरदारों के विरोध को समाप्त करने के लिए अपने गुलाम सरदारों का एक गुट बनाया, जो तुर्कान ए चहलगानी( 40 गुलाम तुर्की सरदारों का गुट ) नाम से विख्यात हुआ.

* 1215 से 16 के तराईन युद्ध में इल्तुतमिश ने अपने परम शत्रु एवं दिल्ली तक्खत के प्रमुख दावेदार ताजुद्दीन याल्दौज को पराजित या परास्त कर उसकी हत्या कर दी.

* 1228 ई. में उसने दिल्ली तक्खत के दूसरे दावेदार नसीरुद्दीन कुवाचा को बुरी तरह परास्त किया इस पराजय से कुवाचा इतना निराश हुआ कि सिंधु नदी में डूब कर उसने जल समाधि ले ली.

* इल्तुतमिश के समय में भारत के तुर्की राज्य को मंगोलों की आक्रमण की संभावना से एक महान संकट उत्पन्न हुआ.

* मंगोलों के महान नेता चंगेज खाँ ने चीन सहित समस्त मध्य एशिया को रौंध या पराजित कर डाला था.

* तथा उसने जलालुद्दीन मुहम्मद ख्वारिज्म शाह का संपूर्ण सम्राज्य नष्ट कर दिया था.

 * उसका बड़ा पुत्र जलालुद्दीन मंगवर्णी भागता हुआ सिंधु नदी तक पहुंच गया तथा उसके पीछे चंगेज खाँ लगा हुआ था 

* मंगवर्णी ने चंगेज खाँ के विरूध इल्तुतमिश से शरण पाने की मांग की.

* चंगेज खाँ के आसन्न (संभावित) आक्रमण के भय से इल्तुतमिश ने जलालुद्दीन मंगवर्णी को शरण देने से इनकार कर दिया तथा इस तरह से इल्तुतमिश ने दिल्ली सल्तनत को चंगेज खाँ के आक्रमण से बचा लिया.

* चंगेज खाँ को खुदा का कहर कहा जाता था.

* कुतुबुद्दीन ऐबक के समर्थन और सहायता से अल्लिमर्दान खाँ ने बंगाल में अपनी सत्ता स्थापित की थी.

* परंतु ऐबक के मृत्यु के पश्चात उसने अपने को स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया इल्तुतमिश ने पुनः बंगाल को अपने अधीन कर लिया.

* इल्तुतमिश ने बगदाद के खलीफा से सुल्तान के पद की स्वीकृति की प्रार्थना की.

* फरवरी 1229 ई. में खलीफा की प्रतिनिधि या दूत  इस स्वीकृति पत्र (मानसूर) को लेकर दिल्ली पहुंचे.

* खलीफा द्वारा इल्तुतमिश को मानसूर  प्रदान करने से उसका पद वैधानिक हो गया तथा दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर उसका वंशानुगत अधिकार कायम हो गया.

* इल्तुतमिश विद्वानों तथा योग्य व्यक्तियों का सम्मान करता था, उसने समकालीन विद्वान मिनहाज-उस-सिराज (तबकात ए नासिरी) और मल्लिक ताजुद्दीन को संरक्षण प्रदान किया. 

* वह सूफी संत शेख कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी तथा शेख बहाउद्दीन जकारिया आदि का काफी सम्मान करता था.

* इल्तुतमिश एक न्यायप्रिय शासक था उसने अपने महल के सामने संगमरमर (मार्बल) की दो शेरों की मूर्तियां स्थापित कराई थी, जिनकी गर्दन में घंटियां लटकी थी जिन्हें बजाकर किसी भी समय सुल्तान से न्याय की मांग कर सकता था.

* इल्तुतमिश ने प्रशासन की एक नई इकाई इक्ता प्रणाली (शुब्बा) को प्रारंभ किया तथा मुद्रा प्रणाली में पर्याप्त सुधार किए वह भारत का पहला तुर्क सुल्तान था जिसने शुद्ध अरबी सिक्के चलाए.

* सल्तनत युग के दो महत्वपूर्ण सिक्के चांदी का टंका और तांबे का जीतल इल्तुतमिश द्वारा ही आरंभ किए गए थे.

* विदेशों में प्रचलित सिक्कों को पर टकसाल का नाम लिखने की परंपरा को भारत में प्रचलित करने का श्रेय इल्तुतमिश को ही दिया जाता है.

* इल्तुतमिश भारत का पहला शासक था जिसने सुल्तान की उपाधि धारण की और दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया.

* जबकि विश्व में सुल्तान की उपाधि धारण करने वाला पहला व्यक्ति या वह व्यक्ति जिसने सुल्तान की उपाधि सबसे पहले ग्रहण की महमूद गजनी या गजनबी था.

* इल्तुतमिश को दिल्ली सल्तनत का या गुलाम वंश का या भारत में तुर्की वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है.

* इल्तुतमिश द्वारा ही कुतुबमीनार का निर्माण पूरा कराया गया था. 

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