Upsc gk notes in hindi-56

Upsc gk notes in hindi-56

                              Upsc gk notes in hindi-56

प्रश्न. भारत के भूकम्पीय क्षेत्रों का विश्लेषण कीजिए:

भूकम्पीय क्षेत्र – साधारणतया भूकम्प कहीं भी आ सकते हैं, किन्तु कुछ क्षेत्र इसके लिए संवेदनशील
                       होते हैं जहाँ भूकम्पों के आघात अधिक होते हैं. ये क्षेत्र पृथ्वी के दुर्बल भाग होते हैं,
                       जहाँ वलन (फोल्डिंग) अंश (फ्राल्टिंग) जैसी हिलने की घटनाएं अधिक होती हैं.
        विश्व के भूकम्प क्षेत्र मुख्यतः दो तरह के भागों में हैं. एक परिप्रशान्त (सर्कम पैसिफिक) क्षेत्र जहाँ
प्रायः 90 प्रतिशत भूकम्प आते हैं और दूसरे-हिमालय, आल्पस आदि पहाड़ी क्षेत्र इनमें से अधिकांश
भाग ज्वालामुखीय भी हैं जहाँ कहीं भी ज्वालामुखी है, वहाँ भूकम्प अवश्य ही आते हैं, परन्तु प्रत्येक
भूकम्पीय क्षेत्र में ज्वालामुखी का होना आवश्यक नहीं है.
    भारत के भूकम्प क्षेत्र – भारत भूकम्प क्षेत्रों का देश के प्रमुख प्राकृतिक भागों से घनिष्ठ सम्बन्ध है
                                    संरचना के अनुसार भारत के मुख्य प्राकृतिक भागों के आधार पर देश को
                                   तीन भूकम्प क्षेत्रों में बाँटा जा सकता है
(1) हिमालयीय भूकम्प क्षेत्र – भू- संरचना की दृष्टि से यह भाग शेष देश से भिन्न है यह अभी भी अपने
                                  निर्माण की अवस्था में है. अतः भू-सन्तुलन की दृष्टि से यह एक अस्थिर क्षेत्र है.
                                  इस कारण इस क्षेत्र में सबसे अधिक भूकम्प आया करते हैं.
(2) उत्तरी मैदान का भूकम्प क्षेत्र- यह क्षेत्र हिमालय के दक्षिण में सिन्धु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों का मैदान
                                   है. इस मैदान की रचना असंगठित जलोढ़ मिट्टी से हुई है. हिमालय के निर्माण के
                                  समय सम्पीड़न फलस्वरूप इस मैदान में कई दरारें बन गई अतः भूगर्भिक हलचलों
                                  से यह प्रदेश शीघ्र कम्पित हो जाता है.
(3) दक्षिण के पठार का भूकम्प क्षेत्र- यह भारत का सबसे प्राचीन और कठोर स्थलखण्ड है. भू-सन्तुलन की
                                  दृष्टि से यह एक स्थिर भाग है. अतः इस क्षेत्र में बहुत ही कम भूकम्प आते हैं. पिछली
                                  कुछ शताब्दियों में इस क्षेत्र में केवल कुछ ही भूकम्प आए हैं जिनमें 1967 का कोयना
                                  भूकम्प अपना विशेष स्थान रखता है.
             भूकम्पीय जोन के आधार पर भारत को 4 भूकम्पीय जोन 2, 3, 4 और 5 में बाँटा गया है. जोन 5 सबसे
        अधिक तीव्रता वाला क्षेत्र है. इसमें कश्मीर राज्य (श्रीनगर, पंजाब, पश्चिमी मध्य हिमालय, उत्तरी-पूर्वी भारत
       सम्मिलित हैं) जोन 4 में सिंधु, गंगा का मैदान दिल्ली, जम्मू शामिल हैं जोन 3 में अंडमान निकोबार, कश्मीर
       का कुछ भाग, प. हिमालय का कुछ भाग शामिल है. बाकी क्षेत्र जोन 2 में शामिल हैं.

