Upsc gk notes in hindi-31

Upsc gk notes in hindi-31

                             Upsc gk notes in hindi-31

प्रश्न-भारत में विविधता के किन्हीं चार सांस्कृतिक तत्त्वों का वर्णन कीजिये और एक राष्ट्रीय पहचान के निर्माण में उनके  आपेक्षिक महत्त्व का मूल्य निर्धारण कीजिए. (200 शब्द)

उत्तर-भारत विविधताओं का देश है. भाषा, धर्म, खान-पान, नृत्य, संगीत इत्यादि के आधार पर भारत की
         सांस्कृतिक विविधता के स्वरूप को समझा जा सकता है. उत्तर से लेकर दक्षिण तथा पूर्व से लेकर
         पश्चिम तक इन सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों में अंतर को देखा जा सकता है, लेकिन इन स्वरूपगत
         विभिन्नताओं के बीच एकता के भी सूत्र रहते हैं, जो एक राष्ट्रीय पहचान का निर्माण करते हैं.
                     भारत बहुभाषा-भाषी लोगों का देश है. यहाँ 1600 से अधिक भाषाएँ बोली जाती हैं. लेकिन
         अनेक इंडो-आर्यन और द्रविड़ भाषाओं को विकास संस्कृत से माना जाता रहा है. इसके साथ इस
         भाषायी विविधता के मध्य भारत में सदैव से एक भाषा ऐसी रही है जो पूरे भारत को एक सम्पर्क सूत्र
         में पिरोने का कार्य करती रही है. प्राचीनकाल में यह कार्य संस्कृत ने किया है तो आज के समय में
         अंग्रेजी भाषा इस कार्य को कर रही है इसके साथ अंग्रेजी और हिन्दी के आपस में मेल से जन्मी
          इंगलिश जैसी सामान्य बोलचाल की भाषा विभिन्न भाषा-भाषी लोगों के मध्य एक सम्पर्क सूत्र का काम
          कर राष्ट्रीय एकता को मजबूत कर रही है.
                      भाषायी विविधता की तरह भारत में धार्मिक विविधता भी है. हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई इत्यादि
         धर्म एवं इन धर्मों के अंदर के विविध पंथ भारत की धार्मिक विविधता को ही दर्शाते हैं. लेकिन इस विविधता
         के मध्य एकता/ का तत्त्व भारतीय संस्कृति की अनोखी पहचान है. ये सारे धर्म अलग-अलग उपासना पद्धति,
         धार्मिक ग्रंथों के कारण अवश्य ही अलग दिखाई पड़ते हैं, लेकिन ये मूल्यों के स्तर पर एक ही हैं सारे धर्म
         अपने अनुयायियों को नैतिकता और मानवीयता की शिक्षा देते हैं और यही कारण है कि आज के समय में
         अक्षरधाम मंदिर, अजमेर शरीफ, बंगला साहब गुरुद्वारा तथा सारनाथ में सभी धर्मों एवं सम्प्रदायों के लोग
         आत्मिक शांति के लिए जाते।
                  भारतीय सांस्कृतिक विविधता यहाँ की कलाओं में दिखाई पड़ती है. कत्थक से भरतनाट्यम तक एवं
         आगरा के ताजमहल से ओडिशा के सूर्य मंदिर तक भारत की कलात्मक विविधता को आसानी से देखा जा
         सकता है, लेकिन इस विविधता में भी एकता के सूत्र रहे है जो भारत की राष्ट्रीय पहचान बने है, विभिन्न
         निष्पादन कलाओं ने धर्म और जाति के विभेदों को दरकिनार करते हुए एक भारतीयता की पहचान स्थापति
         करने का कार्य किया है. आज कोणार्क का सूर्य मंदिर, आगरा का ताजमहल एवं साँची के बौद्ध स्तूप स्मारक
         क्रमशः हिन्दू, मुस्लिम या बौद्ध धर्म के कलात्मक रूपों के सन्दर्भ में नहीं, वरन् भारत की राष्ट्रीय धरोहर स्थल
        के रूप में जाने जाते हैं.
              भारत में भौगोलिक विविधता के साथ लोगों के खान-पान में भी विविधता देखने को मिलती है. बिहार
       का लिट्टी-चोखा, हैदराबाद की बिरयानी, दक्षिण भारत का इडली सांभर भारतीय खान-पाने की विविधता
       को दर्शाते हैं, लेकिन ये खाद्ये पदार्थ केवल उसी क्षेत्र के लोगों के द्वारा प्रयोग में नहीं लाए जाते, वरन् ये पूरे
       देश में प्रचलित हैं. उत्तर भारत के शहरों में हैदराबादी बिरयानी और दक्षिण के राज्यों में लिट्टी-चोखा आसानी
       से मिल जाता है. इस तरह ये सारे खाद्य पदार्थ मिलकर भारतीय व्यंजन का ही प्रतिनिधित्व करते हैं.
                  भारत में एक ही क्षेत्र में रहने वाले विभिन्न धर्मो जातियों एवं भाषाओं के लोग एक दूसरे के पर्व-त्योहार,
       सुख-दु:ख में भागीदार होकर एक-दूसरे में इस तरह घुलमिल जाते हैं कि उनकी अलग संस्कृतिक पहचान
       करना कठिन हो जाता है. सांस्कृतिक विविधता के उपर्युक्त तत्त्वों में भाषायी विविधता राष्ट्रीय पहचान को
       निर्मित करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाती है, क्योंकि भाषा न केवल समुदाय की सांस्कृतिक अस्मिता को
       दर्शाती है, वरन् उसकी आर्थिक गतिविधियों को भी प्रभावित करती है. भाषा के पश्चात् क्रमशः धर्म, कला एवं
       खानपान की विविधता का राष्ट्रीय पहचान निर्माण में आपेक्षिक महत्त्व है.

