Upsc gk notes in hindi-55
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प्रश्न. जीवाश्मी ईंधन की बढ़ती हुई कमी के कारण भारत में परमाणु ऊर्जा का महत्व अधिकाधिक बढ़ रहा है. परमाणु ऊर्जा बनाने के लिए आवश्यक कच्चे माल की भारत व विश्व में उपलब्धता की विवेचना कीजिए.
उत्तर- भारत के पास परमाणु खनिज का सबसे बड़ा भण्डार है. विश्व के कुल परमाणु खनिजों का
30% भाग इसी के पास है भारत के पास मोनाजाइट, जोकि थोरियम का प्रमुख स्रोत है, का
विश्व का सबसे बड़ा भुण्डोर है तथा यूरेनियम भी कुछ मात्रा में उपस्थित है. भण्डार के सन्दर्भ
में भारत दसवों स्थान है. भारत में यूरेनियम के का विश्व में पाए गए सम्पूर्ण यूरेनियम संसाधन
लगभग 1.03,555 टन है। जिसमें से झारखण्ड में 45%, आंध्र प्रदेश में 27%, मेघालय में 7
राजस्थान एवं कर्नाटक प्रत्येक में 4% तथा शेष भाग अन्य राज्यों में स्थित है.
थोरियम का भण्डार लगभग 50 लाख का है. बेरीलियम का वार्षिक उत्पाद लगभग 1,900 टन है.
भारत के पास समुद्रतटीय रेल वाले खनिज का बड़ा भण्डार है, इनमें इल्मेनाइट, रुटाइल, जिर्कोन,
मोनाजाइट सीलिमानाइट एवं गानेंट मुख्य हैं. इनमें से पहले चार खनिज परमाणु ऊर्जा के उत्पादन
तथा सम्बन्धित शोध एवं विकास के कार्यों में उपयोग किए जा सकते हैं.
परमाणु खनिज अन्वेषण एवं शोध निदेशालय (Atomic Minerals Directorate for Exploration
and Research) के समुद्र-तटीय. रेत एवं अपतट अन्वेषण समूह (Beach Sand and Off Shore
Group) ने तटीय पट्टी की 2088 किमी का अब तक सर्वेक्षण किया है (लक्ष्य 6000 किमी का था)
इस समूह के अनुसार इल्मेनाइट की मात्रा 2780 लाख टन (विश्व में सबसे अधिक), रुटाइल की मात्रा
130 लाख टन, जिॉन 180 लाख टन मोनाजाइट की मात्रा 70 लाख टन, की मात्रा 860 लाख टन तथा
सीलिमानाइट की मात्रा 840 लाख टन होने का अनुमान है.
यूरेनियम ईंधन तैयार करने के लिए यूरेनियम अयस्क को कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है
इसके मुख्य स्रोत संयुक्त राज्य अमरीका, दक्षिणी अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया कनाडा एवं नाइजीरिया है जिनके
पास 270 से 2400 हजार टन का संसाधन है अन्य देश जिनके पास 36 से 124 हजार टन प्रत्येक के पास
यूरेनियम खनिज संसाधन है वो हैं फ्रांस, अर्जेन्टीना, भारत, अल्जीरिया, गेवन तथा ब्राजील.
प्रश्न. देश में बढ़ती हुई ऊर्जा भौगों को पूरा करने की दिशा में भारत के उपागम का मूल्यांकन कीजिए. इस उपागम की सफलता की तुलना एक अन्य एशियाई भीमकाय के उपागम से कीजिए, जिसकी र्जा माँग शायद सबसे अधिक तेजी से बढ़ रही है.
उत्तर- किसी भी देश में ऊर्जा की माँग का आर्थिक विकास की विकास दर से सीधा सम्बन्ध होता है. यह
तथ्य भारत पर भी लागू होता है. विगत दो दशकों में भारत में स. घ. उ. की उच्च संवृद्धि दर प्राप्त
होने के साथ ऊर्जा की माँग और खपत दोनों में ही तेजी से वृद्धि हुई है, लेकिन घरेलू स्तर पर ऊर्जा
की माँग और पूर्ति में भारी अन्तराल है. एक आकलन के अनुसार भारत के औद्योगिक क्षेत्र में 25
प्रतिशत, परिवहन क्षेत्रक में 20 प्रतिशत तक, कृषि क्षेत्र में 30 प्रतिशत घरेलू एवं व्यावसायिक उपभोग
में 20 प्रतिशत तक ऊर्जा की बचत की सम्भाव्यताएं विद्यमान हैं.
पारम्परिक तौर पर कोयला, विद्युत् (मुख्य रूप से तापीय विद्युत्) तथा पेट्रोलियम पदार्थ ही ऊर्जा
के प्रमुख स्रोत हैं. कच्चे तेल के उत्पादन में वस्तुतः कोई वृद्धि नहीं हो सकी है. दूसरी ओर आर्थिक विकास
में तेजी आने के साथ कृषि में सिंचाई कार्यों हेतु पम्पिंग सैटों, ट्रैक्टरों एवं अन्य कृषि उपकरणों के बढ़ते प्रयोग,
औद्योगीकरण से डीजल चालित जनरेटरों के बढ़ते प्रयोग तथा वाहनों की बढ़ती संख्या से डीजलपेट्रोल की
माँग में कई गुना वृद्धि हो गई है. इसे पूरा करने के लिए तात्कालिक तौर पर विदेशों से कच्चे तेल का आयात
करने की नीति पर चला जा रहा है. दीर्घकालीन नीति कच्चे तेल के नए क्षेत्रों की खोज एवं तेल की निकासी
पर आधारित है, इसके तहत् निजी क्षेत्र घरेलू एवं विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को बढ़ावा दिया जा रहा है दीर्घकालीन
नीति के अन्तर्गत ही विद्युत् उत्पादन की नई क्षमता का सृजन, पारेषण से जुड़ी क्षति को कम करना तथा
सार्वजनिक निजी सहयोग को बढ़ावा देना है कोयला, पेट्रोलियम के बढ़ते उपयोग से पर्यावरणीय क्षति को कम
करने के क्रम में प्राकृतिक गैस आधारित विद्युत् गृहों की स्थापना पर बल दिया जा रहा है. संयुक्त राज्य
अमरीका से नाभिकीय समझौता करके नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में नए निवेश के मार्ग खोल दिए गए हैं.
भारत में अक्षय ऊर्जा के गैर-पारम्परिक सोतों-सौर ऊर्जा, जैव ऊर्जा, पवन ऊर्जा, लहिर ऊर्जा की भी
व्यापक सम्भाव्यता है इसके भी दोहन की नीति को कार्यरूप दिया जा रहा है भारत में अल्पकालीन ऊर्जा नीति
विद्यमान आस्तियों से अधिकतम प्रतिफल लेने पारेषण एवं अन्तिम उपभोग में हानियों को कम करने संगठनात्मक
एवं राजकोषीय उपायों से ऊर्जा संरक्षण को प्रोन्नत करने, विभिन्न उपभोग क्षेत्रकों की ऊर्जा सघनता को कम करने
के लिए पहल करने. ग्रामीण एवं शहरी घरों में ऊर्जा की | बुनियादी आवश्यकता को पूरा करने तथा घरेलू स्रोतों से
ऊर्जा की माँग के अधिकतम सन्तुष्टिकरण पर केन्द्रित रही है. इस दिशा में पहल करते हुए भारत सरकार ने ऊर्जा
संरक्षण अधिनियम 2001 पारित करके निम्नलिखित पहल की है-
* अत्यधिक ऊर्जा उपयोग करने वाले उद्यमों, प्रतिष्ठानों एवं वाणिज्यिक भवनों, को चिह्नित करना.
* अभिचिह्नित उपभोक्ताओं के लिए ऊर्जा उपयोग के मानक निर्धारित करना
* स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप ऊर्जा संरक्षण उपायों को अपनाना
* अधिसूचित उपकरणों पर अनिवार्य सूचना अकन लागू करना
* मानकों की कसौटी पर खरे न उतरने वाले उपकरणों के विनिर्माण विक्री क्रय तथा आयात को
प्रतिबन्धित करना.
एशिया के सबसे बड़े देश चीन की आर्थिक संवृद्धि दर विश्व में सर्वाधिक रही है और इसी के
अनुरूप चीन में ऊर्जा की माँग में भी वृद्धि हो रही है इसे पूरा करने के लिए जलविद्युत् एवं जैविक
ऊर्जा के प्रयोग पर सर्वाधिक बल दिया जा रहा है चीन ने ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (200610) में
औद्योगिक परिवहन निर्माण एवं व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में ऊर्जा बचत को बढ़ावा देने के लिए दिशा-
निर्देश जारी किए हैं इसके तहत् कोयला जलाने वाले औद्योगिक बायलरों का उन्नतीकरण, गुणवत्तायुक्त
कोयला का उपयोग करने, उच्च दक्षता युक्त 3,00,000 किलोवाट क्षमता की पर्यावरण, मित्रवत् को
जनरेशन इकाइयाँ स्थापित करने, स्वच्छ कोयला-पेट्रोलियम कोक एवं प्राकृतिक गैस के उपयोग को
बढ़ावा देकर पेट्रोलियम उत्पादों के उपयोग में कमी लाने उच्च दक्षता वाले विद्युत् मोटरों के उपयोग
का प्रयोग करने पर बल दिया जा रहा अधिकांश बड़े उद्योगों में ऊर्जा प्रणाली का अनुकूलतमीकरणे
चीन की प्राथमिकताओं में है आवासीय एवं व्यावसायिक भवनों में ऊर्जा की खपत में 50 प्रतिशत तक
की कमी लाए जाने की नीति पर चला जा रहा है.
प्रश्न. भारत में एक मध्यवर्गीय कामकाजी महिला की अवस्थित को पितृतंत्र (Patriarchy) किस प्रकार प्रभावित करता है ?
उत्तर- सदियों से भारतीय समाज पितृसत्तामक रहा है सामान्य तौर पर पितृसत्तामक विचारधारा की
मान्यता होती है कि महिलाओं का मुख्य कार्य घर तथा बच्चों को सँभालना है. पितृसत्तामक समाज में
सामान्यतया महिलाएं बाहर कार्य करने के लिए स्वतन्त्र नहीं होतीं और यदि परिस्थितिवश कोई महिला
बाहर कार्य करे, तो उसे बाहर कार्य करने के साथ-साथ घर के काम का भी दोहरा दबाव झेलना पड़ता
है. पितृसत्तात्मक समाज में माना जाता है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में कम काम करती हैं. अतः
महिलाओं को उनके पुरुष समकक्ष की तुलना में कम वेतन मिलता है.
इसके अतिरिक्त विडम्बना यह भी है कि यदि पति और पत्नी समान पद एवं समान वेतन पर कार्य
करते हैं, तो भी पत्नी को पति से हीनतर समझा जाता है, जबकि पत्नी दोहरी भूमिका का निर्वहन करती है.
भारत में महिलाओं को नौकरी पति अथवा उसकी ससुरालीजनों की इच्छा पर निर्भर करता है. यदि किसी
समय पति का स्थानान्तरण अन्यन्त्र हो जाता है, तो पत्नी को नौकरी छोड़ने पर विवश होना होता है. चलते
साथ ही यदि नौकरी के दबाव के यदि बच्चों की परवरिश में कोई कमी छूट जाए, तो ऐसे में पुरुषवादी
समाज महिलाओं को ही दोषी ठहराता है.
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि पितृसत्तात्मक समाजों में कामकाजी महिलाएं नकारात्मक रूप
से प्रभावित होती हैं. इसके अलावा पारिवारिक निर्णयों से उन्हें दूर रखा जाता है. लेकिन यहाँ एक तथ्य
ध्यातव्य है कि तेजी से बदलते हुए सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक बदलावों के चलते महिलाओं की
स्थिति में सकारात्मक परिवर्तन आ रहा है तथा उनके प्रयासों एवं कार्यों को महत्ता मिल रही है.
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