Upsc gk notes in hindi-59
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प्रश्न. पश्चिमी घाट की तुलना में हिमालय में भूस्खलन की घटनाओं के प्रायः होते रहने के कारण बताइए.
उत्तर- भूस्खलन एक प्राकृतिक घटना है जिसमें गुरुत्व बल, ढाल प्रवणता की अधिकता, नदी, बहाव, भूकम्प,
बर्फबारी इत्यादि के कारण बहुत मिट्टी, पत्थर, नलंबा आदि पहाड़ी ढलानों अधिक मात्रा में से टूटकर नीचे की
ओर गिरते हैं. भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग के भारत का 15 प्रतिशत भू-भाग भूस्खलन, अनुसार
प्रभावित हैं, पस्तु हिमालय एवं पश्चिमी घाट इससे अधिक प्रभावित क्षेत्र हैं, लेकिन हिमालय में पश्चिमी घाट की
तुलना में भूस्खलन की बारम्बारता अधिक है जिसके लिए निम्नलिखित कारक जिम्मेदार हैं.
* हिमालय एक नवीन वलित पर्वत है, जबकि पश्चिमी घाट एक प्राचीन घर्षित ब्लॉक पर्वत है, जिसके कारण
दोनों के मिट्टी एवं पत्थर केबनावट एवं संरचना अन्तर है.
* पश्चिमी घाट की ऊँचाई एवं ढाल की तीव्रता हिमालय / की अपेक्षा कम है. हिमालय से निकलने वाली
नदियाँ बहुत अधिक मात्रा में जल एवं अवसाद /प्रवाहित करती हैं, जिससे पहाड़ी ढालों पर दबाव पड़ता
है, जबकि पश्चिमी घाट की नदियों में अवसाद की कमी रहती है पश्चिमी घाट पर्वत भूकम्प के दृष्टिकोण से
अपेक्षाकृत स्थिर है, जबकि हिमालय अभी भी विकास की अवस्था में होने के कारण भूकम्प से अत्यधिक
प्रभावित है, जो भूस्खलन का सबसे महत्वपूर्ण कारक है.
* हिमालय में सर्दी में हुई बर्फबारी जब गर्मी में पिघलती है तो वहाँ की मिट्टी को अधिक मुलायम बना देती
है, जिससे वहाँ भूस्खलन की समस्या बढ़ जाती है, जबकि पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढाल में तेज बारिश
भूस्खलन हेतु जिम्मेदार है, परन्तु बर्फबारी वहाँ नहीं होती उपर्युक्त के अतिरिक्त हिमालय क्षेत्र में मानव
गतिविधियों एवं निर्माण कार्य पश्चिमी घाट की तुलना में अधिक हुए हैं साथ ही इन कार्यों में वैज्ञानिकता
का भी अभाव जैसे-जंगल साफ करेना, बड़े-बड़े बाँध बनाना, बेतरतीब तरीके से मानव आवास आदि ने
भी भूस्खलन की बारम्बारता को बढ़ाया है.
प्रश्न. अधिक भारतीय शिलालेख अंकित तांडव नृत्य की विवेचना कीजिए.
उत्तर-आरम्भिक भारतीय शिलालेखों में अंकित तांडव नृत्य का सम्बन्ध भगवान शिव से माना जाता
है. भगवान शिव को पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नृत्य का देवता भी माना जाता है व इससे
सम्बन्धित रूप को आज हम नटराज के रूप में जानते हैं शिव के तांडव नृत्य का सम्बन्ध ब्रह्मांड
के सृजन और संहार के साथ-साथ ही पृथ्वी पर जन्म एवं मृत्यु से भी माना जाता है.
भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में तांडव नृत्य का वर्णन मिलता है इसके अन्तर्गत तांडक नृत्य में प्रयोग
की जाने वाली 108 हस्त मुद्राओं. हाव-भाव एवं शारीरिक मुद्राओं का वर्णन भी किया गया है तांडव
नृत्य में अत्यधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है, कई विद्वान् तांडव नृत्य के दो रूपों को मानते हैं-
पहला आनंद तांडव’ व दूसरा ‘रुद्र ताडव आनन्द ताडव का सम्बन्ध ऊर्जा के साथ आनन्द व सृजन
से है प्रायः दक्षिण भारत में इसका आज भी चलन है, रुद्र तांडव का सम्बन्ध क्रोध व संहार से है और
इसे ही प्रमुख माना जाता है. तांडव नृत्य आन्तरिक शक्ति के पाँच चित्रात्मक भावों का प्रकटीकरण
करता है, जो निम्नवत्र प्रकार से है-
* सृष्टि-सृजन से सम्बन्धित
* स्थिति-सहायक व संरक्षक
* संहार-विनाश
* तिरोभाव-मोहमाया
* अनुग्रह- मोक्ष/निर्वाण प्राप्ति.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार तांडव नृत्य शिव के द्वारा सती के अग्नि कुंड में कूदने के दौरान
वियोग व क्रोध में किया गया था. इसके अलावा यह भी मान्यता है कि भगवान कृष्ण द्वारा कालिया नाग
के ऊपर व इंद्र द्वारा जैन तीर्थंकर ऋषभदेव के जन्म पर किया गया था. इस प्रकार तांडव नृत्य का सम्बन्ध
हिन्दू पौराणिक ग्रंथों के साथ अन्य धर्मों के ग्रंथों से भी माना जाता है.
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