प्रश्न- भूमि तथा जल संसाधनों का प्रभावी प्रबन्धन मानव विपत्तियों को प्रबल रूप से कम कर देगा. स्पष्ट कीजिए. (200 शब्द)

उत्तर- पृथ्वी पर सीमित संसाधन है एवं इनका उपयोग विवेकपूर्ण ढंग से किया जाना चाहिए, लेकिन इसके उलट यह देखा जाता है, कि इसका वितरण असमान एवं अविवेकपूर्ण है. निम्नलिखित उपाय ये बताते हैं कि जल एवं भूमि का सही प्रबन्धन मानवीय विपत्तियों को कम कर सकता है.

उचित भूमि प्रबंधन एवं जल प्रबंधन के उपाय-
1. प्रत्येक व्यक्ति को भूमि उपलब्ध करायी जा सकती है ताकि वे अपना घर बना सके यद्यपि हमारे देश में
    अभी भी बहुत से ऐसे लोग है जोकि पार्को व फुटपाथ पर सोते हैं. इसके लिए सही तरीके से भूमि का
     वितरण होना चाहिए फिर भी अभी तक कुछ ऐसे लोग हैं जोकि भूमि का अधिकांश हिस्सा अपने कब्जे
     में किए हैं जिससे कि असमानता उत्पन्न हुई यह एक गम्भीर समस्या है, रोका जाना चाहिए.
2. आने वाले समय में कृषि एक लाभकारी कार्य होगा लोग छोटे-छोटे भूमि के स्वामी होंगे एवं यंत्रीकरण
     पूरी तरीके से प्रभावशाली नहीं हो सकेगा. यद्यपि भूमि का सीमांकन एवं पट्टा इत्यादि कृषि की उत्पादकता
     में वृद्धि लाएगा जोकि ‘खाद्य सुरक्षा को बढ़ाएगा तथा भूमि ही उत्पादकता को निर्धारित करेगी.
3. मत्स्यन आने वाले वर्षों में एक लाभकारी व्यवसाय सिद्ध होगा. कुछ मत्स्यन क्षेत्र संकट की स्थिति में
    पहँच जाएंगे.
4. जनजातीय विकास के लिए उनके जंगलों पर अतिक्रमण न किया जाए एवं उन्हें उनका स्वामी बना
    रहने दिया जाए.
5. भमि का उचित ढंग से प्रयोग पर्यावरण प्रदूषण को कम कर सकता है जिससे जल एवं ध्वनि प्रदूषण
    को भी कम कर सकते हैं. मानव के अस्तित्व हेतु जंगल एवं प्राणियों का अस्तित्व भी आवश्यक है.
     वनारोपण के 33% लक्ष्य की प्राप्ति साथ ही विभिन्न प्राणियों की सुरक्षा हेतु उनके आवासों में उनका
     संरक्षण प्रभावी भूमि प्रबंधन के द्वारा ही संभव है.
6. नदी जोड़ों परियोजना, नदी जल संघिया आदि प्रभावी जल प्रबंधन की महत्वपूर्ण विधियाँ हैं. इनके द्वारा जल सम्बन्धित समस्या, जैसे- बाढ़, सूखा, इत्यादि का समाधान हो सकता है.
7. असमतल सड़कों को ठीक कर, दुघर्टनाओं को कम किया जा सकता है.
8. हैजा डायरिया इत्यादि रोगों को स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता एवं समुचित साफ-सफाई से दूर किया जा सकता है.
9. आन्तरिक जलमार्गों, सड़क परिवहन के द्वारा व्यापार को बढ़ाया जा सकता है, जिससे कि भारत के विकास में बढ़ोत्तरी होगी.
10. सर्वाधिक आवश्यक यह है कि सभी को स्वच्छ जल एवं समुचित साफ-सफाई की व्यवस्था प्राप्त हो.
             निष्कर्ष- भूमि एवं जल मनुष्यों एवं जीवों की प्राथमिक आवश्यकता होती है. इनको अधिक महत्ता देनी
                           चाहिए. भारत ने विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी में अत्यधिक विकास किया है एवं इसका प्रयोग कर
                           हमें इस देश में रहने लायक साधनों की उपलब्धता करवायी है.

