Upsc gk notes in hindi-48

Upsc gk notes in hindi-48

                              Upsc gk notes in hindi-48

प्रश्न. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू एचओ) द्वारा हाल ही में जारी किए गए संशोधित वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देशों (एक्यूजी) मुख्य बिन्दुओं का वर्णन कीजिए. विगत 2005 के अद्यतन से, ये किस प्रकार भिन्न हैं ? इन संशोधित मानकों को प्राप्त करने के लिए, भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में किन परिवर्तनों की आवश्यकता है ? (150 शब्दों में उत्तर दीजिए) 

उत्तर-विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2005 के बाद पहली बार वायु गुणवत्ता से सम्बन्धित नए दिशा-निर्देश
         जारी किए हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि इन कड़े दिशा-निर्देशों के माध्यम से देशों को
         स्वच्छ ऊर्जा की और प्रेरित करने तथा वायु से होने वाली मौतों और बीमारियों को रोकने में
         मदद मिलेगी, नए दिशा-निर्देश विशेष रूप से नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और जीवाश्म ईंधन
         से होने वाले प्रदूषकों को लक्षित करते हैं.
नए दिशा-निर्देशों के प्रमुख बिन्दु
  ये दिशा-निर्देश प्रमुख वायु प्रदूषकों के स्तर को कम करके विश्व आबादी के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए
  नए वायु गुणवत्ता स्तरों की सिफारिश करते हैं. इन दिशा-निर्देशों के तहत् अनुशंसित स्तरों को प्राप्त
  करने का प्रयास कर सभी देशों को अपने नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा करने के साथ-साथ वैश्विक
  जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद मिलेगी. विश्व स्वास्थ्य संगठन का यह कदम सरकार द्वारा
  नए सख्त मानकों को विकसित करने की दिशा में नीति में अंतिम बदलाव के लिए मंच तैयार करता
  है. विश्व स्वास्थ्य संस्थान के नए दिशा-निर्देश उन 6 प्रदूषकों के लिए वायु गुणवत्ता के स्तर की अनुशंसा
  करते हैं, जिनके कारण स्वास्थ्य पर सबसे अधिक जोखिम उत्पन्न होता है.
इन 6 प्रदूषकों में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5 और पीएम 10), ओजोन (O3), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड
(NO2) सल्फर डाइऑक्साइड (SO3) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) शामिल हैं.
नए दिशा-निर्देशों का भारत पर प्रभाव
नए वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देशों का मतलब है कि लगभग पूरे भारत को वर्ष के अधिकांश समय के लिए
प्रदूषित क्षेत्र माना जाएगा.
हालांकि WHO ने स्वयं माना है कि विश्व की 90% से अधिक आबादी उन क्षेत्रों में रहती है, जो वर्ष 2005
के प्रदूषण मानकों को पूरा नहीं करते हैं.. विशेष रूप से भारत सहित दक्षिण एशिया जैसे चुनौतीपूर्ण
भू-जलवायु क्षेत्रों में नए दिशा-निर्देशों को लागू करने की व्यवहार्यता संदिग्ध है. इस क्षेत्र में मौसम और
जलवायु परिस्थितियाँ चुनौतीपूर्ण हैं, जिसमें धुंध स्तम्भ (Haze Columns), ऊष्मा द्वीप (Heat Island)
का प्रभाव तथा बहुत अधिक आधार प्रदूषण की अतिरिक्त चुनौती है.
भारत में वायु प्रदूषण की स्थिति को देखते हुए स्वास्थ्य डेटा को मजबूत करने और तद्नुसार राष्ट्रीय
परिदेशी वायु गुणवत्ता मानकों को संशोधित करने की आवश्यकता है. हालांकि WHO के दिशा-निर्देश
बाध्यकारी नहीं हैं, उसके इस कदम का भारत पर तुरंत प्रभाव नह पड़ता है, क्योंकि राष्ट्रीय परिवेशी
गुणवत्ता मानक (National Ambient AirQualiy Standards – NAQS) WHO मौजूदा मानकों को
पूरा नहीं करते हैं.
सरकार का अपना एक समर्पित राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम जिसकल वर्ष 2024 तक वर्ष 2017 के स्तर
के आधार वर्ष मानते ह 22 शहरों में पीएम कणों की सांद्रता में 20% से 30% तक की कमी लाना है.

प्रश्न. भूकम्प सम्बन्धित संकटों के लिए भारत की भेद्यता की विवेचना कीजिए. पिछले तीन दशकों में, भारत के विभिन्न भागों में भूकम्प द्वारा उत्पन्न बड़ी आपदाओं के उदाहरण प्रमुख विशेषताओं के साथ दीजिए. (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)

उत्तर-भूकम्प बिना किसी चेतावनी के घटने वाली क्रिया है और इसमें जमीन तथा इसके ऊपर मौजूद
        संरचनाओं का बुरी तरह से हिलना शामिल है. ऐसा गतिशील स्थल-मण्डलीय (मूविंग लिथोस्फेरिक)
        अथवा क्रस्टल (भूपटल) प्लेटॉ के संचरित दबाव के मुक्त होने के कारण होता है. भूकम्प मूलतः
       विवर्तनिक (टेक्टोनिक) होते हैं अर्थात् जमीन में आने वाले झटकों के होने के लिए गतिशील (मूविंग)
       प्लेटें जिम्मेदार हैं. भारत की बढ़ती आबादी तथा इसमें व्यापक रूप से लगातार बढ़ रहे अवैज्ञानिक
      निर्माण जिनमें बहुमंजिला आरामदायक अपार्टमेंट, बड़े कारखानों की बिल्डिंगें विशालकाय मॉल,
      सुपर मार्केट के साथ-साथ मालगोदाम (वेयरहाउस) तथा ईंटपत्थर से बनी इमारतें शामिल हैं, जो
     भारत को उच्च जोखिम में रखते हैं. भारत की भूमि का 59% हिस्सा सामान्य से गम्भीर भूकम्पीय
      खतरों की चेतावनी के अधीन है-जिसका अर्थ यह है किं भारत एमएसके तीव्रता VII और उससे
      अधिक झटकों के प्रति प्रवृत्ति रहता है (बीएमटीपीसी, 2006) वास्तव में सम्पूर्ण हिमालय क्षेत्र को
     8-0 की तीव्रता वाले बड़े भूकम्पों के प्रति प्रवृत्ति माना जाता है और 50 वर्ष की अपेक्षाकृत अल्पावधि
     में 4 ऐसे बड़े भूकम्प आ चुके हैं भूकम्प की जोखिम में वृद्धि शहरीकरण, आर्थिक विकास तथा भारत
    की अर्थव्यवस्था के वैश्विकीकरण के कारण हुए विकासात्मक कार्यकलापों में हुई तीव्र बढ़ोतरी के कारण
    हुई है.
भारत में भूकम्प के उदाहरण
* 30 सितम्बर, 1993को महाराष्ट्र के लातूर में भीषण भूकम्प आया, जिसका केन्द्र जबलपुर के 250
   मील दक्षिण पश्चिम में था
* 29 मार्च, 1999 को भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश अब उत्तराखण्ड में के चमोली जिले में आया था.
   ऐसा माना जाता है कि 1999 में चमोली भूकम्पन दोष थ्रस्ट फॉल्ट प्रणालियों के साथ जुड़ा था.
* 2001 का भुकम्प, 26 जनवरी, 2001 भारत के गणतंत्र दिवस, की सुबह हुआ जिसका केन्द्र भारत के
गुजरात के कच्छ जिले के मचौ तालुका में चबारी गाँव के लगभग 9 किमी दक्षिण-दक्षिण पश्चिम में था.
* 26 दिसम्बर, 2004 को इंडोनेशिया के उत्तरी भाग में स्थित असेह के निकट रिक्टर पैमाने पर 8-9
  तीव्रता के भूकम्प के बाद समुद्र के भीतर उठी सुनामी ने भारत सहित कई देशों में भारी तबाही
  मचाई.
* वर्ष 2005 में राज्य में आए भूकम्प का केन्द्र पीओके के मुज्जफरानगर, श्रीनगर बना था.
  तब राज्य में 7.6 रिक्टर स्केल तीव्रता मांपी गई थी.

प्रश्न. चर्चा कीजिए कि किस प्रकार उभरती प्रौद्योगिकियों और वैश्वीकरण मनी लॉन्डिंग में योगदान करते हैं. राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर मनी लॉन्ड्रिंग की समस्या से निपटने के लिए किए जाने वाले उपायों को विस्तार से समझाइए. (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)

उत्तर-जैसे-जैसे इंटरनेट एक विश्वव्यापी स्वरूप लेता जा रहा है, प्रीपेड कार्ड सिस्टम इंटरनेट भुगतान
        सेवाएं, और मोबाइल भुगतान सेवाएं सम्भावित रूप से कई प्रकार की कमजोरियों का सामना
       कर रही हैं जिनका मनी लॉन्डिंग के. लिए उपयोग किया जा सकता है. तृतीय-पक्ष भुगतान के
      अनेक सेवा प्रदाता व्यक्तियों को ऑनलाइन खरीदारी करने की क्षमता प्रदान करते हैं, वायर
      ट्रांसफर, मनी ऑर्डर और यहाँ तक कि नकद खातों के साथ फंडिंग करते हैं. ज्यादातर मामलों
     में, इस सेवा के प्रदाता का अपने ग्राहकों के साथ आमने-सामने का सम्बन्ध नहीं होता है और
     यहाँ तक कि गुमनाम खातों का भी परिचालन किया जाता है. सूचना और संचार की नई तकनीकों
    के विकास ने अपराधियों के लिए, मनी लॉन्डिंग के प्रयोजनों के लिए ऐसी तकनीकों का दुरुपयोग
    करने के अवसर पैदा किए हैं.
मनी लॉन्ड्रिंग और टेरर फाइनेंसिंग ने वैश्विक स्तर पर कई सरकारों और नियामकों को धन के नाजायज
प्रवाह को रोकने पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए मजबूर किया है. धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002
(पीएमएलए) के साथ धन शोधन निवारण (अभिलेखों का रखरखाव) नियम, 2005 (नियम), साथ ही
नारकोटिक ड्रग्स एण्ड साइकोट्रोपिक पदार्थ अधिनियम, 1985 (एनडीपीएस अधिनियम) (2001 में
संशोधित) भारत में मनी लॉन्ड्रिंग गतिविधियों को प्रतिबंधित करने के लिए लागू किए गए प्रमुख
कानून हैं.

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