Upsc gk notes in hindi-35

Upsc gk notes in hindi-35

                             Upsc gk notes in hindi-35

प्रश्न. हिमालय क्षेत्र तथा पश्चिमी घाटों में भू-स्खलनों के विभिन्न कारणों का अन्तर स्पष्ट कीजिए. (150 शब्द, 10 अंक)

उत्तर- भारत में 0.42 मिलियन वर्ग किमी अथवा भू-भाग का 12.6% भाग भूस्खलन ग्रस्त क्षेत्र है, जिसके
         अन्तर्गत 0.18 मिलियन वर्ग किमी उत्तर पूर्वी हिमालय, 014 मिलियन वर्ग किमी, उत्तर-पश्चिम
         हिमालय, 0-09 मिलियन वर्ग किमी पश्चिमी घाट व कोंकण की पहाड़ियाँ तथा 001 मिलियन वर्ग
        किमी पूर्वी घाट में आन्ध्र प्रदेश में अरकू क्षेत्र शामिल हैं.
                    भू-स्खलन वह प्राकृतिक घटना है, जो गुरुत्वाकर्षण बल, ढाल की अधिक प्रवणता, बहाव,
       भारी बर्फबारी जैसे सम्मिलित कारकों के कारण घटित होती है जिसके कारण भारी मात्रा में मिट्टी,
        पत्थर, मलबा आदि पहाड़ी ढलानों से टूटकर नीचे गिरता है. भारी वर्षा बाढ़ तथा बर्फबारी से भी
        भूस्खलन होता है
                              हिमालय क्षेत्र में पश्चिमी घाट की तुलना में भू-स्खलन की घटनाओं की बारम्बार
           अधिक देखने को मिलती है जिसके कारणों को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है-
● पश्चिमी घाट की ऊँचाई तथा ढलान की तीव्रता हिमालय की अपेक्षा कर्म है जो भू-स्खलन के प्रमुख
    कारकों में से एक मानी जाती है.
● हिमालय एक नवीन वलित पर्वत है, जो अभी भी उत्थान की अवस्था में है, जबकि पश्चिमी घाट एक
   घर्षित ब्लॉक पर्वत है,
● हिमालय से निकलने वाली नदियों के कारण जल तथा अवसाद का दबाव बढ़ जाता है जिसके कारण
    ढलानों पर भी दबाव बढ़ जाता है, जबकि पश्चिमी घाट की नदियों हिमालयी नदियों की अपेक्षा अवसाद
    कम है.
● भूकम्प के दृष्टिकोण से हिमालयी क्षेत्र अधिक संवेदनशील है, जबकि पश्चिमी घाट अपेक्षाकृत स्थिर है,
   जो भूस्खलन का प्रमुख कारक है.
● हिमालयी क्षेत्र में सर्दी के मौसम में होने वाली बर्फबारी जब गर्मी के मौसम में पिघलती है, तो वहाँ की
   मिट्टी को मुलायम बना देती है जिससे भू-स्खलन की समस्या बढ़ जाती है
    उपर्युक्त के अतिरिक्त हिमालयी क्षेत्र में बढ़ती मानवीय तथा औद्योगिक गतिविधियाँ, विभिन्न परियोजनाएं
    वनों की कटाई आदि पश्चिमी घाट की तुलना में अधिक है जिसके कारण समय-समय पर भू-स्खलन की
    समस्या की बारम्बारता बढ़ जाती है.

प्रश्न. गोंडवानालैंड के देशों में से बावजूद भारत के खनन सकल घरेलू उत्पाद 1044 एक होने के उद्योग अपने (जी.डी.पी.) में बहुत कम प्रतिशत का योगदान देते हैं. विवेचना कीजिए (150 शब्द, 10 अंक)