प्रश्न- अनेक विदेशियों ने भारत में बसकर विभिन्न आन्दोलनों में भाग लिया. भारतीय स्वाधीनता संग्राम में उनकी भूमिका विश्लेषण कीजिए. (200 शब्द)

उत्तर- भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में भारतीयों के साथ विदेशियों ने भी भाग लिया, एनी बेसेंट, सी. एफ-एंड्रयूज,
          सत्यानंद स्टोक्स, कैथरीन हेलमैन (सरला बेन), मैडलिन स्लेड (मीरा बेन), नेल्ली सेन गुप्ता इत्यादि
          कुछ विदेशियों ने भारत में बसकर स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई.
                    आयरिश महिला एनी बेसेंट थियोसाफिकल सोसाइटी के उद्देश्यों से प्रेरित होकर भारत आई
          थी लेकिन यहाँ पर उन्होंने स्वशासन की माँग को लेकर 1915 में होम रूल लीग की स्थापना की
         दीनबंधु एंड्रयूज भी मिशनरी उद्देश्यों को लेकर भारत आए थे. लेकिन उन्होंने ब्रिटेन की. अन्यायपूर्ण
        एवं नस्लवादी नीतियों को लेकर, ब्रिटिश जनमत को जागरूक करने का प्रयास किया. सत्यानंद स्टोक्स
        एकमात्र ऐसे अमरीकी नागरिक थे, जिन्होंने 1920 के कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में भाग लिया तथा
        देशद्रोह के जुर्म में 6 महीने के लिए जेल भी गए. मीरा बेन ने सत्याग्रह और अहिंसा के विचारों का प्रसार
        किया सरला बेन ने स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान जेल गए व्यक्तियों के परिवारों की मदद की. सिस्टर निवेदिता
        विवेकानंद के रामकृष्ण मिशन से जुड़ी थी. नेल्ली सेन गुप्ता अंग्रेज महिला थीं, जिन्होंने बहिष्कार और
        असहयोग आन्दोलन में भाग लिया था.
                           स्वतंत्रता संघर्ष में भाग लेने वाले विदेशियों की एक बड़ी संख्या कांग्रेस से जुड़ी थी इनमें
        से एनी बेसेंट और नेल्ली सेन गुप्ता तो कांग्रेस के अध्यक्ष पद तक पहुँची थीं, इन विदेशियों में किसी ने
        भी क्रांतिकारी तरीकों का समर्थन नहीं किया. भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में भाग लेने वाले विदेशियों में
        महिलाओं की एक बड़ी संख्या थी. स्वतंत्रता संघर्ष में भाग लेने वाले विदेशियों की एक बड़ी संख्या
        गांधीवादी विचारों से प्रभावित थी मीरा बेन, सरला बेन दीनबंधु, सत्यानंद स्टोक्स, नेल्ली सेन गुप्ता
        इत्यादि गांधी जी के अनुयायी थे, लेकिन एनी बेसेंट इस वर्ग में, सम्मिलित नहीं थी असहयोग,
        बहिष्कार एवं माटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार के विषयों पर उनका गांधी जी से मतभेद था. भारतीय
        स्वतंत्रता संघर्ष में विदेशियों की सक्रिय भागीदारी एक अनोखी घटना थी जो कि अंग्रेजी राज के
        नैतिक आधार पर एक करारी चोट थी.

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