Upsc gk notes in hindi-73

Upsc gk notes in hindi-73

                                Upsc gk notes in hindi-73

                                          परिच्छेद-13

 तथाकथित धार्मिक सम्प्रदायों के सम्बन्ध में यदि प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म का आकलन करने के
लिए कहा जाए, तो धर्म के रूप में ऐसी कोई बात नहीं होगी जो गलत हो, किन्तु यदि वे एक-दूसरे के
धर्म का आकलन करते हैं, तो धर्म के रूप में ऐसी कोई बात नहीं होगी जो सही हो और इसलिए धर्म
के संदर्भ में सम्पूर्ण विश्व सही है या सम्पूर्ण विश्व गलत है.

* उपर्युक्त परिच्छेद के आधार पर, सर्वाधिक तर्कसंगत पूर्वधारणा कौनसी हो सकती है ? 

(A) कोई भी व्यक्ति किसी धार्मिक सम्प्रदाय का अनुयायी बने बिना जीवन व्यतीत नहीं कर सकता
(B) प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपेन धार्मिक सम्प्रदाय का प्रसार
(C) धार्मिक सम्प्रदायों में मनुष्य की एकता की उपेक्षा करने की प्रवृत्ति होती है
(D) लोग अपने धार्मिक सम्प्रदाय को नहीं समझते हैं

                                        परिच्छेद-14

यह निश्चित है कि राजद्रोह, युद्ध. और विधि (लॉ) की अवहेलना अथवा उल्लंघन को प्रजा की अनैतिकता
पर उतना नहीं मढ़ा जा सकता, जितना कि उस अधिराज्य (डोमिनियन) की बुरी स्थिति पर. क्योंकि मनुष्य
जन्मजात रूप से नागरिकता के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं, अपितु उन्हें नागरिकता के लिए उपयुक्त बनाया
जाना चाहिए इसके अतिरिक्त, मनुष्य में नैसर्गिक मनोभाव सर्वत्र समान होते हैं और यदि अनैतिकता अधिक
प्रबल होती है और किसी राष्ट्रमंडल (कॉमनवेल्थ) में दूसरे राष्ट्रमंडल की तुलना में अधिक अपराध होते हैं, तो
यह निश्चित है कि पूर्ववर्ती राष्ट्रमंडल ने एकता लक्ष्य के लिए पर्याप्त रूप से न तो प्रयास किया है और न ही
पूर्व विचार करके अपनी विधि बनाई है और इसलिए वह राष्ट्रमंडल के रूप में अपने अधिकार को बेहतर
बनाने में विफल

* उपर्युक्त परिच्छेद के आधार पर, निम्नलिखित में से कौनसा सर्वाधिक निकाला जा सकता है?

(A) प्रत्येक अधिराज्य में राजद्रोह, युद्ध और विधि के उल्लंघन अपरिहार्य
(B) किसी अधिराज्य में समस्याओं के लिए संप्रभु (सॉवरिन) उत्तरदायी होता है. न कि जनता
(C) वह अधिराज्य सर्वोत्तम है जो एकता के लक्ष्य के लिए प्रयास करता है और जिसके पास
सुनागरिकता (गुड सिटिजनशिप) के लिए विधि (लॉ) है
(D) लोगों द्वारा अच्छा अधिराज्य स्थापित कर पाना असम्भव है

                                    परिच्छेद-15

असमानता इस मूल लोकतांत्रिक इस मूल लोकतांत्रिक प्रतिमानक का उल्लंघन करती है कि सभी
नागरिक समान हैं, समानता वह सम्बन्ध है, जो कुछेक मूलभूत विशेषताओं के सम्बन्ध में व्यक्तियों
के बीच होती है, जिसे वे सामान्य रूप से साझा करते हैं नैतिकता की दृष्टि से कहें तो समानता एक
स्वतः निर्धारित सिद्धांत है इसलिए प्रजाति, जाति, लिंग, संजातीयता, निःशक्तता या वर्ग जैसे आधारों
पर व्यक्तियों के बीच भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए मानवीय स्थिति की ये विशेषताएँ नैतिक दृष्टि
कि व्यक्तियों से संगत नहीं है. यह विचार के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार किया जाना चाहिए, न केवल
इस कारण से कि इनमें से कुछेक व्यक्तियों के पास कुछ असाधारण विशेषताएँ अथवा प्रतिभा होती
है, जैसे, इनमें से कुछेक व्यक्ति कुशल क्रिकेट खिलाड़ी, प्रतिभाशाली संगीतकार, अथवा विख्यात
साहित्यकार होते हैं बल्कि इसलिए भी कि वे सभी मनुष्य हैं, अब सामान्य बुद्धिनीति का अंग बन
गया है.

* उपर्युक्त परिच्छेद के संदर्भ में निम्नलिखित पूर्वधारणाएँ बनाई गई हैं

1. समानता, लोगों के लिए समाज के बहुविध व्यवहारों में आत्मविश्वास के साथ भाग लेने की एक पूर्वापेक्षा है.
2. असमानता का होना लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए हानिकारक है.
3. सभी नागरिकों के समान होने का विचार ऐसा है, जिसे किसी लोकतंत्र में भी वास्तव में कार्यान्वित
    नहीं किया जा सकता है.
 4. समानता के अधिकार को हमारे मूल्यों और दिन-प्रतिदिन की राजनीतिक शब्दावली में समाविष्ट
    किया जाना चाहिए.
उपर्युक्त में से कौनसी पूर्वधारणाएँ उपर्युक्त मान्य हैं ? 
(A) केवल 1 और 2
(B) केवल 2 और 3
(C) केवल 1 और 4
(D) केवल 3 और 4

Amazon Today Best Offer… all product 25 % Discount…Click Now>>>>

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *