Upsc gk notes in hindi-38

Upsc gk notes in hindi-38

                              Upsc gk notes in hindi-38

प्रश्न. “दोनों विश्व युद्धों के बीच लोकतन्त्रीय राज्य प्रणाली के लिए एक गम्भीर चुनौती उत्पन्न हुई. इस कथन का मूल्यांकन कीजिए, (250 शब्द, 15 अंक) 

उत्तर-किसी आलोचक ने कहा है कि विश्व युद्धों ने फ्रांस की क्रान्ति का अन्त कर दिया. वस्तुतः जहाँ एक
        तरफ लोकतन्त्र की विफलता मानव समुदाय को युद्ध की ओर ले जाती है, तो दूसरी तरफ युद्ध भी
        लोकतन्त्र को ध्वस्त कर देता है 20वीं सदी के आरम्भ तक यूरोपीय देशों में प्रतिनिधात्मक सरकार
        विकसित होने लगी थी तथा महिलाओं एवं श्रमिकों के बीच मताधिकार का विस्तार हो रहा था.
        परन्तु प्रथम विश्व युद्ध ने उस पूरी प्रक्रिया को अवरुद्ध कर दिया.
* विश्व युद्ध के बाद पराजित देशों को अनुचित आर्थिक दण्ड, युद्ध के बाद के आर्थिक संकट और राजनीतिक
   दिशाहीनता के चलते लोकतान्त्रिक राज्य देर तक नहीं टिक सके और महायुद्ध की बाद की परिस्थितियों
   से निपटने में कामयाब नहीं हो सके.
* इस प्रकार लोगों का लोकतान्त्रिक प्रणाली से मोह भंग होने लगा. समाजमें, द्वेष और असन्तोष बढ़ने
  लगा सोवियत संघ के नेतृत्व में समाजवादी दलों ने इस असन्तोष को मुखरित किया और उसे राजनीतिक
  आयाम के रूप में स्थापित करने की कोशिश की.
* सोवियत संघे के डर से पूँजीवादी शक्तियों ने हिटलर और मुसोलिनी को समर्थन देना शुरू कर दिया.
  क्योंकि यह तानाशाह समाजदग्द का विरोध कर रहे थे यकीनन यह है कि राष्ट्र हिटलर से ज्यादा
  सोवियत संघ को नापसन्द करते थे.
* युद्ध के बाद व्यवस्थित रूप से यूरोप लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं में की स्थापना हुई जब शोषण और
   विषमता के खिलाफ समाजवादी आन्दोलन जोर पकड़ने लगा तो यूरोपीय पूँजीवादी शक्तियों ने उसके
   खिलाफ लामबंदी शुरू कर दी कई देशों ने राष्ट्रीयता की दुहाई तथा इटली और जर्मनी में समाजवाद
   के दमन का बहाना करके इन देशों में तानाशाह सरकारों की स्थापना होने दी गई.
* हालाँकि जल्द ही भिन्न देशों को अपनी गलतियों का अहसास हुआ. जब जर्मनी ने डेनमार्क, पोलैण्ड,
   फ्रांस, नॉर्वे आदि को पराजित किया और ब्रिटेन की तरफ बढ़ा दूसरे विश्व युद्ध के दौरान होलात
   बदलने लगे. एक्सिस ताकत कम संसाधनों और अपनी रणनीतिक गलतियों के चलते जल्दी हो
   पराजित हुई.
* 1945 के बाद का दौर शीतयुद्ध का दौर था जिसमें पूर्वी यूरोप के बड़े हिस्से पर सोवियत संघ का प्रभाव
  था वहाँ समाजवादी सरकारें विकसित हुई: तथा पश्चिमी यूरोप पर अमरीका का प्रभाव था वहाँ अमरीकी
  लोकतान्त्रिक व्यवस्था की स्थापना हुई.

