Upsc gk notes in hindi-53

Upsc gk notes in hindi-53

                                 Upsc gk notes in hindi-53

प्रश्न. औद्योगिक क्रान्ति के ब्रिटेन पर पड़े राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धी प्रभावों का विश्लेषण कीजिए.

उत्तर- राजनैतिक प्रभाव- औद्योगिक क्रान्ति ने ब्रिटेन के राजनैतिक ढाँचे को व्यापक रूप से
          प्रभावित किया औद्योगिक क्रान्ति के आरम्भ के पश्चात् नवीन प्रकार की समस्याएं उभर
          कर आई इसके परिणामस्वरूप राज्य के कार्य एवं दायित्व बहुत बढ़ गए दूसरे पूँजी और
          श्रम के बीच तनाव को कम करने तथा श्रमिक वर्ग की समस्याओं को सुलझाने में राज्य का
         चरित्र लोक-कल्याणकारी होता जहाँ गया. औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप मध्य वर्ग
         की शक्ति और आकांक्षा बढ़ गई, वहीं राजतन्त्र की शक्ति सीमित हुई.
       आर्थिक प्रभाव-औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप उत्पादन की तकनीकी में परिवर्तन हुआ
       तथा आधुनिक फैक्ट्री प्रणाली का विकास हुआ. इसके परिणामस्वरूप मुक्त अर्थव्यवस्था को बल
       मिला औद्योगिक विकास के साथ उत्पादक तथा उपभोक्ता दोनों के सम्बन्ध बदल गए तथा दोनों
       के मध्य दूरस्थ एवं अप्रत्यक्ष सम्बन्ध स्थापित हो गए. अतः उब उपभोक्ताओं के हितों को सुरक्षित
       करने की जरूरत महसूस हुई. फिर पूँजीपति व्यवस्था के अन्तर्गत चक्रिय उतारचढ़ाव एक सामान्य
       सी बात हो गई.
       सामाजिक प्रभाव-औद्योगिक क्रान्ति ने तत्कालिक समाज पर गहरा प्रभाव छोड़ा एक तरफ  जहाँ
        उसने मध्य वर्ग को सशक्त बनाया, वहीं उसने नए वर्ग के रूप में सर्वहारा वर्ग को स्थापित किया.
         इसके परिणामस्वरूप सामाजिक विभाजन को बल मिला एक नवीन विचारधारा के समाजवाद
        उभर कर आया और उसने पूँजीवाद को चुनौती दी. औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप विविध
        प्रकार रूप में विलासिता सम्बन्धी सामग्रियों के उत्पादन को बल मिला, परिणामस्वरूप उपभोक्तावाद
        को प्रोत्साहन मिला तथा मानवीय करुणा में ह्रास हुआ.
      अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों पर प्रभाव-औद्योगिक क्रान्ति ने साम्राज्यवाद को प्रोत्साहन दिया औद्योगिक
       उत्पादन की खपत के लिए बड़े बाजारों की आवश्यकता हुई अतः 1870 के पश्चात् पश्चिमी शक्तियों
      के बीच उपनिवेशों के लिए होड़ आरम्भ हो गई तथा एशिया और अफ्रीका का विभाजन हुआ फिर
      साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्द्धा ने एक नए प्रकार के तनाव को प्रोत्साहन दिया इसकी परिणति विश्व युद्धों
      में हुई.

प्रश्न. “राजतन्त्रीय कुशासन में यदि फ्रांस की क्रान्ति को यदि प्रज्ज्वलित किया, तो उच्च आदर्शों ने इसे प्रेरित भी किया और बनाए भी रखा.इस कथन के सन्दर्भ में फ्रांसी क्रान्ति की समीक्षा कीजिए.