 उत्तर- भारत प्राचीनतम् भू-सहतियों में से एक गोंडवानालैंड का भाग है तथा यहाँ विभिन्न खनिज सम्पदाओं
          से सम्पन्न, चट्टानी तन्त्र पाए जाते हैं भारत लगभग 95 प्रकार के खनिजों का उत्पादन करता है जिसमें
         धात्विक अधात्विक ऊर्जा तथा लघु खनिज आदि शामिल हैं। इसके बावजूद देश के सकल घरेलू उत्पाद
         (जी.डी.पी.) में/ खनन क्षेत्र का योगदान वर्तमान में 2.3-2.5% ही है, जोकि सम्भावनाओं और क्षमता की
         तुलना काफी कम है, जिसके प्रमुख कारण इस प्रकार हैं.
(i) अधिकांश खनिज समूह वनीय क्षेत्रों/ में है, जहाँ कई प्रकार की जनजातियाँ निवास करती हैं खनन आदि
     प्रक्रियाओं से विस्थापन होता है एवं उचित पुनर्वास व्यवस्था न होने पर विरोध की स्थिति उत्पन्न होती है,
(ii) खनेत गतिविधियों से केवल विस्थापन ही नहीं होता है, बल्कि विशिष्ट सांस्कृतिक विरासत के नष्ट होने का
     खतरा भी होता है
(iii) सरकार व स्थानीय जनसमूह में अविश्वास के कारण वामपंथी अतिवाद को बढ़ावा मिलता है तथा ओडिशा,
      छत्तीसगढ़, झारखण्ड जैसे क्षेत्रों में खनन उद्योग को ऐसी ही समस्याओं का सामना करना पड़ता है
(iv) लॉबिंग, राजनीतिक दान और भ्रष्टाचार से प्रेरित लोग खनिजों को अक्सर वास्तविक मूल्य से काफी कम
      कीमतों पर बेचा जाता है.
(v) खनन उद्योग में श्रमिकों की सुरक्षा की व्यवस्था के आधुनिक न होने के कारण उनके जीवन को निरन्तर
    खतरा बना रहता है.
(vi) अवैध खनन की प्रक्रिया से सार्वजनिक राजस्व का नुकसान होता है. अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार,
      अस्थिर खनन के कारण संसाधन सम्पन्न देशों की कई सरकारों को सार्वजनिक क्षेत्र की निवेल सम्पत्ति
      में गिरावट का सामना करना पड़ता है.
(vii) अधिकांश भारतीय राज्यों में कई छोटी खदानें संचालित हैं. ये सतत् विकास के लिए कठिने / चुनौतियाँ
      पेश करते हैं, क्योंकि उनकी वित्तीय तकनीकी और प्रबन्धकीय सीमाएं पर्याप्त सुधारात्मक उपाय करने
     की उनकी क्षमता को प्रतिबन्धित करती हैं.
(viii) कभी-कभी खनन प्रक्रिया को जाता है, ताकि जैव-विविधता को रोका भी 4 क्षति न पहुँचे। इस कारण
        उस क्षेत्र से खनिजों को निकालना असम्भव हो जाता है.
        उपर्युक्त कारणों के अतिरिक्त, खनिज अन्वेषण तथा खनन उद्योग में आधुनिक तकनीकों के प्रयोग की
     गति का धीमा होना भी इस उद्योग के विकास की प्रक्रिया को मन्द करता है.

प्रश्न . शहरी भूमि उपयोग के लिए जल निकायों से भूमि-उद्धार के वरणीय प्रभाव क्या हैं? उदाहरणों सहित पर्यासमझाइए. (150 शब्द 10 अंक)

उत्तर- मानव के जीवित रहने तथा गुणवत्तापूर्ण जीवन हेतु जल की पर्याप्त उपलब्धता एक अनिवार्य पूर्व शर्त
         है विश्व आयोग की पर्यावरण व धारणीयता पर वर्ष /2020 की रिपोर्ट अनुसार निरन्तर बढ़ता नगरीकरण
         जल प्रतिबल को और तीव्र करेगा, जिसका मुख्य कारण शहरी भूमि उपयोग के लिए जल निकायों से भूमि
        प्राप्त करना होगा झीले और आर्द्रा भूमि शहरी पारिस्थितिकी तन्त्र के महत्वपूर्ण जल निकाय जो महत्वपूर्ण
        पर्यावरणीय सामाजिक और आर्थिक कार्य करते हैं-पीने के पानी का स्रोत होने और भूजल को रिचार्ज करने
       से लेकर जैव विविधता का समर्थन करने और आजीविका प्रदान करने तक

Amazon Today Best Offer… all product 25 % Discount…Click Now>>>>

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *