Upsc gk notes in hindi-50

Upsc gk notes in hindi-50

                               Upsc gk notes in hindi-50

प्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 की मुख्य विशेषताएं क्या हैं ? खाद्य सुरक्षा विधेयक ने भारत में भूख तथा कुपोषण को दूर करने में किस प्रकार सहायता की है ? (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)

उत्तर- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
      * 75% ग्रामीण आबादी और 50% शहरी आबादी को लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस)
        के तहत् कवर किया जा रहा है, जिसमें प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलोग्राम की समान पात्रता है.
         मौजूदा अंत्योदय अन्न योजना परिवारों की पात्रता 35 किलोग्राम प्रति परिवार प्रति माह की दर से
       खाद्यान्न पाने को संरक्षित किया गया है.
* टीपीडीएस के तहत् खाद्यान्न ₹3/2/1 प्रति किलो की रियायती कीमतों पर उपलब्ध कराया जा रहा है.
* एपीएल परिवारों के लिए मौजूदा मूल्य अर्थात गेहूँ के लिए ₹6-10 प्रति किलो और चावल के लिए ₹8-30
प्रति किलो निर्धारित किया गया है.
* गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं और 6 महीने से 14 वर्ष की आयु के बच्चे
  एकीकृत बाल विकास सेवाओं (आईसीडीएल) और मध्यान्ह भोजन (एमडीएम) योजनाओं के तहत्
  निर्धारित पोषण मानदंडों के अनुसार भोजन के हकदार हैं.
* 6 वर्ष तक के कुपोषित बच्चों के लिए उच्च पोषण मानदंड निर्धारित किए गए हैं.
* गर्भवती महिलाएं और स्तनपान कराने वाली माताएं भी कम-से-कम ₹6,000 का मातृत्व लाभ पाने
   की हकदार हैं.
 * रियायती मूल्य पर खाद्यान्न या भोजन की •आपूर्ति न होने की स्थिति में पात्र लाभार्थियों को खाद्य
    सुरक्षा भत्ते का प्रावधान.
* जिला शिकायत निवारण अधिकारी द्वारा संस्तुत राहत का अनुपालन न करने को स्थिति में राज्य
   खाद्य आयोग द्वारा लोक सेवक या प्राधिकरण पर जुर्माना लगाने का प्रावधान.
* एनएफएसए के लागू होने के बाद से, 80 करोड़ से अधिक लोगों को बिना किसी भेदभाव के
  सार्वभौमिक तरीके से सब्सिडी वाला राशन मिल रहा है. एनएफएसए की सफलता कोविड-
  19 महामारी लॉकडाउन के दौरान और उसके बाद भी साबित हुई है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण
  अन्न योजना के तहत एनएफएसए के सभी पात्र लोगों को मुफ्त खाद्यान्न की आपूर्ति, नियमित
  टीपीडीएस आपूर्ति के अलावा, उन्हें भूख और गरीबी से मुक्त रखने में सफल रही.

प्रश्न. फसल विविधता के समक्ष मौजूदा चुनौतियाँ क्या हैं? उमरती प्रौद्योगिकियाँ फसल विविधता के लिए किस प्रकार अवसर प्रदान करती है ? (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)