प्रश्न. विश्व की प्रमुख पर्वत श्रृंखलाओं के संरेखण का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए तथा उनके स्थानीय मौसम पर पड़े प्रभावों का सोदाहरण वर्णन कीजिए. (250 शब्द, 15 अंक) 

उत्तर- एक ही काल में निर्मित विभिन्न पर्वतों के निश्चित क्रम कहा जाता है. पर्वत को पर्वत श्रृंखला द्वितीय
         श्रेणी के उच्चावच होते हैं तथा क्षेत्र विशेष की स्थानीय मौसमी दशाओं पर गहरा प्रभाव डालते हैं.
         विश्व की प्रमुख पर्वत श्रृंखलाओं के संरेखण तथा स्थानीय मौसम पर पड़ने वाले उनके प्रभाव
         निम्नलिखित हैं-
* हिमालय, भारतीय उपमहाद्वीप को, साइबेरिया की ठंडी हवाओं से बचाता है तथा भारतीय जलवायु
   को समग्रता में उष्ण कटिबन्धीय स्वभाव प्रदान करता है हिमालय का उच्च एल्बिडो जो ऊष्मा
   बजट का निर्धारण करता है यह मानसूनी पवनों के लिए अवरोध उत्पन्न करता है व वर्षा कराता है
   यह तिब्बत के पठार के साथ मिलकर जेट स्ट्रीम के लिए अवरोध उत्पन्न करता है. जेट स्ट्रीम की
   दो शाखाएं हो जाती हैं, दक्षिणी शाखा तथा उत्तरी शाखा और इसी के सहारे पश्चिमी विक्षोभ आता है.
* अरावली मारवाड, मेवाड़ के विभाजक है तथा थार के मरुस्थल के निर्माण में सहायक के रूप में
   कार्य करता है.
* आल्प्स उत्तरी यूरोप के आर्द होने तथा दक्षिणी यूरोप के शुष्क होने में सहायक है फोन, मिस्ट्रल जैसी
   पवनों पर प्रभाव डालता है. यह क्षेत्रीय तापमान की दशाओं को प्रभावित करता है.
* एटलस पर्वत भू-मध्य सागरीय जलवायु क्षेत्र को सहारा मरुस्थल से पृथक् करता है तथा मरुस्थलीय
   ऊष्मा को तटीय क्षेत्र तक पहुँचने से रोकता है, यह वृष्टि छाया क्षेत्र का निर्माण करता है.
* दक्षिणी अमरीका स्थित एंडीज उत्तर, पूर्व व दक्षिण-पश्चिम भाग को वर्षा प्रदान कराता है. यह वृष्टि
   छाया प्रदेश मरुस्थलों के निर्माण के लिए उत्तरदायी होते हैं.
* रॉकीज पर्वत के कारण प्रशान्त महासागर से आने वाली पवनें पवनाविमुख ढाल पर वर्षा करती हैं,
  जबकि पवनाविमुख पर मरुस्थल निर्माण की दशाएं बनाती हैं.
   पर्वत विशिष्ट पारिस्थितिक तन्त्र हैं, जिनकी विशेषता उनकी विविधता और जटिलता है. वे तीव्र
   मौसमी विरोधाभासों के साथ संयुक्त स्थलाकृतिक जलवायु और जैविक ढाल और भू-आकृति
   घटनाओं तथा मानव वातावरण को दृढ़ता से प्रभावित कर सकते हैं, चूँकि पर्वत श्रृंखलाएं स्थानीय
   मौसम पैटर्न और लोगों की जीवन शैली को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं अतः
   वे न केवल भूगोल, बल्कि विभिन्न सांस्कृतिक और आर्थिक कारकों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं.

प्रश्न. आर्कटिक की बर्फ और अंटार्कटिक के ग्लेशियरों का पिघलना किस तरह अलग-अलग ढंग से पृथ्वी पर मौसम के स्वरूप और मनुष्य की गति विधियों पर प्रभाव डालते हैं ? स्पष्ट कीजिए, (250 शब्द, 15 अंक)