प्रश्न. ‘एक जनपद एक उत्पाद योजना न केवल उत्तर प्रदेश हेतु, अपितु सम्पूर्ण भारत के विकास हेतु एक महत्वपूर्ण पहल सिद्ध हो सकती है. व्याख्या कीजिए.

उत्तर-उत्तर प्रदेश सरकार ने 24 जनवरी 2018 को एक जनपद एक उत्पाद योजना का शुभारम्भ
किया था इस योजना के अन्तर्गत प्रत्येक जिले की खास शिल्प उत्पाद को चिह्नित करके उसके
उत्पादन तथा विपणन को प्रोत्साहित किया जाएगो अपने समावेशी उद्यमिता संवर्धन तथा रोजगार
सृजन विशेषताओं के कारण इसे उत्तर प्रदेश के रूपान्तरण के अभिकर्ता को संज्ञा दी जा सकती है.
यह योजना न केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं अपितु पूरे भारत के विकास हेतु महत्वपूर्ण पहल हो सकती
है. इस योजना के निम्नलिखित प्रावधान एवं विशेषताएं हैं-
* योजना की सर्वोत्तम विशेषता इसकी रोजगार सृजन सम्भावना तथा स्थानीय शिल्प/उत्पादों के उत्थान
को लेकर है. योजना से प्रतिवर्ष 5 लाख नए रोजगार अवसरों की सम्भावना है.
* योजना के तहत् प्रत्येक जनपद से चिह्नित उत्पाद के उत्पादन एवं विपणन को प्रोत्साहित किया जाएगा.
इससे न केवल स्थानीय स्तर पर अपितु राष्ट्रीय एवं वैश्विक स्तर पर भी स्थानीय उत्पादों का प्रसार होगा इससे
जनपद स्तर के कर्मकारों की आय बढ़ेगी तथा इससे उनकी उत्पादकता संवर्द्धन (प्रतिस्पर्धा में वृद्धि के कारण)
हेतु निवेश भी बढ़ेगा.
* आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, इस योजना के क्रियान्वयन से प्रदेश के सकल घरेलू उत्पाद में 2 प्रतिशत
   की वृद्धि का अनुमान है.
* जनपद स्तर पर उत्पादन बढ़ने से सीमान्त व्यक्ति भी लाभान्वित होंगे. जो समावेशी विकास के दर्शन के
 भी अनुकूल है.
* जनपद स्तर पर यह किसानों के लिए भी लाभदायक होगी, क्योंकि इससे उन माहों में जिसमें कृषि कार्य
   नहीं होते हैं, यह किसानों की अतिरिक्त आय की साधन बन सकती है इस प्रकार यह आम उद्योगों की
   तरह कृषि की कीमत पर नहीं अपितु कृषि को साथ लेकर चलने वाली पहल है.
* उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त इस योजना से पूरे भारत की आय में वृद्धि की | सम्भावना है. क्योंकि इसका
   सकल, प्रभाव भारत की जीडीपी को बढ़ाने वाला होगा.
* स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्धता से प्रवसन एवं अन्तर्राज्य द्वंद्व भी न केवल जाता रहेगा, अपितु इससे
  स्थानीय वस्तुओं की अन्तर्राज्यीय प्रतिस्पर्धा में श्री वृद्धि होगी, क्योंकि अन्य राज्य भी अपने स्थानीय उत्पादों
  का प्रसार करेंगे इसका समग्र प्रभाव भारतीय उत्पादन में वृद्धि के रूप में होगा.
* स्थानीय उत्पादों में निर्यात की भी बहुत बड़ी सम्भाव्यता है, क्योंकि ये अद्वितीय प्रकृति के होते हैं,
अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में यदि सही तरीके से प्रचार-प्रसार हो तो ये स्थानीय उत्पाद विदेशी मुद्रा अर्जन
की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण हो सकते हैं.
            इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि एक जनपद एक उत्पाद योजना बहुआयामी प्रभाव वाली
योजना हो सकती है, जिससे उत्तर प्रदेश के साथ-साथ सम्पूर्ण भारत लाभान्वित होगा.

