Upsc gk notes in hindi-66

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प्रश्न. संसदीय प्रणाली में संसदीय समितियों की भूमिका का उल्लेख करें.

उत्तर- संसदीय समितियों संसदीय प्रणाली में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. ये संसद, कार्यपालिका
और आम जनता के बीच की मजबूत कड़ी होती हैं. समितियों की आवश्यकता दो कारणों से होती है.
पहला कारण कार्यपालिका की कार्रवाइयों पर विधायिका की ओर से निगरानी की जरूरत होना, जबकि
दूसरा कारण यह है कि इन दिनों आधुनिक विधायिका के पास अत्यधिक कार्य होता है और उसके पास
उन्हें निपटाने के लिए सीमित समय होता है. इस प्रकार प्रत्येक मामले पर सभा में विस्तृत और सुव्यवस्थित
ढंग से जाँच कर पाना और उन पर विचार किया जाना असंभव हो जाता है. यदि इस कार्य को क्ति संगत
ढंग से ध्यानपूर्वक किया जाना है तो स्वाभाविक रूप से किसी ऐसे अभिकरणों को कुछ संसदीय दायित्व
सौंपना होगा जिस पर पूरी सभा को विश्वास हो. इसलिए सभा के कतिपय कार्यों को समितियों को सौंपा
जाना एक सामान्य परिपाटी बन गई है. यह इस बात से और भी आवश्यक हो गया है कि समिति के पास
उसे भेजे गए किसी मामले के सम्बन्ध में, विशेषज्ञता होती है किसी समिति में मामले पर पेशेवर ढंग से
और अपेक्षाकृत शांत माहौल में विस्तार से सोच-विचार किया जाता है, मुक्त रूप से विचार व्यक्त किए
जाते हैं, और मामले पर गहराई से विचार किया जाता है. अधिकांश समितियों में जनता प्रत्यक्ष अथवा
अप्रत्यक्ष ढंग से तब सम्बद्ध होती है जब उनसे सुझावों सम्बन्धी ज्ञापन प्राप्त होते हैं, मौके पर उनका
अध्ययन किया जाता है और भौखिक साक्ष्य लिया जाता है जिससे समितियों को निष्कर्ष पर पहुंचने में
मदद मिलती है.
समितियाँ विधायिका को उसके दायित्वों के निर्वहन करने और उसके कार्यों को कारगर ढंग से, शीघ्रता
से और कुशलता से विनियमित करने में सहायता करती है. समितियों के माध्यम से संसद, प्रशासन पर
अपने नियंत्रण और प्रभाव का प्रयोग करती है. संसदीय समितियाँ कार्यपालिका पर हितकारी प्रभाव डालती
हैं इन समितियों का उद्देश्य प्रशासन को कमजोर करना नहीं है, बजाय इसके ये कार्यपालिका द्वारा प्रयोज्य
शक्ति के दुरुपयोग को रोकती हैं.

प्रश्न. श्रीलंका की भू-राजनीतिक स्थिति भारत के लिहाज से बेहद संवेदनशील है. टिप्पणी करें.

उत्तर- 11 नवम्बर, 2021 को भारत एवं श्रीलंका ने अपने संसदीय मैत्री संघ’ का नवीनीकरण किया इस
हेतु श्रीलंकाई सरकार में मंत्री चमल राजपक्ष (Chamal Raja-Paksha) को इसका अध्यक्ष बनाया गया है.
इस संघ को वर्तमान संसद हेतु नवीनीकृत किया गया, जिसको 2020 में निर्वाचित किया गया था. इस संघ
का उद्देश्य संसदीय बातचीत एवं दोनों लोकतंत्रों के मध्य द्विपक्षीय सम्बन्धों को मजबूत करना है. विदित हो
कि सांस्कृतिक | रूप से श्रीलंका भारत के काफी निकट से जुड़ा है. बौद्ध धर्म श्रीलंका में भारत के जरिये ही
पहुँचा. गौरतलब है कि चीन की महत्वाकांक्षी ‘मोतियों की माला रणनीति की प्रतिक्रिया में भारत द्वारा अपने
पड़ोसियों को साधना बेहद आवश्यक है. भारत एवं श्रीलंका के बीच मैत्री सम्बन्ध 2500 वर्ष से भी पुराना है.
दोनों देशों के बीच बौद्धिक, सांस्कृतिक, धार्मिक एवं भाषाई | आदान-प्रदान ऐतिहासिक द्विपक्षीय दृष्टिकोण
की अभिव्यक्ति है.
गौरतलब है कि श्रीलंका की भूराजनीतिक स्थिति भारत के लिहाज से बेहद संवेदनशील है वर्तमान में चीन
के द्वारा हिन्द महासागर में क्रियान्वित अतिसक्रियता भारत को इस बात के लिए सचेत करती है कि वह
श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों से अपने सम्बन्ध बेहतर करे. चीन हिन्द महासागर से लगे क्षेत्रों जैसे, ग्वादर
(पाकिस्तान), चित्तगोंस (ब्रॉग्लादेश), क्युअक फ्रू (म्यांमार) एवं हंबनरोज (श्रीलंका) में रणनीतिक/ एवं सैन्य
गतिविधि को बढ़ावा दे रहा है. इसके अतिरिक्त व्यापारिक दृष्टिकोण से श्रीलंका. काफी संवेदशील देश है.
इस तरह भारत के लिए श्रीलंका बेहद आवश्यक पड़ोसी है, जो न केवल सांस्कृतिक रूप से भारत के बेहद
करीब है बल्कि राष्ट्रहित के सन्दर्भ में भी बेह महत्वपूर्ण देश है. चूँकि बीलंका BIMSTEC एवं सार्क का सदस्य
है इसलिए भारत के लिए श्रीलंका को साथ में लेकर चलना रणनीतिक रूप से बेहद आवश्यक है.

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