Upsc gk notes in hindi-41
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प्रश्न. संवैधानिक नैतिकता’ की जड़ संविधान में ही निहित है और इनके तात्विक फलकों पर आधारित है. संवैधानिक नैतिकता’ के सिद्धांत की प्रासंगिक निर्णयों की सहायता से विवेचना कीजिए. (उत्तर 150 शब्दों में दीजिए)
उत्तर- संवैधानिक नैतिकता की भारतीय संविधान में कहीं भी स्पष्ट रूप से व्याख्या नहीं की गई है,
लेकिन डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा संविधान सभा में दिए गए वक्तव्यों में इसे स्पष्ट करने का
प्रयास किया है. उनके अनुसार संविधान की प्रस्तावना, मौलिक अधिकार एवं राज्य के नीति-
निर्देशक तत्व संवैधानिक नैतिकता को परिलक्षित करते हैं. भारत में लोग लोकतांत्रिक नहीं हैं
इसलिए यहाँ संवैधानिक नैतिकता को बनाए रखना सरकार का उत्तरदायित्व है उच्चतम न्यायालय
एवं कुछ उच्च न्यायालयों ने अपने निर्णयों में संवैधानिक नैतिकता का उल्लेख किया है. सामाजिक
नैतिकता की कुछ मान्यता सदियों से चली आ रही है, लेकिन विकास के चरण में उन मान्यताओं पर
संवैधानिक नैतिकता को मान्यता निर्णयों में प्रदान की गई है, जैसे- नवतेज सिंह जौहर वाद में आईपीसी
की धारा 377 की व्याख्या. संवैधानिक नैतिकता के लिए समाज के अंदर संचेचताना एवं मतैक्य होना
अनिवार्य हैं, तभी इसका पूरा प्रभाव सम्भव है.
प्रश्न. विविधता, समता और समावेशिता सुनिश्चित करने के लिए उच्चतर न्यायपालिका में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने की वांछनीयता पर चर्चा कीजिए.(उत्तर 150 शब्दों में दीजिए)
उत्तर- भारत में विविधता असमानता एवं अलगाव सर्वव्यापी है. पुरुष एवं स्त्री का भेदभाव व्यावहारिकता
में आज भी विद्यमान है संविधान एवं सरकार इस असमानता एवं अलगाव को दूर करने का लक्ष्य
रखकर कार्य कर रही है, लेकिन सभी आयामों में समानता लाना एवं महिलाओं की समान भागीदारी
अभी चुनौती बनी हुई है. सभी विद्वानों की ऐसी धारणा है कि सरकार के सभी निर्णय लेने वाली संस्थाओं
में महिलाओं की भागीदारी को अधिक किए जाने से महिलाओं के प्रति न्याय की संभावनाएं बढ़ जाएंगी,
क्योंकि महिलाएं अपने हितों की अनदेखी नहीं होने देंगी और न ही अन्याय होने देंगी उच्चतर न्यायपालिका
अर्थात् उच्चतम और उच्च न्यायालयों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाया जाना वांछनीय ही नहीं, अपितु
अनिवार्य है.
प्रश्न. भारत के 14वें वित्त आयोग की संस्तुतियों ने राज्यों को अपनी राजकोषीय स्थिति सुधारने में कैसे सक्षम किया है ? (उत्तर 150 शब्दों में दीजिए)
उत्तर-भारत सरकार ने वाई. वी. रेड्डी की अध्यक्षता वाले 14वें वित्त आयोग की अधिकांश संस्तुतियों
को फेरवरी 2015 में स्वीकार कर लिया था. विशेष रूप से राज्यों में करों के वितरण से सम्बन्धित
संस्तुतियों को लगभग पूरी तरह से स्वीकार कर लिया ये संस्तुतियाँ वित्तीय वर्ष 201516 से लागू
पाँच वर्ष के लिए थीं सरकार ने वित्त आयोग द्वारा सिफारिश किए गए राज्यों को कुल कर संग्रह का
42 प्रतिशत भाग देने को पूर्णतः स्वीकार कर लिया, जोकि पिछले आयोग से 10 प्रतिशत अधिक है.
इस 42 प्रतिशत भाग से राज्यों को केन्द्र सरकार से अधिक ग्रांट प्राप्त हुई है जिसके राज्य सरकारों
को केन्द्र की कारण योजनाओं एवं विकास योजनाओं पर राज्य सरकारों को अधिक धन खर्च नहीं
पड़ा, जिससे वे अपनी राजकोषीय स्थिति सुधारने में सक्षम हुए हैं
प्रश्न. आपकी दृष्टि में, भारत में कार्यपालिका की जवाबदेही को निश्चित करने में संसद कहाँ तक समर्थ है ? (उत्तर 150 शब्दों में दीजिए)
उत्तर-सरकार के तीन अनिवार्य अंगव्यवस्थापिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका हैं. व्यवस्थापिका
का कार्य नियम कानून बनाना, कार्यपालिका का कार्य नियम एवं नीतियाँ बनवाना और उन्हें
लागू करवाना और न्यायपालिका का कार्य न्याय करना है / तीनों अंगों विशेष रूप से दो अंगों
कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका के मध्य अधिकार एवं कर्तव्यों का उचित संतुलन एवं नियंत्रण
सरकार की सफलता के लिए अनिवार्य हैं. भारत में कार्यपालिका पर संसदीय नियंत्रण की
व्यवस्था की गई है. कार्यपालिका की | सभी मुख्य नीतियों एवं निर्णयों का अनुमोदन संसद से
आवश्यक है. परियोजनाओं के लिए बजट भी संसद से अनुमोदित होता संसद इसके अतिरिक्त
मंत्रियों में प्रश्न पूछ कर अनेक प्रकार के प्रस्ताव लाकर कार्यपालिका पर नियंत्रण रखता है और
संसद इस कार्य में समर्थ है.
प्रश्न. “भारत में सार्वजनिक नीति बनाने में दबाव समूह महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है.” समझाइए कि व्यवसाय संघ, सार्वजनिक नीतियों में किस प्रकार योगदान करते हैं ? (उत्तर 150 शब्दों में दीजिए)
उत्तर-दबाव समूह समाज के ऐसे समूह होते हैं, जिनमें व्यावसायिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक
समानताएं होती है तथा ये अपने हित में सरकार द्वारा बनायी गई नीतियों एवं निर्णयों को प्रभावित
करते हैं दबाव समूह सत्ता प्राप्ति के लिए प्रयास नहीं करते, अपितु सत्ता को प्रभावित करते हैं भारत
में व्यावसायिक आधार पर अनेक व्यवसायों के संगठन कार्यरत हैं, जैसे स्थानीय व्यापार संघ, बाजार
एसोसिएशन एवं बड़े स्तर पर इण्डस्ट्रीज के कॉन्फेडरेशन आदि ये संगठन सरकार द्वारा बनायी जाने
वाली ऐसी सार्वजनिक नीतियाँ, जो उन् संघों के सदस्यों को प्रभावित करती हैं, अथवा उनके व्यवसाय
को प्रभावित करती है, उनको अपने पेक्ष में कराने के लिए सरकार पर दबाव बनाती है और उसमें
सफल भी हो जाती हैं.
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