उत्तर-आर्कटिक महासागर सतत् महासागरीय हिम से आच्छादित है, जबकि अंटार्कटिक हिमनद
        आवरित महाद्वीप है आर्कटिक और अंटार्कटिक के ग्लेशियरों का पिघलना वैश्विक नीति-
        निर्माताओं के लिए गम्भीर खतरा पैदा कर रहा है, क्योंकि इससे समुद्र का स्तर बढ़ रहा है.
       इसके अलावा, यह वायु परिसंचरण पैटर्न और अन्य मौसम पैटर्न को प्रभावित करता है जिससे
      अत्यधिक जलवायु परिवर्तन की घटनाएं हो सकती हैं, जो लाखों लोगों को प्रभावित करती हैं
      आर्कटिक के अन्तर्गत आर्कटिक महासागर, निकटवर्ती समुद्र और अलास्का (यू. एसए) कनाडा,
      फिनलैण्ड, ग्रीनलैण्ड, आइसलैण्ड, नॉर्वे, रूस और स्वीडन को शामिल किया जाता है.
आर्कटिक के बर्फ के पिघलने के प्रभाव
* अटलांटिक मेरीडियोनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन पर इससे प्रभाव पड़ता है. यह सर्कुलेशन सम्पूर्ण
   महासागर में ऊष्मा एवं पोषक तत्वों का आदान-प्रदान करता है और यह वैश्विक जलवायु को भी
   प्रभावित करता है.
* वैश्विक पवन तन्त्र प्रभावित होगा जिससे एलनीनो सदर्न ऑक्सीलेशन चक्र अनियमित हो जाएगा.
* तापमान में वृद्धि होने पर पोलर वोल्टेक्स बनता है और ध्रुवीय वाताग्री जेट की दशाओं में परिवर्तन
 होगा, तो वह बड़ी मात्रा में मौसम चक्र को प्रभावित करेगी.
* हाल ही में भारत के वैज्ञानिकों ने यह माना है कि भारत के लौटते हुए मानसून से जो वर्षा होती है
   वह आर्कटिक के बर्फ के पिघलने का परिणाम है. इसी को देखते हुए भारत. के मौसम विभाग
   ने आर्कटिक के बर्फ पिघलने और भारत के मानसून के अन्तर सम्बन्धों पर एक मिशन भी जारी
   किया है.
* मध्य अक्षांशों के तापमान में परिवर्तन होने पर साइक्लोन तूफान इत्यादि की दशाएं चर्म अवस्था
  में पहुँच सकती हैं. स्थानीय स्तर पर जैव-विविधता की क्षति जिससे स्थानीय लोगों की आखेट
  मत्स्यन जैसी गतिविधियों पर दुष्प्रभाव पड़ेगा.
* नए समुद्री मार्गों के खुलने के साथ ही प्राकृतिक संसाधनों की प्राप्ति हेतु नई स्पर्धा होगी और
  तनावों का जन्म होगा.
* भू-मण्डलीय तापन तथा जलवायु परिवर्तन की दशाओं का और खतरनाक स्तर हो जाएगा.
* इससे अन्य क्षेत्रों पर भी प्रभाव पड़ेगा जैसे स्वास्थ्य तथा पर्यटन इत्यादि
अंटार्कटिक के बर्फ के पिघलने के प्रभाव
* दक्षिणी गोलार्द्ध में चक्रवातों तूफानों आदि की गहनता बढ़ने लगेगी.
* भारत के दक्षिण-पश्चिम मानसून पर प्रभाव पड़ेगा इसके कमजोर होने की स्थितियाँ उपन्न होने लगेगी.
* दक्षिणी गोलार्द्ध की महासागरीय धाराओं पर प्रभाव पड़ेगा.
* हिमनद पिघलने तथा सागर स्तर में वृद्धि से जो छोटे-छोटे ट्रीपीय क्षेत्र हैं उनकी सभी गतिविधियों
  पर दुष्प्रभाव पड़ेगा.
* जैव विविधता को काफी क्षति रोगी, यहाँ रह रही पेन्गुइन के लिए समस्याएं उत्पन्न होंगी.
      अंटार्कटिक व आर्कटिक दो बर्फ और हिमनदीय क्षेत्र हैं, जो विश्व के ऊष्मा और जलवायु
      दशाओं के नियमन के लिए उत्तरदायी हैं अगर इनकी बर्फ या हिमनद पिघलते हैं, तो जो
      वैश्विक स्तर का जलवायु तन्त्र है वह दुष्प्रभावित होगा और जिसका प्रभाव न सिर्फ प्राकृतिक
     बल्कि मानवीय पक्षों पर भी बहुत गहराई से पड़ेगा अतः जलवायु परिवर्तन और भू-मण्डलीय
     तापन को नियन्त्रित करने सम्बन्धी कदमों को उठाने में अतिशीघ्रता करनी होगी जिससे इन
     पोलों के बेर्फ व ग्लेशियर को पिघलने से रोकना होगा अन्यथा मानव जाति का भविष्य ही खतरे
     में पड़ जाएगा.

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