उत्तर-फ्रांस की क्रान्ति उन प्रश्नों का जवाब था. जो 1789 से पहले के यूरोप के समक्ष उपस्थित थे फ्रांस की
         क्रान्ति के कारणों की व्याख्या भौतिक एवं वैचारिक दोनों कारणों के सन्दर्भ में की जानी चाहिए,
        राजतन्त्रवादी निरंकुशता फ्रांस की क्रान्ति का प्रेरक कारक रही. प्रबोधन की विचारधारा फ्रांसीसी
        राजतन्त्र को नियन्त्रित नहीं कर सकी, क्योंकि बुब वंश के शासक के सम्बन्ध में एक प्रसिद्ध मुहावरा
        था कि ‘ये शासक न तो पुराना भूलते हैं और न नया सीखते हैं. एक लम्बे काल से बुब शासक स्टेटस
       जनरल के बिना ही शासन कर रहे थे. लुई XIV के बाद राजतंत्र की शक्ति और प्रतिष्ठा गिर गई थी. फिर
      भी लुई XV और लुई XVI के समय भी राजतंत्र की निरंकुशता और विशेषाधिकार को बनाए रखा गया
      राजतंत्र कुलीनों और पादरियों के विशेषाधिकारों पर आधारित पुरातन व्यवस्था को बनाए रखा.
     फ्रांस में ये राजतन्त्रवादी निरंकुशतावादी एवं वर्गीय विशेषाधिकार शताब्दियों से चले आ रहे थे. इनको
     पहली बार 18वीं सदी में कुछ फ्रांसीसी चिन्तकों ने लोगों का ध्यान इस ओर आकर्षित किया वाल्टेयर
     ने वर्गीय विशेषाधिकार पर आधारित फ्रांसीसी समाज की तुलना अपेक्षाकृत खुले हुए ब्रिटिश समाज से
      की दिदरो ने राजतंत्र की निरंकुशता व चर्चे के अन्धविश्वास पर चोट के की /मोण्टेस्क्यू ने व्यक्ति की
    स्वतन्त्रता पर बल दिया तथा इसके लिए शक्ति पृथक्करण को आवश्यक माना खसो ने सामान्य इच्छा
    की अवधारणा दी इस प्रकार इन चिन्तकों ने लोगों को फ्रांसीसी क्रान्ति की अपूर्णता का ज्ञान करा दिया
    अत यहाँ परिस्थितियों ने क्रान्ति का आधार निर्मित कर दिया. वही फ्रांसीसी चिन्तकों ने अनजाने में उन
     परिस्थितियों को क्रान्ति की दिशा में उन्मुख कर दिया.

प्रश्न. “उपनिवेश फूलों की भाँति होते हैं, जो पेड़ से तभी तक जुड़े रहते है, जब तक वे पक न जाएं.” इस कथन की विवेचना उपनिवेशवाद की संकल्पना के सन्दर्भ में करें.

उत्तर- उपर्युक्त कथन उपनिवेशवाद से उस मोह भंग की स्थिति को दर्शाता है, जो अमरीकी क्रान्ति
          के पश्चात् उत्पन्न हुई. अमरीका के स्वतन्त्रता संग्राम के पश्चात् महानगरीय राज्यों में ऐसा विश्वास
          घर करने लगा कि उपनिवेशवाद वित्तीय रूप से अलाभदायक है. उनका मानना था. कि उपनिवेशों
         को स्थापित करने में निवेश की आवश्यकता होती है, किन्तु जब उपनिवेश वयस्क हो जाते हैं, तो वह
        महानगरीय राज्य से स्वतन्त्र हो जाते हैं. जिससे महानगरीय राज्य को आर्थिक हानि का सामना करना
        पड़ता है. इसी समय एडम स्मिथ ने अपनी पुस्तक ‘वेल्थ ऑफ नेशन्स’ नामक पुस्तक में वाणिज्यवाद
        एवं उपनिवेशवाद की कड़ी आलोचना प्रस्तुत की तथा मुक्त अर्थव्यवस्था पर बल दिया.
        इसके अतिरिक्त इस काल में मध्य वर्ग की आकांक्षा भी मुक्त अर्थव्यवस्था के लक्ष्य से जुड़े रही थी
       अतः यही वह काल था जब बड़ी संख्या में लैटिन अमरीका स्थित उपनिवेश स्वतन्त्र होने लगे थे. 1815
        में तीन उपनिवेशों को स्वतन्त्रता मिली 1822 में ब्राजील पुर्तगाल से अलग हो गया.. 1852 में ब्रिटिश
        प्रधानमन्त्री, डिजरायली ने, घोषित कर दिया कि ये उपनिवेश हमारे गले में लटके पत्थर की भाँति हैं “
      इस प्रकार अमरीकी क्रान्ति तथा ‘वेल्थ ऑफ नेशन्’ के प्रकाशन ने यूरोप में एक उपनिवेशवाद विरोधी
      मनःस्थिति अधिक समय तक नहीं रह सकी अतः फिर एक • बार उपनिवेशवाद परिवर्तित रूप से लौटा
     तथा इसे ‘नवउपनिवेशवाद साम्राज्यवाद के रूप में जाना गया.

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