Upsc gk notes in hindi-60
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प्रश्न. किस प्रकार स्वतंत्रता का अधिकार भारत में एक धर्मनिरपेक्ष राज्य व्यवस्था प्रतिष्ठापित करने में मदद करता है? व्याख्या कीजिए.
उत्तर- भारत एक बहुधार्मिक देश है. हमारे देश में हिन्दुओं के अलावा मुस्लिम, सिख, ईसाई तथा
अन्य धर्म के लोग रहते हैं. संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अंतःकरण की स्वतंत्रता किसी भी धर्म को
मानने तथा प्रचार करने की सुरक्षा देता है. यह सभी धार्मिक समूहों को अपने धर्म से सम्बन्धित
क्रियाकलाप करने के अधिकार की अनुमति देता है.
प्रत्येक धार्मिक दल को अपने धर्मार्थ उद्देश्य के लिए संस्थान प्रतिष्ठापित तथा प्रबंध करने का
अधिकार है. किसी भी धार्मिक समूह को कानून के अनुसार चल तथा अचल सम्पत्ति खरीदने तथा
प्रबंध करने का भी अधिकार है. हमारा संविधान राज्य कोष से पूर्णतः प्रबंधित किसी शैक्षिक संस्थान
में किसी विशेष धार्मिक शिक्षा के अध्ययन को स्वीकार नहीं करता है. यह प्रतिबंध उन संस्थानों पर
लागू नहीं होते हैं जो राज्य कोष से पूर्णतः प्रबंधित नहीं है, लेकिन ऐसे संस्थानों में भी किसी बच्चे को
धार्मिक उपदेश मानने के लिए उनकी इच्छा के विरुद्ध बाध्य नहीं किया जा सकता है. धार्मिक स्वतंत्रता
के अधिकार असीम नहीं हैं. इन्हें कानून व्यवस्था, नैतिकता तथा स्वास्थ्य के आधार पर प्रतिबंधित किया
जा सकता है. राज्य मनमाने ढंग से प्रतिबंध लागू नहीं कर सकता.
प्रश्न. राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांतों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए.
उत्तर- राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांत केन्द्रीय एवं राज्य स्तर की सरकारों को दिए गए निर्देश है.
यद्यपि ये सिद्धांत न्याय योग्य नहीं है, ये देश के प्रशासन में मूल भूमिका निभाते हैं. कई आलोचकों
ने राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांतों को नव वर्ष की शुभकामनाओं से बेहतर नहीं माना. दरअसल
इन उच्च आदर्शों को संविधान में शामिल करने के औचित्य पर भी सवाल उठाया गया है. माना
जाता है कि ये निर्देश मात्र शुभकामनाएं हैं जिनके पीछे कोई कानूनी मान्यता नहीं है. सरकार इन्हें
लागू करने के लिए बाध्य नहीं है आलोचकों का मानना है कि इन सिद्धांतों को व्यावहारिक धरातल
पर नहीं उतारा जा सकता है.
इन सबके बावजूद ये नहीं कहा जा सकता है कि ये सिद्धांत पूणरूपेण अर्थहीन हैं. इनकी
अपनी उपयोगिता और महत्व है. नीति निर्देशक सिद्धांत ध्रुवतारों की तरह हैं जो हमें दिशा दिखलाते
हैं. इनका मुख्य उद्देश्य सीमित संसाधनों के बावजूद जीवन के हर पहलू में यथाशीघ्र सरकार द्वारा
सामाजिक आर्थिक न्याय की स्थापना करना है. कुछ सिद्धांतों को तो सफलतापूर्वक लागू भी किया
गया है. वास्तव में कोई भी सरकार इन निर्देशों की अवहेलना नहीं कर सकती है, क्योंकि वे जनमत
का दर्पण हैं, साथ ही ये संविधान की प्रस्तावना की भी आत्मा है.
प्रश्न. केन्द्र तथा रोज्यों के बीच विधायी सम्बन्धों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए.
उत्तर- हमारे संविधान में विधायी सम्बन्धों को लेकर अधिकारों का त्रि-स्तरीय विभाजन किया गया है.
विधायी अधिकारों से सम्बन्धित दो सूचियाँ हैं, पहली केन्द्र सूची और दूसरी राज्य सूची. इसके अतिरिक्त
एक अन्य सूची भी इसके साथ जोड़ दी गई है जिसे हम समवर्ती सूची के नाम से जानते हैं. इन तीनों
सूचियों में सबसे लम्बी सूची केन्द्र सूची है, जिसमें राष्ट्रीय हितों से सम्बन्धित 97 मामलों का उल्लेख है.
इसमें रक्षा, रेलवे, डाक तार, आयकर, आबकारी आदि मामले आते हैं. संसद को सम्पूर्ण देश में कानून
बनाने तथा केन्द्रीय सूची पर कार्य करने के लिए विशेष अधिकार प्राप्त हैं.
राज्य सूची में स्थानीय मुद्दों से सम्बन्धित 66 विषयों का उल्लेख है. इनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण मामले
जैसे राज्य में वाणिज्य तथा व्यापार, पुलिस, मत्स्य पालन, वन, उद्योग, आदि उल्लिखित हैं. विधानमंडल को
राज्य सूची में सम्मिलित सभी विषयों पर कानून बनाने का अधिकार प्राप्त है, किन्तु सम्बन्धित राज्य सिर्फ
अपने राज्य से सम्बन्धित मुद्दों पर ही कानून बना सकता है.
समवर्ती सूची में केन्द्र तथा राज्य दोनों से सम्बन्धित 47 मामलों का उल्लेख है. इनमें मुद्रांक शुल्क,
औषधि, बिजली, अखबार, आदि विषय महत्त्वपूर्ण है. संसद तथा विधानमंडल दोनों ही इस सूची में सम्मिलित
विषयों पर, कानून बना सकते हैं. यदि किन्हीं स्थितियों में एक ही विषय पर राज्य तथा केन्द्र द्वारा बनाए कानूनों
के बीच द्वंद्व उत्पन्न हो जाता है, तो ऐसी स्थिति में केन्द्र सरकार द्वारा बनाया गया कानून ही मान्य होता है. यदि
इन तीनो सूचियों में सम्मिलित विषयों के अतिरिक्त किसी विषय पर कानून बनाना हो तो उस पर संसद विचार
करती है. विशेष परिस्थितियों में संसद राज्य सूची के विषयों पर कानून बना सकती है.
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