Ancient History Notes in Hindi

Ancient History Notes in Hindi

                                Ancient History Notes in Hindi

                               उत्तरवैदिक कालीन सामाजिक जीवन

* उत्तरवैदिक काल में वर्ण व्यवस्था कर्म पर आधारित था.

* चारों वर्णों के कर्म का सर्वप्रथम उल्लेख एतेर्य ब्राह्मण में मिलता है,

* उत्तरवैदिक काल में श्रेष्ठता के लिए ब्राह्मणों एवं क्षत्रियों में संघर्ष देखने को मिलता है.

* शतपथ ब्राह्मण में एक जगह क्षत्रियों को ब्राह्मणों से श्रेष्ट बताया गया है.

* उत्तरवैदिक काल में वर्ण या जाति परिवर्तन कठिन हो गया.

* उत्तर वैदिक काल में आश्रय व्यवस्था का प्रारंभ हुआ.

* मानव की संपूर्ण आयु को 100 वर्ष मानकर चार भागों में विभाजित किया गया, इन्हीं चार भागों को चार आश्रम नाम दिया गया.

* पहला ब्रह्मचर्य आश्रम,

* दूसरा गृहस्थ आश्रम,

* तीसरा वान्त्रस्त आश्रम, एवं

* चौथा संयास आश्रम

* प्राचीन भारतीय ग्रंथों में चार पुरुषार्थ माने गए हैं-

* चारों पुरुषार्थ हैं- धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष

                    उत्तरवैदिक काल में में नारियों की स्थिति

* ऋगवैदिक काल की अपेक्षा उत्तर वैदिक काल में नारियों की स्थिति में गिरावट आ गई है.

* नारियों का सभा में प्रवेश वर्जित हो गया था.

* ब्राह्मण में कन्या जन्म को चिंता का कारण बताया गया था.

* अथर्वेद में भी पुत्री जन की निंदा की गई है, परंतु नारियों की स्थिति फिर भी कुछ अच्छी थी.

* उत्तरवैदिक काल में भी बाल विवाह पर्दा प्रथा, सती प्रथा आदि का उल्लेख नहीं मिलता है.

* उत्तरवैदिक काल में भी नारियों को शिक्षा का अधिकार प्राप्त था.

* शतपथ ब्राह्मण में शिक्षित नारियों- गार्गी चाज्ञाव्ल्वय की पत्नी गंधर्व गृहीता,मैत्रेयी आदि का नाम मिलता है. 

* गोत्र व्यवस्था का परिचालन उत्तरवैदिक काल से ही प्रारंभ हुआ.

* गोत्र (गोष्ठ) शब्द से निकला है.

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