Upsc gk notes in hindi-51

Upsc gk notes in hindi-51

                             Upsc gk notes in hindi-51

प्रश्न. वर्ष 2014 में भौतिक विज्ञान में नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से आकासाकी, अमीनो तथा नाकामुरा को 1990 के दशक में नीली एलईडी के आविष्कार के लिए प्रदान किया गया था. इस आविष्कार ने मानव जाति के दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित किया है? (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)

उत्तर- रॉयल स्वीडिश अकादमी ने भौतिकी के लिए 2014 का नोबेल पुरस्कार जापान के इसामू
         आकासाकी (85) और हिरोशी अमानो (54) और अमरीका के शुजी नाकामुरा (60) को
         एलईडी लॅप के आविष्कार के लिए दिया गया है. नोबेल पुरस्कार समिति ने कहा, “एलईडी
         लैंप के आविष्कार से अब हमारे पास बिजली के पुराने स्रोतों की तुलना में ज्यादा टिकाऊ
        और ऊर्जा की अधिक बचत करने वाला विकल्प | मौजूद है. साथ ही समिति ने तीनों वैज्ञानिकों
        के काम को समाज के लिए महान योगदान बताया. हालांकि LED की खोज को लगभग 50 से
       अधिक वर्षों का समय हो गया था, लेकिन ये LED प्रकृति में केवल एक रंग (मोनोक्रोमेटिक) यानी
       केवल लाल और हरे रंग की LED में. उपलब्ध थीं, नीले रंग की LED का आविष्कार नहीं किया गया
       था, जिसके कारण सफेद LED का निर्माण सम्भव नहीं था. चूँकि सफेद LED केवल तीन प्राथमिक
       रंगों लाल, हरे और नीले के संयोजन से ही बनाई जा सकती है. इसलिए, नीली LED के निर्माण के
      लिए नोबेल वैज्ञानिकों द्वारा गैलियम नाइट्राइड का उपयोग किया जाना एक महत्वपूर्ण कदम साबित
      हुआ. अत: नोली LED के आविष्कार ने कई अनुप्रयोगों के लिए रास्ते खोल दिए.
मानव के दैनिक जीवन पर प्रभाव
* ये LED प्रकृति में केवल एक रंग (मोनोक्रोमेटिक) यानी केवल लाल और हरे रंग की LED में उपलब्ध
  थी, नीले रंग की LED का आविष्कार नहीं किया, गया था, जिसके कारण सफेद LED क निर्माण सम्भव
  नहीं था. बँक सफे LED केवल तीन प्राथमिक रंगों लाल हो और नीले के संयोजन से ही बनाई जा सकती
  है.
* LED ने पारंपरिक बल्ब का स्थान ले लिया, जो विभिन्न रंगों और दक्ष ऊर्जा. में उपलब्ध हैं. LED में अधिक
 स्थायित्व होता है, जो तापदीप्त बल्बों की तुलना में 10 गुना अधिक होता है. LED डिजिटल स्क्रीन में एक
आवश्यक घटक बन गया है, क्योंकि वे अपनी पूर्वधर्ती तकनीकों की तुलना में उच्च कंट्रास्ट प्रदान करते
 हैं और इनकी ऊर्जा दक्षता भी अधिक होती है.
* LED में हालिया विकास-LED या ऑर्गेनिक-LED है, जो स्क्रीन को आकार देने में लचीलापन प्रदान
  करता है. LED अब व्यापक रूप से पहनने योग्य उपकरणों, स्मार्टफोन आदि में उपयोग किया जाता
  है. LED आकार में बहुत भिन्नता प्रदान करता है, इनका आकार कुछ मिमी. से लेकर कई पुट तक होता
  है. यह सर्किट बोर्ड से लेकर होम लाइटिंग तक विस्तृत रेंज के अनुप्रयोगों को अनुकूल बनाता है.
* इस दिशा में सरकार ने भी ऊर्जा संरक्षण में LED के महत्व को महसूस करते हुए विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों,
  जैसेउज्ज्वला (सभी के लिए सस्ती LED द्वारा उन्नत ज्योति) और स्ट्रीट लाइट राष्ट्रीय कार्यक्रम जैसी कई
  योजनाओं द्वारा उनके उपयोग को प्रोत्साहित किया है. इस प्रकार, यह कहना उचित होगा कि LED ने हमारे
दैनिक जीवन में क्रांति ला दी है.

 प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (यूएनएफसीसीसी) के सीओपी के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिए. इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएं क्या है ? (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)

उत्तर-वर्ष 2021 बहुप्रतीक्षित 267 संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन 31 अक्टूबर से 12 नवम्बर,
         2021 तक ब्रिटेन के ग्लासगो शहर में हुआ था. यह शिखर सम्मेलन विभिन्न कारणों से बहुत महत्व
         रखता है.
26वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) के निष्कर्ष
* पेरिस जलवायु समझौते 2 J15 के अनुसार ग्रीन हाउस गैस (जीएजी) उत्सर्जन को कम करने के लिए
   अपनी योजनाओं को अपडेट करने और इसकी एक रूपरेखा बनाने.
* सम्मेलन का लक्ष्य सदी के मध्य (2050) तक ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के वैश्विक शुद्ध शुन्य स्तर
  को सुरक्षित करना और उत्सर्जन की वैश्विक दर को 2 डिग्री सेन्सियस से 1.5 डिग्री के दायरे में
  बनाए रखना है.
* यूएनएफसीसीसी से जलवायु वित्त कोष पर समीक्षात्मक विमर्श किए जाने की उम्मीद है, जिसका
  पेरिस समझौते के तहत् धनी राष्ट्रों को प्रति वर्ष 5 100 डॉलर की धनराशि उन विकासशील देशों
  की सहायता रूप में दिए जाने का प्रस्ताव है।
* जलवायु परिवर्तन पर यह शिखर सम्मेलन अंतर्सरकारी पैनल (आईपीसीसी) द्वारा क्लाइमेट चेंज
   2021: दि फिजिकल ‘सायंस बेसिस’ शीर्षक से जलवायु परिवर्तन पर छठी आकलन रिपोर्ट के
   पहले भाग के प्रकाशन के मद्देनजर और भी महत्वपूर्ण हो गया है.
* भौतिक विज्ञानों पर आधारित रिपोर्ट में कहा गया है कि आने वाले दशकों में कार्बन डाइऑक्साइड
  और अन्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में गहरी कटौती न की गई तो 21वीं सदी के दौरान ही वैश्विक
  तापमान की 1.5 डिग्री सेल्सियस और 2 डिग्री सेल्सियस के पार हो जाएगी.
भारत की प्रतिबद्धता
* भारत ने विश्व स्तर पर, अन्तर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए), लीडआइट, और आपदा प्रतिरोधी
   बुनियादी ढाँचे के लिए गठबंधन (सीडीआरआई) जैसी विभिन्न पहलों को प्रोत्साहित किया है.
* प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भारत को ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन और निर्यात के लिए एक वैश्विक
   केन्द्र बनाने के लिए राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन की स्थापना की घोषणा की है.
* इसी तरह, G-20 के जलवायु और ऊर्जा मंत्रिस्तरीय बैठक में भारत ने कहा कि 2030 तक उत्सर्जन
  में लक्षित कमी 33-35 प्रतिशत की बजाए भारत ने पहले ही 2005 के स्तर की 28 प्रतिशत को हासिल
   कर लिया है और नवीकरणीय ऊर्जा से स्थापित 38-5 प्रतिशत क्षमता को भी प्राप्त कर लिया है.
* इंटरनेशनल सोलर एलायंस (आईएसए) और कोएलिशन फॉर डिजास्टर रेजिलिएशन इंफ्रास्ट्रक्चर
   (सीडीआरआई) सहित भारत का नेतृत्व बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि हम COP 26 से पहले और
    इसके बाद में वैश्विक लचीलापन बनाना चाहते हैं.

प्रश्न. भू-स्खलन के विभिन्न कारणों और प्रभावों का वर्णन कीजिए. राष्ट्रीय भूरखलन जोखिम प्रबंधन रणनीति के महत्वपूर्ण घटकों का उल्लेख कीजिए. (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)

उत्तर-
भू-स्खलन-एक प्राकृतिक घटना
     पर्वतीय ढलानों या नदी तटों पर छोटी शिलाओं, मिट्टी या मलबे का अचानक खिसककर नीचे आना ही
  भू-स्खलन है. यह एक प्राकृतिक घटना है. नवीन मोड़दार पर्वतीय क्षेत्रों में भू-स्खलन अधिक होते हैं,
 क्योंकि वहाँ उत्थान की सतत् प्रक्रिया के कारण चट्टानों को जोड़ कमजोर होते रहते हैं व ढाल भी अधिक
 होता है. भू-स्खलन जैसी प्राकृतिक आपदा को मानव ने अनियंत्रित विकास के कारण और अधिक बढ़ा
 दिया है.
भू-स्खलन के कारण निम्नलिखित हैं-
* जलवायु परिवर्तन-वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण ग्लेशियरों के पिघलने और भारी वर्षा की
                             घटनाओं की दर में वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप भू-स्खलन का खतरा
                             बढ़ता जा रहा है.
भूकम्प और ज्वालामुखी विस्फोट-हिमालय एक युवा पर्वत शृंखला होने के कारण एक सक्रिय अभिसरण
                                                 क्षेत्र के ऊपर स्थित है, जो भूकम्प के लिए प्रवण है. वहीं ज्वालामुखी
                                                 उद्भेदन से भी पहाड़ी क्षेत्रों में भू-स्खलन बढ़ जाता है.
                                  नदियाँ-हिमालयी नदियाँ अपनी युवावस्था में हैं. एक खड़ी ढलान पर नदी के तेज
                                             प्रवाह के परिणामस्वरूप ऊर्ध्वाधर क्षरण और डाउन-कटिंग होती है.
              जनसंख्या का दबाव- बढ़ते जनसंख्या दबाव के कारण विकासात्मक गतिविधियों के लिए वनोन्मूलन,
                                            बाँध निर्माण,पर्वतीय क्षेत्रों में होटल और अनियोजित बसावट आदि से भी
                                           भू-स्खलन का खतरा बढ़ जाता है, जैसे उत्तराखंड में चार धम परियोजना
                                           उपर्युक्त कारणों से जीवन की हानि, आधारभूत ढाँचे का विनाश एवं प्राकृतिक
                                          संसाधनों की हानि आदि शामिल हैं. इससे नदियाँ गाद और अवशेषों से भरकर
                                         बाढ़ ला सकती है, जो भूमि, खड़ी फसलों, बीज, पशुधन और खाद्य भंडार को नष्ट
                                        करके किसानों की आजीविका को कुप्रभावित कर सकती है.
राष्ट्रीय भू-स्खलन जोखिम प्रबंधन के घटक
* भू-स्खलन जोखिम क्षेत्र-जो भू-स्खलन विपदा, भू-स्खलन संवेदनशीलता और जोखिम के अन्तर्गत आने
                                      वाले क्षेत्र है.
* भू-स्खलन निगरानी और पूर्व चेतादनी प्रणाली-* यह प्रणाली भू-स्खलन से पहले ही सचेत कर देती है, जिससे लोगों को
                                                                         सुरक्षित हटाया जा सके.
                                                                      * हितधारकों का प्रशिक्षण और उनका क्षमत निर्माण.
                                                                      * पर्वतीय क्षेत्र विनियमों की तैयारी और नीतियाँ.
                                                                      * भू-स्खलन का स्थिरीकरण और शमन एवं भू-स्खलन प्रबंधन.

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