उत्तर-कम आगत आधारित व्यापक और विविध कृषि पद्धतियों का पारम्परिक दृष्टिकोण जिसे ‘फसल
    विविधीकरण कहा जाता है, एक वैकल्पिक दृष्टिकोण है जिसका उपयोग खेती को जैव-सामाजिक-
    मनोवैज्ञानिक विसंगतियों के लिए एक प्रति-रणनीति के रूप में बचाने के लिए किया जा सकता है.
   फसल विविधीकरण एक ऐसी रणनीति है जिसे एक ही कृषि योग्य भूमि में उत्पादकता में वृद्धि के
   साथ सिकुड़ते भूमि  संसाधनों से अधिक विविध फसलों को उगाने के लिए लागू किया जाता है.
   फसल विविधीकरण तात्पर्य किसी विशेष खेत पर कृषि उत्पादन में नई फसलों या फसल प्रणालियों
   को जोड़ने से है, जो पूरक विपणन अवसरों के साथ मूल्य वर्धित फसलों से अलग-अलग प्रतिफल को
   ध्यान में रखते हैं भारत में फसल विविधीकरण निम्नलिखित चुनौतियों का सामना करता है-
* हरित क्रांति के माध्यम से शुरू की गई मोनो-फसल पैटर्न (मुख्य रूप से गेहूँ और धन) पर अधिक
  जोर;
* फसल विविधीकरण को व्यापक स्तर पर अपनाने के मामले में खाद्यान्न, विशेष रूप से चावल और
   गेहूँ की कमी हो जाने का डर;
* अन्य फसलों जैसे सब्जियों और फलों में फार्म गेट मूल्य और खुदरा मूल्य में भारी अंतर;
* विविध फसलों, विशेष रूप जल्दी खराब होने वाली फसलों के लिए डारण, परिवहन, प्रण
   स्करण और विपणन सुविधाओं का अभाव,
* फसल विविधीकरण के लाभों के बारे में. किसानों की अनभिज्ञता
* गेहूँ और धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य के माध्यम से गारंटीशुदा आय, किसानों को केवल
   इन फसलों की खेती के लिए प्रेरित करती है,
      नई खेती की प्रजातियों और फसल की उन्नत किस्मों की शुरूआत एक ऐसी तकनीक है
   जिसका उद्देश्य पौधों की उत्पादकता, गुणवत्ता, स्वास्थ्य और पोषण मूल्य को बढ़ाना और
   या रोगों, कीट जीवों और पर्यावरणीय तनावों के लिए फसल के लचीलेपन का निर्माण करना
   है. फसल विविधीकरण के लिए प्रमुख प्रेरक बलों में शामिल हैं-
* छोटी जोतों की आय में वृद्धि
* कीमतों में उतार-चढ़ाव को सहन करना बढ़ती जलवायु परिवर्तनशीलता के कम करने वाले प्रभाव
* भोजन की माँग को संतुलित करना पशुओं के चारे में सुधार प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण पर्यावरण
   प्रदूषण को कम करना
* गैर-कृषि आदानों पर निर्भरता कम करना • फसल चक्र के आधार पर, घटते कीट, रोग और खरपतवार
   की समस्या का निराकरण करना
 * सामुदायिक खाद्य सुरक्षा बढ़ाना.

प्रश्न. अनुप्रयुक्त जैव-प्रौद्योगिकी में शोध तथा विकास सम्बन्धी उपलब्धियाँ क्या हैं ? ये उपलब्धियाँ समाज के निर्धन वर्गों के उत्थान में किस प्रकार सहायक होंगी ? (250) शब्दों में उत्तर दीजिए)

उत्तर- कोई भी प्रौद्योगिकीय अनुप्रयोग जिसमें जैविक प्रणालियों, सजीवों या उत्पन्न प्रदार्थों का
         उपयोग किसी विशिष्ट कार्य के लिए, उत्पाद या प्रक्रियाओं के निर्माण या रूपांतरण में
        किया जाता है, जैव प्रौद्योगिकी कहलाता है हजारों वर्षों से मानव कृषि, खाद्य उत्पादन
        और औषधि निर्माण में जैव प्रौद्योगिकी में शोध करते आया है.
जैव प्रौद्योगिकी की उपलब्धियाँ
* बीसवीं सदी के अंत तथा 21वीं सदी के आरम्भ से जैव प्रौद्योगिकी में विज्ञान के कई अन्य आया जैसे
  आनुवंशिक इंजीनियरिंग, जोन अभियांत्रिकी, इन विट्रो फर्टिलाइजेशन परखनली शिशु का निर्माण,
  जीन का संश्लेषण एवं उपयोग, CRISPR-Cas9 तकनीक, DNA टीके का निर्माण या दोष युक्त जीन
  का सुधार तथा जीन चिकित्सा के माध्यम से गम्भीर बीमारियों का उपचार आदि सभी जैव प्रौद्योगिकी
  की उपलब्धियाँ हैं,
* कृषि के क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी द्वारा आनुवंशिक रूप से परिवर्तित पराजीनी फसलें, यथा-Bt कपास,
  Bt बैंगन, GM सरसों आदि तथा जैव उर्वरकों व जैव कीटनाशकों का विकास किया गया है. खाद्य
  प्रसंस्करण उद्योग में सूक्ष्म जीवों का विनाश कर खाद्य की सुरक्षा एवं गुणवत्ता में सुधार किया गया है
  एवं विभिन्न प्रकार के खाद्य उत्पाद तैयार किए गए हैं, जो न सिर्फ पोषण की दृष्टि से उन्नत होते हैं,
  बल्कि स्वाद, सुगंध आदि में भी उत्तम होते हैं.
* पर्यावरणीय जैव प्रौद्योगिकी द्वारा जैवोपचारण प्रौद्योगिकी का विकास किया गया है. कार्बन प्रच्छादन,
  प्राणी तथा पादप विविधता आदि जैव प्रौद्योगिकी की उपलब्धियाँ हैं.
* पशु जैव प्रौद्योगिकी की विभिन्न विधाओं, जैसे-भ्रूण हस्तांतरण, भ्रूण परिवर्द्धन, पोषण, स्वास्थ्य रोगों
  के उपचार, परखनली निषेचन में उल्लेखनीय प्रगति के माध्यम से पशुओं की नई नस्लें विकसित
  करने, नस्ल सुधार एवं स्वास्थ्य सुधार में विशेष सफलता मिली है. समुद्री जैव प्रौद्योगिकी पर बढ़ते
  शोध ने बहुत सी दवाओं के विकास को सम्भव बनाया है तथा वैज्ञानिकों को समुद्री जीवों के विकास
  और उनसे जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने में सुविधा प्रदान की है.
* राष्ट्रीय एजेंडे के साथ जैव प्रौद्योगिकी ने स्वच्छ भारत, आयुष्मान भारत, भारत पोषण अभियान,
  स्टार्ट-अप इंडिया, मेक इन इंडिया और कौशल विकसित करने से सम्बन्धित स्किल इंडिया व
  राष्ट्रीय अभियानों के लिए अहम भूमिका निभाई है.
जैव प्रौद्योगिकी की उपलब्धियों का सामाजिक विकास में योगदान
* जैव प्रौद्योगिकी ने खाद्य व कृषि, पोषण, स्वास्थ्य, पर्यावरण और औद्योगिक विकास के क्षेत्र को
  प्रभावित करने में मुख्य भूमिका निभाई है. जैसे-जैसे इस क्षेत्र में प्रगति हुई। है, जैव प्रौद्योगिकी
  विभाग ने देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
* प्रमुख बीमारियों की रोकथाम और इलाज को सक्षम बनाते हुए निर्धनों तक इसकी पहुँच सुनिश्चित
  की जा सकती है तथा बेहतर कृषि उत्पादकता की चुनौतियों का समाधन कर कृषि उत्पादकता को
  बढ़ाते हुए आर्थिक विकास को सम्भव किया जा सकता है. इससे निर्धनता को अप्रत्यक्ष रूप से कम
  करने में सफलता प्राप्त होगी.
* राष्ट्रीय पोषण की जरूरतों को पूरा करते हुए मुखमरी को कम करने में सहायता मिलेगी, जो
  आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने तथा समावेशी समाज को विकसित करने की दिशा
  में महत्वपूर्ण कदम साबित होगा.
* जैव प्रौद्योगिकी द्वारा आर्थिक विकास को गति प्रदान कर लोगों के जीवन स्तर को सुधारने में
  सहायता प्राप्त हो सकती है तथा समाज में व्याप्त आय असमानता को समाप्त कर बेरोजगारी
  व निर्धनता से छुटकारा पाया जा सकता है.
* विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी ने सामाजिक उत्थान के प्रत्येक पहलू पर अपनी छाप छोड़ी है.. इसका
  मूलभूत उद्देश्य समाज एवं राष्ट्र के उत्थान के लिए उपयोगी सिद्ध होना है.

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