प्रश्न. आरक्षण की बढ़ती मांगों को देखते हुए क्या यह कहा जा सकता है आज संस्कृतीकरण अप्रासंगिक हो गई है ?

उत्तर- संस्कृतीकरण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा कोई निम्न हिन्दु जाति या कोई जनजाति अथवा कोई
अन्य जातीय/ जनजातीय समूह किसी उच्च और प्रायः द्विज जाति की दिशा में अपने रीति-रिवाज,
कर्मकांड, विचारधारा और पद्धति को बदलता है. भारत में इसके अनेक उदाहरणमिलते हैं, जब
कई जातियाँ/जनजातियाँ संस्कृतीकरण की प्रक्रिया से गुजरी है. भील गोड़, औरॉव और हिमालय
की पहाड़ी जनजतियाँ हिन्दू जातियों का अनुकरण कर अपने को हिन्दू मानने लगी हैं. वहीं दक्षिण
भारत की कुछ दस्तकारी सुनार और लुहार / स्वयं को ब्राह्मण होने का दावा करने लगी हैं.
संस्कृतीकरण हेतु सिर्फ ऊँची जातियाँ ही आदर्श नहीं होती बल्कि क्षेत्रीय प्रभु जातियाँ
यथाविश्वकर्मा जातियाँ भी आदर्श हो सकती हैं एक जाति तब प्रभु कही जाती है जब
वह संख्या के आधार पर उस क्षेत्र विशेष में शक्तिशाली हो तथा प्रभावशाली आर्थिक एवं
राजनीतिक शक्ति रखती हो.
संस्कृतीकरण की परम्परागत अवधारण के विपरीत आजकल सामाजिक एवं आर्थिक रूप से
सम्पन्न मानी जाने वाली जातियाँ (जैसे हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश में जाट, गुजरात में पटेल, राजस्थान
में गुर्जर) भी आरक्षण की माँग कर रहे हैं, बावजूद इसके ये जातियाँ सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक
रूप से सबल हैं तथा ये अपने क्षेत्र की प्रभु जातियाँ भी हैं इस तरह दोनों को एक साथ देखें तो जातियों की
गतिशीलता में दो विपरीत प्रवाह दिखाई देते हैं  संस्कृतीकरण में जहाँ जातियाँ खुद को ऊपर की ओर उठाने
हेतु प्रयत्नशील हैं, वही आरक्षण में वे खुद को नीची एवं दलित मानने का तर्क दे रही हैं. ऐसे में जिस आरक्षण
की माँग दिनों दिन बढ़ती जा रही है. ऐसा प्रतीत होता है कि अब संस्कृतीकरण इतिहास की विषय-वस्तु
 बनती जा रही है.
            परन्तु यदि गहनता से अवलोकन किया जाए, तो स्पष्ट है कि संस्कृतीकरण एवं आरक्षण दोनों स्वरूप
एवं उद्देश्यों में भिन्नता रखते हैं जहाँ संस्कृतीकरण का स्वरूप सामाजिक, सांस्कृतिक है और इसके तहत्
जातियाँ सामाजिक समानता का उद्देश्य आर्थिकरखती है, तो वहीं आरक्षण राजनीतिक स्वरूप का उद्देश्य
रखती है, और इसमें जातियाँ आर्थिक उत्थान का उद्देश्य रखती है इस तरह यह कहा जाना कि आरक्षण
संस्कृतीकरण को अप्रासंगिक बना रहा है, तर्कसंगत नहीं होगा निष्कर्षतः आज भी भारत में दोनों प्रक्रियाएं
समान्तर चलती दिखाई देती हैं.

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