Upsc gk notes in hindi-33
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प्रश्न – भारतीय मानसून को आदर्श मानसून’ माना जाता है. दक्षिणी तथा पूर्वी एशिया के मानसून का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए भारतीय मानसून की उत्पत्ति सम्बन्धी अवधारणाओं को समझाइए? (250 शब्द)
उत्तर- भारतीय उपमहाद्वीप एक मानसूनी जलवायु वाला क्षेत्र है. यहाँ ग्रीष्म ऋतु के मध्य में मानसून का
आगमन होता है, जिससे इस उपमहाद्वीप में भीषण एवं अनुकूलतम वर्षा की प्राप्ति होती है भारतीय
मानसून प्रणाली विश्व की ऐसी मौसम प्रणाली है, जो कि प्रत्येक 10 वर्षों में एलनिनो (Alnino) की
उत्पत्ति होने के कारण नियत होती है, इसमें कुछ गिरावट देखने को मिलती है. मानसून शब्द की
उत्पत्ति अरबी शब्द ‘मौसिम’ से हुई है जिसका वास्तविक अर्थ ‘बहुत’ होता है. मौसमी उत्क्रमण के
कारण अरब नौ-संचालकों को इस बात का व्यापक आभास होता था कि इस क्षेत्र में जलवायु में तीव्र
परिवर्तन होता है, इसी से मौसम शब्द की उत्पत्ति हुई. मानसून, सामान्य वायुमण्डलीय परिसंचरण का
एक व्यापक भौगोलिक क्षेत्र पर प्रवाह प्रतिरूप है. यहाँ स्पष्टतः एक ही दिशा में पवनें चलती है, परन्तु
प्रधान दिशा में पूर्ण उत्क्रमण शीत ऋतु से ग्रीष्म ऋतु के मध्य होता है.
उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में महाद्वीपों के पूर्वी भोगों में मानसून अधिक सुस्पष्ट होता है. एशिया में
यह उष्णकटिबंधीय क्षेत्र के बाहर चीन, कोरिया तथा जापान में प्रायः 60° उत्तरी अक्षांश तक पाया
जाता है, भारतीय मानसून की उत्पत्ति के निम्नलिखित सिद्धान्त विभिन्न वैज्ञानिकों ने सुझाए हैं
1. हेली का तापीय सिद्धान्त (1686),
2 फ्लोन का गत्यात्मक सिद्धान्त (1951),
3. नई अवधारणाएं.
हेली ने सर्वप्रथम बताया कि भारतीय मानसून की उत्पत्ति का सबसे बड़ा कारण स्थल एवं
जलमण्डल की तापीय विलोमता से है जहाँ * ग्रीष्म ऋतु में सूर्य के उत्तरायण होने के कारण
स्थलमण्डल अधिक उष्मा प्राप्त करता है. भारतीय उपमहाद्वीप के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो ग्रीष्म
ऋतु में तिब्बत का पठार अत्यधिक ऊष्मा प्राप्त कर निम्न दाब क्षेत्र (Low Pressure Belt) बनाता
है. इसके विपरीत समुद्री क्षेत्र में कम तापन के कारण ‘उच्च दाब क्षेत्र (High Pressure Belt) की
उत्पत्ति होती है. हवाएं उच्च दाब क्षेत्रों से निम्न वायुदाब क्षेत्रों की तरफ चलती है. यही कारण है कि
भारतीय मानसून की उत्पत्ति होती है.
द्वितीय सिद्धान्त फ्लोन का गत्यात्मक सिद्धान्त है यह सिद्धान्त इन्होंने 1951 में भारतीय
मानसून के परिप्रेक्ष्य में दिया था. इनके अनुसार भारतीय मानसून की उत्पत्ति का सर्वाधिक महत्वपूर्ण
कारक वायुदाब क्षेत्रों का मौसमी स्थानान्तरण है सूर्य के उत्तरायण एवं दक्षिणायन होने के कारण पवन
क्षेत्रों में बदलाव होता है तथा पृथ्वी के घूर्णन के कारण पवनें विक्षेपित होती हैं एवं मानसून की उत्पत्ति
होती है. नए सिद्धान्तों में ‘जेट स्ट्रीम सिद्धान्त द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान वायुयानों की गति एवं दिशा में
अवरोध, उत्पन्न होने के कारण इस सिद्धान्त का प्रतिपादन हुआ इस सिद्धान्त के अनुसार यह अनियाम
सान्द्रित, भू-विक्षेपी पट्टियाँ है, जो 300 से 400 किमी प्रति घण्टे की रफ्तार से लगभग 9-10 किमी ऊँचाई
के मध्य चलती हैं. ये जेट स्ट्रीम धाराएं भारतीय उपमहाद्वीप पर ग्रीष्म ऋतु व शीत ऋतु में मानसून की उत्पत्ति
का कारण बनती हैं.
प्रश्न- यह स्पष्ट कीजिए कि 1857 का विप्लव किस प्रकार औपनिवेशिक भारत के प्रति ब्रिटिश नीतियों के विकासक्रम मे एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक मोड़ है, (250 शब्द)
उत्तर- 1857 का विद्रोह भारतीय इतिहास. का एक महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम था. औपनिवेशिक शोषण की
प्रतिक्रियास्वरूप उत्पन्न हुए इस विद्रोह ने भारत में अंग्रेजी साम्राज्य के अस्तित्व को ही खतरे में
डाल दिया था. भविष्य में इस तरह के विद्रोहों से बचने तथा ब्रिटिश साम्राज्य को मजबूती प्रदान
करने के लिए अंग्रेजों ने अपनी नीतियों में व्यापक परिवर्तन किए.
इंगलैंड के सभी राजनीतिक गुटों ने 1857 के विद्रोह का कारण कम्पनी की आर्थिक और
प्रशासनिक नीतियों को माना. अतः 1858 का कानून पारित कर शासन का अधिकार ईस्ट इंडिया
कम्पनी से लेकर ब्रिटिश सम्राट को दे दिया गया अब भारत का शासन ब्रिटिश सरकार के एक मंत्री,
जिसे ‘भारत सचिव’ कहा जाता था, के पास रहता था. यह सचिव भारत से दूर लंदन में बैठा होता था.
अतः इस स्थिति में सरकार की नीतियों पर भारतीय जनमत का प्रभाव और भी कम हो गया. सरकार
की नीतियों पर ब्रिटिश उद्योगपतियों और व्यापारियों का प्रभाव और बढ़ गया. इस कारण ब्रिटिश नीतियाँ
एवं प्रशासन पहले से अधिक प्रतिक्रियावादी हो गया भारत में ब्रिटिश शासन की स्थापना का महत्वपूर्ण
आधार उनकी सेना थी. अंतः विद्रोह के पश्चात् सैन्य नीतियों में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन किए गए. भारतीय
सैनिकों में राष्ट्रवाद की भावना न बढ़ सके, इसके लिए उनके बीच जातीय, धार्मिक और क्षेत्रीय निष्ठा की
भावनाओं को प्रोत्साहित किया गया तथा इसके धार पर गोरखा, महार, मराठा, सिख इत्यादि रेजिमेंट की
स्थापना की गई भविष्य में 1857 के विद्रोह जैसी घटना न हो, इसके लिए सेना में यूरोपीय सैनिकों का
अनुपात बढ़ाया गया तथा सेना के महत्वपूर्ण विभाग उन्हें दे दिए गए विद्रोह के दौरान कई जागीस्वारों
और भारतीय रियासतों, अंग्रेजों का साथ दिया था. अत: अंग्रेजों ने इन राजाओं और जमींदारों को साम्राज्य
का समर्थक मान उनकी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया. अब यह घोषित किया गया कि भविष्य में भारतीय
राज्यों का अधिग्रहण नहीं किया जाएगा. इस तरह पहले से चली आ रही डलहौजी के व्यक्तिगत व प्रत्यक्ष
नियंत्रण की नीति को त्याग दिया गया.
1857 का विद्रोह ब्रिटिश सत्ता को खुली चुनौती थी. अतः भारत में ब्रिटिश सत्ता को स्थायित्व
देने के लिए अंग्रेजों ने और अधिक प्रतिक्रियावादी नीतियाँ अपनाई 1857 के के पहले यह प्रचारित किया
जाता था कि अंग्रेज विद्रोह भारतीयों को स्वशासन के लिए प्रशिक्षित कर रहे हैं, लेकिन विद्रोह के बाद अब
कहा जाने लगा कि भारतीय अपना शासन चलाने में अयोग्य हैं. अतः अंग्रेजों का शासन अनिश्चित समय तक
चलते रहना चाहिए.
प्रश्न- चर्चा करे कि क्या हाल के समय मे नए राज्यों का निर्माण, भारत की अर्थव्यवस्था के लिए लाभप्रद है या नहीं है. (250 शब्द)
उत्तर- भारत में स्वतंत्रता पश्चात ही नए राज्यों की माँग शुरू हो गई थी, हालांकि उस समय नए राज्यों
की माँग का कारण भाषायी आधार था वर्तमान में भी भारत के विभिन्न क्षेत्रों जैसे-गोरखालैंड,
बुंदेलखंड, मराठवाड़ा इत्यादि नए राज्य के निर्माण की माँग कर रहे हैं विभिन्न विद्वानों का मत
है कि नए राज्यों के गठन से बेहतर शासन-प्रशासन के अलोचा राज्य के संसाधनों के समुचित
उपयोग से देश की अर्थव्यवस्था को लाभ होगा जबकि आलोचकों का मत है कि नए राज्यों के
गठन से देश के संसाधनों का अपव्यय होगा, जो भारत की अर्थव्यवस्था के लिए प्रतिकूल होगा
वस्तुतः नए राज्यों का गठन भारत की अर्थव्यवस्था के लिए निम्नलिखित रूप से लाभप्रद है-
● नए राज्यों के गठन से राज्यों का आकार छोटा होगा, जिससे शासन एवं प्रशासन का सुगम संचालन के
साथ ही दक्षता में वृद्धि होगी, जो अंततः राज्य के विकास के साथ ही देश की अर्थव्यवस्था में लाभप्रद होगा.
● बड़ा राज्य होने की स्थिति में कई बार कोई क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों से अत्यधिक सम्पन्न होने के बावजूद
शासन की गलत नीतियों के कारण आर्थिक सामाजिक विकास में पिछड़ा रह जाता है. नए राज्यों के गठन
से यह समस्या बेहतर शासन पहुँच से दूर होगी तथा राज्य के सभी क्षेत्रों का समावेशी विकास होगा
● नए राज्य के गठन के कारण उस राज्य में नृजातीय संघर्ष एवं क्षेत्रवाद जैसी राष्ट्र विरोधी समस्याओं का
समाधान सम्भव हो पाएगा, फलतः नागरिकों में राष्ट्रवाद की भावना का विकास होगा राष्ट्रवाद के संचार
कारण नागरिक देश की आर्थिक गतिविधियों में समचित भागीदारी करके भारतीय अर्थव्यवस्था की गति
को तीव्र कर सकते हैं.
नए राज्यों के गठन से शासन की योजनाओं को सही लाभार्थियों तक पहुँचाकर राज्य में विद्यमान
विषमता को कम किया जा सकता है. राज्य में मौजूद विषमता अलगाववाद, नक्सलवाद, उग्रवाद जैसी
हिंसक गतिविधियों में सहयोगी होती है, जिससे देश की आंतरिक प्रभावित होती है. नए राज्यों के गठन
से बेहतर आंतरिक सुरक्षा के माध्यम से उपयुक्त मतिविधियों को समाप्त या कम करके आकर्षित किया
जा सकता है जो देश की अर्थव्यवस्था के लिए लाभप्रद होगा इसके अतिरिक्त हरियाणा उत्तराखंड जैसे
राज्यों की संवृद्धि हमें इस दिशा की ओर प्रोत्साहित करती है.
किन्तु सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि नए राज्यों का भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए निरपेक्ष
रूप से लाभप्रद हो, यह कोई जरूरी नहीं है, जिसे निम्नलिखित बिन्दुओं के अंतर्गत समझ सकते हैं.
● नए रोज्यों के गठन से अलग-अलग प्रशासनिक भवन और कार्यालयों की स्थापना करनी पड़ेगी, जिससे
देश को अतिरिक्त व्यय करना पड़ेगा.
● राज्यों के गठन के समय संसाधनों के बँटवारे के क्रम में एक राज्य को संसाधन कम प्राप्त हो सकते हैं,
जिससे वह राज्य पिछड़ा ही रह जाएगा.
● नए राज्यों के गठन के पश्चात् जल राज्य से विभिन्न संसाधनों जैसे नदीं, जल -जमीन इत्यादि पर विवाद
उत्पन्न होते रहते हैं जिनसे विभिन ‘अधिकरणों का निर्माण एवं विवाद समाधान तंत्र बनाने होते हैं जिससे
अत्यधिक व्यय बढ़ता है. नए राज्यों के गठन से नागरिकों के मध्य कटुता, द्वेष एवं हिंसा की भावना बढ़ती
है और संसाधनों एवं सरकारी इमारतों को नुकसान पहुँचाया जाता है, जो देश की अर्थव्यवस्था एवं प्रगति
के प्रतिकूल है. नए राज्यों का गठन यदि विकासात्मक कार्यों को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है, तो
यह उचित है, किन्तु अगर राजनीतिक लाभ एवं वोट बैंक के लिए किया जा रहा है तो इससे देश की
अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.
निष्कर्षत: नए राज्यों के गठन से भारत/ की अर्थव्यवस्था पर
सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव परिलक्षित होते हैं, अतः नए राज्यों के गठन को लेकर विशेष
सावधानी बरतने को प्रयास करना चाहिए. वस्तुतः राज्यों के गठन से ही उस क्षेत्र का विकास संभव नहीं
है, बल्कि शासन का सुचारु संचालन एवं नीतियों के समुचित क्रियान्वयन ने राज्यों का समुचित विकास
किया जा सकता है और अंततः देश, का आर्थिक विकास सुनिश्चित किया जा सकता है.
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